Unique Geography Notes हिंदी में

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PG SEMESTER-3SETTLEMENT GEOGRAPHY (बस्ती भूगोल)

2. Pattern of rural settlements (ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप)

2. Pattern of rural settlements

(ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप)



              Pattern of rural settlements

       ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप का तात्पर्य गाँवों के बसाव की आकृति से है अर्थात एक गाँव को अगर बाहर से देखा जाय तो मानव के स्मृति पटल पर किस प्रकार की आकृति उभरकर सामने आती है। इसी ग्रामीण बस्ती के बाह्य आकृति का अध्ययन ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप कहालाता है। ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप पर दो भौगोलिक कारकों  का प्रभाव पड़ता है।:-

(1) भौतिक कारक और

(ii) सांस्कृतिक कारक।

       भौतिक कारक के अन्तर्गत कुंआ, तालाब, पोखर, (कच्चा मिट्टी) टीले, भूमि का ढाल, सीढ़ीनुमा, ढाल की आकृति, भूमिगत जलस्तर, दलदली भूमि इत्यादि प्रमुख हैं। 

 जबकि सांस्कृतिक कारक के अन्तर्गत ऐतिहासिक घटना क्रम, सड़क एवं गलियों क नियोजित एवं अनियोजित प्रारूप, खेतों का प्रतिरूप, ग्रामीण धार्मिक संस्थाएँ, जातिय संरचना इत्यादि को शामिल करते है। 

            ग्रामीण क्षेत्रों में गॉंव से गुजरने वाली सड़के एवं गलियाँ ग्रामीण बस्तियों के आतंरिक विन्यास के ढाँचे को सुनिश्चित करते है।  भौतिक एवं सांस्कृतिक कारकों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक प्रकार के प्रतिरूप का विकास हुआ है जिनमें मुख्य निम्नवत है।:- 

(1) रेखीय प्रतिरूप⇒

       इसे रिबन प्रतिरूप या लम्बाकार प्रतिरूप या डोरी प्रतिरूप भी कहा जाता है। जब ग्रामीण बस्तियां किसी सड़‌क या नहर या पर्वतीय कटक या बाढ़ वाले क्षेत्रों में प्राकृतिक बाँधों के सहारे विकसित होती हैं तो उसे रेखीय प्रतिरूप कहा जाता है।

      उदा०- उत्तरी-पूर्वी भारत में नागा जनजाति के लोग पर्वतीय कटक के सहारे घर बनाते हैं। प्रायद्वीपीय भारत में पूर्वी तटीय मैदान के सहारे रेखीय प्रतिरूप का घर मिलता है। निम्न गंगा के मैदानी क्षेत्र में, चीन के मैदानी क्षेत्रों में, पश्चिम एशिया में नहरों के सहारे रेखीय प्रतिरूप बस्तियाँ मिलते हैं। 

(2) L- प्रतिरूप⇒

     जब  कोई मुख्य सड़क आगे बढ़‌कर अचानक समकोण पर मुड़ जाती है तथा उसके किनारे जब ग्रामीण अधिवासों का विकास हो जाता है तो वैसे प्रतिरूपों को है L- प्रतिरूप) कहा जाता है। जैसे – पटना का दनियावां गॉंव, मुजफ्फरपुर का नवगढ़ी गाँव इसका सर्वोत्तम उदहारण है।

(3) T- प्रतिरूप-

       जब किसी मुख्य सड़‌क मार्ग पर किसी सहायक सड़‌क का मिलन होता है तो उस पर विकसित ग्रामीण अधिवास T प्रतिरूप का कहलाता है। इसका उदा० नदी घाटी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती है।

            उदा० पटना का बख्तियारपुर, हजारीबाग का बरही।

(4) वर्गाकार और आयताकार प्रतिरूप:-

       ये दोनों प्रतिरूप एक-दूसरे के पूरक है। जब किसी ग्रामीण बस्ती का विकास नियोजित तरीके से किया जाता है तो वहाँ सड़‌कें एवं गलियों पर विकास समकोण पर विभाजित करती है। अगर ग्रामीण बस्तियां बसकर एक वर्ग के रूप में उभर सामने आती हैं तो उसे वर्गाकार प्रतिरूप कहते है और जब आयत के रूप में सामने उभरभर आती हैं तो उसे आयताकार प्रतिरूप कहते है।

            वर्गाकार प्रतिरूप का उदा०- भागलपुर का माफला गाँव, सारण का कात्सा सांथी गाँव।

           आयताकार प्रतिरूप का उदा०- शाहाबाद का ऐरे गॉंव, भागलपुर का घोघली गाँव, सारण का सारथा गाँव।

(5) चौकोर प्रतिरूप:-

      वैसे ग्रामीण बस्ती जिसके बाहर में चाहार दीवारियां होती हैं और मध्य भाग में खुली आयताकार भूमि छोड़ दी जाती है। ऐसे प्रतिरूप को चौकोर प्रतिरूप कहते हैं। जैसे – पश्चिम राजस्थान में विकसित होने वाले मरूस्थलीय गाँव इसके उदा० है।

(6) चौकपट्टी प्रतिरूप:-

       इसकी तुलना शतरंज  के गोट से की जा सकती है। जब ग्रामीण क्षेत्रों में समान महत्व वाले गली या सड़‌क सम‌कोण पर कटती हैं उसके बाद बस्तियों का विकास हो जाता है तो वैसे प्रतिरूप को चौकपट्टी प्रतिरूप कहते है। गंगा यमुना के दोआब क्षेत्र में, कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश में चौपट्टी प्रतिरूप की बस्तियाँ दिखाई देती हैं।

(7) दोहरा प्रतिरूप:-

     नदी पर पुल या फेरी के दोनों तरफ इन बस्तियों का विस्तार होता है।

(8) सीढ़ीनुमा प्रतिरूप:-

       इनायत अहमद ने सीढ़ीनुमा प्रतिरूप को सर्वोच्च रेखीय प्रतिरूप कहा है। इस प्रकार के गाँव पर्वतीय ढालों पर बसे मिलते है। हिमालय, रॉकी, एण्डीज, आल्प्स पर्वत इत्यादि पर सीढ़ीनुमा गाँव मिलते हैं।

(9) त्रिभुजाकार प्रतिरूप:-

         जब  कोई परिवहन मार्ग या नहर दूसरी नहर या परिवहन मार्ग से मिलती है परन्तु उसको पार नहीं करती है तो वहाँ त्रिभुजाकार प्रतिरूप का विकास होता है। इसका उदा० पंजाब, हरियाणा में अधिक मिलते हैं।

(10) तीर प्रतिरूप:-

       जब ग्रामीण अधिवास का विकास किसी केप/नुकीले मोड़ के सहारे होता है तो ऐसी स्थिति में तीर प्रतिरूप का विकास होता है। जैसे- दक्षिण भारत के कन्याकुमारी के पास, द० अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप के पास, बिहार में बुढ़ी गंडक और बागमती नदी के संगम पर इस तरह के बस्तियाँ का विकास हुआ है। 

(11) वृताकार प्रतिरूप:-

       जब ग्रामीण बस्तियों का विकास किसी झील, कुँआ, जमीनदार का किला, चर्च, मस्जिद या मंदिर के किनारे विकसित होता है और उसका आकार एक वृत के समान हो जाता है तो वैसे प्रतिरूप को वृताकार प्रतिरूप कहते हैं। प्राचीन काल से ही इस तरह के बस्तियों का विकास होता रहा है। भारत में वृताकार बस्तियों का प्रतिरूप सर्वाधिक मिलता है। वृताकार प्रतिरूप वाले ग्रामीण बस्ती के केन्द्र में कुआँ या तालाब होता है तो उसे खोखला वृताकार प्रतिरूप कहते हैं और जब केन्द्र में कोई धार्मिक संस्थान, पंचायत भवन या जमीनदार का घर मौजूद होता है तो उसे निहारिका प्रतिरूप कहते हैं।

(12) तारा प्रतिरूप:-

       किसी स्थान पर कई दिशाओं से आकर परिवहन मार्ग एक बिन्दु पर मिल जाती है और सड़कों के किनारे ग्रामीण बस्तियाँ विकसित हो जाती है तो वैसे प्रतिरूप को तारा प्रतिरूप कहते हैं।

       मेरठ और गाजियाबाद का अधिकांश गाँव तारा प्रतिरूप के ही है।

(13) पंखा प्रतिरूप:-

       जब ग्रामीण बस्तियाँ विकसित होकर एक पंखे के रूप में तब्दील हो जाते हैं, तो उसे पंखा प्रतिरूप कहते है।

       डेल्टाई और पर्वतीय क्षेत्रों में पंखा प्रतिरूपों का विकास देखा जा सकता है। गंगा, कृष्णा, के डेल्टा पर तथा हिमालय के जलोढ़ पंखों पर इस प्रकार के ग्रामीण प्रतिरूपों  का विकास हुआ।

        उपरोक्त प्रतिरूप के अलावे कई अन्य प्रतिरूप भी देखने मिलता है। जैसे- बहुभुजीय प्रतिरूप, अर्द्धवृताकार प्रतिरूप, अनाकार प्रतिरूप इत्यादि हैं। 

निष्कर्ष-

        इसह ऊप के तथ्यों से स्पष्ट है कि पूरे विश्व में अलग-2 क्षेत्रों में भौतिक एवं सांस्कृतिक कारकों के कारण अलग-2 प्रतिरूपों का विकास हुआ है।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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