Unique Geography Notes हिंदी में

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Environmental Geography (पर्यावरण भूगोल)

11. Man-made disaster and its types (मानव जनित आपदा एवं उसके प्रकार)

11. Man-made disaster and its types
(मानव जनित आपदा एवं उसके प्रकार)



        मनुष्य के कार्यों, जो जानबूझ कर या अनजाने में किए जाँय तथा जिनसे जान-माल की भारी क्षति होती है, को मानवकृत (मानव जनित) आपदा कहते हैं। ऐसे इच्छित या अनिच्छित (Intentional or unintentional, deliberate indeliberate) कार्यों द्वारा जनित आपदाओं से मानव मृत्यु के अलावा सरकारी तथा निजी सम्पत्तियों को भारी हानि होती है। मानव जनित आपदा की इस परिभाषा का और अधिक विस्तरण किया जा सकता है:

      मनुष्य की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, इच्छित या अनिच्छित क्रियाओं, उसकी असावधानी, लापरवाही, अज्ञानता (Ignorance), गलती या मानव-निर्मित तंत्रों की विफलता के कारण उत्पन्न आपदाओं घटनाओं या दुर्घटनाओं (Accidents), जिनसे मानव के जान-माल की भारी क्षति होती है, को मानव जनित आपदा कहते हैं। निम्नलिखित कतिपय उदाहरणों द्वारा मानवकृत आपदाओं की अवधारणा को स्पष्ट किया जा सकता है:

(1) जानबूझकर/इच्छित कार्य (Deliberate and intentional acts):

⇒ द्वितीय विश्व युद्ध के समय सन् 1945 में अमेरिका सेना द्वारा जापान के हीरोशिमा एवं नागासाकी नगरों पर एटम बम गिराया जाना।

⇒ सन् 2001 में आतंकवादियों द्वारा 11 सितम्बर को संयुक्त राज्य के विश्व ट्रेड सेन्टर के दो टावरों तथा पेण्टागन पर हवाई जहाजों से हमला।

(2) लापरवाही के कार्य (Acts of negligence):

⇒ सन् 1986 में युक्रेन के चर्नोबिल स्थित परमाणु शक्ति संयन्त्र का मेल्टडाउन।

⇒ 3/4 दिसम्बर, 1984 को भारत की भोपाल गैस त्रासदी।

(3) अनिच्छित कार्य (Unintentional Act):

⇒ भूमण्डलीय ऊष्मण्न (Global Warming) तथा जलवायु परिर्वतन।

⇒ पर्यावरण प्रदूषण

⇒ तेज दर से मृदा अपरदन (Accelerated rate of soil erosion)

⇒ भीड़, भगदड़ (Crowd Stampede), यथा: भारत के मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ स्थित माता देवी मन्दिर में श्रद्धालुओं की लाखों की भीड़ में 13 अक्टूबर, 2013 को मची भगदड़ में 115 भक्तों की मृत्यु हो गयी। यह भगदड़ पुल टूटने की अफवाह तथा जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण हुई थी।

(4) लापरवाही तथा बदइन्तजामी (Negligence and Mishanding) के सम्मिलित कार्य:

⇒ रेल दुर्घटनायें

⇒ सड़क दुर्घटनायें

⇒ हवाई दुर्घटनायें

⇒ सागरों में जलयानों की दुर्घटनायें।

       मनुष्य के कुछ कार्य प्राकृतिक आपदाओं को तेज तथा प्रेरित करते हैं, यथा: विफलता, आकस्मिक बाढ़, जल भण्डार-प्रेरित भूकम्पीय घटनायें (Reservoir-induced seismic events), भूस्खलन (वनविनाश तथा सड़क निर्माण द्वारा), तीव्र मृदा अपरदन (Accelerated soil erosion) आदि।

मानवजनित आपदायें: प्रकारिकी

(Man-Made Disasters: Typology)

       उल्लेखनीय है कि मानवकृत आपदाओं को निश्चित वर्गों में विभाजित करने के लिए कोई निर्धारित मानक क्रिया नहीं है। इसेक बावजूद कुछ ने मानव जनित आपदाओं को विशद रूप में विभिन्न प्रकारों/वर्गों में विभाजित करने का प्रयास किया है, जो निम्न प्रकार हैं:

(1) प्रौद्योगिकीय आपदायें (Technological Disasters):

(i) औद्योगिक प्रकोप तथा आपदायें

⇒ खतरनाक तत्वों के प्रक्रमण तथा भण्डारन (Processing and storage) से सम्बन्धित दुर्घटनायें।

⇒ कच्चे पदार्थों के निष्कासन (Extraction) तथा खनन (Mining) से सम्बन्धित दुर्घटनायें।

⇒ खतरनाक वस्तुओं, यथाः पेट्रोकेमिकल्स, पटाखा आदि, का उत्पादन करने वाली इकाइयों की दुर्घटनायें, आदि।

(ii) संरचना की विफलता तथा आग लगना (Structural failure and fire)।

(iii) बिजली का अत्यधिक उपयोग तथा खतरनाक वस्तुओं का विस्फोट, यथा: पटाखों के भण्डार में विस्फोट सम्बन्धी दुर्घटनायें

(iv) रेडियेशन सन्दूषण (Contamination)।

(v) खतरनाक जैविक पैथोजेन (वैक्टीरिया, वाइरस तथा परजीवी)।

(vi) रासायनिक, जैविक, रेडियोलाजिकल तथा परमाणु (CBRNS) तत्वों (Substances) से सम्बन्धित दुर्घटनायें आदि।

(2) परिवहन आपदायें (Transportation disasters):

(i) हवाई दुर्घटनायें

(ii) सड़क दुर्घटनायें

(iii) रेल दुर्घटनायें

(iv) स्पेस दुर्घटनायें

(v) तेलवाहक जलयानों से तेल का रिसाव तथा आयल स्लिक

(vi) समुद्री यात्रा की दुर्घटनायें

(3) सामाजिक आपदायें (Sociological Disasters):

(i) अपराध

(ii) लूट-मार

(iii) नागरिक उपद्रव (Civil disturbance)

⇒ धरना प्रदर्शन (Demonstration)

⇒ हड़ताल

⇒ दंगा-फसाद (Riots)

⇒ अपराधिक कार्य

⇒ सरकारी व्यवस्था की अवमानना

(4) आतंकवाद की आपदायें (Terrorism Disasters):

(i) राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद / अलगाववाद का आतंक

(ii) राष्ट्र-प्रायोजित आतंकवाद

(iii) धार्मिक आतंकवाद

(iv) वामपंथी आतंकवाद

(v) दक्षिणपंथी आतंकवाद

(vi) अराजकवादी (Anarchist) आतंकवाद

(Vii) साइबर आतंकवाद

(Viii) नार्को आतंकवाद

(5) भीड़ भगदड़ आपदा (Crowd Stampede disaster):

(i) धार्मिक मेला / स्नान/प्रार्थना / अनुष्ठान के समय भगदड़।

उदाहरण: महाकुंभ धार्मिक मेला/स्नान, 2013 (इलाहाबाद), मक्का में धार्मिक भीड़ भगदड़, प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में भगदड़ आदि।

(ii) स्पोर्ट्स आयोजनों के समय भगदड़।

(iii) राजनीतिक बड़ी सभाओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के समय भगदड़।

(6) राजनीतिक एवं धार्मिक आपदायें:

(i) युद्ध, यथा: प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध।

(ii) गृह युद्ध (Civil Wars) यथा: रूसी गृह युद्ध- 1917 से 21, अमेरिकी गृह युद्ध- 1861 से 1865, द्वितीय सूडानी गृह युद्ध- 1562 से 1598, नाइजेरियन गृह युद्ध- 1967 से 1970 आदि।

(iii) धार्मिक युद्ध, यथा: फ्रेंच धार्मिक युद्ध- 1562 से 1598।

(iv) नीति सम्बन्धित आपदायें, यथा: युक्रेन में रूस की होमोलोडोर पॉलिसी के कारण विकट अकाल पड़ने से लगभग 1,000,000 लोग भुखमरी से मर गये चीन की लीप फारवर्ड पॉलिसी के कारण चीन के उत्तरी प्रान्तों में व्यापक भुखमरी से कई मिलियन लोग मौत के शिकार हो गये। भारत में सन् 1942 में बंगाल चावल अकाल से सम्बन्धित ब्रिटिश शासन की नीति के कारण लाखों लोग भुखमरी से मर गये।

(v) नरसंहार (Genocides), जहरखुरानी (Poisioning), नजरबन्दी शिविर (Concentration camps) की आपदायें।

(7) मानव-प्रेरित प्राकृतिक आपदायें (Man-Induced Natural Disasters):

(i) बांध विफलता बाढ़ (Dam Failure floods)।

(ii) जलभण्डार- प्रेरित भूकम्पीय घटनायें (RIS, Reservoir induced seismic events)।

(iii) तीव्र मृदा अपरदन तथा अवसादीकरण (Accelerated soil erosion and sedimentation)।

(iv) प्रदूषण एवं पर्यावरण अवनयन (Environmental Degradation)।

(v) भूमण्डलीय ऊष्मन/तापन तथा जलवायु परिवर्तन।

 प्रौद्योगिकीय एवं औद्योगिक आपदायें

Technological and Industrial disasters

        प्रौद्योगिकीय आपदाओं के अंतर्गत निम्न को शामिल किया जाता है:

(i) औद्योगिक दुर्घटना

(ii) संरचनात्मक विफलता (भवनों का ध्वस्त होना)

(iii) घरों, कारखानों, तथा भवनों में आग लगना

(iv) विद्युत विफलता (Power failure) तथा बिजली संकट

(v) खतरनाक वस्तुओं में विस्फोट (यथा पटाखा दुर्घटना)

(vi) खतरनाक जैविक तत्वों के भण्डारण, रख-रखाव तथा उनके इस्तेमाल के समय जैव प्रयोगशालाओं तथा स्वास्थ्य केन्द्रों में दुर्घटनायें।

(viii) रासायनिक, जैविक, रेडियोलाजिकल तथा परमाणु ( CBRNs) तत्वों (Substances) से सम्बन्धित दुर्घटनायें।

(viii) परमाणु शक्ति संयंत्रों में रियक्टरों का मेल्टडाउन तथा रेडियेशन का रिसाव

औद्योगिक प्रकोप तथा आपदायें:-

       औद्योगिक अवस्थितियाँ (Sites), यथा कारखाने, मिल आदि, सदा दुर्घटना प्रकोप तथा आपदाओं के लिए सुभेद्य (Vulnerable) होती हैं। इन दुर्घटनाओं से मनुष्यों एवं पशुओं की मृत्यु हो जाती है, मानव सम्पत्ति तथा पर्यावरण को भारी क्षति होती है। ये औद्योगिक दुर्घटनायें मानव की असावधानी, लापरवाही तथा नासमझी के कारण ही होती हैं। उल्लेखनीय है कि औद्योगिक उत्पादनों में मशीनों द्वारा कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों (Steps) का संचालन मनुष्य द्वारा ही किया जाता है।

      अतः खनिजों के खनन (Mining), फैन्रीकेशन प्रक्रमण (Processing), भण्डारन (Storage), उत्पादित वस्तुओं के परिवहन तथा वितरण आदि सभी चरणों में मुनष्य का हाथ रहता है। अतः औद्योगिक उत्पादन, खतरनाक पैथोजेन की हैण्डलिंग तथा अन्य खतरनाक तत्वों एवं वस्तुओं के रख-रखाव एवं हैण्डलिंग के प्रत्येक चरण पर जोखिम एवं खतरे की सम्भावना बनी रहती है।

       औद्योगिक प्रकोपों एवं आपदाओं के कई कारक होते है जैसा कि नीचे दिया गया है:

 पदार्थों की स्वयं खतरनाक तथा आपदापन्न प्रकृति, यथा: माइक्रोबायोलाजी प्रयोगशालाओं, अस्पतालों तथा औषधि निर्माण करने वाले कारखानों (Pharmaceutical factories) में पैथोजेन का उपयोग।

 बिजली उत्पादन हेतु परमाणु शक्ति संयंत्रों में परमाणु खनिजों का उपयोग।

 पटाखा निर्माण करने वाले कारखानों में विस्फोटकों (Explosives) का उपयोग।

मानक सुरक्षा एवं बचाव के उपायों का अभाव (खासकर रासायनिक कारखानों, परमाणु शक्ति संयंत्रों, पेट्रो-केमिकल इकाइयों, पाइपलाइन द्वारा प्राकृतिक गैस वितरण आदि में) आदि।

      इस प्रकार औद्योगिक आपदाओं के कारकों को निम्न रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

असावधानी के कारण सुरक्षा एवं बचाव के उपायों को नजर अन्दाज करना या जानबूझ कर इन उपायों का अनुपालन न करना।

  बिजली की ढीली फिटिंग, परिणामस्वरूप शार्ट सर्किट होने से आग लगना।

 आवस्थापना की सुविधाओं की विफलता (Failure of infrastructure Facilities)।

 उपकरणों तथा मशीनों की हैण्डलिंग करते समय मानवीय भूल तथा गलतियां या जानबूझ कर आतंकियों द्वारा तोड़-फोड़ (Sabotage) तथा औद्योगिक कार्यों में व्यवधान करना।

 अनिच्छित दुर्घटनायें आदि।

      निम्नलिखित खतरनाक प्रकोप तथा आपदाओं के क्षेत्र हैं, जिनपर अधिक ध्यान केन्द्रित करने तथा देख-भाल की आवश्यकता होती है:

 औद्योगिक प्रतिष्ठान जहां पर अत्यन्त ज्वलनशील तथा विस्फोटक सामग्रियों का महत्वपूर्ण सामरिक उपकरणों के निर्माण करने में उपयोग किया जाता है।

 परमाणु शक्ति, जलविद्युत एवं ताप शक्ति (Nuclear, hydel and thermal power) उत्पन्न करने के स्थान।

 खाद्यान्नों में खनिजों के खनन में डायनामाइट द्वारा ऊपर स्थित चट्टानों को उड़ाने वाले स्थल।

खतरनाक सामग्रियों के स्थल, यथा: मिलिट्री प्रतिष्ठापन (Installation) स्थल, परमाणु भण्डारन स्थल तथा परमाणु अपशिष्टों के निस्तारण स्थल,

खतरनाक सामग्रियों के परिवहन के मार्ग (सड़कें तथा रेल रोड),

 कच्चे पदार्थों के प्राप्ति स्थल, यथा: खदानें (कोयला खदानें, लौह अयस्क खदानें आदि) आदि।

    रासायनिक कारखानों में खतरनाक रसायनों से सम्बन्धित दुर्घटनाओं, परमाणु शक्ति संयंत्रों की दुर्घटनाओं तथा रेडियेशन रिसाव, खदानों आदि की दुर्घटनाओं से सम्बन्धित औद्योगिक आपदाओं, जिनके द्वारा भारी जान-माल की क्षति हुई है, के कतिपय उदाहरणों द्वारा औद्योगिक आपदाओं के खतरों तथा उनसे होने वाली हानियों की व्यापकता को दर्शाया जा सकता है।

भोपाल गैस त्रासदी, 1984

(Bhopal Gas Tragedy)

 भोपाल गैस त्रासदी:

      भोपाल में 2-3 दिसम्बर, सन् 1984 को हुई गैस दुर्घटना प्राण घातक गैसों के रख-रखाव में मनुष्य की असावधानी से उत्पन्न आपदापन्न प्रकोपों का ज्वलंत उदाहरण है। भोपाल स्थित अमेरिकन यूनियन कार्बाइड कारखाने के गैस संयंत्र से 2-3 दिसम्बर (1984) की शीत रात्रि में जहरीली मिक गैस (MIC= Methyle Iso-Cynate) के अचानक फूट निकलने के कारण वायु प्रदुषण की वृहत्तम दुर्घटना घट गयी। आधिकारिक सूचना के कारण इस प्रलयकारी गैस दुर्घटना के कारण कुछ घण्टों में ही 2500 व्यक्ति कालकवलित हो गये जबकि गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार इस दुर्घटना से मरने वालों की संख्या 5000 से अधिक बतायी गयी है।

     भोपाल स्थित इस अमेरिकी यूनियन कार्बाइड कारखाने में कीटनाशी रसायन के निर्माण के लिए मिक गैस का उत्पादन किया जाता था तथा उसका भूमिगत कंटेनरों में भण्डारण किया जाता था। 2-3 दिसम्बर की रात में इन्हीं कंटेनरों से मिक गैस का अचानक रिसाव (लीकेज) प्रारम्भ हुआ तथा यह रिसाव 40 मिनट तक चलता रहा। प्रातः कालीन समीर के प्रभाव से यह जहरीली गैस पुराने भोपाल नगर के घनी आबादी वाले क्षेत्रों में तेजी से फैल गयी तथा पलक झपकते हजारों लोगों को निगल गयी। इसके अलावा हजारों निवासी इस विषाक्त गैस से बुरी तरह प्रभावित हो गये एवं हजारों जानवरों ने प्राण त्याग दिये।

       इस गैस ने पेय जल, मिट्टियों, तालाबों तथा जलाशयों के जल को बुरी तरह प्रदूषित कर दिया तथा गर्भस्थ शिशुओं (भ्रूणों), नवजात शिशुओं, गर्भवती महिलाओं, बच्चों एवं अबला वृद्ध लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया।

संरचनात्मक विफलता तथा अग्निकांड आपदा

(Structural failure and fire disasters)

     यहां पर संरचना की विफलता का तात्पर्य है मानव-निर्मित स्थायी संरचनाओं, यथा बहुमंजिला भवन, शापिंग माल, सिनेमा हाल, स्पोर्ट्स स्टेडियम, रिहायसी बहुमंजिला एपार्टमेण्ट्स, पुल, फुट ओवर पुल, कार्यालय, शिक्षा भवन आदि का ध्वस्त होना।

     आगजनी का तात्पर्य मानव-निर्मित प्रतिष्ठानों, यथाः मल्टीप्लेक्स, सिनेमा हाल, कार्यालय रिहायसी भवन, शापिंग माल, औद्योगिक प्रतिष्ठान, शिक्षण भवन आदि में विभिन्न कारणों से आग लगने की दुर्घटनाओं से है।

       संरचनात्मक विफलता के फलस्वरूप मानव-निर्मित संरचनायें निम्न प्राकृतिक एवं मानव जनित कारकों द्वारा ध्वस्त होकर भरभरा कर गिर जाती हैं:

प्राकृतिक कारकः

(1) जलवायु की दशायें:

     अत्यधिक आर्द्रता; मेघ प्रस्फोट (Cloud Burst) तथा मूसलाधार वर्षा; वायुमण्डलीय तूफान, यथा: टारनैडो, चक्रवात (ओडिशा तथा आन्ध्र प्रदेश में अक्टूबर, 2013 में फेलिन चक्रवात की घटना), टारनैडो, टाइफून आदि तथा इनसे उत्पन्न बाढ़। इन सबके कारण भवन तथा उनकी नींव (Foundation) कमजोर हो जाती हैं। ज्ञात रहे कि इन कारकों द्वारा मानव-निर्मित केवल लकड़ी, टिन तथा मिट्टी के बने भवन ही ध्वस्त होते हैं।

(2) भ्वाकृतिक दशायें (Geomorphological Conditions):

      धरातल, स्थलाकृति, धरातलीय ढाल, भूपदार्थों की मजबूती / शक्ति (Strength of geomaterials), अवस्थितियां (Locational sites, यथा: तटीय निम्न क्षेत्र, बाढ़ मैदान, तीव्र पहाड़ी ढाल, पर्वत आदि।

(3) भूकम्पीय घटनायें / दशायें (Seismicity):

       भूकम्प की दृष्टि से अधिक क्रियाशील क्षेत्र भवन निर्माण के लिए अत्यधिक सुभेद्य (Vulnerable) होते हैं। बहुमंजिली इमारतें भूकम्पीय झटकों से अत्यधिक प्रभावित होती हैं। कमजोर धरातलीय क्षेत्रों में भूकम्प के साधारण झटकों से ही कमजोर भवन ताश के पत्ते की तरह भरभरा कर गिर पड़ते है।

मानव-जनित कारकः

⇒ भवनों की खराब डिजाइन या स्थापत्य सम्बन्धी त्रुटि (Architectural flaw)।

⇒ भवन निर्माण की सामग्रियों, यथा- सीमेण्ट, रेत, लोहा, ईंट आदि की गुणवत्ता।

⇒ सुरक्षा एवं बचाव के उपायों का अनुपालन।

⇒ बिल्डिंग कोड।

⇒ भवनों का रख-रखाव (maintenance) या अनुरक्षण।

    संरचनात्मक विफलता के कई ऐसे उदाहरण हैं जो भवनों के उनके निर्माण के समय ही ध्वस्त होने को दर्शाते हैं। अर्थात् अपने निर्माण की अवस्था में ही कई भवन भरभरा कर ढह जाते हैं। उदाहरण: अप्रैल 2013 में महाराष्ट्र के थाणे जिला में 7 मंजिला भवन, जिसका बिना सरकारी अनुमति के गैरकानूनी रूप से निर्माण कराया जा रहा था, भरभरा कर गिर गया। इस दुर्घटना में 39 व्यक्ति मारे गये तथा 72 घायल हो गये।

     उस समय राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF- National Disaster Response Force) की टीम ने अतिरिक्त 25-30 लोगों के मलवे में दबे होने की आशंका जतायी थी।

    इसी तरह 2013 में ही महाराष्ट्र में संरचनात्मक विफलता की दुर्घटना सितम्बर महीने में घट गयी। मुम्बई में एक 4 मंजिला रिहायसी (Residential) भवन ताश के पत्ते की तरह भरभरा कर गिर गया, जिस कारण 61 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी।

    सन् 2013 में ही बांगलादेश में एक 8 मंजिला वाणिज्यिक (Commercial) भवन अप्रैल में ध्वस्त (Collapse) होकर पटरा हो गया (Flattened) जिस कारण 397 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी तथा 2,500 लोगों को मामूली चोटें लगीं।

    भवनों, पुलों तथा अन्य स्थायी संरचनाओं (यथाः फुटओवर पुल, पैदल मार्ग, बांध, स्ट्रीट वायाडक्ट, टावर आदि) के ध्वस्त होने के प्रमुख कारकों में निम्न को सम्मिलित किया जाता है:

⇒ भवन निर्माण की त्रुटिपूर्ण खराब डिजाइन

⇒ स्थापत्य की त्रुटि (Architectural defects)

⇒ भवन निर्माण की खराब सामग्री

⇒ खराब कार्यकुशलता (Poor Workmanship)

⇒ सुरक्षा मानकों को नजरअन्दाज (Avoidance) करना

⇒ मानक भवन कोड का अनुपालन न करना

     सन् 1995 में दक्षिण कोरिया में खराब एवं त्रुटिपूर्ण भवन डिजाइन के कारण साउथ कोरियन माल का ‘सैम्यूंग डिपार्टमेण्टल स्टोर’ ध्वस्त हो गया, जिस कारण 500 लोगों की बेशकीमती जानें चली गयीं। हजारों लोग घायल हो गये। लगभग 900 ग्राहकों (Shoppers) को गम्भीर चोटें लगीं।

परमाणु रेडियेशन रिसाव आपदा

(Nuclear Radiation leaks disastes)

      परमाणु प्रकोप तथा आपदायें निम्न रूपों में जनित होती हैं:

⇒ युद्ध के समय परमाणु अस्त्रों के उपयोग द्वारा, यथाः द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिकी सेना द्वारा जापान के नागासाकी एवं हीरोशिमा नगरों पर सन् 1945 में एटम बमों के गिराने से उत्पन्न भयानक आपदा।

⇒ परमाणु शक्ति संयंत्रों (Nuclear Power Plants); परमाणु अपशिष्टों के निस्तारण स्थलों (Nuclear Wastes Disposal Sites); परमाणु अपशिष्टों के निस्तारण के समय; परमाणु अस्त्रों के अनुरक्षण (Maintenance) के समय रेडियेशन रिसाव द्वारा।

⇒ परमाणु पनडुब्बियों (Submarines) की दुर्घटनाओं के समय परमाणु तत्वों (Substances) के रिसाव द्वारा।

⇒ रक्षा उद्देश्यों के लिए परमाणु अस्त्रों के परिवहन एवं भण्डारण (Storage) के दौरान दुर्घटनायें होने पर परमाणु रेडियेशन के रिसाव द्वारा आदि।

     परमाणु शक्ति संयंत्रों के रियेक्टरों से रेडिएशन का रिसाव सम्बन्धित क्षेत्र के मानव सहित सभी जीवों के घातक तथा जानलेवा होता है। युक्रेन में चर्नोबिल परमाणु संयंत्र से सन् 1986 में तथा जापान के डयेची फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से सन् 2011 में रेडिएशन के व्यापक रिसाव की दो घटनायें विभिन्न उद्देश्यों हेतु एटामिक खनिजों (युरेनियम) के उपयोग से उत्पन्न खतरों की भयावहता तथा परिणाम को भलीभांति प्रदर्शित करती हैं।

     उल्लेखनीय है कि परमाणु ऊर्जा के उत्पादन की उपयोगिता एवं उसकी त्रुटिरहित सुरक्षा को लेकर आम जनता सदा से आशंकित रही है। परमाणु वैज्ञानिकों एवं सरकारों द्वारा सदा से परमाणु ऊर्जा को सर्वाधिक सुरक्षित ऊर्जा संसाधन बताया जाता रहा है, परन्तु परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से रेडिएशन के रिसाव की सम्भवना सदैव बनी रहती है।

     एक प्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक तथा पर्यावरणविद बेन्जामिन के. सोवाकूल के अनुसार विश्व परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में 99 दुर्घटनायें हुई हैं; सन् 1986 में चर्नोबिल परमाणु संयंत्र आपदा के बाद से 57 परमाणु दुर्घटनायें हो चुकी हैं, इनमें से 57 प्रतिशत दुर्घटनायें अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में हैं।

युद्ध विषाक्तन एवं नरसंहार आपदायें

(Wars, Poisoning and Genocide Disasters)

        निम्न कारणों के फलस्वरूप आन्तरिक वाह्य संघर्ष, गृहयुद्ध, विभिन्न आयाम (Dimension) के युद्ध, नरसंहार तथा सर्वनाश सम्बन्धी खतरनाक आपदायें उत्पन्न होती हैं:

⇒ परस्पर विरोधी धारायें (Conflicting Ideologies)

⇒ राजनीतिक एवं आर्थिक स्थितियाँ 

⇒ प्रतिद्वन्द्विता (Rivalaries)

⇒ शक्ति सर्वोच्चता (Power Supremacy)

⇒ धार्मिक प्रतिद्वन्द्विता तथा घृणा

⇒ क्षेत्रीय विस्तार की नीति

⇒ आर्थिक विषमता

⇒ संसाधनों को हड़पना (Grabing of resources)

⇒ राजनीतिक नीतियाँ 

⇒ क्रान्तियाँ आदि।

      दो देशों के बीच या विभिन्न देशों के समूहों के मध्य (प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध) संघर्ष एवं युद्ध के दौरान लाखों सेनानियों एवं नागरिकों की पिछले इतिहास में मृत्यु हो चुकी है।

    संघर्षों एवं युद्धों के कारण श्रृंखलाबद्ध समस्यायें पैदा हो जाती हैं, यथाः भारी संख्या में जनहानि (Human Casualties); बड़ी संख्या में शरणार्थी एवं बेघर लोग (Refugees and Homeless); अनाथ बच्चे एवं व्यक्ति; अपंग सैनिक एवं नागरिक; धार्मिक भावना/विद्वेष से प्रताड़ित लोग; खाद्य पदार्थों के अभाव का संकटः रोग तथा बीमारियाँ; महामारियाँ(Epidemics) एवं सर्वव्यापी रोग (Pandemics); जल की कमी; शरण शिविरों, स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं, मौलिक तथा आवश्यक सेवाओं का संकट आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक तंत्रों का विघटन (Disruption); धार्मिक एवं जातीय (Ethnic) संघर्ष एवं घृणा आदि।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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