8. The Aerial Photography (वायु फोटोग्राफी)
8. The Aerial Photography
(वायु फोटोग्राफी)
वायु फोटोग्राफी एक ऐसा विज्ञान है जिसके अंतर्गत पृथ्वी के धरातल का अध्ययन करने के लिए वायु फोटोचित्रों को प्राप्त किया जाता है। इसके लिए कई प्लेटफार्म उपयोग किये जाते हैं। इनमें वायुयान प्लेटफार्म प्रमुख है। जैसा कि स्पष्ट है सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। पृथ्वी सूर्य से विकिरण ऊर्जा प्राप्त करती है। विद्युत चुम्बकीय विकिरण (EMR) पृथ्वी के घरातल के साथ अन्योन्यक्रिया करता है। इस दौरान इसमें कई परिवर्तन अनुभव किये जाते हैं। विद्युत-चुम्बकीय विकिरण को संवेदक अथवा फोटो संवेदन फिल्म के द्वारा संसूचन किया जाता है। फोटो फिल्म पर यह बिम्बों को दर्शाता है। फोटोचित्र में विभिन्न बिम्बों के अलग-अलग ग्रे-टोन, वस्तुओं से परावर्तित ऊर्जा के अलग-अलग मानों की ओर इशारा करते हैं।
वायुमण्डल में कई प्रकार की गैसें, धूल के कण, जल वाष्प कण इत्यादि विद्यमान होते हैं। इनके द्वारा सूर्य से आती हुई विकिरण ऊर्जा में कमी आ जाती है। इसी प्रकार किसी वस्तु के साथ अन्योन्यक्रिया (परावर्तन, संचारण तथा अवशोषण) के पश्चात् परावर्तित ऊर्जा में भी कमी आ जाती है। वायुमण्डलीय प्रभावों के द्वारा, फोटोग्राफिक प्रतिबिम्बों पर विपर्यास (Contrast) को कम कर दिया जाता है। यही कारण है कि वायुफोटोग्राफी की गुणवत्ता अधिकतर वायुमण्डलीय दशाओं पर निर्भर करती है। यद्यपि श्याम श्वेत फोटोग्राफी के लिए कई प्रकार के फिल्टर अथवा लेंस इत्यादि के सामूहिक उपयोग से धुंध के प्रभाव को कम किया जा सकता है। रंगीन फोटोग्राफी की दशा में यह समस्या अत्यंत जटिल है। यहाँ पर वायु फोटोग्राफी से सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन किया गया है।
वायु फोटोग्राफी के कारक:-
वायु फोटोग्राफी करने के प्रमुख कारक निम्न हैं-
1. फोटोग्राफी क्षेत्र का निर्धारण
2. फोटोग्राफी का उद्देश्य
3. मापक का चयन
4. फोटोग्राफी के प्रकार
5. वायु कैमरे व लैंस का चयन
6. वायु फिल्म निगेटिव
7. उड़ान दिशा का निर्धारण
8. फोटोग्राफी का समय
9. फोटोग्राफी का मौसम
1. फोटोग्राफी किये जाने वाला क्षेत्र (Area to be Photography):-
जिस क्षेत्र की फोटोग्राफी की जानी होती है उसका चारों दिशाओं में 1/250000 मापक बने मानचित्र की सहायता से सीमांकन किया जाता है तथा उसे रेखाओं द्वारा बन्द किया जाता है। यदि क्षेत्र अधिक बड़ा हो तो उसे छोटे-छोटे खण्डों में बांटकर इन्हें A, B, C इत्यादि नाम दिये जाते हैं। वायु फोटोग्राफी करने की दो विधियाँ हैं-
(i) पिन-पाइंट फोटोग्राफी (Pin-Point Photography)
(ii) ब्लॉक फोटोग्राफी (Block Photography)
वायुयान से धरातल के किसी लघु क्षेत्र या वस्तु विशेष की फोटोग्राफी करना पिन-प्वाइंट फोटोग्राफी कहलाती है। पिन प्वाइंट फोटोग्राफी उर्ध्वाधर या त्रियक दोनों ही प्रकार की हो सकती है तथा एक या दो फोटो चित्र खींचे जाते हैं।
वृहत क्षेत्रों की फोटोग्राफी के लिए सर्वप्रथम सम्पूर्ण क्षेत्र को अलग-अलग खण्डों या ब्लॉक में विभाजित किया जाता है। तत्पश्चात् प्रत्येक खण्ड को समान्तर पट्टियों (Strips) में बाँटा जाता है। प्रत्येक स्ट्रिप की सर्पित प्रतिरूप में अतिव्यापन (Overlap) फोटोग्राफी की जाती है। स्टीरियोस्कोप से देखने पर इस प्रकार के फोटोचित्रों के त्रिविम दृश्य दिखाई देते हैं।
2. फोटोग्राफी का उद्देश्य (Purpose of Photography)
वायु फोटोग्राफी करने से पूर्व यह स्पष्ट किया जाता है कि फोटोग्राफी का उद्देश्य क्या है? इससे फोटोग्राफिक विनिर्देशन के सही डिजाइन में सहायता मिलती है।
3. मापक का चयन (Selection of Scale)
वायु फोटोग्राफी में मापक एक प्रमुख कारक है। वायु फोटोचित्रों में प्रदर्शित किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच की दूरी तथा उन्हीं दो बिन्दुओं की घरातल पर वास्तविक दूरी के आनुपातिक सम्बन्ध को उस फोटोचित्र का मापक कहते है। उदाहरण के लिए फोटोचित्र में किन्हीं दो बिन्दुओं अथवा दो स्थानों के मध्य की दूरी एक सेमी. तथा उन्हीं स्थानों की धरातल पर मापी गई वास्तविक दूरी एक किमी. है। इसका अर्थ यह है कि फोटोचित्र की दूरी एवं भूमि की दूरियों में 1 व 100000 का अनुपात है। यही आनुपातिक सम्बन्ध अर्थात् 1/100000 उस फोटोचित्र का मापक कहलाता है। वायु फोटोचित्र में मापक को दूसरे ढंग से भी समझाया जा सकता है।
“कैमरा लेन्स की फोकल दूरी (F) तथा धरातल से उड़ान (वायुयान) की (H) अनुपात को मापनी कहते हैं।”
अर्थात्
मापक =F (फोकल दूरी)/H (ऊँचाई)
सामान्यतः वायु फोटोचित्रों के अलग-अलग भागों में मापनी शुद्ध नहीं होती है। सम्पूर्ण वायु फोटोचित्र पर एक समान मापनी केवल उसी दशा में मिल सकती है जब घरातल समतल हो एवं कैमरा ठीक लम्बवत अवस्था में हो। इस तरह की आदर्श स्थिति का मिलना अति कठिन होता है। इसलिए मापनी में अंतर आना स्वाभाविक है। उदाहरण के लिए पहाड़ी पर घाटी की तुलना में मापक में अंतर होता है क्योंकि शिखर भाग कैमरे के अधिक समीप होता है। यदि उड़ान की ऊँचाई अधिक या कम होती है तो फोटोचित्र का मापक भी तदनुरूप भिन्न-भिन्न होता है। उच्चावचन विकृति तथा उड़ान झुकाव (Tilt) के कारण भी भा की भिन्नता पाई जाती है।
वायु फोटोचित्रों पर मापनी ज्ञात करने की विधियाँ:-
वायु फोटोचित्रों से मापनी ज्ञात करने की प्रमुख निम्न विधियाँ हैं-
(i) फोटोचित्र तथा धरातल के परस्पर सम्बन्ध स्थापन द्वारा मापनी ज्ञात करना।
(ii) मानचित्र की सहायता से मापनी ज्ञात करना।
(iii) फोटोचित्रों की सहायता से मापनी ज्ञात करना-
(a) कैमरे की फोकल दूरी एवं
(b) उड़ान ऊँचाई के आपसी सम्बन्ध द्वारा।
4. वायु फोटोचित्रों का वर्गीकरण (Classification of Aerial Photograps):-
वायु फोटोचित्रों का वर्गीकरण कई मापदण्डों के आधार पर किया गया है। इनमें प्रमुख मानदण्ड मापनी, झुकाव, क्षेत्र विस्तार, फिल्म तथा स्पेक्ट्रम क्षेत्र विस्तार इत्यादि हैं।
A. मापनी के आधार पर (On the Basis of Scale):-
मापनी के आधार पर वायु फोटोचित्रों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) वृहत मापनी पर निर्मित फोटोचित्र (1/5000 एवं 1/20000)
(ii) मध्यम मापनी पर निर्मित फोटोचित्र (1/20000 एवं 1/50000)
(iii) लघु मापनी पर निर्मित फोटोचित्र (1/50000 से अधिक)
आवश्यकतानुसार मापनी को परिवर्तित भी किया जा सकता है।
B. झुकाव के आधार पर (Based on Tilt):-
जिन फोटोचित्रों को फोटो विश्लेषण तथा मानचित्रण के लिये उपयोग किया जाता है। उन्हें कैमरा अक्ष की दिशा के अनुसार तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।
(i) ऊर्ध्वाधर फोटोचित्र (Vertical Photograph):-
वायुयान द्वारा उड़ान दिशा में कैमरे सिद्धान्त लम्बवत् रखकर लिये गये वायु फोटोचित्रों को ऊर्ध्वाधर फोटोचित्र कहते है। यद्यपि सिद्धान्त रूप में ऐसे वायु फोटोचित्र खींचते समय कैमरे का अक्ष धरातल पर ठीक लम्बवत् होना चाहिए परन्तु व्यवहार में सदैव ऐसा कर पाना संभव नहीं होता है। अतः यदि कैमरे का अक्ष दशा से 2-3 अंश कम या अधिक हो तो भी प्राप्त फोटोचित्रों को ऊर्ध्वाधर मान लिया जाता है। इस प्रकार के फोटोचित्रों में धरातल की योजना (Plan), दृश्य ऊपर से देखे गये दृश्य के समान होता है। वायु फोटोचित्रों से मानचित्रण करने के लिए इसी प्रकार के फोटोचित्रों का उपयोग करते हैं।
(ii) तिर्यक फोटोचित्र (Oblique Photographs):-
तिर्यक फोटोचित्र खींचने के लिए वायुयान में कैमरे के अक्ष को धरातल की दिशा की ओर नत दिशा में झुका दिया जाता है। इस प्रकार के फोटोचित्रों में धरातलीय विवरणों के पार्श्व-दृश्य दिखाई देते हैं। वायु कैमरे के अक्ष झुकाव से लिये गये फोटोचित्रों को तिर्यक फोटोचित्र कहते हैं। इस प्रकार के फोटोचित्र भूमि पर बहुत बड़े क्षेत्र को तय करते हैं परन्तु विवरणों की शुद्धता एवं स्पष्टता केंद्र से दूर जाने पर कम होती जाती है।
(iii) क्षितिज अथवा धरातलीय फोटोचित्र (Horizontal for Terrestrial Photograph):-
क्षितिज अथवा घरातलीय वायु फोटोचित्रों को लेने के लिए कैमरे के अक्ष को सीधे क्षितिज तल के समान लाया जाता है। इनके द्वारा केवल ऊँचाई दृश्य प्रस्तुत किया जाता है। क्षितिज फोटोचित्र सामान्य अच्छे कैमरे से भी लिये जा सकते हैं जिनका उपयोग सहायक रूप से उर्ध्वाधर फोटोचित्रों के विश्लेषण के लिए किया जाता है। क्षेत्रीय अध्ययनों में इनका भी विशेष महत्व है। विशेष रूप से भूगर्भिक, वानिकी तथा भूआकृतिक अध्ययनों में परिच्छेदिकाओं के लिये इनकी आवश्यकता होती है।
C. कैमरा इकाई के आधार पर (On the Basis of Camera Unit):-
दो या तीन कैमरों को एक कैमरा इकाई बनाया जाता है तथा उपरोक्त सभी प्रकार की वायु फोटोग्राफी एक साथ की जाती है। इस आधार पर वायु फोटोग्राफी के निम्न दो प्रकार हैं-
(i) अभिसारी फोटोचित्र (Convergent Photogrphy):-
अभिसारी चित्र लेने एके लिये वायुयान में दो कैमरे प्रयोग किये जाते हैं जो एक ही क्षेत्र अथवा दृश्य के दो अलग तिर्यक फोटोचित्र एक साथ खींचते हैं। इस प्रकार एक ही समय व एक ही मिशन में अलग-अलग कैमरों के द्वारा दो फोटोचित्र लिये जाते हैं। उड़ान की दिशा में स्थित अगले कैमरे का फोटोचित्र पिछला तथा पिछले कैमरे का फोटोचित्र अगला (Forward) कहलाता है ।
(ii) त्रिपदीय फोटोचित्र (Trimetrogon Photograph):-
ट्रिमेट्रोगन का अर्थ है त्रिपदीय अर्थात् तीन रूप से कार्य होना। इसमें कैमरा इकाई में तीन कैमरे एक साथ प्रयोग किये जाते हैं। केंद्र में स्थित कैमरा धरातल के ऊर्ध्वाधर चित्रों को लेता है जबकि अलग-बगल के कैमरे क्षितिज तक के तिर्यक वायु फोटोचित्र खींचते हैं। इस प्रकार त्रिपदीय प्रणाली में दायें क्षितिज से बायें क्षितिज तक का समस्त क्षेत्र अंकित हो जाता है। यद्यपि मानचित्रण के दृष्टिकोण से तिर्यक फोटोचित्रों को अनुस्थापन (Orientation) करने में बहुत सहायता मिलती है। इस प्रकार का उपयोग लघु मापनियों पर निर्मित टोह (Reconnaissance) लेने वाले मानचित्रों का तुरंत निर्माण करना होता है।
D. कोणीय विस्तार के आधार पर (On the Basis of Angular Coverage):-
वायु फोटोचित्रों का अगला वर्गीकरण कोणीय विस्तार के आधार पर किया गया है। कोणीय विस्तार को एक कोण के रूप में परिभाषित किया गया है। यह लेंस के अग्र नोडल (Nodal) बिन्दु से होकर गुजरने वाले किरणों के शंकु का शीर्ष कोण है।
निगेटिव चौखट का विकर्ण, लेंस के पृष्ठ नोड़ पर अंतरित करता है। इस प्रकार निगेटिव तल तथा लेंस के मध्य के सम्बन्ध को कोणीय विस्तार कहा जाता है। कोणीय विस्तार को निम्न रूप से वर्गीकृत किया गया है-
(i) संकीर्ण कोण (Narrow Angle)-
संकीर्ण कोण का विस्तार 50° से कम होता है।
(ii) सामान्य कोण (Normal Angle)-
इसका कोणीय विस्तार 60° होता है। इनका आकार 18×18 सेमी व 23×23 सेमी. तथा फोकल दूरी क्रमशः 31 व 30 मिमी. होती है।
(iii) बृहत कोण (Wide Angle)-
वृहत कोण का विस्तार 90° होता है। इसका आकार क्रमशः 18×18 सेमी. व 23 × 23 संमी. तथा फोकल दूरी 11.5 व 15 मिमी. है।
(iv) अति वृहत कोण (Super Wide or Ultra Wide Angle)-
इसका कोणीय विस्तार 120° होता है जिसके फोटोचित्र का आकार क्रमशः 18×18 सेमी. व 23×23 सेमी. तथा फोकल दूरी 70 मिमी. व 88 मिमी. होती है।
E. फिल्म के आधार पर (On the Basis of Film):-
वायु फोटोग्राफी में प्रयोग की जाने वाली फिल्मों के आधार पर वायु फोटोग्राफ निम्न प्रकार के होते हैं-
(1) श्याम एवं श्वेत पेंक्रोमेटिक फोटोग्राफी
(ii) श्याम एवं श्वेत अवरक्त फोटोग्राफी
(111) रंगीन फोटोग्राफी
(iv) रंगीन अवरक्त/आभासी रंगीन फोटोग्राफी
5. वायव कैमरे (Aerial Camera):-
वायु फोटोग्राफी का कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है। इनमें प्रमुख मानचित्रों का निर्माण, फोटो व्याख्या, प्राकृतिक संसाधन सर्वेक्षण, भूगर्भिक एवं मृदा सर्वेक्षण, भूमि उपयोग इत्यादि हैं। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वायु फोटोग्राफी विश्वसनीय एवं सूक्ष्मतम प्रतिबिम्बों की पूर्ति करता है जो विकार रहित तथा क्रमिक भूभाग बिम्बों को दर्शाते हैं। वायु फोटोग्राफी के लिये जिस साज-सामान की आवश्यकता होती है उनमें कैमरा प्रमुख है।
उत्तम वायु फोटोग्राफी करने के लिए यह अति आवश्यक है कि वायु कैमरा उच्च कोटि का होना चाहिए। फोटोग्रामिति की दृष्टि से उपयोगी, उच्च विभेदन (High Resolution के लक्षण वाले वायु फोटोचित्र प्राप्त करने के लिए ऐसे स्वचालित कैमरे प्रयोग में लाये जाते हैं जो किसी गतिमान प्लेटफार्म से तेजी के साथ एक के बाद एक करके अनेक फोटोचित्र ले सके। इनकी याँत्रिक प्रणाली सामान्य कैमरों की तुलना में भिन्न होती है। इनक ऑप्टिकल इकाइयाँ (लेंस, फिडूसियल मार्क, किनारे इत्यादि) जटिल याँत्रिक ढाँचा तैयार करती है।
6. वायु फिल्म निगेटिव (Aerial Film Negative):-
वायु फिल्म का चुनाव (Choice of Aerial Films):
वायु फोटोग्राफी में सूक्ष्म विवरणों तथा लघु प्रकाशकरण (Exposure) के लिए महीन कणों युक्त व उच्च गति मिश्रण (Emulsion) फिल्म का प्रयोग किया जाता है जो बिम्ब गतिशीलता को दूर करता है। वायु फिल्म की विभेदन शक्ति 50 रेखायें प्रति मिलीमीटर होती है। यह सिकुड़न रहित (पोलिस्टर आधारित) होती है जिस पर वायुमण्डल या घरातलीय तत्वों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। वायु फिल्म कई प्रकार की होती है जैसे पैक्रोमेटिक, इन्फ्रारेड, एरोग्राफिक सुपर XX, एरोग्राफिक ट्राई-X, एरोग्राफिक इन्फ्रारेड, इक्टराक्रोम, कोडेक ऐरोपैन, एवियोफोटो पैन, इलफोर्ड इत्यादि। वायु फिल्म निगेटिव की लम्बाई अलग-अलग 100, 200, 500 तथा 5000 फीट तक होती है। टोही सर्वेक्षणों में 5000 फीट लम्बी फिल्म का उपयोग किया जाता है।
7. उड़ान दिशा (Flight Direction):-
वायु फोटोग्राफी एक निर्धारित क्षेत्र को तय करती है जिसे कई पट्टियों में तय किया जाता है। संचालन की सुविधानुसार यह परामर्श किया जाता है कि पट्टिकाओं अथवा स्ट्रीप की संख्या कम से कम हो। इस प्रकार उड़ान दिशा की पट्टियों को क्षेत्र की लम्बाई के अनुरूप तय किया जाता है। दिशा निर्धारण प्राकृतिक अथवा सांस्कृतिक लक्षणों के अनुरूप किया जाता है।
8. फोटोग्राफी का समय (Time of Photography):-
वायु फोटोग्राफी खींचने का समय अति महत्वपूर्ण होता है। जैसा कि स्पष्ट है कि लम्बी एवं घनी छाँव विवरणों को ढक लेती है तथा फोटोग्राफ में अनावश्यक काले धब्बे दृष्टिगोचर होते हैं। दूसरी ओर लघु छाया, विवरणों को प्रभावशाली ढंग से निर्धारित करती है जिससे वायु फोटो चित्रों के विश्लेषण करने में सहायता मिलती है। स्वच्छ साफ व प्रकाशयुक्त फोटोचित्र विश्लेषण में विशेष महत्व रखते हैं। अनुभव के आधार पर वायु फोटोग्राफी के समय की संस्तुतियाँ निम्न प्रकार से की गई हैं-
(i) वायु फोटोग्राफी उन समयों में की जानी चाहिए जब क्षितिज से सूर्य की ऊँचाई 30° से अधिक होती है।
(ii) अर्थात् वायु फोटोग्राफी का उपयुक्त समय सुबह 9 बजे से सायं 3 बजे के मध्य होना चाहिए।
(iii) यद्यपि फोटोग्राफी का समय माँगकर्ता द्वारा निश्चित किया जाता है लेकिन वायु फोटोग्राफी सुबह 8 बजे से 10 बजे के मध्य तथा सायं को 2 बजे से 4 बजे के मध्य नहीं की जानी चाहिए।
पर्वतीय भूभागों में धरातलीय विषमतायें होती हैं। धरातलीय उच्चावचन में अधिक अंतर होता है। इसलिए सूर्य की ऊँचाई क्षितिज से 30° के दौरान छाया लम्बी एवं घनी होती है जो कि महत्वपूर्ण धरातलीय विवरणों को छुपा देती है। यही कारण है कि पर्वतीय भूभागों के लिए उपयुक्त फोटोग्राफी का समय 11 बजे से लेकर 2 बजे के मध्य उपयुक्त समझा गया है। मैदानी समतल भूभागों में छाया बहुत महत्व नहीं रखती है, यही कारण है कि फोटोग्राफी के समय में कुछ शिथिलता बरती जाती है। जैसे कि सूर्य की ऊँचाई क्षितिज से 20° से ऊपर होने पर भी वायु फोटोग्राफी की जा सकती है।
इसी प्रकार उष्ण भू-भागों में मुख्य कठिनाई यह है कि जैसे ही तापमान बढ़ता है वैसे-वैसे वायुमण्डल में धुंध होने लगती है। ऐसी परिस्थितियों में वायु फोटोग्राफी का समय, सूर्योदय से आधा घंटा बाद निश्चित की जाती है।
9. वायु फोटोग्राफी का मौसम (Season of Photography):-
वायु फोटोग्राफी करने के लिए उपयुक्त मौसम के चुनाव को निम्न कारक प्रभावित करते है-
(i) प्रकाश परावर्तन में मौसमी परिवर्तन
(ii) प्राकृतिक वनस्पति के आवरण में मौसमी परिवर्तन
(iii) जलवायु कारकों में मौसमी परिवर्तन
वायु फोटोग्राफी के उद्देश्य के आधार पर भी मौसम का चुनाव किया जाता है। उदाहरण के लिए फोटोग्राफिक मानचित्रण, भूगर्भिक या मृदा सर्वेक्षण इत्यादि के लिए धरातल जितना सम्भव हो उतना साफ होना चाहिए। वनस्पति आवरण प्रदेशों में, भूगर्भिक सर्वेक्षण उद्देश्व हेतु फोटोग्राफी उस वक्त उपयुक्त होती है जबकि वनस्पति पर पतझड़ रहता है तथा धरातल स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। इसी प्रकार बर्फ से आच्छादित उच्च आक्षांशों या अधिक ऊँचाई वाले स्थानों पर फोटोग्राफी का उपयुक्त समय तब होता है जबकि हिम पिघल जाता है तथा धरातल दिखाई देने लगता है। इसी प्रकार मिट्टी सर्वेक्षण हेतु फोटोग्राफी के लिये फसल कटन के बाद का समय उपयुक्त होता है।
यदि वनस्पति सर्वेक्षण के उद्देश्य हेतु फोटोग्राफी करनी हो तो इसके लिये वृक्षों का घना छत्रीनुमा होना तथा पेड़ों के ताज का पूर्ण पर्णसमूह (Foliage) बहुत महत्व रखता है। भूमि उपयोग व फसल प्रतिरूपों के अध्ययन के लिए वायु फोटोग्राफी उस समय निर्धारित की जाती है जब खेतों में फसल रहती है। सभी उद्देश्यों के लिए वर्षाकाल के पश्चात् (अक्टूबर व नवम्बर) जव आसमान स्वच्छ व साफ रहता है। फोटोग्राफी की जानी उचित होती है।
प्रश्न प्रारूप
Q. वायु फोटोग्राफी पर प्रकाश डालें।
(Throw light on the Aerial Photography.)
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