Unique Geography Notes हिंदी में

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Human Geography - मानव भूगोल

12. What is species? Classify it. (प्रजाति क्या है? इसका वर्गीकरण कीजिए।)

12. What is species? Classify it.

(प्रजाति क्या है? इसका वर्गीकरण कीजिए।)



     What is species 

     प्रजाति शब्द अंग्रेजी के Race का हिन्दी रूपान्तर है जिसका प्रयोग सर्वप्रथम फ्रॉकस ने 1570 ई. में किया था। Race शब्द इटली के रज्जा से बना है जिसका अर्थ परिवार, वंशानुक्रम अथवा नस्ल है अर्थात् यह एक नस्ल या जन्मजात सम्बन्धों का मानव वर्ग है।

हैडन (Haddon) के अनुसार, “प्रजाति (Race) शब्द का अर्थ ऐसे मानव वर्ग विशेष से है, जिसकी सामान्य विशेषताएं आपस में समरूपी हों।” यह एक जैविक नस्ल है जिसके प्राकृतिक लक्षणों का योग दूसरी प्रजाति के प्राकृतिक लक्षणों के योग से भिन्न होता है।

प्रो. ब्लाश ने प्रजाति की व्याख्या इस प्रकार की है.” मानव प्रजाति का वर्गीकरण मानव शरीर की आकृति एवं शारीरिक लक्षणों के आधार पर किया जाता है।”

     अतः यह कहा जा सकता है “प्रजाति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जिनमें एक से शारीरिक लक्षणों का संयोग निश्चित रूप से पाया जाता है और जिसे आनुवंशिक शारीरिक लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है।”

क्रोबर के अनुसार, “प्रजाति एक मान्य जैविक संकल्पना है। यह एक समूह है जो आनुवंशिकता द्वारा जुड़ा हुआ है तथा एक नस्ल या आनुवंशिक विभेद या उपजाति द्वारा सन्तान को प्राप्त होता है। यह एक मान्य सामाजिक, सांस्कृतिक संकल्पना नहीं है।”

     इन्होंने कहा “हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मनुष्य की प्रजातियां बनने में कम से कम लाखों वर्ष अवश्य लगे होंगे। किन कारकों ने उनमें अन्तर उत्पन्न किया, पृथ्वी के किस भाग पर प्रत्येक प्रजाति ने अपनी विशेषताओं को ग्रहण किया, वे आगे कैसे विभक्त हुईं, उनको जोड़ने वाले कौन से तत्व थे और विभिन्न प्रजातियां पुनः कैसे मिश्रित हुई- इन सब विषयों के उत्तर अभी तक अपूर्ण हैं।”

प्रजातियों के वर्गीकरण के अभिलक्षण

      मानवशास्त्रियों ने प्रजातियों का वर्गीकरण मानव की शारीरिक बनावट के विशिष्ट लक्षणों (जैसे त्वचा का रंग, खोपड़ी की लम्बाई, जबड़ों का उभार, शरीर का कद, चेहरे की आकृति, आंखों की बनावट आदि) के आधार पर किया है। किसी ने एक आधार पर अधिक जोर दिया है तो किसी ने अन्य आधार पर।

डॉ. क्रोबर का कथन है कि “मानव प्रजातियों का वर्गीकरण करते समय शारीरिक बनावट के केवल एक या दो लक्षणों को ही प्रजातियों के वर्गीकरण का आधार नहीं मानना चाहिए। प्राकृतिक आधार तथा सच्चा वर्गीकरण वही हो सकता है जिसमें अधिक से अधिक लक्षणों को आधार बनाया जाता है, जो अधिक महत्वपूर्ण हैं उन पर कम महत्वपूर्ण लक्षणों की अपेक्षा, अधिक ध्यान दिया जाता है।” यह इसलिए आवश्यक है कि कोई एक लक्षण प्रायः कई विभिन्न प्रजातियों में मिल जाता है। जैसे एक ही त्वचा के रंग में अनेक वर्ण मिल जाते हैं।

       जिन शारीरिक लक्षणों के आधार पर प्रजातियों का निर्धारण किया जाता है उन्हें दो श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं।

1. बाह्य, ऊपरी या अनिश्चित शारीरिक लक्षण, और

2. आन्तरिक कंकाल, संरचनात्मक अथवा निश्चित लक्षण।

        बाह्य लक्षण वे होते हैं जो बिना किसी यंत्र की सहायता से लक्षित होते हैं। इनमें त्वचा का रंग, बालों की बनावट, शारीरिक कद, मुखाकृति, नेत्रों का रंग और आकृति, होंठ का आकार आदि आते हैं।

      आन्तरिक लक्षण वे होते हैं, जो ऊपर से दिखाई नहीं देते, किन्तु जिन्हें यंत्रों- मानव मापक यंत्र (Anthropometer), वर्नियर कैलीपर और कम्पास से नापा जा सकता है। इनके अन्तर्गत जो लक्षण सम्मिलित किए जाते हैं उनमें कपाल धारिता, नासिका सूची, रक्त समूह और शरीर की हड्डियों के ढाँचे हैं।

प्रजातियों का वर्गीकरण (CLASSIFICATION OF RACES)

     मानवशास्त्रियों ने प्रजातियों का वर्गीकरण मानव की शारीरिक बनावट के विशिष्ट लक्षणों (जैसे-त्वचा का रंग, खोपड़ी की लम्बाई, जबड़ों का उभार, शरीर का कद, बाल, चेहरे की आकृति, आंखों की बनावट, आदि) के आधार पर किया है।

हैडन का वर्गीकरण (Haddon’s Classification):-

         हैडन ने 1924 में बालों, कद, त्वचा, रंग तथा खोपड़ी के आधार पर मानव प्रजातियों को वर्गीकृत किया है। उन्होंने बालों के आधार पर निम्नलिखित तीन प्रकार बताए-

(1) ऊनी या लच्छेदार बाल,

(2) लहरदार बाल,

(3) सीधे बाल।

       ऊनी बाल वाली प्रजातियों के बाल ऊन की भांति लच्छेदार होते हैं। बाल की ऊर्ध्वाधर काट 40 से 50 तक होती है। त्वचा का रंग काला, कद नाटा तथा सिर लम्बा होता है। ऐसे लक्षणों वाली प्रजातियां नीग्रीटो तथा नीग्रो हैं, जो दक्षिणी एवं मध्य अफ्रीकी देशों तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया में निवास करती हैं। लहरदार बाल वाली प्रजातियों के बालों की ऊर्ध्वाधर काट 60 से 70 तक होती है। त्वचा के रंग के आधार पर इन्हें दो उपवर्गों में बांटा जाता है-

(i) इसमें आस्ट्रेलायड प्रजाति को सम्मिलित किया जाता है, जिनका रंग काला, बालों की काट 60 तक, कद मध्यम तथा सिर लम्बा होता है। बाल लगभग लहरदार होते हैं। दक्षिण भारत, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, दक्षिण-पूर्वी एशिया के द्वीपों के आदिवासी इसी प्रजाति के हैं।

(ii) इस वर्ग में भूरे, कत्थई तथा श्वेत वर्ण की काकेशियन प्रजातियाँ जैसे- भूमध्यसागरीय, नार्डिक एवं अल्पाइन सम्मिलित की जाती हैं। भूमध्यसागरीय गहरे भूरे रंग की, नार्डिक कत्थई तथा अल्पाइन श्वेत रंग की होती हैं। भूमध्यसागरीय तथा नार्डिक मध्यम सिर वाली तथा अल्पाइन चौड़े सिर की होती हैं। दक्षिण-पूर्वी यूरोप, उत्तर भारत, ईरान, अरब, अफगानिस्तान, उत्तरी अफ्रीका और आरमीनिया की प्रजातियाँ इस वर्ग के अन्तर्गत आती हैं। नार्डिक प्रजाति उत्तर-पश्चिमी यूरोप में मिलती हैं। ऐनू, अफगान, अमेरिंड, पेरियन, सेमाइट, आदि प्रजातियाँ इसी का प्रतिनिधित्व करती हैं।

      हेडन ने अपने वर्गीकरण में विश्व की प्रजातियों को निम्नलिखित छः वर्गों में रखा है। उसका यह वर्गीकरण 1924 से ही निरन्तर विशेष मान्य रहा है। उसके अनुसार ये प्रजातियाँ निम्न हैं:

(1) भूमध्यसागरीय-

      ये लम्बे सिर, भूरी से श्वेत त्वचा, पतली नाक और लहरदार बाल वाले होते हैं। इनका कोई विशेष निवास-स्थान नहीं होता, वरन् ये उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों से शीतोष्ण प्रदेशों तक में मिलते हैं।

(2) एल्पाइन-

      ये शीतोष्ण कटिबन्ध में रहने वाले हैं जो सिर चौड़े तथा सीधे या घुंघराले बाल और भूरी या श्वेत चमड़ी वाले होते हैं।

(3) नीग्रिटो-

      ये अधिक लम्बे सिर, चौड़ी नाक, गहरा काला रंग और घुंघराले बाल वाले होते हैं। ये उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में निवास करते हैं।

(4) मंगोल-

      ये पीले रंग, सिर पर कम बाल, छोटे से मध्यम कद तथा छोटी आंखों वाले होते हैं, जो पूर्वी एशिया में रहते हैं।

(5) पुरा द्राविड़ियन-

      लम्बे सिर और काली त्वचा वाले लोग होते है।

(6) काकेशियन-

      जिन्हें भूमध्यसागरीय, नॉर्डिक व एल्पाइन तीन श्रेणियों में बाँटा गया है। यह लम्बे कद, गौरे वर्ण, लहरदार बाल एवं नीली व हरी आंख की पुतली वाले होते हैं।

टेलर का वर्गीकरण (Taylor’s Classification)-

      टेलर ने 1919 ई. में जलवायु चक्र जातियों के विकास का प्रवास सिद्धान्त के आधार पर मानव प्रजातियों का वर्गीकरण करते हुए स्पष्ट किया कि प्रारम्भ की पाँच मानव प्रजातियों (नीग्रो, नीग्रिटो, आस्ट्रेलाइड, भूमध्यसागरीय एवं एल्पाइन मंगोलियन) की उत्पत्ति मध्य एशिया में महाहिम युग के पूर्व हुई थी और वहीं से ये जातियाँ अन्य महाद्वीप में फैली। टेलर ने बालों की बनावट तथा शीर्ष सूचकांक के आधार पर 7 मानव प्रजातियाँ बताई-

(1) नीग्रिटो,

(2) नीग्रो,

(3) भूमध्य सागरीय,

(4) आस्ट्रेलाइड,

(5) नॉर्डिक,

(6) एल्पाइन,

(7) मंगोलाइड।

(1) नीग्रिटो (Negrito):–

       इस प्रजाति का रंग लाल चाकलेटी से लेकर काला कत्थई तक होता है। इनका डील-डौल नाटा (5 फुट से कम) होंठ काफी मोटे, नाक चौड़ी और चपटी होती है। इनके बाल चपटे, फीते के समान और घने होते हैं। वे आपस में लिपटकर गांठ का निर्माण करते हैं। इनमें जबड़े और दांत आगे निकले होते हैं। इस समय कुछ ही हजार नीग्रिटो जीवित हैं। उनमें अन्य जातियों के रक्त का मिश्रण हो गया है। नीग्रिटो प्रजाति के लोग इस समय श्रीलंका, मलेशिया, फिलीपीन, इण्डोनेशिया, लूजोन और न्यूगिनी के पहाड़ी बन प्रदेशों में रहते हैं। इनमें बड़े समूह युगाण्डा, कांगो बेसिन, कैमरून, श्रीलंका, अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह, मलाया, फिलीपाइन, आदि में पाए जाते हैं।

(2) नीग्रो (Negro):-

      इस प्रजाति का सिर अत्यन्त लम्बा होता है। इनकी त्वचा का रंग प्रायः काला एवं चाकलेटी होता है। इनके बाल लम्बे ऊन जैसे होते हैं। सिर का सूचकांक 70 से 72 तक होता है। इनकी औसत ऊँचाई 130 सेण्टीमीटर होती है। नीग्रो प्रजाति दो स्थानों पर मिलती है- पुरानी दुनिया के दोनों किनारों पर।

     इनमें पहली पश्चिमी अफ्रीका में सुडान और गिनी तट पर और दूसरी पापुआ या न्यूगिनी में मिलती है। पूर्व ऐतिहासिक युग में नीग्रो दक्षिण यूरोप और एशिया में भी रहते थे। भारत में कोल, श्रीलंका में बेद्दा इनके प्रतीक हैं।

(3) भूमध्यसागरीय काकेसाइड्स (Mediterranean Caucasoids):-

     इस प्रजाति का सिर लम्बा, नाक अण्डाकार, बाल घुंघराले और जबड़े निकले होते हैं। आइबेरियन प्रजाति सुडौल शरीर वाली और जैतून एवं तांबे के रंग की होती है। सेमाइट प्रजाति लम्बी और सुन्दर होती है और उनकी नाक सुदृढ़ होती है। यह प्रजाति सभी बसे हुए महाद्वीपों के बाहरी किनारों पर मिलती है। इसमें यूरोप के पुर्तगीज, अफ्रीका के मिसी और आस्ट्रेलिया के माइक्रोनेसियन सम्मिलित हैं। उत्तरी अमेरीका के इरोक्वाइस और दक्षिणी अमेरीका के तूपी भी इसी श्रेणी में आते हैं।

(4) आस्ट्रेलायड (Australoid):-

      इस प्रजाति का सिर लम्बा और उभरा हुआ होता है। बाल पूर्णतः घुंघराले और त्वचा का रंग गहरे काले से लेकर कत्थई तथा हल्का पीला होता है। जबड़े कुछ निकले हुए और नाक साधारण रूप से चौड़ी होती है। यह प्रजाति आस्ट्रेलिया और दक्षिणी भारत के वनों में मिलती है। ब्राजील के डौंस और कूटो तथा पूर्वी और मध्य अफ्रीका की बन्टू जाति इसी की प्रतीक हैं।

(5) नॉर्डिक (Nordic):-

       यह प्रजाति मध्यम लम्बाई और चौड़े सिर, लहरदार बाल, चपटा चेहरा और गरुड़वत् नाक वाली होती है। अधिकांश नॉर्डिक लोगों की चमड़ी हल्के भूरे रंग से गुलाबी रंग की होती है। उत्तरी यूरोपियनों की चमड़ी गोरी से गुलाबी होती है। यह प्रजाति भूमध्यसागरीय किनारों, न्यूजीलैण्ड, आस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरीका, आदि देशों में प्रवासित हो गई है।

(6) एल्पाइन (Alpine):-

      यह प्रजाति चौड़े सिर वाली होती है, चेहरे का ढाँचा सीधा होता है, नाक साफ तौर से संकीर्ण और बाल सीधे होते हैं और रंग भूरे से गोरा तक होता है। एल्पाइन जाति की पश्चिमी शाखा जिसमें स्लेव, आरमेनियन, अफगान, आदि सम्मिलित हैं, रंग में भूरे होते हैं, परन्तु पूर्वी शाखा के लोग अर्थात् फिन, मैगीआर्स, मंचूज और सीवक्स कुछ पीलापन लिए होते हैं।

(7) मंगोलियन (Mongolions):-

     उत्तर एल्पाइन या मंगोलियन गोल सिर के होते हैं। इनके बाल सीधे और चपटे, चेहरा और जबड़ा नतोदर होता है। नाक पतली और संकरी, रंग हल्का पीला-सा खुमानी रंग का होता है। यह प्रजाति मुख्यतः मध्य एशिया, पूर्वी एशिया में पाई जाती है।

     उपर्युक्त दिए गए वर्णन से स्पष्ट होता है कि यद्यपि मानवशास्त्रियों में प्रजातियों के वर्गीकरण में काफी मतभेद रहा है, किन्तु मोटे तौर पर संसार की प्रजातियों को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

1. श्वेत प्रजाति या कॉकेशायड्स,

2. पीली प्रजातियाँ या मंगोलॉयड्स,

3. काली प्रजातियाँ या नीग्रोयड्स।

      इन मुख्य प्रजातियों के अनेक भेद पाए जाते हैं। संसार के विभिन्न भागों में अनेक प्रजातियाँ मिलती हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार से दिखाया जा सकता है:-

1. काकेशायड्स (Caucasiods):-

     इस प्रकार की प्रजाति को बहुधा श्वेत प्रजाति कहा जाता है, परन्तु वास्तव में इनका रंग पूर्णतया श्वेत नहीं होता अपितु कुछ हल्का लाल होता है। आंख का रंग गहरे हल्के नीले रंग से लेकर भूरे रंग तक पाया जाता है। बालों का रंग मटियाले रंग से लेकर काले रंग का होता है। बाल सीधे लहरदार होते हैं, शरीर पर बाल अधिक होते हैं। होंठ पतले, ठोड़ी सुन्दर होती है। कपाल सूचकांक 80 से अधिक तथा खोपड़ी का घनत्व 1800cc के लगभग होता है। हॉवेल इलियट स्मिथ के अनुसार इस प्रजाति के तीन वर्ग हैं-

(अ) नोर्डिक-

      इस प्रजाति को शारीरिक और मानसिक दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ प्रजाति माना गया है। आंखों का रंग भूग और नीला होता है। सिर माध्यमिक रूप से ऊंचा, ललाट सीधा, नाक छोटी, चेहरा छोटा और अधर पतले होते हैं। बालों का रंग पीला अथवा भूरा, सीधे और लहरदार होते हैं। इस प्रजाति के लोग स्वीडन, नार्वे, ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमेरीका में पाए जाते हैं।

(ब) अल्पाइन-

     सिर की बनावट चौड़ी होती है। सिर ऊँचा, ललाट सीधा, भौहें छोटी तथा कम, कपाल सूचकांक मध्यम, नासा सूचकांक मध्यम, होंठ पतले, त्वचा का रंग हल्का श्वेत तथा लाल, बाल सीधे तथा गहरे भूरे रंग के होते हैं। औसत कद 165 सेमी तथा शरीर पर अधिक बाल होते हैं। यह प्रजाति मध्य यूरोप के देशों में पाई जाती है।

(स) भूमध्यसागरीय-

      इस प्रजाति का कपाल सूचकांक 75 से कम होता है। सिर, लम्बा नीचा या मध्यम, ललाट सीधा, भौंह छोटी, नासा सूचकांक मध्यम, होंठ सामान्य मोटे, आंखों का रंग हल्का तथा गहरा भूरा पाया जाता है। बाल लहरदार या घुंघराले, रंग काला या गहरा भूरा होता है। त्वचा का रंग जैतून के रंग का खाकी भूरा होता है। औसत कद 160 सेमी. होता है। शरीर पर बाल अधिक पाए जाते हैं। यह लोग भारत, स्पेन, पुर्तगाल, दक्षिणी इटली, उत्तरी अफ्रीका, मिस्र आदि देशों में अधिक संख्या में पाए जाते हैं।

2. मंगोलायड्स:-

         इस प्रजाति की उत्पत्ति मध्य एशिया से मानी जाती है। इस जाति के अधिकांश लोग एशिया में ही पाए जाते हैं। इस प्रजाति के मुख्य लक्षण अधखुली आंखें, भारी पलक, रंग पीला, आंखें गहरी भूरी, चेहरा चौड़ा, माथा चौड़ा, कद छोटा होता है। चीन, मंगोलिया, मंचूरिया, कोरिया, मध्य एशिया आदि भागों में पाई जाने वाली प्रजातियाँ इसी प्रकार की हैं।

3. मैलेनेशियन:-

         इस प्रजाति की आंखें तथा त्वचा काली, बाल घुंघराले, भौंहें उभरी हुई, नाक चौड़ी, कद मध्यम और सिर गोलाई लिए होता है। यह प्रजाति दक्षिणी प्रशान्त द्वीपों में पाई जाती है। न्यूगिनी, फिजी आदि द्वीप में आज भी इस प्रजाति के लोग निवास करते हैं।

4. अफ्रीकी नीग्रोइड:-

        इस प्रजाति का स्थान तथा उत्पत्ति का समय आज तक अन्धकारमय है, परन्तु अनुमान है कि इस प्रजाति की उत्पत्ति अफ्रीका तथा ओसीनिया के बीच हुई होगी। यह प्रजाति अफ्रीका में विशेषकर सूडान से दक्षिणी अफ्रीका तक फैली हुई है। इनके बाल काले, ऊनी प्रकार के, नाक चौड़ी, बाल घने, खोपड़ी लम्बी, सिर ऊँचा, ललाट सीधा, होंठ मोटे तथा बाहर निकले हुए होते हैं। औसत कद 170 सेमी. तथा पैर असाधारण होते हैं।

5. माइक्रोनेशियन-पोलीनेशियन:-

         इस प्रजाति के लोग चौड़े सिर वाले होते हैं, किन्तु मध्यम तथा लम्बे सिर वाले व्यक्ति भी काफी संख्या में पाए जाते हैं। इनका सिर ऊँचा, ललाट झुका हुआ, नाक मध्यम या ऊँची उठी हुई, होंठ मोटे, त्वचा का रंग पीला या भूरा, आंखें भूरी, सिर के बाल लहरदार या घुंघराले तथा रंग काला होता है। औसत कद 160 सेमी. होता है तथा शरीर पर बाल कम होते हैं। इनका निवास मैलेनेशियन द्वीप का उत्तरी भाग है।

6. कांगो या मध्य अफ्रीकी पिग्मी:-

      इस प्रजाति का औसत कद 150 सेमी. से कम होता है, यह लोग अफ्रीकी नीग्रोयड और मैलेनेशियन की तुलना में कम काले होते हैं। इनका रंग काला, बाल घने एवं घुमावदार होते हैं।

7. सुदूर-पूर्वी पिग्मी:-

      इस प्रजाति के होंठ मोटे, सिर के बाल ऊनी, शरीर पर बाल कम, त्वचा का रंग भूरा तथा गहरा काला, औसत कद 150 सेमी. होता है। निवास स्थल मिण्डानाओं, लूजन तथा फिलीपीन द्वीप है।

8. आस्ट्रेलॉयड:-

        इस प्रजाति का निवासस्थल ऑस्ट्रेलिया है। सिर लम्बा, ललाट नीचा तथा ढला हुआ होता है। भौंहें बड़ी, नाक चौड़ी, होंठ मोटे, त्वचा का रंग गहरा भूरा, बालों का रंग भूरा होता है। औसत कद 165 सेमी. होता है। यह प्रजाति प्रायः अलग रही है, इसलिए इसके कुछ लक्षण विलक्षणता लिए हुए होते हैं।

9. बुशमैन-होटेनटोट:-

        दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका के कालाहारी मरुस्थल में यह दो प्रकार की प्रजातियाँ पाई जाती है। मस्तक ऊँचा, गाल ढले हुए, चेहरा छोटा तिकोना, नाक चौड़ी उभरी हुई तथा होंठ बाहर की ओर निकले हुए, रंग काला, सिर के बाल घुमावदार होते हैं।

10. एनू (Ainu):-

      यह प्रजाति जापान द्वीपसमूह की आदिम प्रजातियों का प्रतिनिधित्व करती है। इसकी खोपड़ी लम्बी से लेकर मध्यम, ललाट झुका हुआ, भौंहें लम्बी तथा चेहरा मध्यम आकार का होता है। नाक चौड़ी और उभरी हुई, होंठ मोटे, त्वचा का रंग श्वेत अथवा गहरा भूरा, बालों का रंग हल्का भूरा अथवा काला होता है। आंखें काली और कद का औसत 155 सेमी. होता है।

11. वेडॉयड:-

      यह प्रजाति कॉकेशायड प्रजाति की ही शाखा मानी जाती है। एनू, आस्ट्रेलॉयड एवं द्रविडियन प्रजातियों से कई शारीरिक लक्षणों में समानता पाई जाती है। इनका सिर लम्बा एवं संकरा, भौंहे लम्बी होती हैं। चेहरा लम्बा, नाक चौड़ी, होंठ पतले, त्वचा, बाल एवं आँख का रंग क्रमशः गहरा भूरा, काला तथा गहरा भूरा अथवा काला होता है। औसत कद 150 सेमी. होता है।

      विद्वानों की मान्यता है कि मानव समूहों का प्रजातियों में वर्गीकरण कना सर्वथा मनमाना है। इस विभाजन का वास्तविक रूप से कोई महत्व नहीं है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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