Unique Geography Notes हिंदी में

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Environmental Geography (पर्यावरण भूगोल)

12. Examples for man Made Disasters in India (भारत में मानव जनित आपदाओं का उदाहरण)

12. Examples for man Made Disasters in India

(भारत में मानव जनित आपदाओं का उदाहरण)



          भारत में मानवजनित आपदाओं को निम्न उदाहरण द्वारा देख सकते है।

(1) भोपाल गैस त्रासदी, 1984 (Bhopal Gas Tragedy)

       भोपाल में 2-3 दिसम्बर, सन् 1984 को हुई गैस दुर्घटना प्राणघातक गैसों के रख-रखाव में मनुष्य की असावधानी से उत्पन्न आपदापन्न प्रकोपों का ज्वलंत उदाहरण है। भोपाल स्थित अमेरिकन यूनियन कार्बाइड कारखाने के गैस संयंत्र से 2-3 दिसम्बर (1984) की शीत रात्रि में जहरीली मिक गैस (MIC= Methyle Iso-Cynate) के अचानक फूट निकलने के कारण वायु प्रदुषण की वृहत्तम दुर्घटना घट गयी। आधिकारिक सूचना के कारण इस प्रलयकारी गैस दुर्घटना के कारण कुछ घण्टों में ही 2500 व्यक्ति कालकवलित हो गये जबकि गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार इस दुर्घटना से मरने वालों की संख्या 5000 से अधिक बतायी गयी है।

       भोपाल स्थित इस अमेरिकी यूनियन कार्बाइड कारखाने में कीटनाशी रसायन के निर्माण के लिए मिक गैस का उत्पादन किया जाता था तथा उसका भूमिगत कंटेनरों में भण्डारन किया जाता था। 2-3 दिसम्बर की रात में इन्हीं कंटेनरों से मिक गैस का अचानक रिसाव (लीकेज) प्रारम्भ हुआ तथा यह रिसाव 40 मिनट तक चलता रहा।

       प्रातः कालीन वायु के प्रभाव से यह जहरीली गैस पुराने भोपाल नगर के घनी आबादी वाले क्षेत्रों में तेजी से फैल गयी तथा पलक झपकते हजारों लोगों को निगल गयी। इसके अलावा हजारों निवासी इस विषाक्त गैस से बुरी तरह प्रभावित हो गये एवं हजारों जानवरों ने प्राण त्याग दिये। इस गैस मे पेय जल, मिट्टियों, तालाबों तथा जलाशयों के जल को बुरी तरह प्रदूषित कर दिया तथा गर्भस्थ शिशुओं (भ्रूणों), नवजात शिशुओं, गर्भवती महिलाओं, बच्चों एवं आबाल-वृद्ध लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया।

     गैस त्रासदी के समय जन्मे बच्चों, जो बाद में मर गये, के जिगर में नीले धब्बे पड़ गये वे खाँसी तथा अस्थमा के रोगी हो गये तथा अधिकांश की आँखों की रोशनी चली गयी। भोपाल गैस त्रासदी को घटित हुए एक लम्बा समय बीत गया है परन्तु आज भी पुराने भोपाल के खांसते, आँख, मलते तथा लंगड़ाते लोग मानव-कृत जानलेवा आपदा की घटना को ताजा कर जाते हैं।

(2) चसनाला कोयला खदान आपदा, 1975 (Chasnala Coal Mine Disaster)

       झारखण्ड राज्य के धनबाद जिले में स्थित चसनाला कोयला खदान में 27 दिसम्बर, 1975 को एक हृदय विदारक (Heart Shaking) ऐसी आपदा घट गयी जिस कारण खदान में कार्यरत 372 लोगों की जान चली गयी। चसनाला की गहरी खदान में सैकड़ों खननकर्ता (Miners) कार्य कर ही रहे थे कि एक विस्फोट करने पर खादान के एक चैम्बर की छत अचानक भर भराकर गिर गया और उसमें 272 दबकर मर गए।

(3) संरचनात्मक विफलता (structural failure)

     संरचनात्मक विफलता के कई ऐसे उदाहरण हैं जो भवनों के उनके निर्माण के समय ही ध्वस्त होने को दर्शाते हैं। अर्थात् अपने निर्माण की अवस्था में ही कई भवन भरभरा कर ढह जाते हैं (गिर पड़ते हैं)। उदाहरण: अप्रैल 2013 में महाराष्ट्र के थाणे जिला में 7 मंजिला भवन जिसका बिना सरकारी अनुमति के गैरकानूनी रूप से निर्माण कराया जा रहा था, भरभरा कर गिर गया।

      इस दुर्घटना में 39 व्यक्ति मारे गये तथा 72 घायल हो गये। उस समय राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF– National Disaster Response Force) की टीम ने अतिरिक्त 25-30 लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका जतायी थी। इसी तरह 2013 में ही महाराष्ट्र में संरचनात्मक विफलता की दुर्घटना सितम्बर महीने में घट गयी। मुम्बई में एक 4 मंजिला रिहायसी (Residential) भवन ताश के पत्ते की तरह भरभरा कर गिर गया, जिस कारण 61 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी।

(4) संरचनात्मक अग्निकांड दुर्घटना आपदा (Structural Fire accidents Disaster)

    विभिन्न उपयोगों वाले भवनों यथा प्राइवेट एवं पब्लिक सेक्टर के कार्यालय, सिनेमा हाल, शापिंग माल, रिहायसी तथा वाणिज्यिक काम्प्लेक्स, धार्मिक शिविर, कारखाना तथा मिल आदि में आग लगने से जानलेवा मानव जनित आपदायें उत्पन्न हो जाती हैं, जिनसे जान-माल की भारी क्षति होती है।

     भवनों में आगजनी की दुर्घटनायें प्रायः शार्ट-सर्किटिंग, मशीनों एवं उपकरणों में खराबी, पावर स्टेशनों का खराब अनुरक्षण (रख-रखाव Maintenance), खराब एवं पुरानी वायरिंग, तोड़-फोड़ (Sabotage), आतंकी हमला, लापरवाही, सुरक्षा मानकों तथा फायर फाइटिंग मैनुअल की नजर अन्दाजी (Avoidance), अग्निशामकों (Fire Extinguishers) का अभाव होने पर या खराब अनुरक्षण, अपर्याप्त फायरटेण्डर या इनका पूर्णतया अभाव, आग बुझाने में लगे लोगों का समुचित प्रशिक्षण न होना एवं प्रशिक्षित फायरमैन की पर्याप्त संख्या का अभाव, जल की खराब आपूर्ति आदि के कारण होती हैं।

      जून 1997 में उपहार सिनेमाहाल में आग की दुर्घटना का निम्न उदाहरण सुरक्षा के अनुपालन में मानवीय लापरवाही की कहानी कह देता है:

          ‘बार्डर फिल्म’ के प्रीमियर प्रदर्शन के समय नई दिल्ली में ग्रीन पार्क के निकट अवस्थित ‘उपहार सिनेमा हाल’ में 13 जून, 1977 को दिल को दहला देने वाली आपदापन्न भीषण अग्निकाण्ड की दुर्घटना घट गयी। सिनेमा हाल में फंसे 59 व्यक्तियों की घने धुंए में दम घुटने से मृत्यु हो गयी। आग लगने की घटना से भगदड़ (Stampede) मच गयी, जिसमें अफरा-तफरी में 103 लोग गम्भीर रूप से घायल हो गये। भवन के तहखाने (Basement) में लगे 1000 KVA के विद्युत ट्रान्सफार्मर में अचानक ब्लास्ट (घमाका) होने से अग्निकाण्ड की यह आपदा हुई थी।

      उल्लेखनीय है कि भवन का तहखाना केवल सीमित संख्या में कार पार्किंग के उपयोग के लिए था। अन्य किसी भी प्रकार का उपयोग वर्जित था। उस दिन अनुमन्य कार पार्किंग के नियम का उल्लंघन करके 36 कारों की पार्किंग की गयी थी। तहखाने में स्थित बिजली के ट्रांसफार्मर के अनुरक्षण (Maintenance) में लापरवाही बरती गयी थी।

      ट्रांसफार्मर में अचानक ब्लास्ट होने से लगी आग ने 20 कारों को अपने चपेट में ले लिया। परिणामस्वरूप आग की लपटें तथा धुएं तेजी से फैलने लगे। देखते-देखते आग तथा धुंआ 5-मंजिला भवन में फैल गया। अधिकांश पीड़ित व्यक्ति बालकनी में फंस गये थे, तथा बाहर निकलने के दरवाजे के बन्द होने के कारण वे बाहर नहीं जा सके। परिणामस्वरूप दम घुटने (Suffocation) के कारण 59 लोगों की मृत्यु हो गयी।

(5) शिवकाशी आतिशबाजी आपदा, भारत, 2012

      तमिलनाडु में शिवकाशी से 13 किमी. दूर मुदालीपट्टी की एक आतिशबाजी (Fireworks) फैक्टरी में 5 सितम्बर, 2012 को आतिशबाजी की एक हृदयविदारक त्रासदी घट गयी, जिसमें 38 श्रमिक (2 महिलायें तथा अधिकांश बच्चे) मृत्यु के शिकार हो गये।

      उल्लेखनीय है कि सामान्य रूप से तमिलनाडु और मुख्य रूप से शिवकाशी भारत में आतिशबाजी का सर्वाधिक निर्माता है। परन्तु अराजकता, सुरक्षा एवं बचाव के उपायों की उपेक्षा एवं अनुपालन करने में लापरवाही राज्य सरकार की उपेक्षा तथा श्रमिकों की लापरवाही के कारण आतिशबाजी तथा पटाखों की फैक्टरियों एवं गोदामों में आये दिन आगजनी तथा विस्फोटों की दुर्घटनायें होती रहती हैं, जिस कारण आतिशबाजी तथा पटाखा बनाने के काम में लगे श्रमिकों, जिनमें अधिकतर बच्चे होते हैं (यह नियम विरुद्ध है) से कई मौत के शिकार हो जाते हैं।

      तमिलनाडु में शिवकाशी और उसके आस-पास के क्षेत्रों में आतिशबाजी, पटाखा एवं दियासलाई बनाने की कई इकाइयां हैं। इनमें से कई गैरकानूनी हैं तथा गावों एवं निजी घरों में स्थापित हैं। इनमें काम करने वाले श्रमिक पटाखों के निर्माण में काम आने वाले विस्फोटकों तथा अन्य खतरनाक सामग्रियों को हैण्डिल करने के लिए अच्छी तरह प्रशिक्षित नहीं हैं। साथ ही साथ कच्चे पदार्थों खासकर विस्फोटकों (बारूद) तथा निर्मित पटाखों के उचित भण्डारन की समुचित व्यवस्था एवं सुविधाओं का अभाव है। इन सभी के कारण भारत, पाकिस्तान तथा बांगलादेश में आतिशबाजी से जानलेवा दुर्घटनायें तथा जनहानियाँ होती रहती हैं। विकसित देशों में भी सुरक्षा उपायों के बावजूद आतिशबाजी की दुर्घटनायें होती हैं।

     शिवकाशी में 5 सितम्बर, 2012 की आतिशबाजी की दुर्घटना श्रमिकों एवं फैक्टरी के मालिकों की लापरवाही के कारण विस्फोट होने से हुई थी। धमाका इतना प्रबल था कि फैक्टरी की 30 कंक्रीट छतें पटरा हो गयीं तथा 38 लोग कालकवलित हो गये। यह दुर्घटना आतिशबाजी की एक प्राइवेट ओम शक्ति फैक्टरी में घटी थी।

(6) उल्लेखनीय है कि प्रति 12वें वर्ष महाकुम्भ के पवित्र स्नान पर्व के समय  प्रयागराज में गंगा, यमुना एवं अदृश्य सरस्वती नदियों के पवित्र संगम पर विश्व का सबसे बड़ा जन समुदाय एकत्रित होता है जिसमें कई करोड़ श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं।

      सन् 2013 में महाकुम्भ स्नान पर्व के समय 10 फरवरी को लगभग 4 करोड़ श्रद्धालुओं का संगम की रेती पर जमघट लग गया परन्तु राज्य एवं केन्द्र की सरकारों ने इस भारी भीड़ का इतना सुनियोजित ढंग से प्रबन्धन किया कि विश्व समुदाय के सामने भीड़ प्रबन्धन का यह सफल मॉडल एक नजीर बन गया विश्व की कई लब्धप्रतिष्ठ शैक्षिक संस्थाओं ने इस महाकुम्भ के दौरान भीड़ प्रबन्धन की भारतीय विधि का अध्ययन करने के लिए अपनी-अपनी विशेषज्ञों की टोलियाँ इलाहाबाद भेजी थीं।

      भीड़-भगदड़ मुख्य रूप से अफवाह फैलने पर दहसत में लोगों के सम्बन्धित स्थान से भाग निकलने के प्रयास में होती है। भीड़-भगदड़ के स्थानों में पूजा स्थल, खेल-कूद स्थल, सिनेमा हाल, शापिंग माल, धार्मिक मेला, रेलवे स्टेशन, संकरे पुल, व्यापारिक केन्द्र व बाजार, धार्मिक एवं राजनीतिक सभायें आदि प्रमुख हैं। भीड़-भगदड़ के समय अधिकांश मौत दम घुटने (Suffocation) तथा सिर एवं सीने में चोट लगने से होती है।

      भगदड़ पूर्वकथनीय नहीं है। अर्थात् भारी भीड़ में भगदड़ की सम्भावना तो रहती है, परन्तु यह पता नहीं होता है कि कब भगदड़ मचेगी। अतः भगदड़ आपदा के प्रबन्धन का एकमात्र तरीका उसकी प्रायिकता (Probability) का आंकलन कना तथा विषम परिस्थितियों में भीड़ का प्रबन्धन करने के लिए पहले से सावधान हना तथा सभी आवश्यक उपायों एवं साधनों को तैयार स्थिति में रखना है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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