9. Green Revolution (हरित क्रांति)
9. Green Revolution
(हरित क्रांति)
प्रश्न प्रारूप
Q.1 हरित क्रांति से आप क्या समझते है? यह भारत के किस भाग में अधिक विकसित हुआ और क्यों?
Q.2 हरित क्रांति तथा भारतीय समाज पर उसके सामाजिक, आर्थिक प्रभावों के आलोचनात्मक व्याख्या करें।
Q.3 हरित क्रांति तकनीकी तथा भारतीय समाज पर इसके प्रभावों की आलोचनात्मक व्याख्या करे।
Q.4 आधुनिक कृषि तकनीकी से संबंधित पारिस्थैतिकीय समस्याओं की चर्चा करें। उनकी तीव्रता कम करने के लिए आप कौन से उपाय सुझायेंगे।
Q.5 हरित कांति एक आंशिक क्रांति रही है। इसका प्रभाव कुछ फसलों तथा कुछ क्षेत्रों तक सीमित रहा है?
(1) हरित क्रांति क्या है?
कृषि के क्षेत्र में त्वरित परिर्वतन लाने के लिए जो वैज्ञानिक प्रयास किये गये हैं, उसे ही हरित क्रांति की संज्ञा देते हैं। हरित क्रांति का तात्पर्य कृषि क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाकर आत्मनिर्भरता प्राप्त करने से है। विश्व में पहली बार हरित क्रांति की शुरुआत अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता नॉर्मन बोरलॉग के द्वारा मैक्सिको में किया गया ‘हरित क्रांति’ शब्द का प्रथम प्रयोग टरनर महोदय के द्वारा किया गया था।
मैक्सिको में हरित क्रांति को जन्म देकर कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि लायी गई और वहाँ भूखमरी की समस्या पर नियंत्रण स्थापित किया गया। ठीक उसी वक्त भारतीय वैज्ञानिक एम० एस० स्वामी नाथन के नॉर्मन बोरलॉग के सम्पर्क में रहकर शोध कार्य कर रहे थे तथा इधर 60 के दशक में भारत खाद्यान्न की समस्या से झूझ रहा था। भारत में भी कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की जा रही थी।
तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी तथा तात्कालिक कृषि मंत्री डॉ. सुब्रह्यणयम स्वामी की प्रेरणा से भारत में भी हरित क्रान्ति की शुरुआत करने का निर्णय लिया गया। भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1966-67 ई० में उ०-प० भारत से किया गया। भारतीय संदर्भ में हरित क्रांति एक ऐसा पैकेज प्रोग्राम था जिसमें सिंचाई, उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक तथा उन्नत तकनीक का प्रयोग कर उत्पादन तथा उत्पादकता बढ़ाने का प्रयास किया गया।
(2) भारत के किस भाग में हरित क्रांति विकसित हुआ और क्यों?
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत उ०-प० भारत के मैदानी क्षेत्र से हुआ। इसके निम्नलिखित कारण थे-
(i) 1966-67 के आकाल से पूर्व इस प्रदेश में “संघन जिला कृषि विकास कार्यक्रम” चलाया जा रहा था जिसके कारण इस प्रदेश में पहले से ही संस्थागत और संरचनात्मक सुविधाएं मौजूद थी। इसलिए इनका लाभ उठाकर हरित क्रांति कार्यक्रम को लागू करने का प्रयास किया गया।
(ii) यह प्रदेश सूखा प्रधान क्षेत्र था किन्तु यहाँ विस्तृत जलोढ़ मैदान, उर्वर मिट्टी और सालोंभर बहने बाली नदियाँ मौजूद थी जिसके आधार पर सिंचाई सुविधाओं का विस्तार तेजी से किया जा सकता था।
(iii) उ०-प० भारत में रासायनिक खाद के प्रयोग से अधिक लाभ मिलता है क्योंकि बाढ़ यहाँ कम आती है। इस कारण से उर्वरक खेतों में अपने प्रभाव को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं।
(iv) इस प्रदेश में रहने वाले किसानों के खेत विखरे हुए नहीं थे। सफलतापूर्वक चकबंदी का कार्यक्रम चलाकर भूमि को बड़े-2 जोत में तब्दील कर दिया गया था।
(v) बड़े-2 खेत बन जाने के कारण उसमें ट्रैक्टर का प्रयोग आसान हो गया।
(vi) इस प्रदेश में सिख एवं जाट जैसे जुझारू किसान पहले से मौजूद थे। कृषि के अलावे इसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। इसलिए संस्थागत सुविधाओं का इन लोगों ने भरपूर लाभ उठाया।
(vii) हरित क्रांति के शुरुआत के वक्त पंजाब मुखमंत्री प्रताप सिंह कैरो थे जिन्होंने राजनैतिक एवं प्रशासनिक प्रतिबद्धता दिखाते हुए परिवहन, बिजली, बाजार एवं उचित कीमत का व्यवस्था किया।
इन्हीं सब कारणों से इस प्रदेश में हरित क्रांति की शुरुआत हुई।
(3) उत्तर-प० भारत के मैदानी क्षेत्र को छोड़कर भारत के अन्य भागों में 1960 के दशक में हरित क्रांति की शुरूआत क्यों नहीं की गयी थी?
सही अर्थों में ऊपर के सभी कारक देश के अन्य भागों में काम नहीं कर रहे थे। इसीलिए देश के अन्य भागों में हरित क्रांति की शुरुआत नहीं की गई। देश के दूसरे भागों में “गहन जिला कृषि विकास कार्यक्रम” शुरूआत नहीं किये जाने के कारण वहाँ संरचनात्मक संस्थागत सुविधाओं का विकास नहीं हुआ था।
खासकर उ०-पू० भारत में सदैव बाढ़ की स्थिति बनी रहती थी, इसलिए वहाँ रासायनिक खाद के प्रयोग पर विशेष जोर नहीं दिया गया। पर्याप्त वर्षी हो जाने के कारण यहाँ सिंचाई सुविधाओं के विकास पर जोर नहीं दिया गया। इस क्षेत्र में चकबंदी जैसा कार्यक्रम असफल हो चुका था। भूमिहीन किसानों की संख्या ज्यादा थी। राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्रतिबद्धता की कमी थी। नवीन तकनीक इतने मँहगे थे कि किसान उसे खरीद नहीं सकते थे।
उपरोक्त कारणों के चलते ही देश के अन्य भागों में हरित क्रान्ति की शुरुआत 1960 के दशक में नहीं हो सकी।
5वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान देश के अन्य भागों में भी हरित क्रांति के संदेश को पहुँचाने का प्रयास किया गया। इसके लिए ऐसे क्षेत्रों को चुना गया जहाँ कमाण्ड एरिया प्रोजेक्ट कार्यक्रम पहले से चल रहे थे। कमाण्ड एरिया प्रोजेक्ट के तहत पूर्वी भारत, पूर्वी तटवर्ती मैदान के अनेक नदी घाटी क्षेत्र में नहरों का विकास कर प्रदेशों का सीमांकित किया गया था ऐसे ही सीमांकित क्षेत्र को कमाण्ड एरिया कहा गया था।
इसमें कावेरी कमाण्ड एरिया, गण्डक कमाण्ड एरिया, मयूराक्षी कमाण्ड एरिया, कृष्णा तथा गोदावरी कमाण्ड एरिया इत्यादि में हरित क्रांति की शुरुआत की गई। इन कमाण्ड एरिया क्षेत्र में शुरुआत होते ही हरित क्रांति योजना एक विकेन्द्रीकत योजना बन गयी। लेकिन, कमाण्ड एरिया प्रोजेक्ट वाले किसान हरित क्रांति के मर्म को स्पष्ट रूप से समझ नहीं पाये थे, इसलिए उसका पूरा लाभ भी नहीं उठा पाये। परिणामतः प्रथम हरित क्रांति पंजाब, हरियाणा, प० उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ जिलों में ही यह कार्यक्रम सीमित रहा।
हरित क्रांति का दूसरा चरण 1980 के दशक में प्रारंभ की गई। इसकी शुरुआत 1981 ई० में किया जा चुका था। लेकिन, 1987 ई० में पुन: अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई तो देश के अन्य भागों में पुन. हरित क्रांति की संदेश को पहचानने का प्रयास किया गया। इसका लाभ तमिलनाडु से असम तक के किसानों को मिला।
हरित क्रांति के दूसरे चरण की शुरुआत भारत है। 169 जिलों में किया गया। इनमें से 101 जिलों में चावल का और 68 जिलों में गेहूँ की प्राथमिकता दी गई। 169 जिलों में 38 जिला पूर्वी UP के, 30 जिले MP के, 18 जिला बिहार के, 14 जिले राजस्थान के, 12 जिले महाराष्ट्र के, 9 जिले कर्नाटक के, तमिलनाडु तथा आन्ध्र प्रदेश के 8-8 जिले, प० बंगाल, गुजरात तथा हरियाणा के 7-7 जिले, उड़ीसा के 5 जिले और असम के 3 जिले इसमें शामिल थे। इन क्षेत्रों में हरित क्रांति की दूसरी चरण प्रारंभ करने के पीछे दो कारण थे-
(1) इन जिलों में आकाल की समस्या काफी तीव्र थी। अतः यहाँ खाद्यान्न उत्पादन में शीघ्र बढ़ोतरी की आवश्यकता थी।
(2) इन जिलों में चावल कृषि के लिए पर्यावरण के अनुकूल थी।
इस तरह उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में हरित क्रांति की शुरुआत भले ही केन्द्रीकृत योजना के रूप में शुरुआत हुई थी। लेकिन, आज हरित क्रांति की संदेश पूरे भारत में पहुंच रहा है। इस तरह यह एक विकेन्द्रीकृत योजना बन चुका है।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
हरित क्रांति के कारण भारतीय समाज पर कई प्रकार के प्रभाव पड़े हैं। इनमे से कुछ प्रभाव सकारात्मक हैं लेकिन कुछ प्रभाव नाकारात्मक भी रहे हैं। इन प्रभावों को दो शीर्षकों में बाँटकर अध्ययन किया जा सकता है:-
(A) सामाजिक प्रभाव:
(1) प्रादेशिक विषमता का अभ्युदय:-
हरित क्रांति के तहत दो तरह की विषमताएँ उत्पन्न हुई-
(ⅰ) अन्तः प्रादेशिक विषमता और
(ⅱ) अन्तर प्रादेशिक विषमता।
अन्तः प्रादेशिक विषमता के तहत एक ही राज्य के दो क्षेत्र में विषमताएँ उत्पन्न हुई। जैसे- राजस्थान के गंगानगर तथा हनुमानगढ़ जिला खाद्यान्न उत्पादन का भण्डार बन गया, जबकि राजस्थान का शेष भाग पिछड़ा ही रह गया।
अन्तर प्रादेशिक विषमता के तहत पंजाब, हरियाणा, प० UP और उ० राजस्थान के क्षेत्र हरित क्रांति के कारण अन्न भण्डार के क्षेत्र में तब्दील हो गये।
जबकि उ०-पूर्वी भारत के क्षेत्र में अभी हरित क्रांति का संदेश नहीं पहुंच पाया है। पंजाब में हरित क्रांति के चलते जो समृद्धि आयी, उसके कारण वहाँ अलगाववाद की समस्या उत्पन्न हुई। पुनः उ०-पूर्वी एवं पूर्वी भारत में हरित क्रांति की शुरुआत नहीं होने के कारण नक्सलवाद की समस्या उत्पन्न हुई है।
(2) सामाजिक विषमता का अभ्युदय:-
हरित क्रांति में प्रयोग किये जाने वाले बीज, उर्वरक, कीटनाशक, तकनीक, सिंचाई के साधन काफी मँहगे थे। इसका प्रयोग अमीर किसानों ने बखूबी किया। लेकिन भूमिहीन किसान और छोटा जोत रखने वाला किसान के लिए यह संभव नहीं हो पाया। फलतः अमीरी और गरीबी के बीच की खाई और बढ़ गई।
(3) रोजगार पर प्रभाव:-
हरित क्रांति के कारण रोजगार पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है क्योंकि जिन-2 क्षेत्रों में हरित क्रांति की शुरुआत हुई वहाँ दूर-2 से मजदूर आकर खेतों में रोजगार प्राप्त करने लगे। इसके कारण अन्तर राज्यीय प्रवजन को बढ़ावा मिला। लेकिन हरित क्रांति के क्षेत्र वाले किसान मजदूरों का जबड़दस्त शोषण का कार्य किया जिससे उनके स्वास्थ्य पर बूरा प्रभाव पड़ा। लेकिन, भूमिहीन मजदूर किसान रोजी-रोटी पाकर न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण किया बल्कि अपने स्रोत क्षेत्र में भी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया। उन मजदूरों से सिख एवं जाट किसानों ने इस तरह से मजदूरी करवाया कि उनके स्वरस्थ्य पर बहुत ही नाकारात्मक प्रभाव पड़ा। स्रोत क्षेत्र में मजदूरों की कमी हुई।
(B) आर्थिक प्रभाव
हरित क्रांति के कारण भारत के आर्थिक गतिविधियों पर जबड़दस्त प्रभाव पड़ा है जैसे-
(1) सिंचाई सुविधाओं में विस्तार:-
हरित क्रांति के कारण सिंचाई सुविधाओं का जबड़दस्त विस्तार हुआ है। विश्व की सबसे बड़ी नहर प्रणाली इंदिरा गांधी नहर तथा शारदा नहर हमारे देश में है। इसी तरह ट्यूबेल, कूँआ, तालाब जैसे सिंचाई साधनों का विकास हुआ लेकिन परम्परागत सिंचाई साधनों पर इसका नाकारात्मक प्रभाव पड़ा। जैसे- रेहड़, लाठा-कूड़ी, करिंग जैसे सिंचाई साधन विलुप्त हो रहे है।
(2) फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि:-
हरित क्रांति के कारण फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है। जैसे 1991 में खाद्यान्न का कुल उत्पादन 51 मिलियन टन हुआ करता था जो आज बढ़कर 285 (2017-18) मिलियन टन को पार कर चुका है।
हरित क्रांति के कारण उत्पादकता में भी बढ़ोतरी हुई है। जैसे- 1981-82 में चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1300 kg था जो बढ़कर 2200 kg/हेक्ट० हो चुका है। इसी बीच 1981-82 में गेहूं का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1696 kg हुआ करता था जो अब बढ़कर 2900 kg/हेक्ट० हो चुका है।
(3) दलहन एवं तेलहन के भूमि तथा उत्पादन में कमी:-
हरित क्रांति के कारण तेलहन और दलहन पर नाकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जैसे- तेलहन और दलहन वाले भूमि पर किसान खाद्यान्न फसल का उत्पादन करने लगे है जिसके कारण इसके सापेक्षिक उत्पादन में कमी आती है। तेलहन और दलहन का बढ़ता हुआ कीमत इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।
(4) हरित क्रांति के प्रथम चरण में गेहूँ और आलू के उत्पादन पर साकारात्मक प्रभाव पड़ा था लेकिन चावल पर इसका नाकारात्मक प्रभाव देखा गया। इसी के मद्देनजर दूसरे चरण में चावल के कृषि को अधिक महत्व दिया गया।
(5) कृषि भूमि में तेजी से विस्तार:-
हरित क्रांति के कारण कृषि भूमि का तेजी से विस्तार हुआ है।
(6) गन्ना के क्षेत्र एवं उत्पादन में कमी:-
हरित क्रांति ने नकदी फसल को भी प्रवाभित किया है। जैसे- उ० भारत के प्रसिद्ध गन्ना पेटी वाले क्षेत्र में खाद्यान्न फसलों का घुसपैठ हो जाने के कारण उ० भारत में गन्ना है उत्पादन में कमी आयी है और यह पेटी धीरे-2 द० भारत की ओर विस्थापित होते जा रही है।
(7) कृषि और पशुपालन के बीच सह-संबंध में कमी:-
हरित क्रांति में उन्नत बीज का प्रयोग किया जाता है जिसका डण्ठल छोटा होता है जिसके कारण पशुओं के लिए पर्याप्त चारा प्राप्त नहीं हो पाती है। किसान खेती का कार्य ट्रैक्टर से करते हैं। इसलिए किसान श्रम करने वाले पशुओं का उपयोग नहीं कर पाते हैं जिनके कारण कृषि और पशुपालन के बीच सह-संबंध कमजोर हुआ है।
(8) कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा:-
हरित क्रांति के कारण कृषि और विभिन्न प्रकार के उद्योगों के बीच में सह-संबंध और मजबूत हुआ है। जैसे- किसान बड़े पैमाने पर ट्रेक्टर, उर्वरक, तकनीक, ऊर्जा इत्यादि का प्रयोग करते हैं जिसके कारण यहाँ कृषि उपकरण निर्माण करने वाले कई कल कारखानों का विकास हुआ। पेट्रो रसायन पर आधारित कई बड़े-2 तेल शोधन कारखाने, उर्वरक संयंत्र का विकास हुआ। कई कुटीर एवं लघु उद्योगों को खासकर चावल मील, गेहूँ मील, बेकरी उद्योग को कच्चा माल मिलने लगा।
(9) परिवहन एवं व्यापार में वृद्धि:-
हरित क्रांति के कारण परिवहन एवं व्यापार में भी वृद्धि हुई। जैसे- पंजाब और हरियाणा में सड़कों का जाल बिछ चुका है। भारत हरित क्रांति के पहले खाद्यान्न आयातक देश था। अब खाद्यान्न निर्यातक देश के रूप में बदल चुका है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है।
(10) सेवा क्षेत्र का तेजी से विस्तार:-
हरित क्रांति के आगमन से किसानों के बीच में जो समृद्धि आई जिसके कारण भारत में तेजी से शिक्षा, बैंकिंग, प्रबंधन, वित, वाणिज्य, इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे सेवा क्षेत्र का तेजी से विस्तार हो रहा है।
निष्कर्ष:
इस तरह उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि हरित क्रांति वास्तव में एक क्रांतिकारी योजना है तभी तो इसने सामाजिक एवं आर्थिक सभी पहलुओं को प्रभावित किया है। हरित क्रांति के कारण जो नाकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहे हैं, उसे अल्पकालिक माना जाना चाहिए और उससे भारतीय संविधान तथा भारत के सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के दायरे में रहकर उससे निपटने का प्रयास किया जाना चाहिए।
हरित क्रांति के स्थायित्व के लिए सुझाव
(1) व्यापक क्षेत्र में विस्तार- हरित क्रांति को देश के सभी भागों में फैलाया जाय।
(2) सभी फसलों पर लागू- हरित क्रांति को गेहूँ के अतिरिक्त चावल एवं अन्य खाद्यान्नों एवं व्यापारिक फसलों की कृषि पर लागू किया जाना चाहिए।
(3) सिंचाई का उत्तम प्रबंध
(4) जैविक उर्वरक का प्रयोग
(5) जैव कीटनाशक दवाओं का प्रयोग
(6) बहुफसली कृषि प्रणाली पर जोर
(7) नई कृषि नीति में सुधार
(8) कृषि के संस्थागत एवं अवसंरचनात्मक सुविधाओं में सुधार
उत्तर लिखने का दूसरा तरीका
फसल उत्पादन तथा उत्पादकता में त्वरित परिवर्तन लाने के लिए जो प्रयास किया गया, उसे हरित क्रांति कहते हैं।
उद्देश्य- फसलों की उत्पादन तथा उत्पादकता बढ़ाकर देश को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना।
शुरुआत- 1966-67 ई०
शुरुआतकर्ता/ जन्मदाता (भारत में)- M.S. स्वामी नाथन
प्रधानमंत्री (उस समय)- श्रीमती इंदिरा गाँधी
कृषि मंत्री (उस समय)- M. सुब्रह्मणयम
“हरित क्रांति” शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टरनर महोदय ने किया। लेकिन अतर्राष्ट्रीय मंच / स्तर पर विलियम गॉड महोदय ने इसे प्रचारित किया।
हरित क्रांति का जन्मदाता- नॉर्मन बोरलॉग (USA)।
⇒ हरित क्रांति का सर्वप्रथम प्रयोग मैक्सिको में हुई, क्योंकि वहाँ सूखे पड़े हुए थे।
⇒ हरित क्रांति एक पैकेज प्रोगाम था जिसमें अधिकाधिक उन्नत बीज, उर्वरक, सिंचाई, कीटनाशक, आधुनिक कृषि यंत्र इत्यादि के अधिकाधिक प्रयोग पर निर्णय लिया गया।
कमाण्ड एरिया:- कमाण्ड एरिया प्रोजेक्ट के तहत पूर्वी भारत, पूर्वी तटवर्ती मैदान के अनेक नदी घाटी क्षेत्रों में नहरों का विकास कर प्रदेशों का सीमांकन किया गया था। ऐसे सीमांकित क्षेत्र को कमाण्ड एरिया कहा गया। इसमे कावेरी कमाण्ड एरिया, गण्डक कमाण्ड एरिया, मयुराक्षी कमाण्ड एरिया, कृष्णा तथा गोदावरी कमाण्ड एरिया आदि शमिल है।
हरित क्रांति लाने वाले प्रमुख करक/घटक
(1) अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग।
नोट: फिलीपीन्स में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान केन्द्र है।
(2) उर्वरकों का प्रयोग।
(3) सिंचाई में विस्तार।
(4) कीटनाशकों का प्रयोग।
(5) आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग।
(6) ग्रामीण विद्युतीकरण को बढ़ावा।
(7) ऋण की सुविधा।
(8) मृदा परीक्षण एवं भूमि संरक्षण।
(9) बहुफसल को बढ़ावा देना।
(10) फसलों के किस्मों का निर्धारण।
(11) कृषि उत्पादों के बिक्री हेतु या विपणन की व्यवस्था।
हरित क्रांति किस भाग में विकसित हुआ और क्यों?
हरित क्रांति का शुभारंभ उतर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र से किया गया था क्योंकि-
(1) यहाँ पहले से सघन जिला कृषि विकास कार्यक्रम चलाये जा रहे थे।
(2) ये क्षेत्र सूखा प्रधान क्षेत्र थे।
(3) जलोढ़ का विस्तृत मैदान और सालोभर बहने वाली नदियाँ मौजूद थी।
(4) यह बाढ़ मुक्त क्षेत्र था जिसके करण उर्वरकों के बहने की संभावना नहीं थी।
(5) इस क्षेत्र में सदियों से सिख, जाट तथा राजपूत किसान रहते आ रहे थे।
(6) प्रताप सिंह कैरो जैसा व्यकि पंजाब का मुख्यमंत्री था जिसके पास राजनैतिक- प्रशासनिक सुझ-बूझ मौजूद थी।
(7) भाखड़ा-नांगल परियोजना के कारण अबाध्य रूप से विद्युत की आपूर्ति हो रही थी।
(8) दिल्ली जैसे महानगर को प्रभाव।
उत्तर-पूर्वी भारत में हरित क्रांति की शुरुआत नहीं की गई क्योंकि यहाँ-
(1) संस्थागत एवं संरचनात्मक कारकों का अभाव था।
(2) सघन जिला कृषि विकास कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा था।
(3) बाढ़ प्रभावित क्षेत्र था।
(4) चकबंदी के अभाव में भूमि टुकड़ों में बंटे थे।
(5) छोटे किसानों की संख्या अधिक थी।
(6) यहाँ के अधिकांश किसान गरीब थे।
पाँचवी पंचवर्षीय योजना में हरित क्रांति का संदेश कमांड एरिया प्रोजेक्ट वाले क्षेत्र में पहुंचाया गया। जैसे- कावेरी कमाण्ड एरिया, मयूराक्षी कमाण्ड एरिया, कृष्णा एवं गोदावरी कमाण्ड एरिया। क्योंकि-
(1) कमांड एरिया प्रोजेक्ट शुरुआत किये जाने के कारण उस क्षेत्र में बाढ़ पर नियंत्रण स्थापित किया जा चुका था और सिंचाई एवं विद्युत सुविधाओं का विकास किया जा चुका था।
(2) हरित क्रांति के दूसरे चरण की शुरूआत 1981 से मानी जाती है क्योंकि फिलीपीन्स स्थित अन्तरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केन्द्र से उन्नत धान के बीज (IR-8) का प्रयोग किया गया। प्रारंभ में इसका प्रयोग प्रायोगिक तौर पर हुआ था। लेकिन 1887 ई० में 169 जिलों में इसका प्रयोग किया गया क्योंकि-
(1) इन जिलों में अकाल की समस्या मौजूद थी।
(2) यहाँ चावल कृषि हेतु अनुकूल पर्यावरण मौजूद थी।
हरित क्रांति का प्रभाव
हरित क्रांति के कारण भारतीय समाज पर कई प्रकार के प्रभाव पड़े हैं। इनमे से कुछ प्रभाव सकारात्मक हैं लेकिन कुछ प्रभाव नाकारात्मक भी रहे हैं। इन प्रभावों को दो शीर्षकों में बाँटकर अध्ययन किया जा सकता है:-
(A) सामाजिक प्रभाव:
(1) प्रादेशिक विषमता का अभ्युदय:-
हरित क्रांति के तहत दो तरह की विषमताएँ उत्पन्न हुई-
(ⅰ) अन्तः प्रादेशिक विषमता और
(ⅱ) अन्तर प्रादेशिक विषमता।
अन्तः प्रादेशिक विषमता के तहत एक ही राज्य के दो क्षेत्र में विषमताएँ उत्पन्न हुई। जैसे- राजस्थान के गंगानगर तथा हनुमानगढ़ जिला खाद्यान्न उत्पादन का भण्डार बन गया, जबकि राजस्थान का शेष भाग पिछड़ा ही रह गया।
अन्तर प्रादेशिक विषमता के तहत पंजाब, हरियाणा, प० UP और उ० राजस्थान के क्षेत्र हरित क्रांति के कारण अन्न भण्डार के क्षेत्र में तब्दील हो गये।
जबकि उ०-पूर्वी भारत के क्षेत्र में अभी हरित क्रांति का संदेश नहीं पहुंच पाया है। पंजाब में हरित क्रांति के चलते जो समृद्धि आयी, उसके कारण वहाँ अलगाववाद की समस्या उत्पन्न हुई। पुनः उ०-पूर्वी एवं पूर्वी भारत में हरित क्रांति की शुरुआत नहीं होने के कारण नक्सलवाद की समस्या उत्पन्न हुई है।
(2) सामाजिक विषमता का अभ्युदय:-
हरित क्रांति में प्रयोग किये जाने वाले बीज, उर्वरक, कीटनाशक, तकनीक, सिंचाई के साधन काफी मँहगे थे। इसका प्रयोग अमीर किसानों ने बखूबी किया। लेकिन भूमिहीन किसान और छोटा जोत रखने वाला किसान के लिए यह संभव नहीं हो पाया। फलतः अमीरी और गरीबी के बीच की खाई और बढ़ गई।
(3) रोजगार पर प्रभाव:-
हरित क्रांति के कारण रोजगार पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है क्योंकि जिन-2 क्षेत्रों में हरित क्रांति की शुरुआत हुई वहाँ दूर-2 से मजदूर आकर खेतों में रोजगार प्राप्त करने लगे। इसके कारण अन्तर राज्यीय प्रवजन को बढ़ावा मिला। लेकिन हरित क्रांति के क्षेत्र वाले किसान मजदूरों का जबड़दस्त शोषण का कार्य किया जिससे उनके स्वास्थ्य पर बूरा प्रभाव पड़ा। लेकिन, भूमिहीन मजदूर किसान रोजी-रोटी पाकर न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण किया बल्कि अपने स्रोत क्षेत्र में भी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया। उन मजदूरों से सिख एवं जाट किसानों ने इस तरह से मजदूरी करवाया कि उनके स्वरस्थ्य पर बहुत ही नाकारात्मक प्रभाव पड़ा। स्रोत क्षेत्र में मजदूरों की कमी हुई।
(B) आर्थिक प्रभाव
हरित क्रांति के कारण भारत के आर्थिक गतिविधियों पर जबड़दस्त प्रभाव पड़ा है जैसे-
(1) सिंचाई सुविधाओं में विस्तार:-
हरित क्रांति के कारण सिंचाई सुविधाओं का जबड़दस्त विस्तार हुआ है। विश्व की सबसे बड़ी नहर प्रणाली इंदिरा गांधी नहर तथा शारदा नहर हमारे देश में है। इसी तरह ट्यूबेल, कूँआ, तालाब जैसे सिंचाई साधनों का विकास हुआ लेकिन परम्परागत सिंचाई साधनों पर इसका नाकारात्मक प्रभाव पड़ा। जैसे- रेहड़, लाठा-कूड़ी, करिंग जैसे सिंचाई साधन विलुप्त हो रहे है।
(2) फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि:-
हरित क्रांति के कारण फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है। जैसे 1991 में खाद्यान्न का कुल उत्पादन 51 मिलियन टन हुआ करता था जो आज बढ़कर 285 (2017-18) मिलियन टन को पार कर चुका है।
हरित क्रांति के कारण उत्पादकता में भी बढ़ोतरी हुई है। जैसे- 1981-82 में चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1300 kg था जो बढ़कर 2200 kg/हेक्ट० हो चुका है। इसी बीच 1981-82 में गेहूं का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1696 kg हुआ करता था जो अब बढ़कर 2900 kg/हेक्ट० हो चुका है।
(3) दलहन एवं तेलहन के भूमि तथा उत्पादन में कमी:-
हरित क्रांति के कारण तेलहन और दलहन पर नाकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जैसे- तेलहन और दलहन वाले भूमि पर किसान खाद्यान्न फसल का उत्पादन करने लगे है जिसके कारण इसके सापेक्षिक उत्पादन में कमी आती है। तेलहन और दलहन का बढ़ता हुआ कीमत इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।
(4) हरित क्रांति के प्रथम चरण में गेहूँ और आलू के उत्पादन पर साकारात्मक प्रभाव पड़ा था लेकिन चावल पर इसका नाकारात्मक प्रभाव देखा गया। इसी के मद्देनजर दूसरे चरण में चावल के कृषि को अधिक महत्व दिया गया।
(5) कृषि भूमि में तेजी से विस्तार:-
हरित क्रांति के कारण कृषि भूमि का तेजी से विस्तार हुआ है।
(6) गन्ना के क्षेत्र एवं उत्पादन में कमी:-
हरित क्रांति ने नकदी फसल को भी प्रवाभित किया है। जैसे- उ० भारत के प्रसिद्ध गन्ना पेटी वाले क्षेत्र में खाद्यान्न फसलों का घुसपैठ हो जाने के कारण उ० भारत में गन्ना है उत्पादन में कमी आयी है और यह पेटी धीरे-2 द० भारत की ओर विस्थापित होते जा रही है।
(7) कृषि और पशुपालन के बीच सह-संबंध में कमी:-
हरित क्रांति में उन्नत बीज का प्रयोग किया जाता है जिसका डण्ठल छोटा होता है जिसके कारण पशुओं के लिए पर्याप्त चारा प्राप्त नहीं हो पाती है। किसान खेती का कार्य ट्रैक्टर से करते हैं। इसलिए किसान श्रम करने वाले पशुओं का उपयोग नहीं कर पाते हैं जिनके कारण कृषि और पशुपालन के बीच सह-संबंध कमजोर हुआ है।
(8) कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा:-
हरित क्रांति के कारण कृषि और विभिन्न प्रकार के उद्योगों के बीच में सह-संबंध और मजबूत हुआ है। जैसे- किसान बड़े पैमाने पर ट्रेक्टर, उर्वरक, तकनीक, ऊर्जा इत्यादि का प्रयोग करते हैं जिसके कारण यहाँ कृषि उपकरण निर्माण करने वाले कई कल कारखानों का विकास हुआ। पेट्रो रसायन पर आधारित कई बड़े-2 तेल शोधन कारखाने, उर्वरक संयंत्र का विकास हुआ। कई कुटीर एवं लघु उद्योगों को खासकर चावल मील, गेहूँ मील, बेकरी उद्योग को कच्चा माल मिलने लगा।
(9) परिवहन एवं व्यापार में वृद्धि:-
हरित क्रांति के कारण परिवहन एवं व्यापार में भी वृद्धि हुई। जैसे- पंजाब और हरियाणा में सड़कों का जाल बिछ चुका है। भारत हरित क्रांति के पहले खाद्यान्न आयातक देश था। अब खाद्यान्न निर्यातक देश के रूप में बदल चुका है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है।
(10) सेवा क्षेत्र का तेजी से विस्तार:-
हरित क्रांति के आगमन से किसानों के बीच में जो समृद्धि आई जिसके कारण भारत में तेजी से शिक्षा, बैंकिंग, प्रबंधन, वित, वाणिज्य, इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे सेवा क्षेत्र का तेजी से विस्तार हो रहा है।
निष्कर्ष:
इस तरह उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि हरित क्रांति वास्तव में एक क्रांतिकारी योजना है तभी तो इसने सामाजिक एवं आर्थिक सभी पहलुओं को प्रभावित किया है। हरित क्रांति के कारण जो नाकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहे हैं, उसे अल्पकालिक माना जाना चाहिए और उससे भारतीय संविधान तथा भारत के सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के दायरे में रहकर उससे निपटने का प्रयास किया जाना चाहिए।