Unique Geography Notes हिंदी में

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SETTLEMENT GEOGRAPHY (बस्ती भूगोल)

22. Multiple Nuclei Theory (बहुनाभिक सिद्धांत)

22. Multiple Nuclei Theory (बहुनाभिक सिद्धांत)



Multiple Nuclei       

       यद्यपि संकेन्द्रित क्षेत्र और खण्ड क्षेत्र सिद्धान्त को अपनी आकर्षक सरलता का लाभ मिला, किन्तु अधिकांश नगरों की संरचना में इतनी अधिक जटिलता एवं विविधता पाई जाती है कि उसका सरलीकरण या सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता है। 1945 में सी. डी. हैरिस और ई. एल. उल्मान ने नगरीय संरचना के विविध प्रारूपों पर लागू होने वाले बहुनाभिक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

         इस सिद्धान्त के अनुसार नगर का भूमि उपयोग प्रतिरूप एक ही केन्द्र या नाभि के चारों ओर विकसित न होकर प्रायः कई अलग-अलग केन्द्रों के चारों ओर विकसित होता है। इस प्रकार के विकास से नगर की संरचना कोशिकीय (Cellular) हो जाती है। इस कोशिकीय संरचना का निर्धारण नगर के अवस्थान (Site) सम्बन्धी विलक्षण कारकों और ऐतिहासिक कारकों द्वारा होता है। हैरिस एवं उल्मान के अनुसार भिन्न-भिन्न केन्द्र या नाभिक कुछ नगरों में उत्पत्ति के समय ही अस्तित्व में आ जाते हैं जबकि कुछ नगरों में इनका विकास नगर की वृद्धि के साथ-साथ होता रहता है। नगरों में भिन्न-भिन्न केन्द्रों या नाभि तथा उन पर निर्भर भूमि उपयोग कटिबन्धों का बनना निम्नलिखित चार कारकों के संयोजन का परिणाम होता है:

(i) कुछ मानवीय क्रियाकलापों को विशिष्ट सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जैसे- खुदरा व्यापार का क्षेत्र नगर में परिवहन की दृष्टि से सर्वाधिक गम्य स्थान के पास, बन्दरगाह अनुकूल सागरीय तट पर तथा विनिर्माण उद्योग विस्तृत भू-भाग और जल, स्थल तथा रेल मार्गों से संयोजित होने जैसी सुविधाओं पर ही विकसित होते हैं।

(ii) कुछ क्रियाएँ साथ-साथ पाई जाती हैं, क्योंकि उन्हें सम्बद्धता से लाभ प्राप्त होता है। जैसे, वित्तीय संस्थान एवं कार्यालयों के क्षेत्र यातायात एवं संचार सुविधाओं की उपलब्धता पर निर्भर होते हैं।

(iii) कुछ भिन्न प्रकृति की क्रियाएं एक-दूसरे के लिए हानिकारक होती हैं। इस दृष्टि से औद्योगिक क्षेत्र एवं उच्च श्रेणी आवासीय क्षेत्र का विरोधाभास सर्वविदित है। खुदरा व्यापार क्षेत्र में पैदल चलने वालों, दो पहिया वाहनों और कारों का भारी जमाव पाया जाता है, जो कि थोक व्यापार क्षेत्र के लिए आवश्यक रेल मार्ग सुविधाओं, विस्तृत स्थान एवं भारी सामान को लादने एवं उतारने जैसी क्रियाओं के प्रतिकूल है।

(iv) कुछ क्रियाएँ सर्वाधिक वांछनीय स्थलों को ऊँचा किराया या मूल्य देने में असमर्थ होती हैं। यह कारक इन क्रियाओं के अन्यत्र संयोजन का कार्य करता है। जैसे, थोक व्यापार एवं भण्डारण जैसी क्रियाओं के लिए अधिक कमरों या बहुत अधिक स्थान की आवश्यकता होती है, जो कि केन्द्र के निकट सम्भव नहीं है। इसी प्रकार निम्न आय वर्ग के आवास ऊंचे भूमि मूल्यों के कारण उच्च आय वर्ग के आवासीय क्षेत्र में स्थापित नहीं होते हैं।

        नाभिकों या केन्द्रों की संख्या विभिन्न नगरों में भिन्न-भिन्न होती है। इनकी संख्या ऐतिहासिक विकास तथा अवस्थिति शक्तियों का परिणाम होती है। नगर जितना बड़ा होता है, उसमें उतने ही अधिक एवं विशिष्ट केन्द्र मिलते हैं। हैरिस एवं उल्मान के अनुसार नगरों में केन्द्रों के चारों ओर विकसित होने वाले क्षेत्र निम्नलिखित हैं:

1. केन्द्रीय व्यापार क्षेत्र (Central Business District)

2. थोक व्यापार एवं हल्का विनिर्माण औद्योगिक क्षेत्र (Wholesale and Light Manufacturing)

3. भारी उद्योग क्षेत्र (Heavy Manufacturing)

4. उपनगर एवं अनुषंगी नगर (Suburb and Satellite)

5. लघु नाभि केन्द्र (Minor Nuclei)

6. आवासीय क्षेत्र (Residential)

7. भारी व्यापारिक पेटी (Heavy Business District)
8. रिहाइशी उपनगर (Residential Suburb)
9. औद्योगिक उपनगर (Industrial Suburb)

1. केन्द्रीय व्यापार क्षेत्र:-

       यह क्षेत्र अन्तरानगरीय यातायात सुविधाओं के केन्द्र में स्थित होता है। यह नगर के विभिन्न भागों से यातायात द्वारा जुड़ा होता है और नगर के सभी भागों से गम्य होता है। यहाँ भूमि का मूल्य सर्वाधिक होता है। डिपार्टमेण्टल स्टोर, वेरायटी स्टोर, रेडीमेड वस्त्र स्टोर, सर्वाधिक खुदरा व्यापार एवं सर्वाधिक ग्राहक संख्या इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं।

      छोटे नगरों में वित्तीय संस्थान और कार्यालय भवन भी खुदरा व्यापार की दुकानों के साथ मिले जुले रूप में मिलते हैं जबकि बड़े नगरों में इनका क्षेत्र खुदरा क्षेत्र के पास, किन्तु अलग स्थित होता है। अधिकांश बड़े नगरों की विषम वृद्धि के कारण केन्द्रीय व्यापार क्षेत्र अब सामान्यतः नगरों के क्षेत्रीय केन्द्र में स्थित न होकर वास्तव में किसी एक किनारे के पास मिलता है।

2. थोक व्यापार एवं हल्का विनिर्माण औद्योगिक क्षेत्र:-

      थोक व्यापार क्षेत्र प्रायः केन्द्रीय व्यापार क्षेत्र के निकट (किन्तु उसके चारों ओर नहीं) यातायात मार्गों के सहारे सहारे स्थित होता है। यद्यपि इसको कुछ आधार स्वयं नगर से प्राप्त होता है, किन्तु यह प्रमुख रूप से पड़ोसी क्षेत्रों को सेवाएँ प्रदान करता है। अनेक प्रकार के हल्के विनिर्माण उद्योगों के विशिष्ट भवनों की आवश्यकता नहीं होती है। इन उद्योगों को तो अच्छे रेल एवं सड़क यातायात सम्पर्क, बड़े भवनों की उपलब्धि तथा स्वयं नगर के बाजार एवं श्रम से निकटता जैसी सुविधाएँ इन्हें आकर्षित करती हैं।

3. भारी उद्योग क्षेत्र:-

       यह क्षेत्र नगर के वर्तमान या पूर्ववर्ती बाह्य किनारों के निकट स्थित होता है। भारी उद्योगों को भूमि के बड़े भाग तथा अच्छी रेल, सड़क एवं जल यातायात सुविधाओं की आवश्यकता होती है। जो कि उन्हें नगर के केन्द्रीय भाग की अपेक्षा सीमावर्ती भाग में आसानी से उपलब्ध होती है। इसके अतिरिक्त भारी मशीनों से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण, उद्योगों द्वारा छोड़े जाने वाले हानिकारक अपशिष्टों और जान-माल के अन्य खतरों की वजह से भारी उद्योगों को नगर केन्द्र से दूर स्थित होने के लिए बाध्य करते हैं। यही कारण है कि नगरों की बाहरी सीमा पर भारी उद्योगों का स्थानीयकरण मिलता है।

4. उपनगर एवं अनुषंगी नगर:-

       उपनगर चाहे वह आवासीय हो या औद्योगिक, अधिकांश बड़े नगरों की प्रमुख विशेषता है। उपनगर एवं अनुषंगी नगर भी नगरों के विकास में केन्द्रों या नाभि के रूप में कार्य करते हैं। मोटर यातायात तथा उपनगरीय रेल सेवाओं के विकास ने उपनगरीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया है। अनुषंगी नगर केन्द्रीय नगर से कई किमी दूर तथा सामान्य रूप से दैनिक अभिगमन की मात्रा भी कम होने के कारण उपनगर से भिन्न होते हैं। अनुषंगी नगरों की आर्थिक क्रियाएं उनकी केन्द्रीय नगर से निकटता प्रदर्शित करती है।

5. लघु नाभि केन्द्र:-

         नगर के विभिन्न भागों में छोटे-छोटे केन्द्र पाए जाते हैं जैसे, सांस्कृतिक केन्द्र, बाह्यवर्ती व्यापार केन्द्र तथा छोटे औद्योगिक केन्द्र, आदि। एक विश्वविद्यालय भी किसी नगर में स्वतन्त्र रूप से नाभि या केन्द्र के रूप में कार्य कर सकता है। पार्क एवं अन्य मनोरंजन के क्षेत्र भी, जो कि बेकार पड़ी हुई भूमि को अधिग्रहीत किए हुए होते हैं, कभी-कभी उच्च श्रेणी के आवासीय क्षेत्र के केंद्र के रूप में विकसित हो जाते हैं। बाह्यवर्ती व्यापारिक क्षेत्र भी कालान्तर में प्रमुख केन्द्र बन जाते हैं, किन्तु छोटी संस्थाओं और हल्के विनिर्माण उद्योगों की व्यक्तिगत इकाइयों जैसे, बेकरी में ऐसी क्षमता नहीं होती है।

6. आवासीय क्षेत्र:-

        सामान्यतः उच्च श्रेणी के आवास अच्छा जल प्रवाह रखने वाले ऊंचे स्थलों पर तथा शोर, धुआं, दुर्गन्ध, रेलमार्ग, आदि से दूर स्थापित होते हैं। निम्न श्रेणी के आवास प्रायः कारखानों तथा रेलमार्गों के निकट स्थापित होते हैं। नगर के अधिक पुराने आवासीय क्षेत्रों जहाँ कि अधिकांश भवनों का ढाँचा जर्जर अवस्था में होता है, में भी निम्न वर्ग के लोगों के आवास होते हैं। यह वर्ग नगर के अन्य भागों में अधिक किराया देने में असमर्थ होता है। उच्च और निम्न श्रेणी के आवासीय क्षेत्रों के बीच में मध्यम श्रेणी के लोगों का रिहायशी क्षेत्र बन जाता है।

निष्कर्ष:

        यद्यपि वर्तमान समय में कोई भी एक सिद्धान्त नगरों पर पूर्णतया लागू नहीं होता है, किन्तु अधिकांश नगरों में तीनों ही प्रकार के यथा, संकेन्द्रित वलय, खण्ड क्षेत्र और बहुनाभिक क्षेत्र का कोई न कोई रूप अवश्य देखने को मिलता है।

     वस्तुतः एक नगर के विकास के विभिन्न कालों में कार्यरत विभिन्न शक्तियों के कारण ही एक नगर में उपरोक्त वर्णित तीनों सिद्धान्तों का सामंजस्य देखने को मिलता है।

      नगर की प्रारम्भिक वृद्धि केन्द्रीय क्षेत्र और नाभि केन्द्रों के चारों ओर होती है। कालान्तर में होने वाली वृद्धि परिवहन मार्गों के सहारे होती है। यह वृद्धि खण्ड प्रारूप को जन्म देती है। अन्त में भूमि मूल्यों के अनुसार भूमि का उपयोग जो नग के केन्द्र से दूरी के अनुसा निर्धारित होता है, नगरीय भूमि उपयोग को संकेन्द्रित प्रारूप प्रदान करता है।

प्रश्न प्रारूप

1. नगरीय आकारिकी के सम्बन्ध में प्रतिपादित बहुनाभिक सिद्धांत (Multiple Nuclei Theory) का वर्णन कीजिए।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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