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BA Geography All PracticalBA SEMESTER-IOCENOGRAPHY (समुद्र विज्ञान)PG SEMESTER-1

5. BOTTOM RELIEF OF INDIAN OCEAN / हिंद महासागर के तलीय उच्चावच

5. BOTTOM RELIEF OF INDIAN OCEAN

(हिंद महासागर के तलीय उच्चावच)

BOTTOM RELIEF OF INDIAN OCEAN


BOTTOM RELIEF OF INDIAN OCEAN

         हिंद महासागर के तली का विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है। इसकी लंबाई लगभग 10000 किमी० और चौड़ाई 9000 किमी० है। इसका क्षेत्र 7.34 करोड़ वर्ग किमी० है। यह कुल महासागरीय जल का 20% जल अपने पास रखता है। इसके किनारे पर पूर्व में आस्ट्रेलिया, उत्तर में एशिया, पश्चिम में अफ्रीका और दक्षिण में अंटार्कटिका महाद्वीप उपस्थित है।

         हिंद महासागर का दक्षिणी भाग अंटार्कटिका के पास, पूरब में प्रशांत महासागर और पश्चिम में अटलांटिक महासागर से जुड़ जाता है। इसका तलीय भाग एवं तटीय भाग कठोर एवं सघन चट्टानों से निर्मित है। हिंद महासागर के तटीय भाग में ब्लॉक पर्वतों का प्रमाण मिलता है क्योंकि इसका निर्माण गोंडवाना भूखंड के विखंडन एवं उनके स्थानांतरण से हुआ है। हिन्द महासागर के पूर्वी भाग में मोड़दार पर्वतों की श्रेणियाँ है जो हिमालय का ही भाग माना जाता है। इसी मोड़दार पर्वत श्रृंखला पर कोको द्वीप, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह स्थित है। सामान्यत: प्रायद्वीपीय भारत दक्षिण में स्थित हिंद महासागर को दो भागों में बाँट देता है-

(1) बंगाल की खाड़ी

(2) अरब सागर।

       हिंद महासागर के सीमांत क्षेत्रों में कई छोटे-छोटे सागर मिलते हैं। जैसे- फारस की खाड़ी, ओमान की खाड़ी, लाल सागर, मोजांबिक चैनल, अंडमान सागर इत्यादि।

     1965 में अंतरराष्ट्रीय हिंद महासागर अभियान जर्मन एवं भारतीय समुद्री वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। इनके अनुसार हिंद महासागर की औसत गहराई 4000 मीटर है। जॉनसन महोदय ने प्रादेशिक विशेषताओं के आधार पर हिंद महासागर को तीन भागों में वर्गीकृत किया है:-  

(1) पश्चिमी भाग- अफ्रीका के समीप, औसत गहराई 2000 फैदम

(2) पूर्वी भाग- ऑस्ट्रेलिया के पश्चिम में, औसत गहराई 3000 फैदम

(3) सँकरा और महाद्वीपीय मग्नढाल वाला क्षेत्र मध्यवर्ती भाग- एक उत्थित कटक के रूप में।

            सामान्य तौर पर हिंद महासागर के तलीय उच्चावच का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत करते हैं:-

(1) महाद्वीपीय मग्नतट

      हिंद महासागर के मग्नतट में काफी विविधता दिखाई देती है। इसकी औसत चौ० 640 किलोमीटर है। सबसे चौड़ा मग्नतट अफ्रीका के पूर्व और मेडागास्कर के समीप में पाए जाते हैं। इसी तरह बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर में भी चौड़े मग्नतट मिलते हैं। लेकिन आस्ट्रेलिया के पश्चिमी भाग और अंटार्कटिका के उत्तरी भाग में सँकरे मग्नतट मिलते हैं। जावा एवं सुमात्रा द्वीप के पास इसकी चौड़ाई मात्र 160 किलोमीटर है।

(2) महाद्वीपीय मग्नढाल

     यह महाद्वीपों का अंतिम किनारा होता है। जिन-जिन क्षेत्रों में सँकरे महाद्वीपीय मग्नतट मिलते हैं वहाँ मग्नढाल तीव्र होता है और जिन क्षेत्रों में मंद ढाल वाले महाद्वीपीय मग्नतट मिलते हैं वहाँ पर महाद्वीपीय मग्नढाल भी मन्द होता है।

(3) महासागरीय कटक

       हिंद महासागर में उत्तर से दक्षिण दिशा में फैला एक मुख्य कटक मिलता है और इस मुख्य घटक के सहारे सहायक कटक भी मिलते हैं। हिंद महासागरीय कटक का आकार ‘Y’अक्षर के समान है। यह समुद्र तल से 4000 मीटर नीचे तक अवस्थित है। यह कटक हिंद महासागर को पूर्वी एवं पश्चिमी भागों में बाँट देता है। कहीं-कहीं पर यह कटक समुद्री सतह से ऊपर चला जाता है जिस पर कई द्वीप बसे हुए हैं। जैसे लक्षद्वीप, मालद्वीप, मॉरीशस, रियूनियन द्वीप इत्यादि। यह उत्तर में प्रायद्वीपीय भारत के किनारे से शुरू होकर दक्षिण में अंटार्कटिका तक फैला हुआ है। प्रायद्वीपीय भारत के दक्षिण में इस कटक की चौड़ाई सर्वाधिक है। इसे लक्षद्वीप और मालद्वीप  के बीच लक्काद्वीप चैगोस कटक कहते हैं। यही कटक दक्षिण की ओर बढ़ता चला जाता है। इसे विषुवत रेखा तथा 30° दक्षिणी अक्षांश के बीच चैगोस सेंटपॉल कटक कहते हैं। 30° से 50° दक्षिणी अक्षांश के बीच इसे एम्सटर्डम सेंटपॉल कटक कहते हैं। यहाँ पर इसकी चौड़ाई 1600 कि०मी० हो जाता है। 50° दक्षिणी अक्षांश के पास यह दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। पश्चिमी शाखा को करगुलेन गॉसबर्ग कटक और पूर्वी शाखा को इंडियन अंटार्कटिका कटक कहते हैं।

        हिंद महासागर का मुख्य घटक कई भागों में विभक्त है। जैसे- 5° दक्षिणी अक्षांश से एक शाखा निकलकर उत्तर-पश्चिम दिशा में चली जाती है जिसे सोकोत्रा चैगोस या कॉल्सबर्ग कटक कहते हैं। 18° दक्षिणी अक्षांश के पास से एक कटक निकलती है जिसे सेशिल्स कटक कहते हैं। यही कटक अचानक दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुड़ जाता है जिसे मलागासी कटक कहते हैं। 48° दक्षिणी अक्षांश के पास हिंद महासागर के पश्चिमी भाग में एक कटक अवस्थित है जिसे प्रिंस एडवर्ड क्रोजेट कटक कहते हैं। पूर्वी हिंद महासागर में 50° दक्षिणी अक्षांश के पास से ही एक कटक पूरब की ओर चली जाती है जिसे दक्षिण-पूर्व इंडियन कटक कहते हैं।

सूची-

1. लक्काद्वीप चैगोस कटक

2. चैगोस सेंटपॉल कटक

3. एम्सटर्डम सेंटपॉल कटक

4. करगुलेन गॉसबर्ग कटक

5. इंडियन अंटार्कटिका कटक

6. सोकोत्रा चैगोस या कॉल्सबर्ग कटक

7. सेसिल्स कटक

8. मलागासी कटक

9. प्रिंस एडवर्ड क्रोजे

10. दक्षिण-पूर्व इंडियन कटक

BOTTOM RELIEF OF INDIAN OCEAN(4) महासागरीय मैदान

      महासागरीय कटक हिंद महासागर को कई गहन सागरीय मैदानों में विभक्त करते हैं। जैसे-

(i) ओमान बेसिनओमान की खाड़ी में स्थित है जिसकी औसत गहराई 12000 फीट है।

(ii) अरेबियन बेसिन- यह लक्काद्वीप चैगोस कटक और  सोकोत्रा द्वीप चैगोस के बीच स्थित है जिसकी औसत गहराई 12000 से 18000 फीट है।

(iii) सोमाली बेसिन- यह सोकोत्रा चागोस, सेंटपाल कटक और सेशेल्स कटक के बीच स्थित है जिसकी औसत गहराई 12000 फीट है।

(iv) मॉरीशस बेसिन- यह मलागासी और सेंट पाल कटक के बीच स्थित है। इसकी औसत गहराई 12000 से 18000 फीट है।

(v) नेटाल बेसिन- मलागासी और दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी तट के बीच स्थित है। इसकी औसत गहराई 18000 फीट है।

(vi) अटलांटिक-भारतीय-अंटार्कटिका बेसिनयह अंटार्कटिका, दक्षिण अफ्रीका और प्रिंस एडवर्ड क्रोजेट कटक के बीच अवस्थित है। इसकी औसत गहराई 18000 फीट है।

(vii) अंडमान बेसिन- यह बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार के पूर्वी भाग में स्थित है। इसकी औसत गहराई 6000 से 12000 फीट है।

(viii) भारत-ऑस्ट्रेलिया बेसिन- इसका विस्तार 10° दक्षिणी अच्छा से 50° दक्षिणी अक्षांश के बीच पूर्वी हिंद महासागर में हुआ है। इसकी औसत गहराई 12000 से 18000 फीट के बीच है।

(ix) पूर्वी भारतीय अंटार्कटिका बेसिन- यह पूर्वी हिंद महासागर के सबसे दक्षिणी भाग में स्थित है जिसकी औसत गहराई 12000 फीट है।

(5) महासागरीय गर्त

        हिंद महासागर में 6 प्रमुख गर्त मिलते हैं। इसके 60% भूभाग पर गहन सागरीय मैदान है। इसलिए इसमें गर्तों की संख्या बहुत कम है। हिंद महासागर का सबसे गहरा गर्त सुंडा गर्त है जो सुमात्रा एवं जावा द्वीप के पश्चिमी भाग में स्थित है जिसकी गहराई 7725 मीटर है।

निष्कर्ष

     इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट होता है कि हिंद महासागर के तलीय उच्चावच में भी अनेक विविधतापूर्ण विशेषताएँ मौजूद है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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