8. Law of Primate City / प्रमुख नगर के नियम या प्रमुख शहर एवं श्रेणी आकार प्रणाली की संकल्पना
8. Law of Primate City
(प्रमुख नगर के नियम या प्रमुख शहर एवं श्रेणी आकार प्रणाली की संकल्पना)
प्राइमेट नगर की संकल्पना का श्रेय अमेरिकी भूगोलवेता माइक जैफरसन को जाता है। किसी भी भौगोलिक प्रदेश में मिलने वाला सबसे बड़ा नगर या प्रथम पदानुक्रम वाले नगर को ‘प्राथमिक नगर/ प्रमुख नगर/ प्राइमेट नगर’ कहते हैं।
जैफरसन ने अपने नगरों के अध्ययन में पाया कि किसी देश का प्राइमेट सिटी उस देश के द्वितीयक पदानुक्रम वाला नगर के तुलना में दो या तीन गुणा अधिक बड़ा होता है।
जैफरसन ने देखा कि 28 प्रमुख देशों में मिलने वाला प्राइमेट सिटी द्वितीयक नगर की तुलना में दो गुगा बड़ा था। जबकि 18 देशों में द्वितीयक नगर के तुलना में तीन गुणा बड़ा था। जैफरसन बताया कि प्राइमेट नगर अन्य नगरों की तुलना में अधिक कार्य को सम्पादित करते हैं। पुनः जैफरसन के प्राइमेट सिटी के संबंध में व्यक्त सिद्धांत में तीन तत्व प्रमुख हैं:-
(1) प्राइमेट सिटी का आकार द्वितीय नगर से अधिक बड़ा होता है।
(2) प्राइमेट सिटी किसी राष्ट्र के विकास के प्रवृति और प्रभाव का धोतक होता है।
(3) प्राइमेट सिटी एक बार जब बड़ा हो जाता है तो भविष्य में भी उसका आकार और प्रभाव में वृद्धि होते रहती है।
जैफरसन महोदय ने इस नियम के सहारे 1939 ई० के नगरों के वितरण की व्याख्या काने हेतु प्रतिपादित किया। इस नियम के प्रतिपादन का सैद्धांतिक आधार यह है कि किसी भी वृहद भौगोलिक प्रदेश में वितरित नगर के बीच आकार का तुलनात्मक परीक्षण किया जाय। जैफरसन का यह सिद्धांत निम्नलिखित परिकल्पना पर आधारित है-
(1) किसी भी नगर का पदानुक्रम उस नगर में विकसित संगठन, आकार, प्रभाव और शक्ति को बताता है।
(2) नगर की शक्ति और प्रभाव नगर के आकार से सूचित होता है।
(3) विभिन्न जनसंख्या आकार नगरों के आकार में विभिन्नता को सुनिश्चित करता है। कुछ नगर में तीव्र गति से वृद्धि होने की प्रवृत्ति होती है।
जैफरसन ने प्राथमिक नगरों की पहचान हेतु एक ‘प्राथमिक सूचकांक का विकास किया है। जैसे-
दो नगरों का प्राथमिक सूचकांक = वृहद नगर की जनसंख्या / दूसरे बड़े नगर की जनसंख्या
जैफरसन का यह सिद्धांत अनुमानित पयर्वेक्षण पर आधारित था जिसके कारण उनके विचारों में कई विसंगतियाँ भी पायी जाती हैं और उन विसंगतियों को दूर करने के लिए कई नवीन विचार भी प्रस्तुत किये गए हैं। 1967 ई० में क्लार्क महोदय ने नगरों के वितरण की व्याख्या हेतु तथा प्राथमिक नगर के संबंध में एक अलग विचार प्रस्तुत किया।
क्लार्क के अनुसार एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगर को ही प्राथमिक नगर कहा जाना चाहिए। क्लार्क के विचार इस संदर्भ में अल्पतंत्रीय वितरण के विचार से प्रसिद्ध है।
क्लार्क का विचार जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील जैसे देशों में पाये जाते हैं। पुनः नगरीय वितरण को व्याख्या करने हेतु कोटि-आकार सह-संबंध नियम भी प्रस्तुत किया गया है। इस नियम के अनुसार नगरों के आकार और उसके पदानुक्रम में गहरा संबंध होता है।
इसके अनुसार किसी आदर्श भौगोलिक परिस्थिति में निम्न पदानुक्रम के नगर एक निश्चित कोटि-आकार नियम के अनुरूप विकसित होते हैं। अगर यह विकास इस नियम के अनुरूप नहीं है तो उस प्रदेश में अस्वस्थ नगरीकरण की प्रवृत्ति है।
कोटि आकार का नियम स्पीयर्समैन के कोटि आकार सह संबंध नियम पर आधारित है। इस नियम का सहारा लेते हुए अमेरिकी भूगोलवेता जिप्स ने निम्न सूत्र विकसित किया है:-
Pr = P1 / r
जहाँ,
Pr = निश्चित कोटि के नगर की अनुमानित जनसंख्या
P1 = प्राथमिक नगर की जनसंख्या
r = निश्चित किये गये कोटि या पदानुक्रम
1949 ई० में जी. के. जिफ महोदय ने अपने सूत्र का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित सांख्यिकीय मान निर्धारित किये। जैसे 1, 0.500, 0.333, 0.250, 0.200 । जिफ के अनुसार अगर पाँच प्रथम क्रम तक कोटि आकार नियम के पालन होता है तो आगे नगरों पर अपने आप यह नियम लागू हो जाता है। लेकिन जिफ ने यह नहीं बताया कि नगरों के कितने कोटि या पदानुक्रम हो सकते हैं।
1959 ई० में स्टीवर्ट महोदय ने विश्व के 72 देशों में कार्य करने के बाद यह बताया कि निम्न स्तर के नगर के लिए कोटि आकार नियम का पालन करना आवश्यक नहीं है जितना कि प्रथम पाँच कोटि आकार नियमों के पालन के लिए आवश्यक है। क्योंकि किसी की भौगोलिक प्रदेश में विकसित प्रथम पाँच पदानुक्रम के नगर ही द्वितीयक एवं तृतीयक कार्यों के प्रमुख केन्द्र होते हैं।
स्टीवर्ट महोदय ने यह भी बताया कि विकसित देशों में कोटि आकार का नियम पूर्णतः लागू होता है लेकिन लेटिन अमेरिका में यह देखने को मिलता है कि वहाँ की अधिकत्तर जनसंख्या उसके राजधानी नगर या प्राथमिक नगर में ही केन्द्रित हैं। इसका तात्पर्य है कि वहाँ प्राथमिक नगर ही चुम्बकीय आकर्षण का कार्य करते हैं।
लेटिन अमेरिका, USA और जिप्स के द्वारा दिया गया औसत आकार का तुलनात्मक अध्ययन नीचे के तालिका में किया जा रहा है।-
पदानुक्रम | जिप्स का मान | USA का मान | ब्राजील के पदानुक्रम का मान |
1 | 1 | 1 | 1 |
2 | 0.500 | 0.435 | 0.210 |
3 | 0.333 | 0.310 | 0.210 |
4 | 0.250 | 0.200 | 0.105 |
5 | 0.200 | 0.169 | 0.079 |
दिये गये तालिका से स्पष्ट होता है कि ब्राजील में सभी प्रकार की जनसंख्या के लिए प्राथमिक नगर ही आकर्षण का कार्य करते हैं। हैगेट के अनुसार किसी भी नगर के कार्यों की गहनता से प्राथमिक नगरों की पहचान की जाती है।
पुन: प्राथमिक नगर के संबंध में दिये गए कोटि आकार का निगम भारत जैसे देश में भी प्राथमिक स्तर पर लागू होता है। जैसे:- भारत को गंगा के मैदान है लिए प्राथमिक नगर अलग होगा और पूर्व तटीय मैदान के लिए अलग होगी।
पीटर हैगेट ने कहा कि बड़े देशों में प्रादेशिक नगरों के कोटि- आकार का निर्धारण किया जाना चाहिए। N.B.K. रेड्डी ने गोदावरी और कृष्णा के मैदानी क्षेत्रों का अध्ययन करते हुए बताया है कि यहाँ हैदराबाद जैसे विशाल नगर के बाद विजयवाड़ा जैसे छोटे नगर है जिसकी जनसंख्या 10 लाख है इसका परिणाम यह है कि प्रादेशिक स्तर पर पिछड़ेपन के कारण महानगर जनसंख्या के जमघट बन चुके हैं।
कुछ प्रदेशों में एक ही आकार के दो नगर पाये जाते हैं। ऐसी स्थिति में प्राथमिक नगरों का निर्धारण काफी मुश्किल हो जाता है। जैसे ब्राजील के द०-पूर्वी भाग में स्थित साओ पोली & रियो द जेनरियो नगर। यहाँ साओ-पोलो की जनसंख्या अधिक है जबकि कार्यिक विभिन्नता रियो द जेनरियो में अधिक मिलती है।
वस्तुतः स्वस्थ कोटि नियम का पालन तभी संभव है जब संपूर्ण प्रदेश में वातावरणीय समरूपता पायी जाती हो साथ ही आर्थिक सामाजिक विकास की प्रक्रिया संतुलित रूप से चल रही हो। यदि ऐसा नहीं होता है तो उन प्रदेशों में प्राथमिक नगर के संबंध में प्रतिपादित नियम लागू नहीं होगा।