Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

Remote Sensing and GIS

1. सुदूर संवेदन और भौगोलिक सूचना तंत्र

1. सुदूर संवेदन और भौगोलिक सूचना तंत्र

Remote Sensing and GIS (Geographical Information System)



सुदूर संवेदन और भौगोलिक सूचना तंत्र⇒

सुदूर संवेदन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Remote Sensing)

           सुदूर संवदेन का अर्थ है किसी दूर स्थिति घटना, वस्तु अथवा धरातल के बारे में सूचनाओं अथवा आंकड़ों को प्राप्त करना। दूसरे शब्दों में मोटे तौर पर सुदूर संवेदन का अर्थ है कि बिना किसी भौतिक सम्पर्क के किसी वस्तु अथवा घटना के संबंध में सूचनायें एकत्र करना।

          “तरंगदैर्ध्य के पराबैंगनी से लेकर रेडियो प्रभाग में आंकड़ों को एकत्र करने की व्यावहारिकता अथवा अभ्यास को सुदूर संवेदन कहते हैं।”

         “किसी घटना या वस्तु के संबंध में शीघ्र एवं तीव्र टोह लेना सुदूर संवेदन कहलाता है।”

         सुदूर संवेदन एक ऐसा विज्ञान है जो पृथ्वी के किसी स्थान, वस्तु अथवा घटना के संबंध में दूर अन्तरिक्ष में स्थित उपग्रह या अन्तरिक्ष यानों पर लगे संवेदकों के द्वारा ग्रहण किये गये धरातलीय परावर्तित प्रकाश के आवेगों को अंकित करता है। हम संवेदक पर अंकित परावर्तित प्रकाश के आवेगों का विश्लेषण करते हैं। तत्पश्चात् प्राप्त आंकड़ों तथा प्रतिबिम्बों के माध्यम से किसी स्थान, घटना या वस्तु के संबंध में आवश्यक जानकारी प्राप्त कर निष्कर्ष पर पहुंचते हैं।

           जिस प्रकार हमारी आँखें प्रत्येक वस्तु को देखकर उनमें भेद स्थापित करती हैं ठीक उसी प्रकार संवेदक भी कार्य करता है। आँखों से देखने पर कुछ वस्तुयें चमकीली तथा कुछ काली लगती हैं या आँखों को अलग-अलग वस्तुओं में रंगों की गहनता अलग-अलग प्रतीत होती है। यह सब प्रकाश आवेगों के कारण होता है।

            प्रत्येक वस्तु का विद्युत चुम्बकीय विकीरण अलग-अलग होने से आँखों को वस्तुयें अलग-अलग रंगों में प्रतीत होती हैं। संवेदक भी आँखों की तरह विद्युत चुम्बकीय विकीरण को प्राप्त करते हैं। जिस वस्तु से या स्थान से परावर्तित प्रकाश अधिक प्राप्त होता है। वह चमकीली एवं अन्य इसके विपरीत काली प्रतीत हैं।

          उपग्रहों में प्रयोग किये जाने वाले संवेदक विद्युत चुम्बकीय विकिरण को अंकीय आँकड़ों (Digital Data) के रूप में अभिलेखन (Recording) करते हैं। इन आंकड़ों से प्रतिविम्ब बनाने की क्षमता होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि “पृथ्वी से दूर अन्तरिक्ष में किसी प्लेटफार्म पर लगे हुये संवेदक द्वारा विद्युत-चुम्बकीय विकीरण के माध्यम से धरातलीय सूचनाओं को प्राप्त करने की कला को सुदूर संवेदन विज्ञान कहते हैं।”

          प्लॉयड एफ. साबिन्स (Floyd F. Sabins) के अनुसार सुदूर संवेदन शब्द का तात्पर्य उन विधियों में है जिनमें किसी लक्ष्य को पहचानने तथा उनके लक्षणों को मापने के लिए विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा जैसे प्रकाश, ऊष्मा व रेडियो तरंगों को प्रयोग में लाया जाता है।

           लिंग्टज एवं सिमनेट (Lintz and Simonett) के अनुसार बिना छुये या सम्पर्क के किसी वस्तु के बारे में भौतिक आँकड़ों की प्राप्ति करना सुदूर संवेदन कहलाता है।

     बैरेट एवं क्टज (Barrett and Curtis) के अनुसार- किसी निश्चित दूरी से किन्हीं युक्तियों द्वारा किसी लक्ष्य के अवलोकन को सुदूर संवेदन कहते हैं।

      “Remote sensing is the observation of a target by a device separated from it by some distance.”

        कोलवेल (Colwell) के अनुसार- विस्तृत अर्थों में ‘सुदूर संवेदन’ शब्द का अर्थ है किसी निश्चित दूरी से टोह लेना या सर्वेक्षण करना है।

सुदूर संवेदन की प्रक्रियायें (Processes of Remote Sesing)

               सुदूर संवेदन तकनीक द्वारा पृथ्वी के धरातल से सूचनाओं को एकत्र करने तथा विद्युत चुम्बकीय आँकड़ों का विश्लेषण करने के लिये प्रमुखतः दो प्रक्रियायें से गुजरना पड़ता है-

1. आंकड़े अर्जित करना (Data Acquisition):-

            यद्यपि आँकड़े अर्जित करने की विधियों को आगे विस्तार से समझाया गया है परन्तु यहां इनका संक्षिप्त विवरण दिया गया है। सर्वप्रथम, संवेदक द्वारा पृथ्वी या पृथ्वी के किसी भाग को या किसी वस्तु के संबंध में विद्युत चुम्बकीय विकिरण द्वारा सूचनायें अंकीय (Digital) रूप में एकत्र किये जाते हैं।

              दूसरा इन अंकीय आंकड़ों की सहायता से प्रतिबिम्ब तैयार किये जाते हैं, जिन्हें चित्रीय (Pictorial) रूप भी कहते हैं। टी. एम. लिलिसेंट एवं आर. डब्ल्यू काईफर ने आंकड़ा अर्जित करने की प्रक्रिया को पाँच रूपों में विभाजित किया है। जिनको नीचे के चित्रों में दिखाया गया है-

(a) ऊर्जा के स्रोत (Source of Energy)

(b) वायुमण्डल द्वारा संचरण (Propagation through the atmosphere)

(c) पृथ्वी की धरातलीय आकृतियाँ (Earth Surface Features)

(d) वायुमण्डल द्वारा पुनः संचरण (Re-Transmission through the Atmosphere)

(e) संवेदन प्रणालियों (Sesing Systems)

सुदूर संवेदन

          सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। पृथ्वी सूर्य से विकिरण ऊर्जा प्राप्त करती हैं। सूर्य से पृथ्वी की ओर कुल विकिरण ऊर्जा को 100 इकाई या प्रतिशत माना जाता है। सूर्य से जितनी ऊर्जा विकिरण होती है उसका स्वल्पांश (1/2 अरबवां भाग) ही पृथ्वी को प्राप्त होता है। वायुमण्डल द्वारा प्रकीर्णन तथा प्रत्यावर्तन के कारण सौर्य ऊर्जा का कुछ भाग शून्य में वापस लौट जाता है। लघु तरंग प्रवेशी सौर्य विकिरण का 35% भाग प्रकीर्णन तथा प्रत्यावर्तन के माध्यम से शून्य में वापस चला जाता है (27% बादलों से +20% धरातल से प्रत्यावर्तित है +6% वायुमण्डल द्वारा प्रकीर्ण), 51% भाग भूतल द्वारा अवशोषित किया जाता है (17% विसरित दिवा प्रकाश (Diffuse day light) के रूप में तथा 34% प्रत्यक्ष विकिरण के रूप की में) तथा 14% वायुमण्डल द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।

                23% ऊर्जा का धरातल से पार्थिव विकिरण द्वारा वायुमण्डल में प्रत्यक्ष गमन हो जाता है, 9% ऊर्जा संवहन तथा विक्षोभ के रूप में खर्च होती है तथा 19% ऊर्जा वाष्पीकरण के रूप में खर्च हो जाती है। इस तरह भूतल पर सौर्यिक विकिरण द्वारा जो 51% ऊर्जा है, वह पृथ्वी से विकिरण, संवहन तथा परिचालन के माध्यम से वायुमण्डल में वापस चली जाती है। वायुमण्डल सौर्यक विकिरण से अवशोषण द्वारा 14% ऊर्जा तथा पृथ्वी से होने वाले विकिरण से 34% ऊर्जा अर्थात् कुल 48% ऊर्जा प्राप्त करता है।

सुदूर संवेदन और भौगोलिक
Electromagnetic Remote Sensing of Earth Resources

2. आँकड़ा विश्लेषण (Data Anlysis):-

             सुदूर संवेदन की दूसरी प्रक्रिया आंकड़ों का विश्लेषण करना है। अन्तरिक्ष आधारित संवेदकों के द्वारा जो अंकीय आँकड़े अर्जित किये जाते हैं, उनसे कम्प्यूटर की सहायता से प्रतिबिम्ब तैयार किये जाते हैं, जिन्हें आँकड़ा उत्पाद (Data Product) कहा जाता है। ये उत्पाद किसी भी दृश्य क्षेत्र के सभी विवरणों को प्रस्तुत करते हैं। इन विवरणों को पहचानने एवं इनके बारे में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने तथा किसी निर्णय तक पहुंचने की प्रक्रिया का आँकड़ा विश्लेषण कहते हैं। इसके लिए पर्याप्त अनुभव, अभ्यास, ज्ञान एवं श्रम की आवश्यकता होती है। आंकड़ा उत्पादों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है- पहला उपग्रहीय प्रतिबिम्ब (Satellite Imageries) तथा दूसरा वायु फोटो चित्र (Aerial Photographs) वायु फोटो चित्रों के विश्लेषण के लिये स्टीरियोस्कोप (Sterioscope) इत्यादि यंत्रों की आवश्यकता होती है। इनकी सहायता से लिए स्थलाकृतिक मानचित्र, सांख्यिकीय आंकड़े तथा अन्य संदर्भ आंकड़ों की आवश्यकता होती है। आंकड़ा विश्लेषण के निम्न प्रमुख तत्व हैं-

(a) आँकड़ा उत्पाद (Data Product)

(b) व्याख्या तथा विश्लेषण (Interpretation and Analysis)

(c) सूचना उत्पाद (Information Products)

(d) उपयोगकर्ता (Users)

          इस प्रकार सुदूर संवेदन आँकड़ा अर्जन की प्रक्रिया को निम्न सात सोपानों में विभाजित किया जा सकता है जो सुदूर संवेदन की अलग-अलग अवस्थायें हैं।

1. ऊर्जा स्रोत (Energy Source):-

            सुदूर संवेदन में आधारभूत आवश्यकता ऊर्जा स्रोत की है जो इच्छित लक्ष्यों को प्रकाशयुक्त (Illuminte) करता है। इसको विद्युत चुम्बकीय विकीरण (EMR) का उत्सर्जन (Emission) कहते हैं।

2. ऊर्जा का वायुमण्डल के साथ अन्योन्यक्रिया (Energy Interaction with the Atmosphere):-

              ऊर्जा जब प्रमुख स्रोत से धरातल पर किसी लक्ष्य तक तथा किसी लक्ष्य से संवेदक तक पहुंचती है तो यह वायु मण्डल के सम्पर्क में आकार अन्योन्याक्रिया करती है। इसके अन्तर्गत ऊर्जा का संचारण (Transission), अवशोषण (Absorption) तथा प्रकीर्णन (Scattering) को सम्मिलित किया जाता है।

3. ऊर्जा का पृथ्वी के धरातलीय आकृतियों से अन्योन्यक्रिया (Interaction of Energy with Earth’s Surface Features):–

              पृथ्वी के धरातल की आकृतियाँ, आपतन (Incident) ऊर्जा के साथ अलग-अलग प्रकार से अन्योन्यक्रिया करती है। घरातल द्वारा आपतन ऊर्जा का कुछ अंश परावर्तित (Reflected) तथा कुछ अंश अवशोषित (Absorption) किया जाता है।

4. ऊर्जा का संवेदक द्वारा अभिलेखन (Recording of Energy by the Sensor):-

           धरातलीय तत्वों के साथ अन्योन्याक्रिया के पश्चात् ऊर्जा संवेदक तक पहुंचती है जिसे ऊर्जा का संचारण (Transmission) कहते हैं। जिन रूपों में इसे अंकित किया जाता है उन्हीं रूप में उपयोगकर्ता द्वारा इसे प्रयोग किया जाता है।

5. आँकड़ों का संचारण तथा प्रक्रमण (Data Transmission and Processing):-

             जो ऊर्जा संवेदक द्वारा अभिलेखित की जाती है उसे प्राप्त कर्ता तथा प्रक्रमण स्टेशन को संचारित किया जाता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को धरातल से सुदूर संवेदक तक ऊर्जा का संचरण (Transmission) कहलाता है।

6. प्रतिविम्ब प्रक्रमण तथा विश्लेषण (Image Prosessing and Analysis):-

                प्रक्रमण के पश्चात् बिम्बों का विश्लेषण किया जाता है तथा पृथ्वी के धरातलीय आकृतियों के बारे में सूचनाओं को निकाला जाता है। इसे आंकड़ों का प्रक्रमण तथा विश्लेषण करना कहते हैं।

7. अनुप्रयोग (Application):-

           विश्लेषण के पश्चात् उपयोगी सूचनाओं का अनुप्रयोग किसी समस्या के समाधान में निर्णय लेने के लिए किया जाता है।

         यह सारा परिदृश्य विद्युत-चुम्बकीय विकीरण तथा धरातल के वस्तुओं व आकृतियों के भौतिक गुण व विशेषताओं पर निर्भर करता है।

      इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सुदूर संवेदन एक अन्तर्विषयी विज्ञान है जिनके अन्तर्गत विभिन्न विषयों जैसे कि ऑप्टिक्स (Optics), फोटोग्राफी (Photography), कम्प्यूटर (Computer), इलेक्ट्रॉनिक्स (Electronics), दूर संचार (Telecommunication). उपग्रहीय-प्रक्षेपण (Satellite launching) इत्यादि का समावेश है।

        जहां तक सुदूर संवेदन का प्रश्न है, सौर्य ऊर्जा के विकिरण एवं प्रदीपन (Illumination) में इतनी शक्ति होती है कि प्रत्यावर्तित प्रकाश सुदूर कैमरा एवं संवदेक तक पहुंच जाता है। सुदूर संवेदन का आधार विद्युत-चुम्बकीय विकिरण (EMR) है। प्रकृति में प्रत्येक वस्तु का अपना धरातलीय स्वरूप होता है। प्रत्येक वस्तु का परावर्तित (Reflected) उत्सर्जित (Emitted) तथा अवशोषित (Absorbed) विकिरण (Radiation) का वितरण अलग-अलग होता है। यदि इन स्पेक्ट्रल विशेषताओं का उत्तम तरीके से शोषण (Exploitation) अथवा मापन किया जाय तो एक वस्तु से दूसरे वस्तु में भेद दर्शाया जा सकता है।

           इसी प्रकार प्रत्येक वस्तु का आकार, आकृति, विस्तार तथा अन्य भौतिक एवं रासायनिक गुणों से संबंधित सूचनाओं को आसानी से एकत्रित किया जा सकता है। उत्तम संसूचक (Detector) के चुनाव व सहायता से आवश्यकतानुसार ऊर्जा का मापन भी कर सकते हैं। जैसा कि स्पष्ट है कि तरंग दैर्ध्य तथा दूरी के साथ ऊर्जा का संचारण घटता जाता है। किसी भी कलेक्टर टाईमीटर के लघु तरंग दैर्ध्य एवं अधिकतम ऊर्जा भाग में धरातलीय विभेद अधिकतम होता है।

         इस प्रकार कहा जा सकता है कि सूर्य से प्राप्त ऊर्जा की कितनी मात्रा विद्युत-चुम्बकीय विकिरण द्वारा संवेदक या फिल्म तक पहुंच पाती है। यह बहुत कुछ संसूचक की उत्तमता पर भी निर्भर करता है कि वह कितनी मात्रा में इसे अंकित करता है।

           सुदूर संवेदन एक ऐसा विज्ञान है जो किसी इच्छित लक्ष्य अथवा घटना का बिना प्रत्यक्ष सम्पर्क में आये या बिना आंखों से देखे सुदूर अन्तरिक्ष या उँचाई से अवलोकन का सूचना देता है। इस प्रक्रिया में परावर्तित ऊर्जा अथवा उत्सर्जित ऊर्जा को संसूचन युक्तियों (Devices) के द्वारा संसूचन (Detect) किया जाता है। ये अभिलेखन युक्तियाँ निरन्तर ऊर्जा का संसूचन करती रहती है। यहां पर ऊर्जा का अभिप्राय प्रकाश (सार्य ऊर्जा) से है जिसे विज्ञान की भाषा में विद्युत चुम्बकीय विकिरण (EMR) कहा जाता है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा जिसे हम आपातिक (Incident) ऊर्जा कहते हैं, धरातलीय आकृतियों पर अन्तर्क्रिया करके परावर्तित एवं उत्सर्जित होती है, जिसे सुदूर संवेदक युक्तियों के द्वारा रिकार्ड किया जाता है ।

          वर्तमान समय में सभी सुदूर संवेदन संवेदक विद्युत युक्तियाँ (Electronic Devices) है। संवेदक के द्वारा जो आंकड़ें रिकार्ड किये जाते हैं उनका प्रयोग प्रतिबिम्बों के निर्माण में किया जाता है। इन प्रतिबिम्बों को देखकर व्याख्या की जाती है। इन्हें ही हम सुदूर संवेदक बिम्ब (Image) कहते हैं।

            सुदूर संवेदन का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जाता है। इसे हम एक व्यावहारिक विज्ञान (Applied Science) भी कहते हैं। यहां पर हमारा उद्देश्य पृथ्वी के अवलोकन करने से है। यह समझाने का प्रवास किया गया है कि किस प्रकार हम धरातलीय सूचनाओं को प्राप्त कर सकते हैं। इसके अन्तर्गत वायु फोटोग्राफी से लेकर अन्तरिक्ष आधारित प्लेटफार्म सभी सम्मिलित किये जाते हैं। इतना ही नहीं सम्पूर्ण संवेदक प्रणाली भी इसके अन्तर्गत सम्मिलित है जो सुदूर से पृथ्वी के धरातल का सफलतापूर्वक अवलोकन करती है तथा लघु से लघु सूचनाओं को प्रदान करती है।

         भू-धरातलीय आंकड़ों को एक निश्चित निर्देशांक प्रणाली के तहत ही स्पष्ट किया जा सकता है जिनकी धरातल पर एक निश्चित भौगोलिक वसाव स्थिति होती है। इसके लिये भू-धरातलीय आंकड़े अर्जित (Geospatial Data Acquisition) शब्दावली का प्रयोग किया जाता है। संक्षिप्त में इसे GDA भी कहते हैं। संवेदक द्वारा जो आंकड़े प्राप्त किये जाते हैं। तथा उनसे जो विम्ब तैयार किया जाता है वे इतने साल नहीं होते हैं। संवेदक से प्राप्त आंकडों का सर्वप्रथम प्रक्रियन (Process) अथवा विश्लेषण किया जाता है।

        प्रक्रियन/विश्लेषण तथा प्राप्त आंकड़ों की वैधता, व्याख्या के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। इस प्रकार प्रक्रियन किये गये आंकड़े जी. आई. एस. उपयोग के लिये भी उपयुक्त होते हैं। भू-धरातलीय आंकड़ों के कई प्रकार से विम्ब तैयार किये जा सकते हैं। प्रमुख विम्ब आर्थोफोटो (Orthophoto) मानचित्र, उपग्रहीय विम्ब मानचित्र, थिमेटिक मानचित्र, भूपत्रक मानचित्र, भूमि उपयोग मानचित्र, भूमि उपयोग परिवर्तन मानचित्र इत्यादि हैं।

         यदि हम भूधरातलीय सूचनाओं एवं आंकड़ों के ऐतिहासिक पक्ष प बात करें तो सर्वप्रथम सर्वेक्षण एवं मानचित्रण के द्वारा इनका प्रारम्भ माना जाता है।

प्रश्न प्रारूप

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. दूर संवेदन से क्या आशय है? इसकी प्रक्रियाओं का वर्णन करें।

(What do you mean by remote sensing ? Describe its process.)



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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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