Unique Geography Notes हिंदी में

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Remote Sensing and GIS

19. Classification of Aerial Photograps (वायु फोटोचित्रों का वर्गीकरण)

19. Classification of Aerial Photograps

(वायु फोटोचित्रों का वर्गीकरण)



Classification of Aerial

वायु फोटोचित्रों का वर्गीकरण

      वायु फोटोचित्रों का वर्गीकरण कई मापदण्डों के आधार पर किया गया है। इनमें प्रमुख मानदण्ड मापनी, झुकाव, क्षेत्र विस्तार, फिल्म तथा स्पेक्ट्रम क्षेत्र विस्तार इत्यादि हैं।

A. मापनी के आधार पर (On the Basis of Scale):-

      मापनी के आधार पर वायु फोटोचित्रों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) वृहत मापनी पर निर्मित फोटोचित्र (1/5000 एवं 1/20000)

(ii) मध्यम मापनी पर निर्मित फोटोचित्र (1/20000 एवं 1/50000)

(iii) लघु मापनी पर निर्मित फोटोचित्र (1/50000 से अधिक)

     आवश्यकतानुसार मापनी को परिवर्तित भी किया जा सकता है।

B. झुकाव के आधार पर (Based on Tilt):-

     जिन फोटोचित्रों को फोटो विश्लेषण तथा मानचित्रण के लिये उपयोग किया जाता है। उन्हें कैमरा अक्ष की दिशा के अनुसार तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।

(i) ऊर्ध्वाधर फोटोचित्र (Vertical Photograph):-

      वायुयान द्वारा उड़ान दिशा में कैमरे सिद्धान्त लम्बवत् रखकर लिये गये वायु फोटोचित्रों को ऊर्ध्वाधर फोटोचित्र कहते है। यद्यपि सिद्धान्त रूप में ऐसे वायु फोटोचित्र खींचते समय कैमरे का अक्ष धरातल पर ठीक लम्बवत् होना चाहिए परन्तु व्यवहार में सदैव ऐसा कर पाना संभव नहीं होता है। अतः यदि कैमरे का अक्ष दशा से 2-3 अंश कम या अधिक हो तो भी प्राप्त फोटोचित्रों को ऊर्ध्वाधर मान लिया जाता है। इस प्रकार के फोटोचित्रों में धरातल की योजना (Plan), दृश्य ऊपर से देखे गये दृश्य के समान होता है। वायु फोटोचित्रों से मानचित्रण करने के लिए इसी प्रकार के फोटोचित्रों का उपयोग करते हैं।

(ii) तिर्यक फोटोचित्र (Oblique Photographs):-

      तिर्यक फोटोचित्र खींचने के लिए वायुयान में कैमरे के अक्ष को धरातल की दिशा की ओर नत दिशा में झुका दिया जाता है। इस प्रकार के फोटोचित्रों में धरातलीय विवरणों के पार्श्व-दृश्य दिखाई देते हैं। वायु कैमरे के अक्ष झुकाव से लिये गये फोटोचित्रों को तिर्यक फोटोचित्र कहते हैं। इस प्रकार के फोटोचित्र भूमि पर बहुत बड़े क्षेत्र को तय करते हैं परन्तु विवरणों की शुद्धता एवं स्पष्टता केंद्र से दूर जाने पर कम होती जाती है।

(iii) क्षितिज अथवा धरातलीय फोटोचित्र (Horizontal for Terrestrial Photograph):-

             क्षितिज अथवा घरातलीय वायु फोटोचित्रों को लेने के लिए कैमरे के अक्ष को सीधे क्षितिज तल के समान लाया जाता है। इनके द्वारा केवल ऊँचाई दृश्य प्रस्तुत किया जाता है। क्षितिज फोटोचित्र सामान्य अच्छे कैमरे से भी लिये जा सकते हैं जिनका उपयोग सहायक रूप से उर्ध्वाधर फोटोचित्रों के विश्लेषण के लिए किया जाता है। क्षेत्रीय अध्ययनों में इनका भी विशेष महत्व है। विशेष रूप से भूगर्भिक, वानिकी तथा भूआकृतिक अध्ययनों में परिच्छेदिकाओं के लिये इनकी आवश्यकता होती है।

C. कैमरा इकाई के आधार पर (On the Basis of Camera Unit):-

     दो या तीन कैमरों को एक कैमरा इकाई बनाया जाता है तथा उपरोक्त सभी प्रकार की वायु फोटोग्राफी एक साथ की जाती है। इस आधार पर वायु फोटोग्राफी के निम्न दो प्रकार हैं-

(i) अभिसारी फोटोचित्र (Convergent Photogrphy):-

     अभिसारी चित्र लेने एके लिये वायुयान में दो कैमरे प्रयोग किये जाते हैं जो एक ही क्षेत्र अथवा दृश्य के दो अलग तिर्यक फोटोचित्र एक साथ खींचते हैं। इस प्रकार एक ही समय व एक ही मिशन में अलग-अलग कैमरों के द्वारा दो फोटोचित्र लिये जाते हैं। उड़ान की दिशा में स्थित अगले कैमरे का फोटोचित्र पिछला तथा पिछले कैमरे का फोटोचित्र अगला (Forward) कहलाता है।

(ii) त्रिपदीय फोटोचित्र (Trimetrogon Photograph):-

      ट्रिमेट्रोगन का अर्थ है त्रिपदीय अर्थात् तीन रूप से कार्य होना। इसमें कैमरा इकाई में तीन कैमरे एक साथ प्रयोग किये जाते हैं। केंद्र में स्थित कैमरा धरातल के ऊर्ध्वाधर चित्रों को लेता है जबकि अलग-बगल के कैमरे क्षितिज तक के तिर्यक वायु फोटोचित्र खींचते हैं। इस प्रकार त्रिपदीय प्रणाली में दायें क्षितिज से बायें क्षितिज तक का समस्त क्षेत्र अंकित हो जाता है। यद्यपि मानचित्रण के दृष्टिकोण से तिर्यक फोटोचित्रों को अनुस्थापन (Orientation) करने में बहुत सहायता मिलती है। इस प्रकार का उपयोग लघु मापनियों पर निर्मित टोह (Reconnaissance) लेने वाले मानचित्रों का तुरंत निर्माण करना होता है।

D. कोणीय विस्तार के आधार पर (On the Basis of Angular Coverage):-

     वायु फोटोचित्रों का अगला वर्गीकरण कोणीय विस्तार के आधार पर किया गया है। कोणीय विस्तार को एक कोण के रूप में परिभाषित किया गया है। यह लेंस के अग्र नोडल (Nodal) बिन्दु से होकर गुजरने वाले किरणों के शंकु का शीर्ष कोण है।

      निगेटिव चौखट का विकर्ण, लेंस के पृष्ठ नोड़ पर अंतरित करता है। इस प्रकार निगेटिव तल तथा लेंस के मध्य के सम्बन्ध को कोणीय विस्तार कहा जाता है। कोणीय विस्तार को निम्न रूप से वर्गीकृत किया गया है-
(i) संकीर्ण कोण (Narrow Angle)-

        संकीर्ण कोण का विस्तार 50° से कम होता है।

(ii) सामान्य कोण (Normal Angle)-

        इसका कोणीय विस्तार 60° होता है। इनका आकार 18×18 सेमी व 23×23 सेमी. तथा फोकल दूरी क्रमशः 31 व 30 मिमी. होती है।

(iii) वृहत कोण (Wide Angle)-

        वृहत कोण का विस्तार 90° होता है। इसका आकार क्रमशः 18×18 सेमी. व 23 × 23 संमी. तथा फोकल दूरी 11.5 व 15 मिमी. है।

(iv) अति वृहत कोण (Super Wide or Ultra Wide Angle)-

       इसका कोणीय विस्तार 120° होता है जिसके फोटोचित्र का आकार क्रमशः 18×18 सेमी. व 23×23 सेमी. तथा फोकल दूरी 70 मिमी. व 88 मिमी. होती है।

E. फिल्म के आधार पर (On the Basis of Film):-

        वायु फोटोग्राफी में प्रयोग की जाने वाली फिल्मों के आधार पर वायु फोटोग्राफ निम्न प्रकार के होते हैं-

(1) श्याम एवं श्वेत पेंक्रोमेटिक फोटोग्राफी

(ii) श्याम एवं श्वेत अवरक्त फोटोग्राफी

(iii) रंगीन फोटोग्राफी

(iv) रंगीन अवरक्त/आभासी रंगी फोटोग्राफी


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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