Unique Geography Notes हिंदी में

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SETTLEMENT GEOGRAPHY (बस्ती भूगोल)

19. बहुस्तरीय नियोजन

19. बहुस्तरीय नियोजन



बहुस्तरीय नियोजनबहुस्तरीय नियोजन

          भारत भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विविधताओं वाला देश है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने भारत को एक संघीय राष्ट्र के रूप में स्थापित किये। भारत जैसे विविधता वाले देश में संविधान निर्माताओं ने बहुस्तरीय नियोजन की आवश्यकता महसूस किया। प्रो० R.P. मिश्रा, L.S. भट्ट और L.K. सेन जैसे भूगोलवेताओं ने भी बहुस्तरीय नियोजन को भारत के संदर्भ में उपयुक्त माना है।

     बहुस्तरीय नियोजन का तात्पर्य वैसी व्यवस्था से है जिसके तहत कई स्तर पर योजनाओं एवं विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का निर्माण, क्रियान्वयन और मूल्यांकन किया जाता है। बहुस्तरीय नियोजन कई स्तरीय राजनैतिक एवं प्रशासनिक तंत्र से मिला जुल एक तंत्र होता है जिसके ऊपर विभिन्न प्रकार कार्यक्रमों का निर्माण करना और उसे क्रियान्वयन करने का उत्तरदायित्त्व होता है।

           विश्व के कई बड़े-2 देश बहुस्तरीय नियोजन के माध्यम से ही सामाजिक-आर्थिक एवं प्रादेशिक विषमताओं को दूर करने के लिए विकास कार्यों को अंजाम दे रहे हैं।
                    भारत में नियोजन का कार्य छः स्तरीय प्रदानुक्रमिक स्तर के द्वारा संचालित किया जा रहा है। जैसे-

(1) केन्द्र स्तरीय नियोजन

(2) राज्य स्तरीय नियोजन

(3) जिला स्तरीय नियोजन

(4) प्रखण्ड स्तरीय नियोजन

(5) ग्राम पंचायत स्तरीय नियोजन

(6) ग्राम सभा स्तरीय नियोजन

(1) केन्द्र स्तरीय नियोजन-

       भारत में संघीय प्रशासनिक व्यवस्था होने के कारण भारत में सामाजिक, आर्थिक नियोजन और विकास का दायित्व केन्द्र सरकार पर होता है। केन्द्र में इसका सर्वोच्च अधिकारी राष्ट्रपति होता है लेकिन वास्तविक कार्यकारिणी प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद होता है।

        केन्द्र स्तर पर योजना आयोग का गठन किया गया है। जो विभिन्न एजेन्सियों की सहायता से देश के विभिन्न संसाधनों का मूल्यांकन कर योजनाओं का निर्माण करता है। योजना आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। इसलिए इनका निर्णय राष्ट्रीय महत्त्व का होता है हालाँकि इस संस्था का गठन संविधान के तहत नहीं किया गया है।

       योजना आयोग योजनाओं का निर्माण कर राष्ट्रीय विकास परिषद के समक्ष रखता है। NDC की इच्छा पर यह निर्भर करता है कि योजना आयोग के द्वारा लाया गया कार्यक्रम को लागू किया जाए या नहीं। जब किसी योजना का NDC स्वीकार्य कर लेता है तो वित आयोग की अनुसंशा के आधार पर केन्द्र एवं राज्यों के बीच आवंटन एवं धन राशि बँटवारा किया जाता है।

     संघ स्तर पर धन-राशि की संग्रह और उसके वितरण संघसूची में उल्लेखित विषय से इकट्टा किये गये धन का होता है। केन्द्र सरकार सुरक्षा ,परिवहन, संचार विकास, वन विकास, बाद एवं सूखा जैसे विषयों पर ध्यान केन्द्रित करती है।

       केन्द्र सरकार अपना धन विभिन्न मंत्रालयों के माध्यम से खर्च करती हैं। मन्त्रिपरिषद संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इन्हें प्रतिवर्ष अपना वित्तीय लेखा-जोखा संसद के समक्ष रखना पड़ता है। संसद कटौती प्रस्ताव एवं टोकेन प्रस्ताव के द्वारा खर्च पर नियंत्रण रखती है।
नोट : अब योजना आयोग का कार्य नीति आयोग द्वारा किया जाने लगा है।

(2) राज्य स्तरीय नियोजन-

        भारत में राज्यों के नियोजन प्रदेश के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। हालांकि भारत में राज्यों का गठन विशुद्ध रूप में भौगोलिक एवं आर्थिक कारकों के आधार पर नहीं किया गया है। बल्कि राज्यों के गठन में भाषा को अधिक महत्व दिया गया है। राज्य स्तर पर कई ऐसे नियोजन के कार्य किये गए है जो राजनीतिक सीमाओं का उल्लंघन करते हैं। जैसे कृषि-जलवायु प्रदेश का नियोजन।

               राज्य स्तर पर नियोजन का कार्य राज्य नियोजन बोर्ड के द्वारा किया जाता है। यह योजना आयोग के समान सशक्त और सक्षम नहीं है क्योंकि किसी भी योजना या कार्यक्रम को मॉडल का निर्धारण योजना आयोग ही कर देती है। ऐसे में राज्य नियोजन बोर्ड का प्रमुख कार्य विभागीय खर्च का लेखा-जोखा रखने के अलावे कोई कार्य नहीं रह जाता है।

       दूसरा इसके महत्व में कमी आने का कारण यह है कि राज्य मंत्रिमण्डल के सदस्य लघु स्तर पर अपने क्षेत्र के लोगों से सीधे जुड़े होते हैं। ऐसे में मंत्रिमण्डल के सदस्य विकास के लिए अपनी बात राज्य वियोजन बोर्ड में नहीं रखते हैं बल्कि मंत्रिमंडल की बैठक में रखते है।

               राज्य नियोजन बोर्ड और राज्य सरकार राज्य सूची के आधार पर विकास कार्यों को अंजाम देती है। इसके अलावे केन्द्र सरकार के द्वारा जो कार्यक्रम लागू किये जाते हैं। उसे राज्य में क्रियान्वित करने का उत्तरदायित्व होता है।

           राज्य सूची के विषय पर नियोजन का कार्य करने का अधिकार राज्य सरकार को सौपा गया है। केन्द्र सरकार के तर्ज पर ही राज्य व संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल होते हैं जो मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैं। राज्यपाल राज्य एवं केन्द्र के बीच कड़ी का कार्य करते हैं।

       राज्य विधानसभा में भी प्रत्येक वर्ष राज्य सरकार को वित्तीय लेखा-जोखा रखना पड़ता है। विधानसभा यहाँ भी कटौती प्रस्ताव, टोकन प्रस्ताव के माध्यम से खर्च पर नियंत्रण रखती है। राज्य सरकार मूलतः राजमार्गो के निर्माण, सिंचाई, वन और विद्युत से संबंधित नियोजन कार्यों को अंजाम देती है।

(3) जिला स्तरीय नियोजन- बहुस्तरीय नियोजन की सबसे प्रमुख इकाई जिला नियोजन को माना गया है। इसे नीचे के मॉडल से समझा जा सकता है-
केन्द्र

राज्य

जिला

प्रखण्ड

पंचायत
           जिला स्तरीय नियोजन ऊपरी स्तरीय केन्द्र एवं राज्य और निचली स्तरीय प्रखण्ड एवं पंचायत के बीच योजक कड़ी का कार्य करता है। पुन: संवैधानिक एवं प्रशासनिक महत्व के साथ-2 यह एक ऐसी लघु स्तरीय इ‌काई हैं जहाँ पर प्रशासक एवं नियोजक आम जनता के संपर्क में रहती है। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए चौथी पंचवर्षीय योजना में केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को यह सलाह दिया था कि आप प्रत्येक जिला में जिला नियोजन बोर्ड क गठन करे।

       पुनः छठी पंचवर्षीय योजना के दौरान केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार को सलाह दिया कि आप जिला नियोजन सृजित करें ताकि जिला अधिकारियों के ऊपर जो कार्य का दबाव बना रहता है उस दबाव को कम किया जा सके।

            नवीन पंचायती राज व्यवस्था के तहत लघु स्तरीय विकास के लिये प्रत्येक जिला में जिला परिषद के गठन का प्रावधान किया गया है। इस परिषद में तीन प्रकार के सदस्य शामिल होते हैं।

प्रथम- जिला के निर्वाचित सभा सदस्य जैसे- लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधान परिषद के सदस्य,

दूसरा- प्रत्येक जिला के प्रखण्ड स्तरीप प्रमुख नगर निगम एवं नगरपालिका के निर्वाचित सदस्य,

तीसरा- प्रत्येक जिला के जिला स्तरीय पदाधिकारी, इंजीनियर तथा कुछ विशेषज्ञ लोग इसमें शामिल होते हैं।      

जिला परिषद के तीन प्रमुख कार्य होते है-

(i) लघु स्तर पर नियोजन के नीतियों का निर्धारण करना और पंचायत स्तरीय नियोजन के बीच समन्वय स्थापित करना।

(ii) प्राथमिकता के आधार पर धन राशि का आवंटन करना।

(iii) विकास कार्यों का मूल्यांकन खर्च किये धन राशि का Audit तथा केन्द्र एवं राज्य से जरूरत के अनुसार धन राशि की माँग करना तथा पंचायतों को यह सलाह देना, इनका कार्य सांवैधानिक प्रावधानों के अनुसार Tax लगा सकते है।

     जिला परिषद निर्वाचित सदस्यों एवं पदेन पदाधिकारियों का परिषद होता है जिसके कारण राजनीतिक हितों के टकराव की संभावना बनी रहती है। ऐसे में नियोजन कार्य प्रभावित होने की संभावना बनी रहती है।

(4) प्रखण्ड स्तरीय नियोजन-

          प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान ही 1952 ई० में सामुदायिक विकास प्रखंडों की स्थापना की गई थी जिसका मुख्य उद्देश्य था- ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक विकास करना।

             भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसलिए कृषि आधारित नियोजन पर बल दिया गया। कुछ राज्यों में प्रखण्ड स्तर पर B.A.O. (Block Agriculture Officer) की नियुक्ति की। लेकिन कुछ ऐसा नहीं कर पाये। कुछ राज्य सामुदायिक स्तर पर नियोजन अथवा कृषि पदाधिकारी की नियुक्त न कर B.D.O. की नियुक्ति कर संतुष्ट हो गये। लेकिन BDO के उपर अनेक प्रकार के प्रशासनिक जबावदेही होने के कारण विकास कार्यों को इन लोगों ने गौण कर दिया। पुनः 1976 ई0 के बाद पंचायतों का चुनाव न करवाये जाने के कारण सामुदायिक प्रखण्ड की अवधारणा असफल हो गई।

          समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) छठी पंचवर्षीय योजना के दौरान जब IRDP लागू किया जाने लगा तो इसके लिए सामुदायिक विकास प्रखण्ड को ही एक इकाई के रूप में चुना गया। 1977 ई० में गठित दाँतावाला कमिटि ने यह विचार प्रकट किया कि IRDP को न केवल प्रखण्ड स्तर पर लागू किया जाय, बल्कि निम्नलिखित 13 कार्यों को संपादित करने हेतु जबावदेही भी सुनिश्चित को जाय। ये 13 कार्य निम्नलिखित थे-

(1) कृषि और उससे संबंधित विकास कार्य

(2) लघु सिंचाई की व्यवस्था करना।

(3) मृदा संरक्षण की दिशा में कार्य करना

(4) पशुपालन एवं मुर्गीपालन की व्यवस्था करना।

(5) मत्स्य पालन

(6) वानिकी कार्यक्रम

(7) कृषि परिसंस्करण

(8) बाजार का प्रबंधन

(9) कुटीर एवं लघु उद्योग का विकास

(10) प्रशिक्षण कार्यक्रम

(11) कल्याणकारी कार्यक्रम

(12) चिकित्सा, शिक्षा, पेयजल, पोषण, आवास जैसे सामाजिक सेवाओं का विकास।

(13) स्थानीय आधारभूत संरचनाओं का विकास।

         स्पष्ट है कि दातावाला कमिटि की अनुशंसा के आधार पर उपरोक्त कार्यों को संचालित करने हेतु प्रखण्ड स्तरीय नियोजन की नींव रखी गयी। नवीन पंचायती राज व्यवस्था के तहत पंचायत समीति का गठन कर इस संस्था को लोकतांत्रिक बनाने का प्रयास किया है ताकि नियोजन के कार्यों को और त्वरित किया जाय।

ग्राम पंचायत एवं ग्रामसभा        

     73 वें संविधान संशोधन के तहत नियोजन हेतु सबसे निचले स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था का गठन किया गया है। भारत में इसका गठन बलवन्त राय मेहता समिति की अनुसंशा पर किया गया था। 73वें संविधान संशोधन के तहत इसे संवैधानिक दर्जा दिया गया तथा 11वीं अनुसूची में पंचायतों को 29 कार्य सौपे गये। इनमें से कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित है:-
(1) कृषि विकास

(2) भूमि सुधार,

(3) लघु सिंचाई विकास,

(4) पशुपालन, दुग्ध कृषि, कुक्कुट पालन

(5) मत्स्यपालन

(6) सामाजिक वानिकी

(7) लघु एवं कुटीर उद्योग

(8) कृषि प्रसंस्करण उद्योग

(10) आवास, ईंधन, चारा

(11) पेयजल सुविधा का विकास।

(12) सार्वजनिक वितरण प्रणाली

(13) प्राथमिक शिक्षा एवं चिकित्सा

(14) गरीबी निवारक कार्यक्रम

(15) विद्युतीकरण

(16) गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का विकास

(17) ग्रामीण परिवहन का विकास           

     इत्यादि का उत्तरदायित्व सौंपा गया। यह व्यवस्था किया गया है कि ग्राम पंचायतों के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक वित्तीय वर्ष में दिये गये उनके कार्यों के प्राथमिकता का निर्धारण करें और ग्रामसभा से अनुमति लेकर पंचायत समीति के पास भेजती है। पंचायत समीति ग्राम पंचायत के द्वारा भेजती है।

       पंचायत समिति ग्राम पंचायत के द्वारा भेजे गये प्रस्ताव की जाँच करती है और पुनः प्राथमिकता के आधार पर ही लागू करने के लिए जिला परिषद के पास अनुसंशा करती है। जिला परिषद से जब अनुमति मिल जाती है तो ग्राम पंचायत इसे लागू करती है और पंचायत समीति उस‌ पर निगरानी रखती है। स्वर्ण जयन्ती स्वरोजगार योजना, नरेगा जैसे कार्यक्रम पंचायत स्तर पर ही संचालित किये जा रहे हैं।

निष्कर्ष :

       अतः ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में बहुस्तरीय नियोजन की व्यवस्था की गई है जो लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप है। लेकिन राज्यों के द्वारा पंचायतों से पूरा अधिकार नहीं दिये जाने के कारण सुचारू रूप से पंचायतें कार्य नहीं कर पा रही हैं। ऐसे में जल्द-से-जल्द राज्यों को पदानुक्रमिक नियोजन में विश्वास करते हुए नीचले स्तर के संस्थाओं को और मजबूत करना चाहिए। केंद्र को चाहिए कि गाँव के विकास हेतु सीधे पंचायतों को धन उपलब्ध करवाये और बहुस्तरीय नियोजन प्रणाली के तहत उस प निगरानी रखा जाय।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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