12. Indian Ocean Currents / हिन्द महासागर की जलधारा
12. Indian Ocean Currents
(हिन्द महासागर की जलधारा)
Indian Ocean Currents
हिन्द महासागर की जलधारा⇒
हिन्द महासागर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी महासागर है। यह एकमात्र ऐसा महासागर है जो आर्कटिक महासागर से नहीं जुड़ा हुआ है। पूरब में प्रशांत महासागर और पश्चिम में अटलांटिक महासागर से जुड़ा हुआ है। हिंद महासागर के पूर्व में आस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और मलाया प्रायद्वीप है। उत्तरी भाग में एशिया, पश्चिम में अफ्रीका और दक्षिण में अंटार्कटिका महाद्वीप स्थित है। विषुवत रेखा इस महासागर को दो भागों में बांटती है-
(i) उत्तरी हिंद महासागर और
(ii) दक्षिणी हिंद महासागर।
दक्षिणी हिंद महासागर एक पूर्ण महासागर है। इसमें समुद्री जल धाराएं सामान्य नियमों के अनुरूप प्रवाहित होती है जबकि उत्तरी हिंद महासागर की जलधाराएं ऋतु के अनुरूप अपना मार्ग परिवर्तित करती है। उत्तरी हिंद महासागर की जलधाराएं मुख्यतः तीन कारकों से प्रभावित होती है-
(i) मानसूनी जलवायु
(ii) तटीय आकृति तथा
(iii) उत्तर में महाद्वीपीय स्थिति के कारण उत्पन्न तापीय प्रभाव।
हिंद महासागर के जलधाराओं का अध्ययन मुख्यतः दो भागों में बांटकर करते हैं-
(A) दक्षिणी हिंद महासागर की जलधारा
(B) उत्तर हिंद महासागर की जलधारा
(A) दक्षिणी हिंद महासागर की जलधारा-
दक्षिण हिन्द महासागर में पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण विषुवतीय क्षेत्रों में हिंद महासागरीय गर्म विषुवतीय जलधारा उत्पन्न होती है। यह जलधारा पूरब से पश्चिम दिशा की ओर चलते हुए पूर्वी अफ्रीकी तट से टकराती है। लेकिन मेडागास्कर द्वीप के कारण दो भागों में बँट जाती है।
प्रथम शाखा मोजांबिक और मेडागास्कर के बीच से गुजरती है जिसे मोजांबिक जलधारा कहते हैं। दूसरी शाखा मेडागास्कर के पूर्वी तट से गुजरती है जिसे मलागासी जलधारा कहते हैं। ये दोनों जलधारायें दक्षिण की ओर अग्रसारित होकर आपस में मिल जाती है और अगुलहास जलधारा को जन्म देती है। यह जलधारा दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी तट पर चलती है। यह जल आगे अग्रसारित होकर विश्व स्तरीय जलधारा पछुआ वायु प्रवाह (West Wind Drift) अंटार्कटिक प्रवाह से मिल जाती है।
अंटार्कटिका प्रवाह पश्चिम से पूरब चलने की प्रवृति रखती है। इसकी उत्पत्ति अंटार्कटिका के हिमानी पिघलने से होती है। इसलिए इसकी प्रकृति ठंडी होती है। अंटार्कटिका प्रवाह का अधिकांश जल प्रशांत महासागर में प्रविष्ट कर जाता है लेकिन थोड़ा बहुत जल ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी भाग से टकराकर दक्षिण से उत्तर की ओर चलने लगती है। यह एक ठंडी जलधारा है जिसे पश्चिमी आस्ट्रेलियन ठंडी जलधारा के नाम से जानते हैं और ये जलधारा अंततः विषुवतीय गर्म जलधारा से मिल जाती है इस तरह ये एक चक्र को पूरा करती है। इसे आगे के मानचित्र में भी देखा जा सकता है।
विषुवतीय क्षेत्रों में पूर्वी अफ्रीका के तट पर विशाल जलराशि के जमाव के कारण विषुवतीय प्रति जलधारा का भी निर्माण होता है।
★ दक्षिण पश्चिम मानसून प्रवाह उत्तरी पूर्वी मानसून प्रवाह की तुलना में ठंडी होती है।
उत्तर लिखने का दूसरा तरीका
हिन्द महासागर की धाराओं का प्रवाह क्रम प्रशान्त एवं अटलाण्टिक महासागर की धाराओं के प्रवाह-क्रम से भिन्नता लिए हुए है। हिन्द महासागर की धाराओं पर स्थलखण्डों एवं मानसूनी पवनों का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। हिन्द महासागर उत्तर में भारतीय उपमहाद्वीप, पश्चिम में अफ्रीका तथा दक्षिण में आस्ट्रेलिया महाद्वीप से घिरा हुआ है फलतः इस महासागर में धाराओं का स्थायी क्रम अस्तित्व में नहीं रह पाता है। उत्तरी हिन्द महासागर में उत्तर पूर्वी तथा दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं के कारण वर्ष में दो बार धाराएं अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती हैं। स्पष्ट है कि हिन्द महासागर में स्थायी और सामयिक दोनों ही प्रकार की धाराएं प्रवाहित होती हैं।
(A) सामयिक धाराएं
विषुवत् रेखा के उत्तर में हिन्द महासागर की समस्त धाराएं मानसून के प्रभाव से अपनी दिशा एवं क्रम में वर्ष में दो बार परिवर्तन कर लेती हैं। मानसूनी पवनों से प्रवाहित होने के कारण इन्हें मानसून प्रवाह भी कहते हैं।
(1) उत्तर-पूर्वी मानसून धारा- शरदकाल में (उत्तरी गोलार्द्ध में) उत्तर-पूर्वी मानसूनी हवाएं स्थल से जल की ओर चलती हैं। जिस कारण उत्तरी हिन्द महासागर में अण्डमान तथा सोमाली के बीच पश्चिम दिशा में प्रवाहित होने वाली उत्तर-पूर्वी मानसून धारा का जन्म होता है। यह धारा 5° उत्तरी अक्षांश से होकर प्रवाहित होती है। यह एशिया महाद्वीप के दक्षिणी तटों के सहारे बहते हुए अफ्रीका के तट पर पहुंचती है। फिर अफ्रीका के शृंग से टकराकर दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। विषुवत् रेखा के उत्तर में यह पूर्व की ओर मुड़कर पूर्वी द्वीप समूह तक जाती है। इस सम्पूर्ण चक्र को उत्तर-पूर्वी मानसून प्रवाह कहते हैं। यह एक मन्द समुद्री धारा है।
(2) भारतीय प्रतिधारा- यह उपर्युक्त 2° से 8° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य शीतकाल में जंजीबार से सुमात्रा के बीच पूर्व की ओर बहने वाली धारा है।
(3) दक्षिण-पश्चिमी मानसून धारा- ग्रीष्मकाल में (उत्तरी गोलार्द्ध में) मानसूनी हवाओं की दिशाएं उलट कर दक्षिण-पश्चिमी हो जाती हैं। जिस कारण उत्तरी हिन्द महासागर का धारा क्रम भी उलट जाता है। उत्तर-पूर्वी मानसून धारा उलट जाती है और उसकी जगह पर दक्षिण-पश्चिमी मानसून धारा का जन्म होता है, जो मोजाम्बिक के पास से प्रारम्भ होकर अफ्रीका के पूर्वी तट के सहारे बहती हुई अरब सागर में प्रवेश करती है और दक्षिणी एशिया के तटवर्ती भागों का अनुसरण करती हुई सुमात्रा के पश्चिमी तट तक पहुंचती है। अन्त में यह भूमध्य रेखीय धारा से मिल जाती है।
(B) स्थायी धाराएं
हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग में स्थायी धाराओं का क्रम पाया जाता है जो निम्नलिखित हैं :
(1) दक्षिणी विषुवत्रेखीय धारा- यह धारा दक्षिणी हिन्द महासागर में 10° से 15° दक्षिणी अक्षांश के बीच आस्ट्रेलिया और अफ्रीका के बीच दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों के प्रभाव से पश्चिम की ओर बहती है। 10° अक्षांशों के निकट यह मालागासी द्वीप के उत्तर में दो शाखाओं में विभाजित होकर दक्षिण की ओर बहती है।
(2) मोजाम्बिक धारा- उपर्युक्त धारा के मालागासी के उत्तर में दो भाग हो जाते हैं जिसका पश्चिमी भाग मोजाम्बिक धारा कहलाती है। यह शाखा अफ्रीका महाद्वीप और मालागासी द्वीप के बीच भाग से दक्षिण की ओर बहती है।
(3) अगुलहास की धारा- मेडागास्कर द्वीप के दक्षिण में दक्षिणी विषुवतरेखीय धारा की दो विभाजित शाखाएं पुनः मिलकर एक हो जाती हैं और दक्षिण की और दक्षिण-पूर्व अफ्रीका के तट के सहारे अगुलहास की धारा के नाम से बहते हुए अन्ततः अण्टार्कटिक प्रवाह से मिल जाती हैं।
(4) मालागासी धारा- यह धारा उपर्युक्त वर्णित दक्षिणी विषुवतरेखीय धारा की (जब वह पूर्वी अफ्रीका तट पर दक्षिण की ओर बहती है और मेडागास्कर के उत्तर से दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है।) पूर्वी शाखा को ही, जो मेडागास्कर के पूर्व से होकर दक्षिण दिशा में बहती है, मेडागास्कर या मालागासी धारा कहते हैं।
(5) अण्टार्कटिक प्रवाह- हिन्द महासागर के दक्षिण पश्चिम भाग में अगुलहास धारा जब पछुआ हवाओं के प्रभाव में आती है तो पूर्व की ओर मुड़कर निर्वाध रूप से बड़ी तीव्र गति से पूर्व की ओर बहती है। यह बड़ी ठण्डी धारा होती है।
हिन्द महासागर की धाराओं एवं पवनों में सम्बन्ध तथा ऋत्विक भिन्नता-
हिन्द महासागर की धाराओं का अध्ययन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि यहां उत्तरी हिन्द महासागर में प्रवाहित होने वाली धाराएं अस्थायी तथा शीतकालीन व ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों की दिशा के अनुरूप होती हैं। जबकि दक्षिणी हिन्द महासागर में चलने वाली धाराएं स्थायी तो है, परन्तु उनकी गति व दिशा पर भी (प्रत्येक महासागर की धाराओं की तरह) पवनी का प्रभाव दिखाई पड़ता है। पवनों व धाराओं का जितना स्पष्ट सम्बन्ध हिन्द महासागर में दिखाई पड़ता है, उतना किसी भी महासागर में प्रतीत नहीं होता है।
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी की मौसमी पवनों तथा धाराओं का अध्ययन किया गया। 1857 से 1952 ई. तक हिन्द महासागर की मौसमी पवनों के 6 माह एक दिशा में तथा 6 माह दूसरी दिशा में प्रवाहित होने के कारणों का पता लगाने के लिए इस क्षेत्र में 16 बार समुद्री खोज की गई।
1968 में हेले ने स्पष्ट किया था कि मानसून पवनें दक्षिणी गोलार्द्ध में व्यापारिक पवनों की पेटी से उत्पन्न होती हैं तथा पृथ्वी की घूर्णन गति से उत्पन्न विक्षेपक बल के कारण ये पवनें पश्चिमी भारत के वर्षा क्रम के अन्तर्गत आ जाती है।
पीसारोटी ने अन्तर्राष्ट्रीय भारतीय समुद्री खोज के समय सिद्ध किया कि जितने जल की मात्रा भूमध्य रेखा को पार करके अरब सागर में पहुंचती है, उससे भी तिगुनी वाष्पभरी पवनें जुलाई के महीने में भारत के पश्चिमी तट को पार करके प्रायद्वीपीय भारत में पहुंचती है।
लाइट हिल ने 1969 में यह स्पष्ट किया कि हिन्द महासागर में सोमालीलैण्ड के निकट सोमाली धारा केवल स्थानीय क्षेत्र के मानसून पवनों के प्रवाह एवं आयतन को ही प्रभावित नहीं करती, बल्कि सम्पूर्ण क्षेत्र की पवनों एवं समुद्र की गति को प्रभावित करती है। इन्होंने भूमध्यरेखीय भागों में स्थित होने के कारण हिन्द महासागर में पवनों की गति का प्रभाव वहां की लहरों पर आंका है।
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