Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

Environmental Geography (पर्यावरण भूगोल)

6. The Conservation of Biodiversity in India (भारत में जैव विविधता के संरक्षण)

6. The Conservation of Biodiversity in India

(भारत में जैव विविधता के संरक्षण)



        जैव विविधता के संरक्षण की आवश्यकता इस बात से स्पष्ट हो जाती है कि यदि कल्पना करें कि पैनिसिलियम या सिनकोना (Pennicillium or Cinchona) का विलुप्तीकरण इनके महत्त्व के आविष्कार से पहले ही हो गया होता तो क्या होता? इसलिये सभी जातियाँ चाहे वे आर्थिक रूप से उपयोगी हों या न हों, पारिस्थितिकी तंत्र की उन्नति के लिये उपयोगी हैं क्योंकि वन्य पौधे एवं जन्तु पारिस्थितिक तंत्र की उन्नति के लिये आनुवंशिक पदार्थ प्रदान करते हैं।

      भारत के जंगली तरबूज (Wild Melon) से कैलीफार्निया (यू. एस. ए.) में तरबूज फसल (Melon crop) पर होने वाले मिल्ड्यू (Mildew) रोग के प्रतिरोध (resistance) के लिए जीन्स (Genes) प्राप्त की गयी हैं। इसी प्रकार 1963 में उत्तर प्रदेश में वन्य चावल (Wild rice) एकत्र किया गया जिससे प्राप्त जीन ने ग्रासी स्टण्ट वायरस (Grassy Stunt Virus) से होने वाले 30 मिलियन धान की फसल वाले खेत (Paddy) को संक्रमित होने से बचाया। इण्डोनेशिया की कांस घाल (Kans-grass-Saccharum) से गन्ने के रैड रॉट रोग (Red Rot disease) के प्रतिरोध की जीन्स प्राप्त की जाती हैं।

       वर्तमान में कुछ प्रमुख फसल किस्मों के अत्यधिक उपयोग में किस्मों की विविधता या फसल की विविधता को कम कर दिया है। एक आंकलन के अनुसार 1950 में भारतीय किसान चावल की लगभग 30 हजार किस्मों को उगाता था। सन् 2000 तक यह संख्या घटकर 50 रह गई और आगे केवल 10 किस्में ही 75 प्रतिशत कृष्य क्षेत्र (75% Cultivated area) को आच्छादित करेंगी। अब फसलों की रूढ़िवादी एवं भूमि प्रजातियों (Traditional and land races) की कृषि अधिकांश जनजातियों की समाज तक ही सीमित रह गयी हैं। अतः स्पष्ट है कि संरक्षण की अति आवश्यकता है।संरक्षण के दृष्टिकोण से इसे दो भागों में बाँट सकते हैं-

सरंक्षण (Conservation)

1.  संस्थितिक (In-Situ) संरक्षण

⇒ Sanctruaries

⇒ National Park

⇒ Biospher reservoirs

⇒ National reservoirs

⇒ National Monument

⇒ Cultural Landscape

2. असंस्थितिक संरक्षण (Ex-Situ)

⇒ Seed bank

⇒ Gene bank

⇒ Germplas Bank

⇒ Cryopreservation

⇒ Zoo-Captive breeding

⇒ Botanical gardens

⇒ Relative genetic Bank

      जाति का संरक्षण उसके मूल आवासों (Original habitats Means in sittu of on sit) में ही किया जाता है। एक्स सीटू संरक्षण के अन्तर्गत जाति का संरक्षण उनके मूल आवासों से दूर ले जाकर (Away from their original natural habitat means ex-situ or off Situ) किया जाता है। दोनों ही प्रकार के संरक्षण एक-दूसरे के पूरक (Complementary) हैं।

(A) संस्थितिक संरक्षण (In-Situ Conservation):-

       देश में वन्य जीवन नीतियाँ के निर्धारण हेतु 1952 में इण्डियन बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ (Indian Board of Wild Life) की स्थापना की गयी। इसकी पहली मीटिंग में भारत में वन्य जीवन के संरक्षण के लिए एक एकीकृत कानून बनाने की अनुशंसा की गयी।

       1972 में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्सन एक्ट लागू किया गया जिसे सभी राज्यों द्वारा माना गया। 15वीं मीटिंग में 1982 में स्व. प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के समय वैज्ञानिक रूप से प्रबन्धित सुरक्षित क्षेत्रों की स्थापना पर बल दिया गया। जैसे- राष्ट्रीय उद्यान (National Park), अभ्यारण्य (Sanctuaries), जीवनमंडल रिजर्व (Biosphere Reserve) और अन्य क्षेत्र।

      वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट को ठीक तरह से लागू करने के लिए चार क्षेत्रों नई दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई में एक-एक उपनिदेशक (Deputy Director) नियुक्त किये गये। ये कन्वेन्सन ऑन इन्टरनेशनल ट्रेड इन एनडेन्जर्ड स्पीशीज CITES (Convention on International Trade in Endangered Species) के लागू करने के लिये उत्तरदायी होते हैं। CITE राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संकटापन्न जातियों के आयात/निर्यात पर रोक लगाती है। ये चारों स्थानीय अधिकारियों (Local Officers) की वन्यजीवन संरक्षण में सहायता भी करते हैं।

1. विश्व स्तर पर विश्व बैंक (World Bank) और संयुक्त राष्ट्र एजेन्सी द्वारा प्रत्येक वर्ष 1.5 विलियन अमेरीकी डॉलर विश्वव्यापी पर्यावरण (Global Environment) के लिए दिये जाते हैं। 1989 में WCMC ने पूरे विश्व में 4,545 संरक्षित क्षेत्र चुने हैं जो 4,846, 300 Km2 क्षेत्र को घेरे हुए हैं जो पृथ्वी के भू-तल का 3.2% क्षेत्र हैं। जिसमें से केवल 2% क्षेत्र राष्ट्रीय उद्यानों और (वैज्ञानिक रिसर्च) बायोस्फीयर के रूप में दृढ़ता से संरक्षित (Strictly Protect) है। विश्व का सबसे बड़ा उद्यान “ग्रीनलैण्ड” है जो 7,00,000 Km2 को घेरे हुए हैं। 1970 में संरक्षित क्षेत्र में सबसे अधिक वृद्धि हुई थी।

     भारत में 1981 में केवल 19 राष्ट्रीय पार्क और 202 अभ्यारण्य थे। वर्तमान में भारत में 75 राष्ट्रीय पार्क, 421 अभ्यारण्य हैं जो लगभग 1.4 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र घेरते । यह मैन एण्ड बायोस्फीयर समिति (Natural Man and Biosphere Committee, MAB) ने ले लिया। MAB 1979 ने भारत में 13 पारिस्थितिकी तन्त्रों को बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में सुरक्षित करने की योजना बनायी है।

2. राष्ट्रीय उद्यान (National Park)-

     प्राकृतिक सौन्दर्य, वन्य जीवन, लोगों के मनोरंजन तथा ऐतिहासिक महत्त्व के कारण आरक्षित किया जाने वाला एक विशेष क्षेत्र है। जहाँ किसी विशेष जानवर (Genetic Orientation) जैसे टाइगर (Tiger), शेर (Lion), राइनो (Rhino) आदि को उनके आवासों में सुरक्षित किये जाते हैं। इनकी सीमा कानून द्वारा निर्धारित होती है। बफर क्षेत्र (Buffer zone) के अतिरिक्त राष्ट्रीय उद्यान में कभी भी जैव हस्तक्षेप (Biotic interference) नहीं होता। यहाँ पर्यटन की आज्ञा है। इसमें जीनपूल (Genepool) और इसके संरक्षण पर ध्यान दिया जाता है। वर्तमान में देश में 75 राष्ट्रीय उद्यान हैं।

भारत के प्रमुख राष्‍ट्रीय उद्यान और अभ्‍यारण्‍य

क्रम प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान/अभ्यारण  राज्य
1. कैमूर वन्य जी अभ्यारण बिहार
2.  गिर राष्ट्रीय उद्यान गुजरात
3.  नल सरोवर अभ्यारण गुजरात
4.  जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड
5.  दुधवा राष्ट्रीय उद्यान उत्तर प्रदेश
6.  चन्द्रप्रभा अभ्यारण उत्तर प्रदेश
7.  बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान कर्नाटक
8.   भद्रा अभ्यारण कर्नाटक
9.   सोमेश्वर अभ्यारण कर्नाटक
10.   तुंगभद्रा अभ्यारण कर्नाटक
11.  नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान कर्नाटक
12. पाखाल वन्य जीव अभ्यारण तेलंगाना
13. कावला वन्य जीव अभ्यारण  तेलंगाना
14. मानस राष्ट्रीय उद्यान  आसम
15. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान  आसम
16. घाना पक्षी विहार राजस्थान
17. रणथम्भौर अभ्यारण राजस्थान
18.  कुंभलगढ़ अभ्यारण राजस्थान
19. पेंच राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश
20. तंसा अभ्यारण महाराष्ट्र
21. वोरीविली रा० उद्यान महाराष्ट्र
22. पलामू (बेतला) अभ्यारण झारखंड
23. दाल्मा वन्य जीव अभ्यारण  झारखंड
24. हजारीबाग वन्य जीव अभ्यारण झारखंड
25. चिल्का अभ्यारण  ओडीशा
26. सिमलीपाल अभ्यारण  ओडीशा
27. वेदान्तगल अभ्यारण तमिलनाडु
28. इंदिरा गाँधी अभ्यारण तमिलनाडु
29. मुदुमलाई अभ्यारण तमिलनाडु
30. कान्हा किसली रा० उद्यान मध्य प्रदेश
31. पंचमढ़ी अभ्यारण मध्य प्रदेश
32. बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान  मध्य प्रदेश
33. डाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान जम्मू कश्मीर
34. किश्तवाड़ राष्ट्रीय उद्यान जम्मू कश्मीर
35. पेरियार अभ्यारण केरल
36. पराम्बिकुलम अभ्यारण केरल
37. पखुई वन्य जीव अभ्यारण्य अरुणाचल प्रदेश
38. अबोहर अभ्यारण पंजाब
39. सुल्तानपुर झील अभ्यारण्य हरियाणा
40. रोहिला राष्ट्रीय उद्यान हिमाचल प्रदेश
41. सुन्दरवन राष्ट्रीय उद्यान पश्चिम बंगाल
42. भगवान महावीर उद्यान गोवा
43. नोंगरवाइलेम अभ्यारण्य मेघालय
44. डाम्फा अभ्यारण मिजोरम
45.   कीबुल लामजाओ रा० उद्यान मणिपुर

3. अभ्यारण्य या शरणस्थली (Sanctuaries)-

     विशेष जाति (Species Oriented) से सम्बन्धित होते हैं। जैसे- सिट्रस, पिचर प्लाण्ट, इण्डियन बस्टर्ड सामान्यतः विशेष आनुवंशिक पदार्थों और लक्षणों (Specific, Genetic, Material and Characters) वाले पौधों को सुरक्षित रखा जाता है। अतः किसी एक संकटापन्न जाति या जातियों के समूह के लिए अभ्यारण्यों का निर्माण सबसे अच्छा होता है। जैसे- मेघालय की खासी पहाड़ियों में नेपेन्थीस (Nepenthes) के लिए, सिक्किम में रोडोडेन्ड्रेन (Rhododendron) व प्रिमूलस के लिये, मेघालय में सिट्रस पौधे के लिये अभ्यारण्य स्थापित किये हैं। यहाँ सीड बैंक तथा जीन बैंक की स्थापना भी की जाती है। भारत में 421 अभ्यारण्य स्थापित किये जा चुके हैं।

4. बायोस्फीयर रिजर्व (Biosphere Reserve)-

     वे प्राकृतिक क्षेत्र होते हैं जो किसी भी प्रकार के शोरगुल से पूर्णतः मुक्त होते हैं और ये पारिस्थितिक तन्त्र (Ecosystem orented) से सम्बन्धित होते हैं। इसमें चार चीजों को शामिल किया गया है-

(1) संरक्षण (Conservation),

(2) अनुसंधान (Research),

(3) शिक्षण (Education) और

(4) स्थानीय सहभागिता (Local Involvement)।

       1985 में विश्व के 65 देशों में 243 बायोस्फीयर रिजर्ववायर बनाने का लक्ष्य था जिसमें से 90 स्थापित हो चुके हैं शेष बचे 103 का निर्माण होना है। भारत में 13 बायोस्फीयर रिजर्ववायर है। भारत में सबसे पहला बायोस्फीयर 1986 में नीलगिरी बायोस्फीयर स्थापित किया गया है जो कर्नाटक, केरल व तमिलनाडु में फैला है। मध्य प्रदेश में सबसे पहले कान्हा राष्ट्रीय उद्यान को बायोस्फीयर के रूप में चिन्हित किया गया।

भारत के प्रमुख  जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र 

क्रम नाम  राज्य
1. मन्नार की खाड़ी  तमिलनाडु 
2.  सुन्दर वन पश्चिम बंगाल
3.  मानस असम
4.  ग्रेट निकोबार अण्डमान एण्ड निकोबार
5.  नन्दा देवी   उत्तरांचल
6.  नोक्रेक मेघालय
7.  नीलगिरि कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु
8.   सिमलीपाल उड़ीसा
9.   डिब्रू सेखोवा असम
10.   दिहांग देबंग अरुणाचल प्रदेश
11.  पंचमढी मध्य प्रदेश
12. कंचनजंगा सिक्किम
13. अगस्तस्य मलाई केरल

       पिछले कुछ वर्षों में भंगुर पारिस्थितिक तन्त्र (Fragile Ecosystem) जैसे 16 बैटलैण्ड, 15 [मैव क्षेत्र और 4 कोरल रीफ के लिए भी सुरक्षा कार्यक्रम बनाये गये हैं।

(B) असंस्थितिक संरक्षण (Ex-Situ Conservation):-

      जब इन सीटू (In-Situ) संरक्षण में किसी जाति के पौधे के बने रहने की सम्भावना कम हो जाती है और उसके विलुप्त होने की आशंका होती है तो ऐसी स्थिति में उसके संरक्षण की विधि संयुक्त एक्स-सीटू (Ex- Situ) होती है अर्थात् मूल आवास से दूर ले जाकर (Away from their Original natural habitat means ex-sita or off situ) करते हैं। इसमें जाति की DNA पदार्थ या उसके genetic पदार्थ का संरक्षण किया जाता है। इसकी मुख्यतः तकनीक है-

(i) जीन बैंक (Gene banks),

(ii) सीड बैंक (Seed Bank).

(iii) इनविट्रों तथा इन विवो (Invitro and in-vivo) में संरक्षण,

(iv) ऊतक सम्बन्धी आनुवंशिक बैंकों की स्थापना,

(v) आनुवंशिक वर्धन केन्द्रों की स्थापना,

(vi) चिड़ियाघर तथा बगीचों (Botanical gardens) में वृद्धि,

(vii) कारावासी बीडिंग (Captive beeding) की जाती है।

       इसे मोटे तौर पर निम्न प्रकार से वर्णित कर सकते हैं-

(1) जीन बैंक (Gene Bank)-

      जीव जन्तुओं या पौधों को जब चिड़ियाघरों (Zoo) या वानस्पति बगीचों में बीज के साथ-साथ DNA को भी एकत्रित कर रखा जाता है तो इसे जीन बैंक कहते हैं । साथ ही कारावासी (Captive) के रूप में उनको रखकर उनकी ब्रीडिंग (Breeding) कराते हैं। उपरोक्त परिस्थिति आने पर इन्हें पूर्व मूल निवास स्थान पर छोड़ा जाता है। भारत में 33 वनस्पति उद्यान और 33 विश्वविद्यालयों में जैव विज्ञानी उद्यान, 107 चिड़ियाघर, 49 मृग उद्यान, 24 प्राकृतिक प्रजनन केन्द्र हैं।

(2) बीज बैंक (Seed Bank)-

     ऐसे पौधे जिनक बीजों को दीर्घ अवधि तक संरक्षित कर रखा जा सकता है उनके लिए बीज बैंक बनाये गये हैं। यहाँ बीज का लेन-देन (Exchange) तथा वितरण किया जाता है। इन्हें जीवन क्षम (Vibal) बनाये रखने के लिये NBPGR के ग्रीन बैंक में संचित (Stored) किया जाता है। भारत में इस प्रकार के चार केन्द्र स्थापित किये गये हैं-

(i) शिमला- भारत के उत्तरी भाग के पहाड़ी स्थानों से जर्मप्लाज्मा या बीज को (Collect) इकट्ठा कर संरक्षित किया जाता है। 

(ii) अमरावती- भारत के केन्द्रीय क्षेत्रों से प्राप्त जर्मप्लाज्मा, पादप पदार्थ या बीज को संग्रहित कर संरक्षित किया जाता है।

(iii) जोधपुर- इस केन्द्र पर शुष्क प्रदेशों के जर्मप्लाज्मा, पादप पदार्थ या बीज को संचय कर संरक्षित किया जाता है।

(iv) शिलांग- उत्तर-पूर्वी भारत के विभिन्न क्षेत्रों के पादप पदार्थ या बीज को संचय कर संरक्षित किया जाता है।

(3) निम्नताप संरक्षण (Cryopreservation)-

      कुछ पौधों के बीज ऊष्मा और ठण्डक (Cooling) को सही नहीं पाते इसलिये इसके लिये बीज बैंक उपयुक्त नहीं होता है। इन्हें दुःशय बीज कहते हैं। जब इसमें व्यापारिक महत्त्व के पौधे आ जाते हैं; जैसे- चाय (Tea) और नारियल (Coconut) के पौधे इसके (In-situ) संचय को बढ़ावा दिया जाता है और पौधे के बीज के स्थान पर उनके परागकण (Pollen grains) और स्पोर (Spore) का संचय निम्न ताप पर किया जाता है।

       अतः संक्षेप में कह सकते हैं कि संकटापन्न जीवों के संरक्षण में अप्राकृतिक (Ex-Situ) संरक्षण की तुलना में प्राकृतिक संरक्षण (In-Situ) अधिक उपयुक्त होता है। इसलिए जीवों को उनके पर्यावरण में संरक्षित करना चाहिए क्योंकि यदि उन्हें कैप्टिव (कैद कर जैसे चिड़ियाघर या प्रयोगशाला में) बीडिंग कर उनकी संख्या बढ़ाकर उन्हें पुनः उनके आवास में स्थापित करना कठिन होता है। इसका करण है कि वे जंगली जीवों से अपनी रक्षा नहीं कर पाते हैं और अपना भोजन भी नहीं ढूंढ पाते हैं। इस कारण से अधिकांश की मृत्यु हो जाती है। साथ ही अप्राकृतिक संरक्षण (Ex-Situ) में अत्यधिक लागत आती है। इसलिए हमें अधिक से अधिक प्राकृतिक (In-Situ) संक्षण को बढ़ावा देना चाहिए।


I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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