Unique Geography Notes हिंदी में

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BA SEMESTER-IOCENOGRAPHY (समुद्र विज्ञान)PG SEMESTER-1

3. Submarine Canyons / अंत: समुद्री कंदरायें/ कैनियन

3. Submarine Canyons / अंत: समुद्री कंदरायें/ कैनियनSubmarine Canyons


Submarine Canyons ⇒

                       स्थल  की भाँति महाद्वीपीय मग्नतट एवं महाद्वीपीय ढाल पर भी सँकरी, गहरी एवं खड़ी दीवाल से युक्त घाटियाँ पाई जाती है। ऐसे ही घाटियों को सागरीय कंदरायें कहते हैं। महासागरीय जल में डूबे होने के कारण इसे अंतः सागरीय कंदरायें कहते हैं।

विशेषताएँ

◆ समुद्री कंदरायें महाद्वीपीय मग्नतट और मग्नढाल पर वहीं मिलती है जहाँ पर बड़ी-बड़ी नदियों के मुहाना पाई जाती है।

◆ अंत: सागरीय कंदराएँ अधिकतर महासागरीय तटीय भागों के सहारे लंबवत रूप से पाए जाते है।

◆ समुद्री कंदराओं के पार्श्व का ढाल बिल्कुल खड़ा होता है इसका का अनुप्रस्थ काट V-आकार की घाटी के समान होता है।

◆ समुद्री कंदरा में ज्यों-ज्यों स्थलीय भाग से गहन सागरीय क्षेत्र की ओर जाते हैं त्यों-त्यों उसकी गहराई एवं ढाल में वृद्धि होती जाती है। सामान्यत: इसकी गहराई 2000 – 3000 फीट तक होता है।

◆ अंत: सागरीय कंदरा के तली में रेत, सिल्का, सिल्ट एवं बजरी जैसे पदार्थों का निक्षेपण पाया जाता है।

◆ निर्माण प्रक्रम के आधार पर अंत: सागरीय कंदराएँ दो प्रकार के होती है –

(i) हिमानी के द्वारा निर्मित कंदरायें

(ii) अन्य प्रक्रम के द्वारा निर्मित कंदरायें

उत्पत्ति

           हिमानी के द्वारा निर्मित कंदराओं को फियोर्ड कहते हैं। फियोर्ड का निर्माण प्रायः महाद्वीपीय एवं पर्वतीय हिमानी के अचानक समुद्र में उतरने के कारण होता है। फियोर्ड को कुछ समुद्रीवेता समुद्री कंदरा के श्रेणी में नहीं रखते। क्योंकि उनका मानना है कि इसका अध्ययन हिमानी के द्वारा निर्मित स्थलाकृति के अंतर्गत किया जाना चाहिए।

            अन्य प्रक्रम से निर्मित कंदराओं की उत्पत्ति के सम्बंध में कई सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं। जैसे :-

(1) पटलविरूपणी या वलन सिद्धान्त (Diastrophic Theory) –

                     इस सिद्धांत के अनुसार महाद्वीपीय मग्नतट एवं मग्नढाल पर भूसंचलन की क्रिया के कारण निर्मित वलन या भ्रंशन के कारण समुद्री कंदराओं का निर्माण हुआ है। कैलिफोर्निया और हडसन की खाड़ी के तट पर इसी क्रिया से निर्मित समुद्री कंदरायें मिलती है।

(2) भू-पृष्ठीय अपरदन का सिद्धांत  –

                   इसे डाना (1863) और शेफर्ड (1941) ने इस मत को प्रतिपादित किया था। इनके अनुसार स्थल भाग के निमग्न (डूबने) हो जाने के कारण स्थल पर मिलने वाली नदियाँ भी निमग्न हो गई। अंततः उन पर सागरीय जल का फैलाव हो गया। कालांतर में वही नदियाँ अंत: समुद्री कंदरायें कहलाए।

(3) पंक तरंग सिद्धान्त (Turbidity Current Theory) –

             इस मत का प्रतिपादक डेविस, डेली जैसे भूगोलवेत्ता है। इनके अनुसार तट की ओर चलने वाले तीव्र पवनों के कारण तटीय भागों में बड़ी मात्रा में जलराशि एकत्रित हो जाती है जिसमें पंक (कीचड़) मिला होता है। यही पंक जब पुनः समुद्र की ओर लौटती है तो उनके अपरदन से अंतः सागरीय कंदराओं का निर्माण होता है। यही सिद्धांत सर्वाधिक मान्यता रखता है।

वितरण 

             बियर्ड एवं शेफर्ड महोदय ने विश्व के 102 कन्दराओं पर शोध किया और पाया कि कंदराएँ सर्वत्र पाई जाती है। अटलांटिक महासागर में यू.एस.ए. के पूर्वी तट पर चेसापिक कैनियन और कनाडा में हडसन कैनियन प्रमुख है। फ्रांस के दक्षिण पश्चिम तट पर बिस्फे की खाड़ी में केप ब्रिटेन कैनियन, पुर्तगाल के पश्चिमी तट पर नजारे कैनियन,अफ्रीका के पश्चिमी तट पर कांगों कैनियन विश्व प्रसिद्ध है।

                    इसी तरह प्रशांत महासागर के तट पर भी कई कैनियन मिलते हैं। जैसे- आलास्का तथा कनाडा के तट पर कोलंबियन कैनियन पाई जाती है।

                    हिंद महासागर में गिरने वाली लगभग सभी प्रमुख नदियों के मुहानों पर कैनियन का प्रमाण मिलता है।

निष्कर्ष

        निष्कर्षत: इस प्रकार ऊपर के तथ्यों से कहा जा सकता है कि अंत: सागरीय कंदराएँ या कैनियन महाद्वीपीय मग्नतट और महाद्वीपीय मग्नढाल पर मिलने वाली एक विशिष्ट सागरीय स्थलाकृति है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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