24. Fisheries of Japan (जापान का मत्स्योत्पादन)
24. Fisheries of Japan
(जापान का मत्स्योत्पादन)
परिचय
जापान एशिया के पूरब में स्थित प्रशांत महासागर में एक द्वीपीय देश है। जापान में प्राचीनकाल से ही कृषि, वानिकी, मत्स्य उत्पादन और कुटीर उद्योग अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार रहे हैं। हलांकि अपनी सीमित कृष्य भूमि के कारण जापानी किसान गहन कृषि के पक्षधर रहे हैं। फिर भी खाद्यान्नों की कमी को मछली की आपूर्ति से पूरा करते आ रहे हैं। आज भी भोजन के लिए जापान अपनी भूमि से पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादित नहीं कर पाता है, फलतः मछली भोजन में अपना प्राधान्य बनाये हुए है।
मत्स्य उत्पादन:-
जापान में मत्स्य उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिसका प्रमुख कारण जापान के चुर्दिक विशाल जलराशि की उपस्थिति है। यही कारण कारण है कि जापान विश्व के तीन बड़े मछली पकड़ने वाले देशों में से एक हैं। 1959 से जापान विश्व का अग्रणी मछली पकड़ने वाला देश बन गया और 1993 के पश्चात् इसका स्थान प्रथम हो गया है। जापान में विश्व की 12.3 प्रतिशत मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। मछलियों में सालमन, हेरिंग, कांड, ट्यूना, सिल्फश और हेल मुख्य हैं। इन विभिन्न प्रकार की मछलियों का उत्पादन 2005 में 115 लाख मीट्रिक टन से अधिक था।
जापान में मत्स्य उत्पादन के विकास का मुख्य कारण यहाँ पाई जाने वाली अनुकूल परिस्थितियाँ और खाद्यान्न उत्पादन की कमी है। आर्कटिक सागर से आने वाली क्यूराइल की ठण्डी धारा और दक्षिण से ऊष्ण कटिबन्धीय क्यूरोशियो की गर्म धारा जहाँ एक-दूसरे से मिलती हैं वहाँ पर मछलियों के लिए अनुकूल खाद्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। ये स्थान 45° उत्तरी अक्षांश के निकट पाये जाते हैं। इन स्थानों पर खूब प्लैंकटन घास उगती है जो मछलियों का प्रमुख खाद्य पदार्थ है।
उत्तर में पाई जाने वाली मछलियों में सालमन, हेरिंग, कांड, केकड़े और हेल (ठण्डे जल की) तथा दक्षिण में टयूना, स्किपजैक, बोनिटो, मैकरे, सारडीन और सेल्फिश (गर्म जल की) प्रमुख मछलियाँ हैं।
मछली पकड़ने के प्रमुख क्षेत्र:-
जापान में मछली पकड़ने के प्रमुख चार क्षेत्र हैं-
(i) होकैडो
(ii) उत्तर–पूर्वी होंशू क्षेत्र
(iii) क्यूशू, शिकोकू तथा दक्षिणी होंशू क्षेत्र
(iv) अन्य क्षेत्र
होकैडो मछली पकड़ने में अग्रणी हैं, जहाँ समस्त जापान की 40 प्रतिशत मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। पूर्वी टोहोके के चार बन्दरगाहों पर उत्तरी प्रशान्त महासागर और ओखोटस्क सागर में सालमन, हेरिंग, क्रैग, काड, हेल, मैकरेल इत्यादि मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। तृतीय मछली पकड़ने का क्षेत्र उत्तरी क्यूशू में नागाशाकी और पश्चिमी होंशू में शिमोनोशेकी हैं, जहाँ पर जापान की 25 प्रतिशत मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। टूना, नोनिटो, स्किप जैक, मैकरेल तथा हेल प्रमुख मछलियाँ हैं। मध्य होंशू के प्रशान्त महासागरीय तट पर टोकाई-काण्टो क्षेत्र में मछली पकड़ने के चार प्रमुख क्षेत्र हैं। 2005 में गहरे सागर से 30 प्रतिशत, उथले तटवर्ती सागर से 30 प्रतिशत एवं आन्तरिक सागर से 6 प्रतिशत मछलियाँ पकड़ी गईं।
जापान में छोटे-छोटे मछुआरे छोटी-छोटी नौकाओं द्वारा तटीय भागों में मछलियाँ पकड़ते हैं, परन्तु बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ सागर के सभी क्षेत्रों में मछलियाँ पकड़ती हैं। जापानियों द्वारा उत्तरी एवं दक्षिणी प्रशान्त महासागर, आस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में भूमध्य रेखीय क्षेत्र, पश्चिमी अफ्रीका और ब्राजील के अटलांटिक भूमध्य रेखीय क्षेत्र, हिन्द महासागर और अण्टार्कटिक क्षेत्रों में मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।
2005 में अण्टार्कटिक में हेल पकड़ने के लिए जापान के सात बड़े-बड़े जहाजी बेडे भेजे गये थे, जिनमें प्रत्येक के पास मछली पकड़ने वाली दस नौकाएं थीं। जापान में नये मछली पकड़ने के क्षेत्र भूमध्य रेखीय जल क्षेत्र हैं, जहाँ टूना और बोनिटो मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। जापान में मत्स्य संस्कृति का विकास तेजी से हो रहा है। कैब, आक्टोपस, प्रान एवं एलोटेल का तेजी से उत्पादन हो रहा है। छोटे-छोटे तालाबों और सिंचित क्षेत्रों में भी मछली पालन का कार्य तीव्र गति से हो रहा है। टोकाई, इबारगी, नारा, एरिता तथा आन्तरिक सागर प्रमुख क्षेत्र है, जहाँ ट्राउट और सालमन पकड़ी जाती हैं।
विश्व युद्ध के बाद जापान में मछली पकड़ने के प्रारूप में अन्तर आया है। जापान में मछली पकड़ने के लिए प्रयोग में आने वाली छोटी-छोटी नौकाओं की संख्या में कमी हो रही है, जबकि बड़ी-बड़ी नौकाओं की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। यही कारण है कि वर्तमान समय में युद्ध के पूर्व की तुलना में दोगुनी मछलियाँ पकड़ी जा रही हैं। बड़ी-बड़ी नौकोओं में मछलियों का पता लगाने के लिए राडार तक लगे हुए हैं। मछुआरों को सहकारी समितियाँ वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त जापान सरकार सस्ते ब्याज दर पर धन उपलब्ध कराकर इस उद्योग को प्रोत्साहित कर रही है। बड़ी नौकाओं की क्षमता इतनी अधिक है कि उनसे विश्व के किसी भी समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ी जा सकती है।
इन सब प्रोत्साहन एवं सहायता के बावजूद मछुआरों की आय कृषकों की तुलना में बहुत कम है, परन्तु बड़ी-बड़ी नौकाओं के मछुआरों की आय अपेक्षाकृत अधिक है।
इन बड़ी नौकाओं के समक्ष सबसे बड़ी समस्या पड़ोसी देशों द्वारा अधिकृत जलीय क्षेत्र है। युद्ध से पूर्व जापानी नौकाएं ओखोटस्क सागर में मछली पकड़ती थीं परन्तु इस भाग पर रूस का अधिकार होने के कारण जापानी नौकाएं अब ओखोटस्क सागर में मछली नहीं पकड़ सकतीं हैं। इसी तरह कनाडा ने जापान के लिए 175° पूर्व देशान्तर, कोरिया के तट से 50 मील की दूरी तथा आस्ट्रेलिया का सम्पूर्ण महाद्वीपीय निमग्न तट के अन्दर जापानी नौकाओं का प्रवेश वर्जित कर रखा है।
जापान द्वारा 90 प्रतिशत मछलियाँ प्रशान्त महासागर से 5 प्रतिशत आन्तरिक क्षेत्र से 4 प्रतिशत अटलांटिक सागर से और मात्र एक प्रतिशत हिन्द महासागर से प्राप्त की जाती हैं। स्पष्ट है कि गहरे समुद्र में मछली मारना जापानी मछुआरों के साहस और कौशल का प्रतीक है।
मछली पकड़ने के प्रमुख बन्दरगाह जापान में यद्यपि मछली पकड़ने के छोटे-बड़े बन्दरगाहों की संख्या दो हजार है परन्तु इनमें चार बन्रगाहों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिकोकू में सुडा, ओकायामा के तट पर स्थित टोमो, उत्तरी-पूर्वी टोहोकू में हाचीनोहे और होकैडो का कुशिरो बन्दरगाह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
सुडा बन्दरगाह में छोटी-छोटी नौकाओं द्वारा मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। प्रातः काल से शाम तक पकड़ी गई मछलियाँ शाम तक समुद्री किनारे पर लाई जाती हैं। सारडीन, प्रान, आक्टोपस और सेल्फिस महत्त्वपूर्ण हैं। ओकायामा का तटीय बन्दरगाह जापान के अन्य छोटे-छोटे बन्दरगाहों की भाँति है। इस बन्दरगाह पर भी छोटी-छोटी नौकाओं का प्रयोग होता है। इन नौकाओं की संख्या लगभग 200 तथा स्वचालित नौकाओं की संख्या 100 से अधिक है।
समूह में यहाँ के मछुआरे आन्तरिक सागर में मछली मारने जाते हैं और शाम तक वापस लौटते हैं। मकरेल, आक्टोपस, सेल्फिश आदि मुख्य मछलियाँ हैं। यहाँ की महिलाएं निर्यात के लिए मछलियों को डिब्बों, टोकरियों तथा जालों में बन्द करने का कार्य करती हैं। यह कार्य अंशकालिक होता है, क्योंकि कृषि कार्य के अवकाश में ही यह कार्य सम्भव होता है।
हाचीनोहे, जो उत्तरी-पर्वी टोहोक में स्थित है मछली पकड़ने के लिए विख्यात हैं। यहाँ पर मछलियों का वार्षिक उत्पादन एक लाख टन से अधिक हैं। यहाँ पर मछली पकड़ने वाली नौकाओं की संख्या लगभग 2000 है, जिनका वजन 15 से 60 टन के मध्य है। इन पर 10 मछुआरे कार्य करते हैं। विभिन्न प्रकार के प्रकाश के माध्यम से मैकरेल आदि मछलियाँ पकड़ी जाती हैं जो विभिन्न प्रतिष्ठानों को भेजी जाती हैं, यहाँ से मछलियों का निर्यात चीन और दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों को होता है।
होकैडो का कुशिरो बन्दरगाह सबसे बड़ा मछली पकड़ने का केन्द्र है। यहाँ मैकरेल, सालमन, काड, हेरिंग आदि पकड़ी जाने वाले मुख्य मछलियाँ हैं। यहाँ पर नौकाओं की संख्या 20,000 है। प्रत्येक बेड़ों के पास मछली पकड़ने की 10 से 30 नौकाएं हैं। ये बेड़े उत्तरी प्रशान्त महासागर में मछली पकड़ने के लिए 3 महीने तक के लिए बाहर निकल जाते हैं और यहाँ पकड़ी गई मछलियाँ सम्बन्धित नौकाओं द्वारा बन्दरगाह को भेज दी जाती हैं।
जापान में मत्स्य उद्योग के विकास के कारण
जापान में मत्स्य उद्योग के विकास के निम्न कारण हैं-
1. जापान उत्तर-पश्चिमी प्रशान्त महासागर के महाद्वीपीय निमग्न तट पर स्थित है, अतः यहाँ का उथला जलीय क्षेत्र प्लैक्टन से युक्त होने के कारण मछलियों की पकड़ने के लिए अनुकूल है।
2. जापान की अधिकांश जनसंख्या तटीय भागों में केन्द्रित है। यही कारण है कि तटीय भाग में लोग मछली पकड़ने के लिए प्रेरित होते हैं और भोजन में प्रयोग भी करते हैं।
3. जापान तट रेखा लम्बी एवं कटी-फटी है इसलिए इसे खाड़ियों का देश (Country of Bays) कहते हैं। अच्छे बन्दरगाहों से युक्त होने के कारण मछली पकड़ने के लिए प्राकृतिक सुविधाएं उपलब्ध हैं।
4. जापान की स्थिति खनिजों की कमी तथा कृषि योग्य भूमि की कमी आदि ने जापानियों को समुद्र का सहारा लेने के लिए बाध्य कर दिया है। यही कारण है कि यहाँ मछली उद्योग विकसित है।
5. जापान में पशुपालन के लिये चरागाह की कमी है, क्योंकि जापान का 85 प्रतिशत भाग पर्वतीय एवं पठारी है, जो निवास एवं कृषि के लिए अनुपयुक्त है। जापान के अधिकांश लोग बौद्ध धर्मावलम्बी हैं, जो माँस नहीं खाते हैं। इसलिए प्रोटीन के लिए मछलियाँ ही मुख्य आहार हैं।
6. आधुनिक तकनीक के विकास से गहरे समुद्र से मछली पकड़ने में सुविधा हुई है। इस कार्य को सफल बनाने में जापानी वैज्ञानिकों और तकनीक विशेषज्ञों ने सराहनीय कार्य किया है।
7. सरकारी प्रोत्साहन, बैंक सुविधा और सहकारी समितियों के कारण जापान में मत्स्य उत्पादन लगातार बढ़ता रहा है।
8. बढ़ती जनसंख्या के लिये भोजन जुटाना जापान की राष्ट्रीय समस्या है। इस समस्या के समाधान के लिये समुद्र की ओर मुड़ना स्वाभाविक है। जापान देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाने की चेष्टा में मछली उत्पादन पर बल देता रहा है।
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