Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

BA SEMESTER-IOCENOGRAPHY (समुद्र विज्ञान)PG SEMESTER-1

20. Static Change in Sea Level (समुद्रतल में स्थैतिक परिवर्तन)

20. Static Change in Sea Level

(समुद्रतल में स्थैतिक/स्थायी परिवर्तन)


Static Change in Sea Level (समुद्रतल में स्थैतिक/स्थायी परिवर्तन)⇒Static Change in Sea Level

          समुद्री जल का तल (S.L.) समुद्री वातावरण का एक गत्यात्मक पहलू है। यद्दपि पृथ्वी तंत्र के कुल जल की मात्रा निश्चित है। लेकिन समय-समय पर जल के अवस्था में परिवर्तन के कारण समुद्रतल में भी परिवर्तन होता है। समुद्रतल का परिवर्तन कई कारकों का परिणाम है।

जैसे-

(i) हिम युग के आगमन से समुद्र तल में गिरावट आती है और जब ही युग की समाप्ति होती है तथा वातावरण का तापमान अधिक हो जाता है तो स्थलीय हिम पिघलकर समुद्र में आ जाते हैं और जल स्तर ऊँचा हो जाता है।

(ii) भूगर्भिक प्रक्रियाएँ भी समुद्र के जलस्तर में परिवर्तन लाते हैं। जैसे – अगर भूगर्भीय हलचल के कारण समुद्री नितल का उत्थान होता है तो जलस्तर गिरती है और जब धँसान होता है तो जलस्तर बढ़ती है। जैसे कई स्थलीय भूभागों पर समुद्री जीवाश्म के प्रमाण मिलते हैं जो यह बताता है कि कभी वहाँ पर समुद्री जल रहा होगा और जब वहाँ समुद्र रहा होगा तो निश्चित रूप से एक समुद्री जलस्तर भी रहा होगा। जब उस भूभाग का उत्थान हो जाता है तो समुद्र का जल स्तर नीचे की ओर खिसक जाता है। लेकिन यह एक सापेक्षिक घटना है।

अगर समुद्री तल का धँसान होता है तो जलस्तर नीचे चली जाती है और जब समुद्र नितल का उत्थान होता है तो समुद्र जलस्तर बढ़ जाता है।

(iii) विभिन्न जलवायु विज्ञान एवं समुद्री विज्ञान के वैज्ञानिकों ने समुद्रतल में होने वाले परिवर्तन को गत्यात्मक मानते हुए यह माना है कि समुद्र तल में परिवर्तन जल के आयतन में बढ़ोतरी या कमी से होती है।

       उपरोक्त तीनों कारकों में से प्रथम कारक ही समुद्र तल में परिवर्तन के लिए सबसे उत्तरदायी कारक है।

      विभिन्न अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि समुद्र तल में 110 से 140 मीटर तक परिवर्तन हुआ है। प्रायः सभी हिमयुग में समुद्र का तल 100 से 150 मीटर के बीच नीचे चले गए थे। प्लीस्टोसीन के अंतिम हिमानी युग के अंत में समुद्र का तल वर्तमान तल से 110 मीटर नीचे पहुँच गया था। फेयर ब्रिज के अनुसार “समुद्र तल में सतत् सूक्ष्म परिवर्तन होते रहते हैं।” लेकिन 1800 ई० के बाद में इसमें काफी स्थिरता आयी है लेकिन औद्योगिक क्रांति के बढ़ते प्रभाव के कारण 1970 के दशक से वातावरण में तापमान की बढ़ोतरी से समुद्र तल में भी होने लगी है। सामान्य नियम के अनुसार 1 डिग्री सेल्सियस वायुमंडलीय तापमान के बढ़ने से 0.55 mm समुद्र तल में वृद्धि होती है। विश्व जलवायु विज्ञान संस्था के अनुसार 1985 से 1997 ईo के बीच औसत तापमान में बढ़ोतरी 0.37 हुआ है।

परिणाम-

      अनेक पारिस्थैतिक वैज्ञानिकों के अनुसार 2030 ई० तक समुद्र तल में 3 मीटर तक वृद्धि हो सकती है ऐसी स्थिति में विश्व के कई द्वीपय देश पूर्णत: जलमग्न हो सकते हैं। मालदीप तथा दक्षिणी प्रशांत महासागर की कई के द्वीप समुद्र में डूब जाएँगे। कई तटीय महानगर जैसे मुंबई, न्यूयार्क, टोकियो, मक्सिको सिटी, रियो-द-जेनरियो पर संकट के बादल मँडराने लगे हैं। कई प्रवाल भित्ति जलमग्न हो जाएँगे अधिक समुद्री तल के परिवर्तन से जलवायु पर भी विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। नदियों के मुहाने पर समुद्री ज्वार के कारण बाढ़ का प्रभाव बढ़ जाएगा। कई तटीय मैंग्रोव/ज्वारीय वनस्पति विलुप्त हो जाएँगे केवल बांग्लादेश में ही 1.5 करोड़ जनसंख्या को विस्थापित होना पड़ेगा। अर्थात समुद्र तल में हो रहे परिवर्तन का विनाशकारी प्रभाव अवश्य संभावी है।

उपाय-

     भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने ग्लोबल वार्मिंग और समुद्र तल में हो रहे बढ़ोतरी का अध्ययन करवाया है। इन दोनों के बीच पाए जाने वाले संबंध को देखते हुए एक आपातकालीन योजना बनाने का निर्णय लिया है। इस योजना के तहत लगभग एक करोड़ आबादी तटीय क्षेत्र से विस्थापित कर सुरक्षित स्थान पर बसाने का कार्य किया जा रहा है। इसी तरह विश्व के कई देश ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, समुद्र तल में हो रहे परिवर्तन नजर टिकाये हुए हैं। समुद्रतल में परिवर्तन न हो इसके लिए कई देशों ने शिखर बैठक कर पृथ्वी सम्मेलन के दस्तावेज पर, क्योटो प्रोटोकॉल पर, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर अपना सहमति व्यक्त किया है ताकि वायुमंडल को गर्म होने से बचाया जाए वहीं दूसरी ओर समुद्र तल में हो रहे परिवर्तन को रोका जाए।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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