Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

SETTLEMENT GEOGRAPHY (बस्ती भूगोल)

10. नगरीय वर्गीकरण

10. नगरीय वर्गीकरण


नगरीय वर्गीकरण⇒नगरीय वर्गीकरण

            नगरों का वर्गीकरण चार आधार पर किया जाता है:-

1. उत्पत्ति तथा विकास के आधार पर

2. स्थानीयकरण अथवा बसाव स्थान एवं बसाव स्थिति के आधार पर

3. कार्यों के आधार पर

2. जनसंख्या आकार के आधार पर

उत्पत्ति तथा विकास के आधार पर नगरों का वर्गीकरण 

          नगरों के उत्पत्ति और विकास के आधार पर वैज्ञानिक विश्लेषण अनेक विद्वानों के द्वारा किया गया है। इस दृष्टि से पैट्रिक गेडिस, ममफोर्ड एवं ग्रिफिथ टेलर के कार्य अधिक महत्व के है। 

          पैट्रिक गेडिस के अनुसार नगरों का विकास व पत्तन की छः अवस्थाएँ जाती है जिन्हें मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है।

1. पैलियोटेकनीक वाले नगर में पुरानी अर्थव्यवस्था वाले नगर और

2. नियोटेकनीक नगर में नई अर्थव्यवस्था वाले नगर आते है।

                 टेलर ने नगरों के उत्पत्ति एवं विकास के आधार पर मानव जीवन चक्र से तुलना करते हुए सात अवस्थाओं की चर्चा की गई है-

1. पूर्व शैशवावस्था (Sub-infantile stage)⇒ इस अवस्था में मकानों के अंदर की दुकान फिर गली अथवा सड़क के दोनों ओर मकान तथा दुकान बनने लगते हैं।

2. शैश्वावस्था (Infantile stage)⇒ इस अवस्था में गलियों व सड़कों का कुछ सुधरा रूप दिखाई देने लगता है तथा बस्ती बढ़ने लगती है।

3. बाल्यवस्था (Juvenile stage)⇒ इस अवस्था में मुख्य सड़क के दोनों किनारों पर गलियों का निर्माण होना शुरू हो जाता है।

4. किशोरावस्था (Adolescent Stage)⇒ नगर में विभिन्न प्रकार के मकान दिखलाई देने शुरू हो जाते है। नगर अपना व्यापार-क्षेत्र अलग से बना लेते हैं।

5. प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)⇒ इस अवस्था में नगर की प्रत्येक क्षेत्र में विभिन्नता आ जाती है। रिहाइशी क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र, व्यापारिक क्षेत्रों का पृथक्कीकरण स्पष्ट दिखाई देने लगता है। मकानों की ऊंचाई बढ़ने लगती है।

6. उत्तर प्रौढावस्था (Late Mature Stage)⇒ इस अवस्था में नगर का विकास योजना के अनुसार होने लगता है।

7. वृद्धावस्था (Sensile Stage)- यह नगर की अंतिम अवस्था है जिसमें नगर उजड़ने लगता है। चित्तौड़, कन्नौज, फर्रुखाबाद, इस्फान (ईरान) इसी के उदाहरण हैं।

मैगापोलिस

               ममफोर्ड ने सामाजिक वातावरण को ध्यान में रखकर नगरों की छ: अवस्थाएँ बतायी हैं-

1. इओपोलिस

2. पोलिस

3. पट्रोपोलिस

4. मैगापोलिस

5. टायरेनोपोलिय

6. मेक्रोपोलिस

1. Eopolis- इस अवस्था में केंद्रीय स्थान पर नगर का विकास अपने शैशवकाल में होता है लेकिन नगर के आकार की पहचान नहीं हो पाती है।

2. Polis- इस अवस्था में जनसंख्या आकार बड़े हो जाते हैं तथा नगरीय आकार की पहचान संभव है। बड़े गाँव कस्बे का रूप धारण कर लेते है।

3. Metropolis- मुख्य नगर के आकार में पुनः वृद्धि होती है तथा इस पर निर्भर रहने वाले कई छोटी-छोटी नगरीय बस्तियाँ भी विकसित हो जाती है।

4. Megapolis- यह अवस्था नगर की चरम सीमा को बताती हैं। इसमें प्रादेशिक नगरीकरण की प्रवृत्ति होती है। आस-पास की ग्रामीण बस्तियों में भी नगरीय कार्यों की प्रधानता हो जाती है। अमेरिकन मेगापोलिस का विस्तार बोस्टन से लेकर बाल्टीकमोर तक हैं। रोर्टरडम-एम्सटर्डम मेगापोलिस। टोक्यो-योकोहामा-कवासाकी-कोबे मेगापोलिस इसके उदाहरण है।

5. Trynopolis- इस अवस्था में नगर की जनसंख्या में ह्रास प्रारंभ हो जाता है। नगरीय आकर्षण पर्याप्त नहीं रह जाता। इसे Diging Stage of City कहते है। लंदन और पेरिस इसके उदाहरण है।

6. Nekropolis- इस अवस्था में नगर का पूर्ण पत्तन हो जाता है।उजड़े हुए नगर की इस अवस्था में चारों ओर  भग्नावशेष दिखाई देने लगते है। हड़प्पा, कन्नौज, तक्षशिला इसके उदाहरण है।

बसाव-स्थान (Site) व बसाव-स्थिति (Situation) में अंतर व संबंध  

             बसाव-स्थान (Site) वास्तव में बसाव-स्थिति (Situation) का एक छोटा अंग है। ये दोनों मिलकर नगर की उत्पत्ति व विकास पर प्रभाव डालते हैं। नगर एवं गाँव दोनों प्रकार के बस्ती के लिए Site और Situation महत्व रखता। इनके बीच निम्नलिखित अंतर है-

(i) बसाव-स्थान व बसाव-स्थिति में सबसे पहले अंतर रैटजेल ने किया। उसने बर्लिन नगर का अध्ययन कर यह बताया कि यह नगर ऐसे बसाव-स्थान पर है जहाँ कि उसके बड़ा नगर बनने की संभावना नहीं थी, परंतु जर्मनी के उपजाऊ मैदान में इसकी बसाव-स्थिति ही इसके विकास का कारण बनी और यह एक बड़ा नगर बन गया।

(ii) बसाव स्थान भौतिक विशेषताओं पर अधिक बल देता है, जबकि बसाव-स्थिति में प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों परिस्थितियों पर ध्यान दिया जाता है।

(iii) बसाव-स्थान विशिष्टता रखने वाला होता है लेकिन बसाव-स्थिति व्यापक होती है।

(iv) नगर व गाँव दोनों प्रकार की बस्ती के लिए बसाव-स्थान का महत्व होता है लेकिन बसाव-स्थिति ही होती है, जो गाँव के आकार को वृद्धि प्रदान करके उसको नगर में परिवर्तित कर देती हैं।

(v) गंगा-यमुना नदियों का संगम तथा गंगा के अर्द्ध-वृत्ताकार मोड़ बसाव-स्थान की विशेषता है। जिन्होंने नगर को वर्तमान आकृति प्रदान की है। इन नदियों के बीच की भूमि बाढ़ से सुरक्षित होने के कारण बसाव-स्थिति की दृष्टि से उपयुक्त थी। बसाव-स्थिति की दृष्टि से नगर अपने चारों और विस्तृत उपजाऊ भूमि, अतिरिक्त कृषि उत्पादन, रेल व सड़क मार्गों का जंक्शन आदि सुविधाएँ रखता है।

            बसाव स्थान वह भू-भाग है जहाँ पर नगर बसा होता है। किसी नगर का विकास किस दिशा में होगा यह उसके बसाव स्थान पर निर्भर करता है। जैसे-यदि नगर किसी सड़क या नदी के किनारे बसा है तो उसकी आकृति लंबी होगी। बसाव स्थान के अंतर्गत उस स्थान को धरातलीय दशा, भूगर्भिक दशा, जलप्राप्ति आदि का अध्ययन करते हैं।

           नगर प्रारंभ में बसाव स्थान की आकृति के अनुरूप ही फैलना शुरू करता है। बाद में समय के साथ-साथ अपने आकार में वृद्धि कर लेता है। उन दिशाओं में फैलता है, जहाँ पर भूमि नगरीय विकास के लिए उपयुक्त होती है और यातायात मार्गों के सहारे बढ़ता है लेकिन यदि किसी नगर का बसाव-स्थान कुछ भौतिक असुविधाओं से युक्त है तो भी वहाँ पर नगर का विस्तार होता है ऐसा तब होता है, जब नगर स्थिति बसाव स्थिति को तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसे स्थान पर भूमि की कीमत ऊँची होती हैं। इस प्रकार बसाव स्थान का तात्पर्य उस जगह से है जहाँ नगरीय आकारिकी का विकास होता है जबकि बसाव स्थिति का संबंध बसाव स्थल के चारों तरफ पाये जाने वाले प्राकृतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वातावरण से है, जो नगर के विकास में सहायक होता है। दोनों ही कारक मिलकर नगरीय बस्ती का स्थानीयकरण करते हैं। इस कारण बसाव स्थान और बसाव स्थिति के आधार पर किया गया वर्गीकरण स्थानीयकरण के आधार पर किया गया वर्गीकरण माना जाता है।

भौगोलिक स्थानीयकरण के आधार पर नगरों का वर्गीकरण अथवा बसाव-स्थान तथा बसाव-स्थिति के आधार पर नगरों का वर्गीकरण

         भौगोलिक स्थानीय करण अर्थात बसाव-स्थल तथा बसाव स्थिति के अनुसार नगरों को दो प्रमुख भागों में बाँटते है-

(A) जलीय सुविधा के किनारें बसे नगर और

(B) जलीय सुविधा से दूर बसे नगर

(A) जलीय सुविधा के किनारे बसे नगर- इसे पुन: तीन भागों में बाँटते है:-

(a) नदी के किनारे बसे नगर- इसे पुन: छ: भागों में बाँटते है:- 

(i) जलप्रपात नगर-  जलप्रपात के सुविधा के कारण पर्यटन स्थल बन गया है। उदाहरण सागर (कर्नाटक), भेड़ाघाट, नियाग्रा।

(ii) मोड़ लेते हुए बसाव-स्थलीय नगर- यह बाढ़ से मुक्त नगर होता है।  जैसे -आगरा, जायरे का लिविंग स्टोन नगर।

(iii) संगम स्थल पर बसा नगर- जहाँ दो नदियों का संगम होता है वहाँ बसे नगर इसके तहत आते है। जैसे प्रयाग, अलकनंदा और भागीरथी के संगम पर वसा देवप्रयाग, स्वर्णरेखा और खरकई के संगम पर बसा जमशेदपुर।

(iv) ब्रिजटाउन या नदियों के  दोनों किनारों पर बसे नगर। जैसे लंदन (टेम्स) बुडापेस्ट (डेन्यूब), श्रीनगर (झेलम)  

(v) ज्वारीय नगर – ज्वारभाटा के जल से नदियों के मुहानो पर बंदरगाह बन जाते हैं जिससे समुद्र से दूर आंतरिक भाग में नगर बन जाते हैं। जैसे हुगली के किनारे कलकत्ता।

(vi) प्राकृतिक बाँध नगर- बाढ़ के मलबे से धरातलीय ऊंचाई में वृद्धि होती है तो प्राकृतिक बाँध बन जाता है।

उसी पर नगर बस जाते हैं। जैसे पटना, बुहांग वियना।

(b) झील के किनारे बसे नगर:- प्रायः झील के किनारे भी नगरों का विकास हो जाता है। इसके कई कारण है।

जैसे-

(i) पर्यटन के चलते- पुष्कर झील के किनारे पुष्कर नगर, इसी तरह नैनीताल को भी लिया जा सकता है।

(ii) औद्योगिक गतिविधि के चलते- कर्लोस (झील के किनारे), ग्रेटसाल्ट लेक (USA)।

(iii) नौकागम्य के कारण- महान झील के किनारे- क्लीवलैंड, बफैलो, कम्पाला (युगांडा), डलुथ आदि अस्थावान (कैस्पीयन पर), बोल्गा नदी के मुहाना पर बने झील पर बसे नगर।

(c) समुद्री प्रभाव से भी कई प्रकार के नगर विकसित होते हैं। जैसे-

(i) पुलीन नगर- यहाँ पर पर्यटन का विकास हो जाता है। जैसे मियामी बीच सिटी, कोयलम, दीघा (WB) आदि।

(ii) ज्वारनद-मुख नगर- ज्वारनद्मुख नगर प्राकृतिक बंदरगाह के कारण जैसे सूरत (ताप्ती के किनारे) नावें और स्वीडेन के सभी।

बंदरगाह- जैसे डंवर फिस्ट, गोटेंवर्ग (नार्वे)

(iii) लैगुन के किनारे बसे लैगुन नगर- जैसे आस्ट्रेलिया के टाउंसविले, भारत में कोचीन का विकास।

(iv) द्वीपीय नगर- द्वीपों पर संचार या जहाजरानी के कारण जैसे पोर्टब्लेयर।

(v) बंदरगाह नगर या जलमार्ग नगर- समुद्री जलमार्ग के सुविधाओं के कारण तट के किनारे प्राकृतिक बंदरगाह के अलावे कृत्रिम बंदरगाह भी विकसित किए जाते है। जैसे मद्रास।

(B) जलीय सुविधा से दूर बसे नगर- इसके भी छः प्रमुख वर्ग आते है। जैसे-

(1) सीमावर्ती नगर- सीमा के किनारे सामरिक महत्त्व के कारण जैसे राजौरी एवं पिथौरागढ़ आदि।

(ii) परिवहन मार्ग पर विकास  नगर- काठगोदाम (नैनीताल) परिवर्तन से बने नगर और योगेन्द्र नगर (HP)। 

(iii) धर्मिक नगर-  धार्मिक कारण से बने नगर  जैसे- अजमेर, वाराणसी। 

(iv) शैक्षणिक नगर- जैसे पिलानी, रुढ़की।

(v) क्रोड नगर- परिवहन मार्गों के संगम स्थल पर बसा नगर है। जैसे लंदन, पेरिस, शिकागो, पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर। 

(vi) सेवा केंद्र नगरीय बस्ती- मूलत: ग्रामीण क्षेत्रों की केन्द्रीय बस्ती होती है और आसपास के लोगों के बाजार सुविधा के लिए ग्रामीण बाजार बस्तियाँ विकसित होती है जैसे प्राय: हर देश के ग्रामीण क्षेत्र में। 

नगरों का कार्यिक वर्गीकरण

          यद्यपि नगरों का कार्य द्वितीयक और तृतीयक प्रकार का होता है लेकिन नगरों में कार्यिक विशेषता की प्रवृत्ति होती है। इसी विशेषता के आधार पर नगरों का कार्यिक वर्गीकरण किया जाता है। यह विशेषता उसकी भौगालिक वातावरण का परिणाम होता है। 

       कई भूगोलवेत्ताओं ने कार्यिक विशेषीकरण के आधार पर नगरों के वर्गीकरण का प्रयास किया है। कुछ विद्वानों का वर्गीकरण इस प्रकार से है-

1. मेकेंजी का वर्गीकरण- मेकेंजी ने कार्यिक विशेषता को आधार मानते हुए नगरों को दो भागों में बाँटा है-

(A) सक्रीय नगर (Active Town or Basic Town)- वैसे नगर जो उत्पादन कार्यों में संलग्न है अथवा नगरीय अर्थव्यवस्था को आर्थिक लाभ दे रहें हो।

(B) अक्रीय नगर (Passive or Non-Basic Town)- वैसे नगर जहाँ उत्पादन कार्य ठप्प पड़ गया हो अथवा नगरीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक योगदान न के बराबर दे रहें हों इसके तहत अधिवासी नगर, शिक्षा नगर, धार्मिक नगर आदि आते हैं।

2. जेलसन का वर्गीकरण-

(i) औधोगिक नगर-जैसे ऐसेन, बर्मिधम आदि।

(ii) खनन नगर- जैसे जोहान्सबर्ग, चुकियामाता, कालगुर्ली, टैक्सास आदि।

(iii) परिवहन एवं संचार नगर- जैसे शिकागों, कोवे, वेनिस, डुजोन मारसर्ली आदि। 

(iv) प्रशासनिक नगर- जैसे कैनबेरा, इस्लामाबाद, मास्को, पैकिंग, वाशिंगटन, हेग आदि।

(v) व्यवसायिक नगर

(vi) वित्त एवं बीमा नगर

(vii) मुद्रा व्यापार नगर

(vi) थोक व्यापार का केंद्रीय नगर

(ix) सेवा केंद्र वाला नगर

(x) विविध कार्यों का नगर- सैनिक  महत्व, स्वास्थ्य केंद्र, क्रीडा केंद्र, धार्मिक केंद्र आदि।

3. एस्कार्ट एंड मोसर का वर्गीकरण- भूगोलवेत्ता एस्कोट एवं मोसर ने बहुचरक विधि का प्रयोग करते हुए  ब्रिटिश नगरों को चौदह भागों में बाँटा है। इसके लिए उन्होंने 67 चरों का प्रयोग किया। इस आधार पर निम्नलिखित वर्गीकरण है-

(1) समुद्रतटीय स्वास्थ्य

(ii) वाणिज्यिक प्रशासनिक नगर 

(iii) रेलवे जंक्शन वाला नगर

(iv) वृहत बंदरगाह नगर

(v) सूती वस्त्र वाला नगर

(vi) औद्योगिक नगर

(vii) औद्योगिक सह वाणिज्यिक नगर

(viii) उपनगर

(ix) मिश्रित अधिवासी नगर

(x) नवीन मिश्रित अधिवासी नगर

(xi) हल्के उद्योग का नगर

(xii) पुराने औद्योगिक नगर

(xiii) नवीन औद्योगिक नगर

(xiv) नवीन औद्योगिक उपनगरनगरीय वर्गीकरण

          बहुचरक विधि के एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि सभी देशों के लिए समान चर और समान वर्गीकरण नहीं हो सकते है। जैसे ब्रिटेन में अनेक नगर सूती वस्त्रों के कारण बसे हैं। इस प्रकार की संभावनाएँ थाइलैंड, इंडोनेशिया जैसे देशों में नहीं हो सकता। अतः एस्कोट एवं मोसर ने यह बताया है कि सभी देशों को अपनी परिस्थितियों के अनुरूप अपने चरों का निर्धारण करना होगा। इसी आधार पर कार्यिक वर्गीकरण संभव है।

4. अशोक मित्रा का वर्गीकरण- भारतीय नगरों के कार्यिक वर्गीकरण हेतु अशोक मित्रा का कार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। कार्यिक विशेषता के आधार पर भारतीय नगरों को निम्नलिखित सात वर्गों में रखा है-

(i) उत्पादन नगर⇒

औद्योगिक नगर- बोकारो, टाटा, भिलाई, सिंदरी, हावड़ा

खनन केंद्र- धनबाद

तेल निकालने वाला नगर- डिगबोई

(ii) वाणिज्यिक और व्यापारिक नगर⇒ हापुड़, काठगोदाम, रक्सोल आदि।

(iii) प्रशासनिक नगर⇒ गांधी नगर, चण्डीगढ़, ईटानगर, भोपाल, भुवनेश्वर।

(iv) परिवहन नगर⇒ पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर, कालीकट, विशाखापट्नम।

(v) सांस्कृतिक नगर⇒ अजमेर, पुष्कर, काशी, मथुरा, गया, अमृतसर, मदुरई।

(vi) पर्यटन तथा स्वास्थ्यवर्धक नगर⇒ श्रीनगर, नैनीताल, शिमला, मसूरी, ऊँटी आदि।

(vii) विविध कार्यों का नगर⇒ भारत के सभी महानगर इसमें आएँगे जैसे- दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई आदि।

छावनियाँ- अंबाला, मेरठ, लैंसडॉन आदि

शिक्षा का केंद्र- शांति निकेतन, उज्जैन, सागर

विस्थापितों का नगर⇒ द० हस्तिनापुर

            इस प्रकार ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि नगरीय वर्गीकरण में कार्यिक विशेषता को विशेष महत्व प्राप्त है क्योंकि इससे नगर नियोजन कार्यक्रम में विशेष सहायता मिली है।

जनसंख्या के आधार पर नगरों का वर्गीकरण

          जनसंख्या के आधार पर नगरों का वर्गीकरण में कार्यिक विशेषता को विशेष महत्व प्राप्त है क्योंकि इससे नगर नियोजन कार्यक्रम में विशेष सहायता मिलती है।

 जनसंख्या के आधार पर भी नगरों का वर्गीकरण का प्रयास किया गया है। इसके लिए विभिन्न देशों में अलग-अलग मानदंड अपनाये गये है। भारत, मलेशिया, थाईलैंड जैसे देशों में नगरीय मान्यता के लिए 5000 जनसंख्या का होना आवश्यक है लेकिन नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क जैसे देशों में मात्र 200 जनसंख्या उसका आधार है। पुन: नगरीय जनसंख्या को आधार माना जाए तो USA में वह कोई भी नगर महानगर है जिसकी जनसंख्या करीब 54 हजार है और उसके कई सहयोगी नगरीय बस्तियों का विकास हुआ है। भारत की स्थिति भिन्न है। यहाँ पर महानगरीय मान्यता के लिए सहायक नगरीय बस्तियों का होना आवश्यक नहीं लेकिन महानगर की जनसंख्या 10 लाख से अधिक हो सकती है। 

        अगर सभी देशों की सामान्य मान्यता को देखा जाए तो जनसंख्या आकार के आधार पर नगरीय बस्तियाँ निम्न प्रकार की होती है-

1. छोटे आकार के सेवा केंद्र- वह छोटी से-छोटी बस्ती जो गैर प्राथमिक कार्यों से जुड़ा हो। ऐसे केंद्रों के लिए आवश्यक नहीं कि वह मान्यता प्राप्त नगरीय बस्ती हों।

2. शहर- जिसकी जनसंख्या एक लाख से कम हो।

3. नगर- जिसकी जनसंख्या एक लाख एवं उससे अधिक हो।

4. महानगर- भारत में कोई भी नगरीय बस्ती महानगर है जिसकी जनसंख्या 10 लाख या उससे अधिक हैं लेकिन USA तथा जापान में कोई भी नगरीय बस्ती तब तक महानगर नहीं हो सकता जब तक कि उसका सहयोगी नगर न हो। वहाँ वस्तुतः सबसे बड़ी नग के लिए 50,000 जनसंख्या जरूरी है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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