Unique Geography Notes हिंदी में

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Remote Sensing and GIS

5. भू-स्थैतिक उपग्रह,  सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह एवं ध्रुव कक्षीय उपग्रह

5. भू-स्थैतिक उपग्रह, सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह एवं ध्रुव कक्षीय उपग्रह

(The Geostationary Satellite,  Sun-Synchronous Satellite and Polar Orbit Satellite)


भू-स्थैतिक उपग्रह, सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह एवं ध्रुव कक्षीय उपग्रह

भू-स्थैतिक उपग्रह (Geostationary Satellite):-

           भू-स्थैतिक उपग्रहों 36000 किमी० की ऊँचाई पर प्रक्षेपित किया जाता है तथा इनकी गति पृथ्वी की गति के समान होती है। इस प्रकार पृथ्वी के घूर्णन काल से मेल खाने वाले वेग से गतिमान उपग्रह को भू-स्थैतिक (Geostationary) उपग्रह कहते हैं। इनका कोणीय वेग पृथ्वी के कोणीय वेग के समान होता है। इनकी कक्षा वृत्ताकार होती है जो पश्चिम से पूर्व की ओर गति करते हुये 24 घंटे में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा कर लेते हैं।

भू-स्थैतिक उपग्रह
Geostationary Orbit

              समय की इतनी ही अवधि में पृथ्वी अपने ध्रुवीय अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती हुई एक चक्कर पूरा कर लेती है। इस प्रकार पृथ्वी के घूर्णन (Rotation) पथ व उपग्रह के परिक्रमण (Revolution) की दिशा तथा समय अन्तराल समान होने के कारण ये पृथ्वी के सापेक्ष स्थिर प्रतीत होते हैं। यही कारण है कि इन्हें भू-स्थैतिक (Geostationary) भू-उपग्रह कहा जाता है। स्थैतिक (Stationary) होने के कारण ये सम्पूर्ण गोलार्द्धीय डिस्क को देख सकते हैं। इनका विस्तार (Coverage) 70°N से 70°S अक्षांश तक सीमित होता है तथा एक उपग्रह पृथ्वी का 1/2 भाग को ढक सकता है। समस्त पृथ्वी को तय करने के लिये तीन भू-स्थैतिक उपग्रहों की आवश्यकता होती है।

भू-स्थैतिक उपग्रह
Earth Coverage by Geostationary Satellite

             ज्योस्टेशनरी भू-उपग्रह दूर संचार सेवाओं एवं मौसम विज्ञान से सम्बन्धित जानकारियों के लिये उपयोग किये जाते हैं। वर्तमान समय में भूमध्य रेखा के ऊपर 36000 किमी० से अधिक दूरी पर भूस्थैतिक उपग्रह स्थित हैं।

प्रमुख भू-स्थैतिक (Geostationary) उपग्रह है-

(i) GOES-E (संयुक्त राज्य अमेरिका),

(ii) GOES-W (संयुक्त राज्य अमेरिका),

(iii) METEOSA (यूरोपीय अन्तरिक्ष संस्था),

(iv) GOMS (रूस),

(v) GMS (जापान) तथा

(vi) INSAT (भारत) 

सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह (Sun-Synchronous Satellite):-

              सूर्य तुल्यकालिक उपग्रहों को ध्रुवीय कक्ष के नजदीक वाले भू-उपग्रह भी कहते हैं। इनका कक्षीय पक्ष ठीक ध्रुव से न होकर ध्रुव के नजदीक से गुजरता है। अधिकतर सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह ठीक 10:30 बजे भूमध्य रेखा को पार करते हैं। इस समय सूर्य का कोण कम होता है। जिसके परिणामस्वरूप धरातलीय उच्चावच की छाया परिलक्षित होती है। दिन के अतिरिक्त सूर्य-तुल्यकालिक उपग्रह रात्रि में भी तापीय बिम्ब लेने में सक्षम होते हैं। जो भाग उपग्रह पथ के रात्रि में पड़ते हैं, उनके बिम्ब रात्रि में लिये जा सकते हैं। उनकी ऊँचाई इतनी होती है कि उपग्रह पृथ्वी के सम्पूर्ण भाग को तय कर सकता है तथा प्रत्येक अक्षांश रेखा को स्थानीय समय के अनुसार दो बार पार करता है। ध्रुवीय कक्ष में ये उपग्रह ऐसे गति करते हैं कि वे प्रत्येक बार भूमध्य रेखा को एक ही स्थानीय समय पर पार कर सकते हैं। चूँकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है इसलिये उपग्रह की कक्षा का धरातलीय मार्ग सूर्य की दिशा में अर्थात् पूर्व से पश्चिम की ओर की निरन्तर आगे बढ़ता जाता है। इस प्रकार इन भू-उपग्रहों की सहायता से निरन्तर सम्पूर्ण पृथ्वी का अवलोकन किया जा सकता है तथा ये सामयिक आधार (Periodic Basis) पर पुनरावृत्तिक (Repitative) कवरेज देते रहते हैं।

सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह
Sun-Synchronons Orbits (Landsat)

         उपरोक्त चित्र में किसी सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह की कार्यशैली को दर्शाया गया है। उपग्रह धरातल से 900 किमी० की ऊँचाई पर वृत्ताकार ध्रुवीय कक्षा में चक्कर लगाता है। उपग्रह का कक्षा पथ भूमध्य रेखा पर 98.22° का कोण बनाता है। यह 103 मिनट में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरा कर लेता है। इस प्रकार 24 घंटे में सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह पृथ्वी के 14 बार परिक्रमा करते हैं। ध्रुव कक्षीय एवं सूर्य तुल्यकालिक उपग्रहों में लेडसेट, स्पाट तथा आई. आर. एस. प्रमुख हैं।

स्वाथ (Swath):-

          यहाँ पर यह भी समझना आवश्यक है कि उपग्रह का संवेदक किस प्रकार धरातल के सफर को तय करता है। जैसे ही कोई भू-उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा करता है तो संवेदक द्वारा पृथ्वी के धरातल का कुछ भाग तय किया जाता है। इस तय किये गये पट्टिका को उपग्रह का स्वाथ (Swath) कहते हैं।

          अलग-अलग भू-उपग्रहों में स्वाथ की चौड़ाई अलग-अलग 10 किमी० से 100 किमी० के मध्य रहती है। जब भू-उपग्रह जैसे कि लैण्डसेट (Landsat) पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं तो इनके संवेदक द्वारा एक बार में घरातल की 158 किमी० चौड़ी पट्टी को कवर किया जाता है। इस प्रकार एक दिन में केवल 14 पट्टियों का ही संवेदन हो पाता है तथा इन क्रमोत्तर पट्टियों के मध्य का भाग बिना कवर किये ही छूट जाता है। यह स्थिति अलग-अलग अक्षांशों पर भिन्न-भिन्न होती है। भूमध्य रेखा पर दो उत्तरोत्तर परिक्रमणों के धरातलीय मार्गो के बीच की दूरी लगभग 2760 किमी० तथा 40° उ० अक्षांश पर लगभग 2100 किमी० होती है। यह दूरी उच्च अक्षांशों की ओर निरन्तर कम होती जाती है जिससे अतिव्यापन (Overlap) बढ़ता जाता है। भूमध्यरेखा पर अतिव्यापन (Overlap) की मात्रा 14% तथा 81° उत्तरी अक्षांश पर सबसे अधिक 85% होती है। संवेदन पट्टियों के निरन्तर पश्चिम की ओर खिसकने से अक्षांशों को छोड़कर पृथ्वी के शेष भागों को 18 दिन में कवर कर देता है।

स्वाथ
Swath-Area Sensed by a Satellite in One Pass

            सभी सुदूर संवेदन संसाधन उपग्रहों (Resource Satellite) को सूर्य तुल्यकालिक श्रेणी में रखा गया है। इनमें से कुछ लैण्डसेट (Landsat), स्पॉट (Spot), आई. आर. एस. (IRS), नोआ (NOAA), सीसैट (SEASAT), टीरोंस (Tiros, एच.सी.एम.एम. (HCMM), स्काइलैब (Skylab), अन्तरिक्ष सटल (Space Shuttle) इत्यादि हैं। इन भूउपग्रहों का उपयोग धरातल में अतिरिक्त आकाशीय पिण्डों को देखने के लिए भी किया जा सकता है। जिस पर वायुमण्डल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। भू-उपग्रहों द्वारा पृथ्वी का सिंहावलोकन सामयिक रूप से किया जाता है जो कम खर्च पर प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन (Management) के लिये बहुत उपयोगी होते हैं। प्रारम्भ में इनके विकास तथा निर्माण पर अत्यधिक खर्च होता था परन्तु पृथ्वी के पुनरावृत्ति सिंहावलोकन से अन्तरिक्षयान (Space Craft) सेवायें वायुयान आधारित सुदूर संवेदन की तुलना में मितव्यायी होते हैं। अन्तरिक्ष आधारित प्लेटफार्म को निम्न तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:-

(i) निम्न उँचाई वाले उपग्रह (Low Altitude Satellite)

(ii) अधिक ऊँचाई वाले ज्योस्टेशनरी उपग्रह (High Altitude Geostationary Satelles)

(iii) अन्तरिक्ष शटल या अन्तरिक्ष यान (Space Shuttle)

ध्रुव कक्षीय उपग्रह (Polar Orbit Satellite):-

            ध्रुव कक्षीय एक ऐसी कक्षा पथ है जो 80° से 100° कोण पर झुका रहता है। 90° से अधिक झुकाव से अभिप्राय यह है कि उपग्रह की गति (Motion) पश्चिम दिशा की ओर होना है। ऐसा इसलिये किया गया है क्योंकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है तथा पूर्व दिशा की ओर ऊर्जा की कम आवश्यकता होती है। ध्रुव कक्षीय उपग्रह सम्पूर्ण पृथ्वी का अवलोकन करने में असमर्थ होते हैं। उपग्रहों को 600 किमी० से 1000 किमी० की ऊँचाई प प्रतिनिधिक रूप से स्थापित किया जाता है

प्रश्न प्रारूप

Q. स्थैतिक उपग्रह एवं सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह पर प्रकाश डालें।

(Throw light on the Geostationary Satellite and sun-synchronous tellite.)



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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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