13. Sugar Industry in Bihar (बिहार में चीनी उद्योग
13. Sugar Industry in Bihar
(बिहार में चीनी उद्योग)
प्रश्न प्रारूप
Q. बिहार में चीनी उद्योग की स्थिति, समस्या एवं समाधान पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
बेबर के अनुसार चीनी उद्योग एक वजन ह्रास उद्योग है। इसलिए ऐसे उद्योगों की स्थापना कच्चे माल के क्षेत्र में की जाती है। विश्व प्रसिद्ध गन्ना की पेटी बिहार के मुजफ्फरपुर से UP के मुजफ्फरनगर के बीच अवस्थित है। इसी गन्ना की पेटी में बिहार के अधिकांश चीनी मील अवस्थित थे।
1960 के दशक तक बिहार भारत का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य था। लेकिन वर्तमान समय में प्रथम पाँच राज्य में बिहार की स्थान नहीं है। उत्तरी बिहार की भूमि और परम्परागत कृषि पद्धति चीनी उद्योग के लिए समुचित आधार प्रदान करती है। यही कारण है कि मेहरौरा (छपड़ा) नामक स्थान पर 1903 ई० में प्रथम चीनी का कारखाना स्थापित किए गया था।
आज यह उद्योग रुग्ण अवस्था से गुजर रही है। बिहार में कुल 33 चीनी मीलें थी। इनमें से 17 चीनी मीलें पूर्णत बन्द हो चुके है। 33 चीनी मील में से 28 मील स्वतंत्रता से पूर्व ही स्थापित हुए थे। गौरतलब है कि स्वतंत्रता के पूर्व 56 मील भारत में थी उनमें से 28 मील केवल बिहार में स्थापित है।
स्वतंत्रता के बाद सरकारी उदासीनता, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, किसानों की घटती हुई अभिरुचि, खाद्यान्न फसल के साथ गन्ना उद्योग की प्रतिस्पर्द्धा इत्यादि के कारण चीनी का उत्पादन लगातार घटता गया। इसी संदर्भ में बिहार विभाजन के बाद JJ ईरानी की अध्यक्षता में पहली औद्योगिक विकास का गठन किया गया तो उसने सिफारिश किया कि झारखण्ड निर्माण के बाद बिहार को औद्योगिक मानचित्र पर लाने के लिए चीनी उद्योगों विकास अनिवार्य है।
दर असल गन्ना एक नकदी फसल है। जिसका उत्पादन और उत्पादकता दोनों बढ़ा है लेकिन रणनीति के अभाव में बिहार का यह उद्योग लगातार पिछड़ रहा है। इसके पिछड़ेपन के निम्नलिखित कारण हैं:-
बिहार में चीनी उद्योग के पिछड़ापन के कारण
(1) गन्ना का उचित मूल्य नहीं:-
गन्ना एक वर्षीय एवं नगदी फसल है। इसके उत्पादन के पीछे किसानों की मानसिकता और पर्याप्त लाभ की प्राप्ति रहती है अगर चीनी मील मालिक गन्ना उत्पादकों को उचित मूल्य समय पर दे देते हैं तो अगली बार किसान गन्ना की खेती करते हैं अन्यथा नहीं।
(2) अधिकांश गन्ना का उपयोग गुड़ एवं खण्डसारी उद्योग में:-
बिहार के अधिकांश गन्ना चीनी मील तक नहीं पहुंच पाती है बल्कि उनका उपयोग गुड़ एवं खण्डसारी उद्योग में होता है। सम्पूर्ण भारत का 50% गन्ना उपयोग गुड़ एवं खण्डसारी उद्योग में ही प्रयुक्त हो जाता है।
(3) समुद्र से अधिक दूरी:-
समुद्र से अधिक दूर होने के कारण बिहार के गन्ना में रस की मात्रा अपेक्षाकृत कम पायी जाती है। जैसे महाराष्ट्र में कुल गन्ना वजन का 12-15% रस प्राप्त होता है जबकि बिहार में 8-9% रस प्राप्त होता है।
(4) अधिकांश मील पुरानी:-
बिहार के अधिकांश चीनी मील पुरानी हो चुकी है जिसके कारण उत्पादन की क्षमता अत्याधिक कम हो गयी है।
(5) वर्षभर चीनी मिलें चालू नहीं:-
दक्षिण भारत की चीनी मील सांलो भर चलती रहती है क्योंकि इससे प्राप्त होने वाला ‘खोई’ आधारित कागज उद्योग मोलास पर आधारित शराब उद्योग का विकास किया गया है। वहीं जिस मौसम में गन्ने की आपूर्ति नहीं होती है उस मौसम में वहाँ की चीनी मीलें तेलहन की पेराई करते हैं।
इस तरह दक्षिण भारत की मीलें सालोंभर किसी-न-किसी रूम में चलते रहती हैं लेकिन बिहार में इस तरह के उद्योग के अभाव में कुछ माह ही उद्योग चल पाते हैं।
(6) सरकारी उदासीनता और भ्रष्टाचार:-
सरकारी उदासीनता और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण चीनी उद्योगों से संबंधित अनुसंधान कार्य ठीक तरीके से नहीं हो पा रहे हैं।
(7) प्रतिकूल चीनी औद्योगिक नीति:-
चीनी उद्योग का लाइसेन्सीकरण 40% लेबी और 15 किमी० के दायरे में 2 चीनी मील नहीं लगाने की नीति इत्यादि के कारण चीनी उद्योग के विकास में बाँधा पहुंची है।
(8) हरित क्रांति का आगमन:-
बिहार में हरित क्रांति के आगमन के बाद गन्ना क्षेत्र में खाद्यान्न फसलों का घुसपैठ बढ़ा है जिसके कारण गन्ना उत्पादक क्षेत्र लगातार सिकुड़ते जा रहे है।
(9) सहकारिता का अभाव:-
इन समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में सरकार ने समय-2 पर महत्वपूर्ण सुधारों की घोषणा करती रही है। जैसे-1998 ई० में सरकार ने लाइसेन्सी करण की नीति रद्द कर दिया। इसके बाद 40% की लेबी को घटाकर 15% कर दिया। वैश्विक स्तर पर WTO की स्थापना हो जाने के बाद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्यात करने की मार्ग प्रशस्त हो चुकी है। सरकार ने यह निर्णय लिया है कि गन्ने के उपउत्पादकों को गैसहोल के रूप में किया जायेगा।
उपरोक्त कदम उठाये जाने के बाद भी बिहार में पुनः चीनी उद्योग नहीं पनप पा रहे हैं क्योंकि किसानों को नकदी और गन्ना का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। किसानों के फसलों का बीमाकरण नहीं हो पा रहा है।
पुनः न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार मूल्य में काफी अन्तर दिखायी दे रहा है। रुग्ण मील तकनीकी सुधार नहीं कर पा रहे हैं। अपने कर्मचारियों को पिछला भुगतान नहीं कर पाये हैं। जब तक इन समस्याओं का समाधान नहीं होगा। तब तक इनका विकास संभव नहीं है।
इसके अलावे बिहार की घरेलू बाजार अन्तरर्राष्ट्रीय बाजार को मजबूत करते हुए चीनी उद्योग पर आधारित बिहार को विशिष्ट पहचान स्थापित की जा सकती है। मॉरीशस, क्यूबा, फिजी जैसे छोटे-2 द्वीपीय देश प्रबंधन के बल पर ही अगर वैश्विक पहचान रखते हैं तो बिहार ऐसा क्यों नहीं कर सकता है?
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12. बिहार में कृषि आधारित उद्योग
15. बिहार की जनजातीय समस्या एवं समाधान
16. बिहार में ग्रामीण बस्ती प्रतिरूप
17. पटना नगर नियोजन/पटना का मास्टर प्लान
19. बिहार में ग्रामीण बाजार केन्द्र
20. महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ट प्रश्नोत्तर