23. Christoller’s Central Place Theory (क्रिस्टॉलर का केन्द्रीय स्थल सिद्धांत)
23. Christoller’s Central Place Theory
(क्रिस्टॉलर का केन्द्रीय स्थल सिद्धांत)
केन्द्रीय स्थल सिद्धांत मूलत: नगरीय भूगोल से संबंधित है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन क्रिस्टॉलर महोदय ने दक्षिण जर्मनी के नगरों के स्थानीयकरण के प्रतिरूप का अध्ययन कर (1933 ई०) में प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत के अनुसार केन्द्रीय स्थलों का वितरण षष्टकोणीय और पदानुक्रमिक तरीके से होता है।
क्रिस्टॉलर ने केन्द्रीय स्थल की परिभाषा देते हुए बताया कि वैसा नगर जो किसी भौगोलिक क्षेत्र में कई बस्तियों के बीच में होता है तथा अन्य बस्तियों को सेवा प्रदान करती है एवं द्वितीयक तथा तृतीयक कार्यों का केन्द्र बिन्दु होती है।
क्रिस्टॉलर के अनुसार केन्द्रीय स्थल का सिद्धांत उन्हीं क्षेत्रों में लागू होती है जहाँ निम्नलिखित मान्यताएँ काम करती है।
मान्यताएँ
(1) भौगोलिक दृष्टि से वह क्षेत्र समरूपता रखता हो। सम्पूर्ण प्रदेश में संसाधन, जनसंख्या, उत्पादक एवं उपभोक्ताओं का वितरण लगभग समान रूप से हो।
(2) दूसरी मान्यता यह है कि केंद्रीय स्थल से किसी भी दिशा में जाने पर परिवहन मूल्य में दूरी और भार के अनुसार वास्तविक वृद्धि होती है।
ऊपर वर्णित शर्तों को पूर्ण करने वाले प्रदेश में ही यह सिद्धांत लागू होता है।
क्रिस्टॉलर के केन्द्रीय स्थल सिद्धांत तीन परिकल्पनाओं पर आधारित है:
(1) बस्तियों का वितरण षष्टकोणीय होता है और षष्टकोणीय बस्ती के बीच में केन्द्रीय बस्ती अवस्थित होती है। इसे नीचे के चित्र में देखा जा सकता है।
क्रिस्टॉलर के पूर्व यह मान्यता कार्य करता था कि किसी भी भौगोलिक प्रदेश के बीच में केन्द्रीय स्थल होता है और उसके प्रभाव क्षेत्र की बस्ती वृत के आकार में विकसित होते हैं।
चित्र से स्पष्ट है कि पूर्व की मान्यता में छाया प्रदेश का विकास होता है। लेकिन किस्टॉलर के षष्टकोणीय परिकल्पना में छाया प्रदेश के विकास की कोई संभवना नहीं हैं।
(2) क्रिस्टॉलर की दूसरी परिकल्पना यह है कि षष्टकोणीय वितरण प्रारूप पदानुक्रमिक होता है अर्थात् इसे स्पष्ट करते हुए क्रिस्टॉलर ने कहा है कि केन्द्रीय बस्ती एक छोटे बाजार से लेकर एक वृहद बाजार (बड़े-2 महानगर) तक हो सकते हैं। हर हाल में केन्द्रीय स्थान षष्टकोणीय बस्तियों के बीच में होता है। इसे नीचे के मानचित्र से समझा जा सकता है।
क्रिस्टॉलर के अनुसार बस्तियों का सात पदानुक्रम में विकास होता है।
पदानुक्रम | बस्ती का नाम | केंद्रीय स्थल की जनसंख्या | दो केंद्रीय स्थल के बीच की दूरी | प्रभाव क्षेत्र का क्षेत्रफल | प्रभाव क्षेत्र की जनसंख्या |
1. | मार्केट (M)
(बाजार-कस्बा) |
1000 | 7 KM. | 45 KM2 | 2700 |
2. | टाउनशीप सेंटर (A) | 2000 | 12 KM. | 135 KM2 | 8100 |
3. | काउंटी सिटी(K) | 4000 | 21 KM. | 400 KM2 | 24000 |
4. | जिला नगर (B) | 10,000 | 36 KM. | 1200 KM2 | 75000 |
5. | स्टेट कैपिटल सिटी (G) | 30,000 | 62 KM. | 3600 KM2 | 225000 |
6. | प्रोविन्सियल सिटी (P) | 1,00000 | 108 KM. | 10800 KM2 | 675000 |
7. | रिजनल कैप्टल सिटी (L) | 5,000 | 182 KM. | 32400 KM2 | 22025000 |
(3) क्रिस्टॉलर का तीसरा महत्वपूर्ण परिकल्पना यह है कि केन्द्रीय स्थान के प्रभाव में आने वाले बस्तियों की संख्या का विश्लेषण तीन मान्यताओं आधार पर किया जाता है। जैसे :-
(i) बाजार सिद्धांत या K=3 सिद्धांत
(ii) परिवहन सिद्धांत या K=4 सिद्धांत
(iii) प्रशासन सिद्धांत या K=7 सिद्धांत
K=3 सिद्धांत का तात्पर्य यह है कि सबसे छोटी केन्द्रीय बस्ती (बाजार केन्द्र) औसतन तीन गाँवों को बाजार की सुविधा प्रदान करती है। पुन: जैसे-2 केन्द्रीय बस्ती के आकार में क्रमिक वृद्धि होती है। वैसे-2 उसके प्रभाव क्षेत्र में आने वाली बस्तियों का क्रमिक वृद्धि 3 के गुणनफल में होता है। जैसे- 3, 9, 27, 81 ……..।
K=4 सिद्धांत का तात्पर्य है कि अगर केन्द्रीय बस्ती परिवहन के कारण विकसित हुआ हो तो वहाँ की सबसे छोटी परिवहन आधारित केन्द्रीय बस्ती 9 गाँव को सेवा प्रदान करेगी।
पुन: जैसे-2 केन्द्रीय बस्ती के आकार में क्रमिक वृद्धि होगी। वैसे-2 बस्तियों की संख्या में 4 के गुणनफल में वृद्धि होगी।
K=7 सिद्धांत का तात्पर्य है कि अगर कोई केन्द्रीय बस्ती प्रशासनिक दृष्टिकोण से विकसित हुआ हो तो सबसे छोटी प्रशासन पर आधारित केन्द्रीय बस्ती न्यूनतम 7 गाँवों को सेवा प्रदान करेगी। इसी तरह से ज्यों-2 केन्द्रीय बस्ती के पदानुक्रम में वृद्धि होते जायेगी। त्यों-त्यों 7 के गुणनफल में बस्तियों की संख्या में वृद्धि होते जायेगी।
K=3 सिद्धांत का विश्लेषण
K=3 सिद्धांत अर्थात बाजार सिद्धांत का मूलभूत संकल्पना यह है कि षष्टकोण पर स्थित कोई भी बस्ती दो भुजाओं के मिलन केन्द्र पर होगी और कोई भी बस्ती तीन केन्द्रीय बस्ती से समान दूरी पर होगी। चूँकि षष्टकोण में छ: बस्तियाँ होती है और उनके तीन केन्द्रीय बस्तियों में सेवा वितरित होने की पूरी संभावनाएँ हैं। इसलिए एक केन्द्रीय बस्ती षष्टकोण की 6 बस्तियों में से दो बस्तियों की सेवा करेगा। इसके अलावे केन्द्रीय बस्ती स्वयं भी सेवा ग्रहण करेंगे। इस प्रकार से कुल तीन बस्तियों को केन्द्रीय बस्ती से सेवा मिलेगी। इसी के आधार पर K=3 सिद्धांत प्रतिपादित किया गया।
K=4 सिद्धांत का विश्लेषण
K=4 सिद्धांत के अन्तर्गत यह माना गया है कि बस्तियाँ षष्टकोण के भुजाओं के मिलन केन्द्र पर न होकर भुजाओं के मध्य में स्थित होते हैं। ऐसी स्थिति में प्रत्येक बस्ती के लिए दो केन्द्रीय बस्ती समान दूरी पर होते हैं अर्थात् षष्टकोण छः बस्तियों में से प्रत्येक बस्ती का प्रभाव दो केन्द्रीय बस्ती में विभाजित हो जाती है और ऐसी स्थिति में 4 केन्द्रीय बस्ती से सेवा ग्रहण करते लगती है।
K=7 सिद्धांत का विश्लेषण
K=7 सिद्धांत के अन्तर्गत माना गया है कि कोई भी बस्ती भुजा के मिलन बिन्दु या मध्य भुजा पर विकसित नहीं होती है बल्कि षष्टकोण के अन्दर विकसित होती है। चूंकि प्रशासनिक कार्य दो षष्ट कोण में विभाजित नहीं हो सकती है। इसलिए प्रशासन की सुविधा के हेतु एक षष्टकोण के अन्तर्गत कुल 7 बस्तियों प्रशासनिक क्षेत्र के अन्तर्गत आती हैं।
क्रिस्टॉलर सिद्धांत का परीक्षण
क्रिस्टॉलर महोदय ने स्वयं यह बताया कि केन्द्रीय स्थल का सिद्धांत उसी क्षेत्र में लागू होगा जहाँ पर ऊपर में बताये गये मान्यताएँ कार्य करेंगी। अर्थात् उन्होंने स्वयं स्पष्ट कर दिया था कि उनका K-3, K-4 और K-7 का सिद्धांत विश्व व्यापी नहीं हो सकता क्योंकि इस सिद्धांत में बताये गये मान्यताएं पूर्ण रूप से लागू नहीं होती है।
क्रिस्ट्रॉलर का सिद्धांत दक्षिणी जर्मनी में पूर्णतः लागू होती है क्योंकि वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनसंख्या वितरण में समरूपता पाई जाती है। भारत के UP और उत्तरी-पश्चिमी बिहार में यह सिद्धांत कुछ हद तक लागू होती है क्योंकि इस प्रदेश में भौगोलिक समरूपता एवं जनसंख्या का समान वितरण पाया जाता है।
लॉश का संशोधन
क्रिस्टॉलर के सिद्धांत की जटिलताओं को समझते हुए लॉश महोदय ने बताया कि केन्द्रीय स्थल और बस्तियों का वितरण समान षष्टकोण में न होकर जालीनुमा षष्टकोण में वितरित होने की अधिक संभावनाएँ हैं।
लॉश के अनुसार प्रत्येक केन्द्रीय स्थान के द्वारा किये जाने वाले प्रत्येक कार्य का प्रभाव समान रूप से सभी बस्तियों पर नहीं पड़ती है। लॉश ने यह भी स्पष्ट किया कि केन्द्रीय स्थल के ईर्द-गिर्द बस्तियों पर केन्द्रीय स्थल का प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि उसके द्वारा किये जा रहे कार्यों का प्रभाव पड़ता है। इसका परिणाम यह होता है कि एक ही केन्द्र के इर्द-गिर्द कई षष्टकोण का विकास हो जाता है जो देखने में जालीनुमा षष्टकोण लगता है।
आलोचना:-
(1) बेरी और गैरीसन ने केन्द्रीय स्थल का आलोचना करते हुए कहा है कि नगरीय बस्तियों का षष्टकोण के रूप में वितरण होना अत्यन्त ही कठिन है क्योंकि उनके वितरण पर निम्नलिखित दो कारकों का प्रभाव पड़ता है-
(1) उपभोक्ताओं के आचारपरकता (व्यवहार) का
(2) उपभोक्ताओं के खरीद बिक्री करने की क्षमताओं का।
ये दोनों कारक भौगोलिक दूरियों को संशोधित कर देती है। इसीलिए केन्द्रीय स्थल के इर्द-गिर्द बस्तियों का वितरण षष्टकोण के रूप में हो भी नहीं सकता।
(2) बेरी ने यहाँ तक कहा है कि जीवन-निर्वाह अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्र में भी यह संभव नहीं है।
(3) हाँलाकि क्रिस्टॉलर ने यह स्वीकार किया है कि उनका सिद्धांत वहीं पर लागू होगा जहाँ पर उनके द्वारा बताये गए शर्त लागू होंगे। लेकिन कहीं भी व्यवहारिक रूप में ये उनकी मान्यताएँ लागू होती ही नहीं है। वैसी स्थिति में उनका सिद्धांत उपयोगी नहीं रह पाता है।
(4) क्रिस्टॉलर के सिद्धांत की आलोचना इस आधार पर भी की जाती है कि किसी भी भौगोलिक प्रदेश में केन्द्रीय स्थल का विकास 7 पदानुक्रम में नहीं हो सकता।
निष्कर्ष:
क्रिस्टॉलर के केन्द्रीय स्थल सिद्धांत की कुछ सीमाएँ अवश्य है। इसके बावजूद इस सिद्धांत की व्यापक मान्यता प्राप्त है क्योंकि इस सिद्धांत के आधार पर ही कई देश के सरकारों ने प्रादेशिक नियोजन का कार्य किया है तथा बोडोविले जैसे भूगोलवेता ने विकास ध्रुव का सिद्धांत प्रतिपादित किया। इसके अलावे केन्द्रीय बाजार का वितरण पदानुक्रमिक होता है। यह भी एक उपयोगी संकल्पना है। इस तरह इनके सिद्धांतों को अव्यवहारिक घोषित नहीं किया जा सकता है।
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