Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

Remote Sensing and GIS

2. उपग्रहों के विकास के इतिहास / The Historical Development of Satellite

2. उपग्रहों के विकास के इतिहास

(The Historical Development of Satellite)



उपग्रहों के विकास के इतिहास⇒

              1950 के दशक में कृत्रिम उपग्रह को विकसित कर पृथ्वी के कक्ष में छोड़ा गया था। आरंभ में उनका उपयोग सामरिक दृष्टि से किया गया किन्तु बाद में वैज्ञानिकों ने इनका उपयोग साधारण कार्यों में भी करना आरंभ किया।

          सर्वप्रथम सोवियत संघ में 4 अक्टूबर, 1957 से स्पुतनिक-1 (Sputnik-1) को बाह्य अन्तरिक्ष में छोड़ा गया। पुनः कुछ माह के अन्तराल में ही सोवियत संघ ने स्पुतनिक-2 (Sputnick-2) का अन्तरिक्ष में प्रक्षेपण किया, जिसमें परीक्षण हेतु ‘लाइका’ नामक कुत्ता भी भेजा गया था। इसके सकुशल लौटने के पश्चात् अध्ययन द्वारा यह ज्ञात हुआ कि मानव बाह्य अन्तरिक्ष में जीवित रह सकता है। 1958 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने अन्तरिक्ष यान एक्सप्लोरर (Explorer-2) को अन्तरिक्ष में भेजा जो शुक्र ग्रह के नजदीक से गुजरा था। इसके नजदीक से भेजे गये चित्रों एवं आंकड़ों से शुक्र ग्रह की सतह पर सर्वाधिक तापमान होने तथा अपनी धूरी पर पृथ्वी की अपेक्षा शुक्र ग्रह के विपरीत दिशा में परिभ्रमण करने के विषय में वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई। 12 अप्रैल, 1961 में सोवियत संघ के यूरी गागरिन (Uuri Gagarin) ने अन्तरिक्ष की यात्रा कर प्रथम अन्तरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त किया। 21 जुलाई, 1969 में मानव ने प्रथम बार चन्द्रमा पर अपने कद रखे। अपोलो 11, अन्तरिक्ष यान द्वारा नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) एवं एडविन एलड्रीन (Edvin Aldrin) दो अन्तरिक्ष यात्री चन्द्रमा पर उतरे थे। तब से लेकर अब तक निरन्तर अन्तरिक्ष में उपग्रहों को भेजने का क्रम जारी है।

विदेशी उपग्रह (Foreign Satellites):-

        विकसित देशों में सुदूर संवेदन तकनीक अत्यधिक विकसित है। समय-समय पर अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित उपग्रहों का संक्षिप्त विवरण निम्न है।

टाइरोस (TIROS) तथा नोआ (NOAA) क्रम:-

         संयुक्त राज्य अमेरिका ने 13 अक्टूबर, सन् 1978 में टेलीविजन एवं इन्फ्रारेड ऑपरेशनल उपग्रह (Television and Infrared Operational Satellite- TIROS) को अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया था। इस क्रम में नेआ-6 (National Oceanic And Atmospheric Administrative) उपग्रहों को मौसम संबंधी जानकारियों के लिये अन्तरिक्ष में भेजा था। ये तृतीय युग के ध्रुवीय कक्ष में स्थापित मौसम संबंधी उपग्रह हैं।

उद्देश्य (Objective):-

         HCMM का प्रमुख उद्देश्य धरातलीय जटिलताओं का विश्लेषण करना तथा तापीय जड़त्व से मानचित्र तकनीक को विकसित करना है।

समुद्रीय उपग्रह (Seasat):-

           प्रथम समुद्रीय उपग्रह 26 जनवरी, 1978 में समुद्रीय दशाओं के अवलोकन के लिये ध्रुवीय कक्ष में 800 किमी० की ऊँचाई पर प्रक्षेपित किया गया था। समुद्रीय उपग्रह को शोध उपग्रह भी कहा जाता है जिसको इस प्रकार डिजाइन्ड किया गया कि यह प्रत्येक 36 घंटे के अंतर्गत दिन और रात में कवरेज देता रहे। प्रक्षेपण के 99 दिन बाद इसने कार्य करना बन्द कर दिया था।

अवकाश प्रयोगशला (SKYLAB):-

          स्काईलैब मानव युक्त अन्तरिक्ष स्टेशन था जिसे 435 किमी० की ऊँचाई पर मई, 1973 में पृथ्वी के कक्ष में स्थापित किया गया था। इसमें फोटोग्राफिक कैमरा तथा 13 चैनल युक्त बहुस्पैक्ट्रल स्कैनर को ले जाया गया था। इसमें एक विद्युत टेप होता है जिसमें एम.एस.एस. डिजिटल आँकड़े अंकित होते हैं। खींची गई फोटो रीलों तथा विद्युत टेप को पृथ्वी पर क्रीव (Crew) के द्वारा लाया जाता है। स्काईलैब से उपलब्ध फोटोग्राफ तथा डिजीटल आँकड़ों का विभेदन (Resoultion) 60 मीटर से 73 मीटर था।

स्पॉट (System Probalor Obesrvation Terr- SPOT):-

           फ्रांस में Center National Eludes Spatials द्वारा अप्रैल, 1985 में क्रमश: SPOT-1 को अन्तरिक्ष में पृथ्वी से 822 किमी० की ऊँचाई पर प्रक्षेपित किया गया। इसका कक्ष ध्रुवीय गोलाकार है। उपग्रह का आकार व ढाँचा इस प्रकार तैयार किया गया कि नादिर बिन्दु व नादिर बिन्दु से दूर दोनों तरह की स्थितियों में सूचनाओं को भली-भांति एकत्र किया जा सके। नादिर दृश्य में इसका चक्र प्रति 26 दिन बाद आता है। उपग्रह को इस प्रकार नियोजित किया गया है कि यह भूमध्यरेखा को ठीक 10.30 बजे पार करे। स्पॉट (SPOT) की खास विशेषता यह है कि इसको वृहत मापनी पर विकसित अन्तर्राष्ट्रीय प्रोग्राम भूमि स्टेशन (Ground Receiving Station) के साथ तैयार किया गया है जो 30 से अधिक देशों में स्थित हैं। आँकड़ों का वितरण तथा उपयोग 30 देशों से अधिक देशों द्वारा किया जाता है।

लैंडसेट उपग्रह-क्रम (Landsat Series of Satellites):-

          लैंडसेट उपग्रह को भू-संसाधन तकनीक उपग्रह (Earth Resources Technology Satellite- ERTS) कहते हैं। इसको संयुक्त राज्य अमेरिका के नासा द्वारा ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया। ERTS-1 का प्रक्षेपण 13 जुलाई, 1972 में किया गया था तथा इसने 6 जनवरी, 1978 से कार्य करना बन्द कर दिया था। यह तितली की आकृति का 3 मीटर लम्बा तथा 1.5 मी० अर्द्धव्यास का है। इस पर 4 मीटर लम्बे सौर्य ऊर्जा पैनल लगे हुये हैं। यह एक सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह है जो भूमध्य रेखा को प्रत्येक पथ में ठीक एक समय (स्थानीय) पर पार करता है। लैंडसेट 1, 2 व 3 भूमध्यरेखा को सुबह 11 बजे पार करता है। सुबह के समय आसमान स्वच्छ एवं साफ रहता है जो कि सौर्य ऊर्जा के परावर्तन विशेषताओं के लिये तथा फोटोग्राफिक उपयोगों के लिये बहुत उपयुक्त होता है।

           संयुक्त राज्य अमेरिका के 43 राज्यों तथा 36 देशों में ERTS-1 में 300 प्रयोग किये गये थे। 22 जनवरी, 1975 को ERTS-B को अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित करने से पूर्व नासा (NASA) ने ERTS प्रोग्राम का नाम बदलकर ‘लैंडसेट’ (Landsat) प्रोग्राम रख दिया। इसके क्रम में जो भी उपग्रह छोड़े गये उनका नाम लैंडसेट रखा गया। इस प्रकार पांच लैंडसेट उपग्रह सफलता पूर्वक अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किये गये। लैंडसेट-6 प्रक्षेपण के दौरान असफल हो गया था।

लैंडसेट के उद्देश्य (Objects of Landsat):-

        लैंडसेट का प्रमुख उद्देश्य सुदूर संवेदन तकनीक द्वारा बहुआयामी धरातलीय सूचनाओं को प्राप्त करना एवं इनको भू-स्थित केन्द्र (Ground Station) को भेजना था। दूसरा, प्राप्त आंकड़ों को भू-केन्द्र पर परिष्कृत कर उपयोग के योग्य तैयार करना तथा उपयोगकर्ता तक पहुँचाना है।

भूसंसाधन उपग्रह (Earth Resources satellite):-

           भूसंसाधन उपग्रह दो प्रकार के होते हैं-

(1) मानवयुक्त भू-संसाधन उपग्रह (Manned Earth Resources Satellite):-

            मानवयुक्त भू-संसाधन उपग्रह में मनुष्य द्वारा फोटोग्राफिक सामग्री तथा धरातलीय बिम्बों को लेने के लिये संवेदक इत्यादि को उपग्रह में ले जाया जाता है। इन बिम्बों की फोटोग्राफिक विश्लेषण तकनीक द्वारा व्याख्या की जाती है। सबसे प्रथम जिस मानवयुक्त उपग्रह को तैयार किया गया, उसका नाम ‘अन्तरिक्ष दौड़’ (Space Race) रखा गया था। तत्पश्चात मानवयुक्त उपग्रह, आकाश प्रयोगशाला (Skylab) तथा अन्तरिक्ष शटल क्रम (Space Shuttle Series) को अन्तरिक्ष स्टेशन के रूप में प्रयोग के लिये तैयार किया गया। उदाहरण के लिये अन्तरिक्ष दौड़ (Space Race) उपग्रहों में सरकारी क्रम (1961), जैमिनी क्रम (1965) तथा अपोलो क्रम (1967) प्रमुख हैं। इसी प्रकार अन्तरिक्ष स्टेशन के अंतर्गत अन्तरिक्ष शटल (Space Shuttle) क्रम (1981) तथा स्काईलैब (1973) हैं।

(2) मानव रहित भू-संसाधन उपग्रह (Unmanned Earth Resources Satellite):-

           मानवरहित उपग्रह भू-धरातल के विम्बों को लेने के लिये अपने साथ कई संवेदकों को जाते हैं। इस प्रकार के सूचनाओं, आंकड़ों तथा बिम्बों का विश्लेषण, फोटोग्राफिक विश्लेषण तकनीक तथा डिजिटल इमेज प्रक्रिया तकनीक द्वारा किये जाते हैं।

नोआ उपग्रह (National Ocanic and Atmospheric Administration- NOAA):-

         नोआ (NOAA) उपग्रह क्रम में कई युगों के उपग्रह अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किये गये। नोआ-12 मिशन के अन्तर्गत नोआ 6 में एक अति उच्च श्रेणी का अग्रणी विभेदक (Advanced Very High Resolution- AVHRR) लगाया गया था। इनमें से कई मिशन में, भूमध्यरेखा को पार करने का समय दिन में (7.30 AM) तथा कई अन्य मिशन में रात्रि के समय (2.30 AM) निर्धारित किया गया।

        नोआ पूर्ण विभेदन पर AVHRR आंकड़ों को प्राप्त करता है तथा इन्हें दो अलग-अलग आकारों में व्यवस्थित करता है। पूर्ण निभेदन आंकड़ों को स्थानीय क्षेत्र कवरेज (Local Area Coverage) आंकड़े कहते हैं। विश्वस्तरीय क्षेत्र के आंकड़ों को 4 किमी० के विभेदन पर प्रतिचयन किया जाता है।

समुद्रीय प्रबोधक उपग्रह (Ocean Monitoring Satellite):-

             पृथ्वी का 2/3 भाग समुद्रों व महासागरों से घिरा हुआ है जो पृथ्वी के मौसम तथा जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। यद्यपि इन प्राकृतिक संसाधनों के बारे में बहुत कम जानकारियाँ प्राप्त हैं। उपग्रह प्रतिविम्ब विस्तृत समुद्रीय क्षेत्रों का समय-समय पर सामान्य अवलोकन करते हैं। यह लक्ष्य परम्परागत महासागरीय मापन तकनीकियों के द्वारा पूरा करना असंभव सा जान पड़ता है। समुद्रीय उपग्रह (Seasat) के साथ कई प्रकार के यंत्रों को उपग्रह पर फिट किया जाता है। जो समुद्रीय क्रियाओं का प्रबोधन (Monitoring) करती रहती हैं। ये क्रियायें स्पैक्ट्रम के लघु-तरंग प्रभाग (Micro Wave Region) में अभिलेखित (Recording) की जाती हैं। समुद्रीय प्रबोधन करने वाला प्रमुख संवेदक (Sensor) निम्बुस 7 है जिसे 1978 में अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। इस उपग्रह में समुद्रीय सम्भाग रंगीन स्कैनर (Coastal Zone में Colour Scanner-CZCS) को अन्तरिक्ष में ले जाया गया जो सीमित क्षेत्र का हो अवलोकन करता है तथा Proof of Concept मिशन को पूरा करता है। CZCS स्कैनर को विशेष रूप से समुद्र तटीय भागों के तापमान तथा रंगों के मापन व अभिलेखन के लिये तैयार किया गया था। यह विद्युत चुम्बकीय स्पैक्ट्रम के दृश्य, अवरक्त (नजदीक) तथा तापीय बैंडों के अन्तर्गत संभव है। इस प्रणाली में स्वाथ की चौड़ाई 1566 किमी० तथा नादिर बिन्दु पर धरातलीय विभेदन 825 मी० होता है।

जापान का उपग्रह:-

       जापान ने अपना प्रथम समुद्रीय अवलोकन उपग्रह (Marine Observations Satellite MOS IA) को 19 फरवरी, 1987 में प्रक्षेपित किया था तथा इसकी सफलता के बाद 7 फरवी, 1990 में MOS IB का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। इस उपग्रह पर मुख्यतः तीन यंत्र-

(i) चार चैनल युक्त बहुलवीयग रेडियोमीटर (Multispectral Electronic Self Scanning Radiometer- MESSR),

(ii) चार चैनलयुक्त दृश्य तथा तापीय अवरक्त रेडियोमीटर (Visiual and Thermal Infrared Radiometer- VTIR ) तथा

(iii) दो चैनलयुक्त लघुतरंग स्कैनिंग रेडियोमीटर (Microwave Scanning Radiometer- MSR) लगाये गये थे।

मौसम विज्ञानी उपग्रह (Meteorological Satellites):-

           मौसम विज्ञानी उपग्रह या मिटियोसेट (Meteosats) मुख्यतः मौसम की भविष्यवाणी एवं प्रबोधन के लिये गये हैं। इनमें जो संवेदक लगा रहता है उसमें भूमि स्थित प्रणाली की तुलना में अधिक (Course) धरातलीय विभेदन होता है। दूसरी ओर मिटियोसेट का लाभ यह है कि इनमें पृथ्वी को तय करने के अधिक उच्च सामयिक विभेदन होता है। मिटियोसेट आंकड़ों का उपयोग प्राकृतिक संसाधनों की जानकारी के लिये किया जाता है जहां कि बहुत वृहत क्षेत्र का मानचित्रण किया जा सकता है। वृहत क्षेत्र के मानचित्रण के लिये सूक्ष्म विवरण की आवश्यकता नहीं होती है। वृहत धरातलीय विभेदन, आंकड़ों के आकार को भी कम कर देता है तो जिससे इसकी प्रक्रिया भी सुगम हो जाती है।

           कई देशों में अलग-अलग प्रकार के मिटियोसेट अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किये हैं। इनमें संयुक्त राज्य अमेरिका का नोआ (NOAA) क्रम प्रमुख हैं। लैंडसेट, स्पॉट तथा आई. आर. एस. उपग्रहों की भांति इन्हें ध्रुव के नजदीक, सूर्य तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित किया गया है। केवल GOES तथा INSAT क्रम के उपग्रह भू-स्थौतिक कक्षा में स्थापित हैं। भारत ने भी INSAT क्रम के उपग्रहों को अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया है और जो दूर संचार एवं जलवायु विज्ञानी उपग्रह हैं।

मौसम विज्ञानी उपग्रह (Meteosat-8):-

            मिटियोसेट 8 को अन्तरिक्ष में अगस्त 2002 में प्रक्षेपित किया गया था। इसको MSG-1 के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है- Meteosat Second Generation (MSG), 2008 से मिटियोसेट-8 एवं मिटियोसैट-9 दोनों ही क्रियाशील हैं।

आइकोनोस (IKONOS):-

              यह एक नये युग का प्रथम तथ उच्च विभेदन वाला उपग्रह है। आइकोनोस-2 को अमेरिका द्वारा सितम्बर, 1999 में अन्तरिक्ष में स्थापित किया गया था, तबसे यह सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है। इसका प्रमुख उद्देश्य पृथ्वी के धरातल के उच्च विभेदन वाले आंकड़े प्राप्त कर उनको दूसरे देशों को बेचकर धन कमाना है। यह व्यापारिक प्रक्रिया वर्ष 2000 से निरन्तर कार्य कर रही है। वर्तमान समय में आइकोनोस उपग्रह के आंकड़े सबसे महंगे हैं क्योंकि इनका विभेदन अभी तक सबसे अधिकतम (1 मीटर) है।

भू-अवलोकन-1 (Earth Observation-1, EO-1):-

            भू-अवलोकन-1 (EO-1) मिशन नासा (NASA) एक नया सहस्त्राब्दी (Millimium) प्रोग्राम था जो नये संवेदक स्पेसक्राफ्ट तकनीक पर केंद्रित था। यह सीधे लेण्डसेट एवं संबंधित भू-धरातल प्रबोधन (Monitoring) प्रणाली की कीमतों में कमी करने का था। भू-अवलोकन-1 का अन्तरिक्ष में प्रक्षेपण वर्ष 2000 में किया गया था जो आज तक सफलता पूर्वक संचालित हो रहा है।

प्रोबा/चरिस (Proba/Chris):-

             यूरोपियन स्पेश संस्था (ESA) का सबसे सूक्ष्म (Project for on-Brond Autonomy- Proba) है जिसे अक्टूबर 2001 में प्रक्षेपित किया गया था। इसका प्रमुख उद्देश्य एक नये तकनीकि प्रयोग का प्रयोग करना था। प्रोबा कई प्रकार के यंत्रों को ले जा सकता है, उनमें से प्रमुख Compact High Resolution Imaging Spectrometer (CHRIS) है। CHRIS का उपयोग धरातल के दिशा स्पैक्ट्रल परावर्तन का मापन करने में किया जाता है जो नये जैव-भौतिक (biophysical) एवं जैव-रसायनिक सूचनाओं को प्रस्तुत करने में अति सहायक है।

इनवीसैट-1 (Envisat-1):-

           इनवीसैट को 2001 में अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। इसका प्रमुख उद्देश्य वायुमण्डल, समुद्र, भूमि तथा हिमानी क्षेत्रों की विशेषताओं का मापन करना था। यह 8200 किग्रा० का सबसे भारी भरकम उपग्रह था जो कई प्रकार के संवेदकों को ले जाने में सक्षम था। इसको कई वैज्ञानिकों के समूह ने तैयार करवाया था जो कई तरह के यंत्रों से सुसज्जित है।

भारत का सुदूर संवेदन कार्यक्रम

           भारत द्वारा अन्तरिक्ष कार्यक्रम का शुभारम्भ सन् 1972 में भारत सरकार द्वारा अन्तरिक्ष आयोग (Space Commission) एवं अन्तरिक्ष विभाग (Department of Space-DOS) की स्थापना के साथ प्रारम्भ हुआ था। इनकी स्थापना में अन्तरिक्ष कार्यक्रम को अति व्यापक बनाया गया जिसके अन्तर्गत अन्तरिक्ष प्रक्षेपण प्रणाली (Space Launch System) उपग्रहों का विकास तथा उपयोग को विशेष महत्व दिया गया। यह एक पूर्ण संगठित कार्यक्रम था जो विश्वसनीय अन्तरिक्ष सेवाओं की व्यवस्था करता है। अन्तरिक्ष विभाग (DOS) के अन्तर्गत भारतीय अनुसंधान संगठन (ISRO), राष्ट्रीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम की योजनाओं के विकास तथा इनको कार्यान्वित करने में मूलभूत भूमिका निभाता है। भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (Physical Research Laboratory) अहमदाबाद तथा तिरुपति के पास स्थित राष्ट्रीय आयनमण्डलीय, समतापमण्डलीय तथा अधोमण्डलीय रडार सुविधायें अन्तरिक्ष विज्ञान की खोज में कार्य करती है। ये सब अन्तरिक्ष विभाग द्वारा संचालित होते हैं। हैदराबाद में स्थित राष्ट्रीय सुदूर संवेदन संस्था (National Remote Sensing Agency-NRSA) एक स्वायत्त संस्था है जो अन्तरिक्ष आधारित सुदूर संवेदन सूचनाओं को उपयोगकर्ता तक पहुंचाता है। इसके अतिरिक्त अन्तरिक्ष विभाग अन्तर्गत कार्यरत अन्तरिक्ष कारपोरेशन लिमिटेड, बाजार आधारित हार्डवेयर तथा अन्य सुविधाओं को उपलब्ध कराता है।

प्रारंम्भिक प्रयोग (Early Experiments)

          अन्तरिक्ष क्षेत्र में भारत द्वारा किये गये प्रारम्भिक प्रयोग इस प्रकार हैं-

आर्यभट्ट (Aryabhat):-

         भारत का प्रथम उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ 19 अप्रैल, 1975 में पृथ्वी के कक्ष के नजदीक सोवियत संघ की सहायता से अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। भास्कर (Bhaskar) भास्कर-1 का प्रक्षेपण 7 जून, 1979 में व भास्कर-2 का प्रक्षेपण 20 नवम्बर, 1981 में रूस के इन्टर कौसमोस रॉकेट की सहायता से किया गया था। इन पर एक दृश्य बैंड तथा दूसरा अवरक्त बैंड में कार्य करने वाले दो टेलीविजन कैमरा तथा तीन आवृत्ति निष्क्रय लघुतरंग रेडियोमीटर लगे हुये थे।

एप्पल (Ariane Passanger Payload Experiment- APPLE):-

          एप्पल एक भू-तुल्यकालिक संचार उपग्रह था जिसे 19 जून, 1981 में यूरोप अन्तरिक्ष संस्था (ESA) के एरिओन प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपित किया गया। इसका उपयोग कई संचार कार्यक्रमों को संचालित करने के लिये किया गया।

रोहिणी क्रम (Rpjomo Series):-

          रोहिणी क्रम के उपग्रह भारत द्वारा निर्मित SLV-3 प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपित किये गये। ये सभी तकनीक एवं वैज्ञानिक उपग्रह थे। रोहिणी-1 का उपयोग SLV-3 प्रक्षेपणयान की क्षमता को परखने के लिये किया गया। रोहिणी-3 व 3 में लेंडमार्क संवेदक पे-लोड (Landmark Sensor Payload) लगा हुआ था। रोहिणी क्रम के दो अन्य उपग्रह SROSS-C व S2, को क्रमश: 20 मई, 1992 तथा 4 मई, 1994 को भारत में निर्मित उपग्रह प्रक्षेपणयान ASLV द्वारा प्रक्षेपित किया गया। इन पर दो वैज्ञानिक पे-लोड, एक रिटार्डिंग पोटेंशियल एनालाइजर (Retarding Potential Analyser) तथा GRB (Gram Ray Burst) संसूचक (Detector) लगे हुये थे। SROSS-S2, अभी भी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सूचनाओं को उपलब्ध कराता है।

साइट (Satellite Instructional Television Experiment-SITE):-

             यह एक प्रकार की अनुसंधान परियोजना थी जिसका उद्देश्य उपग्रह तकनीक सम्भावनाओं का पता लगाना था। इस प्रयोग को संयुक्त राज्य अमेरिका के ATS-6 (Application Technology Satellite) की सहायता से वर्ष 1975-76 के दौरान सम्पन्न किया गया था। इस तकनीक को संचार के क्षेत्र में प्रभावशाली बनाया गया।

स्टेप (Satellite Telecommunication Experiment Project-STEP):-

            स्टेप को 1977-79 के दौरान फ्रान्स जर्मनी सिमफोनी उपग्रह की सहायता से सम्पन्न किया गया। इसका प्रमुख उद्देश्य घरेलू दूरसंचार तथा भूमि पर तकनीकी ढांचा तैयार करने के लिये भू-स्थैतिक उपग्रह प्रणाली का क्रियान्वयन कर अनुभव प्राप्त करना था।

भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (Indian National Satellite System-INSS):-

             भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली भारतीय अन्तरिक्ष संस्थान (ISRO), दूरसंचार विभाग, भारतीय मौसम विभाग, आकाशवाणी, दूरदर्शन इत्यादि कई विभागों के सामूहिक प्रयास का प्रतिफल है। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय दूरसंचार, आकाशवाणी व दूरदर्शन का विस्तार एवं मौसम के बारे में जानकारी प्राप्त करना है। INSAT क्रम भू-स्थैतिक उपग्रह हैं।

इन्सैट-1 A (INSAT- 1A) इन्सैट-1A को 10 अप्रैल, 1982 को कैप कारनवेल (अमेरिका) से छोड़ा गया लेकिन 6 दिसम्बर, 1982 के बाद इसने कार्य करना बंद कर दिया। इसके पश्चात इन्सैट-1B को अगस्त, 1983 में कैप कारनवेल से सफलतापूर्वक गया और इसके साथ ही भारत एशिया में बहुउद्देशीय उपग्रह छोड़ने वाले जापान इन्डोनेशिया के बाद तीसरा देश हो गया। इन्सैट-1C को यूरोपियन अन्तरिक्ष संस्था द्वारा एरीयन 3 राकेट की सहायता से 22 जुलाई, 1988 में फ्रेंच गुयाना से छोड़ा गया था। नवम्बर 1989 को इसे अनुपयोगी घोषित किया गया था। इन्सैट-1D के अमेरिका प्रक्षेपण पैड से 12 जून, 1990 को छोड़ा गया। यह 17 जुलाई, 199 से उपयोग में आया। यह इन्सेट-1 का चौथा एवं अन्तिम उपग्रह था। इसके द्वारा दूरसंचार, आकशवाणी, दूरदर्शन तथा विज्ञान के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन आये।

उपग्रहों के विकासइन्सैट-2 (INSAT-2):-

          भारत द्वारा स्वदेशी तकनीक से निर्मित यह इन्सैट श्रृंखला द्वितीय पीढ़ी का उपग्रह है। इन्सैट-2A को एरियन-4 राकेट की सहायता से 10 जुलाई, 195 को छोड़ा गया। यह उपग्रह इन्सेट-1 श्रृंखला से अधिक शक्तिशाली श्रेणी का था। इसके द्वारा भारत को विदेशी लीग अरबसैट (ARABSAT) से छुटकारा मिला जिस पर प्रतिवर्ष भारत द्वारा 2 करोड़ विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती थी।

       इसी क्रम में इन्सेट-2B स्वदेशी तकनीक से निर्मित था। इसका 23 जुलाई, 1993 को अन्तरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। इन्सैट-2B निरन्तर क्रियाशील है। 4 जून 1997 का दिन भारत के लिये सबसे गौरवशाली दिन था, जब भारत ने अपने ही देश में निर्मित 2079 किलोग्राम का इन्सैन्ट-2D को बाह्य अन्तरिक्ष में स्थापित किया। इन्सैट-2D बुनियादी टेलीफोन सुविधा तथा दूरदर्शन के कार्यक्रमों को दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए 23 ट्रांसपोंडर्स (Transponders) लगे हैं। इसी श्रृंखला के पांचवें उपग्रह इन्सैट-2E को भारत ने 3 अप्रैल, 1999 को छोड़ा तथा इसके साथ ही भारत उन देशों की श्रेणी में आ गया जो उपग्रह को दूसरे देशों को लीज पर देते हैं। इन्सैट-2E के 11 ट्रान्सपोंडर्स को भारत दूसरे देशों को दस वर्ष की लीज पर देने के बारे में विचार कर रहा है।

       इन्सैट क्रम के उपग्रहों का उपयोग निम्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक किया जा रहा है-

1. दूर संचार (Telecommunication):-

              इन उपक्रमों के माध्यम से भारत दूरदर्शन व आकाशवाणी के विभिन्न कार्यक्रमों को पूरे विश्व में प्रसारित कर रहा है। दूरसंचार के क्षेत्र में आज भारत ने पर्याप्त प्रगति कर ली। देश अपने दूर-दराज के गांवों को भी दूरभाषा की सुविधा से आपस में जोड़ सकने में सक्षम हो सका है। आज भारत अपने उपग्रहों के माध्यम से ई-मेल, इन्टरनेट इत्यादि त्वरित संचार सुविधाओं को अपने नागरिकों को दे सकने में सक्षम है।

2. मौसम विज्ञान (Meteorology ):-

          प्रतिघंटा सामयिक दृश्यावलोकन से मौसम के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन इन्सैट क्रमों के उपग्रहों द्वारा किया जा सकता है। इनमें प्रमुख हैं- तूफान, चक्रवात, प्रतिचक्रवात, समुद्रीय उत्थान, बादलों के ऊपर तापमान, जल राशियाँ बर्फ व हिम आवरण इत्यादि का सफलतापूर्वक अध्ययन किया जा सकता है। इन्सैट उपग्रहों में स्वतः सूचना एकत्र करने वाले प्लेटफार्म लगे हुये हैं जो समुद्रों, महासागरों एवं मौसम संबंधी जानकारियों को केन्द्रीय प्रक्रिया स्टेशन तक पहुंचाने का कार्य करते हैं।

उपग्रहों के विकास

3. रेडियो तथा दूरदर्शन (Radio and Television):-

            दुर्गम एवं ग्रामीण क्षेत्रों में आवर्धक (Augmented) दूरदर्शन प्राप्तकर्ता द्वारा सीधे दूरदर्शन का प्रसारण करता है।

भारतीय सुदूर संवेदक उपग्रह क्रम (Indian Remote Sensing Satellite Series-IRS):-

           भारत सुदूर संवेदन उपग्रह श्रृंखला का प्रथम उपग्रह IRS-1A को मार्च 1988 में सोवियत वोस्टक रॉकेट (Soviet Vostak Rocket) की सहायता से अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया। इसी श्रृंखला का द्वितीय उपग्रह IRS-1B को अगस्त, 1991 को प्रक्षेपित किया गया जो अभी भी निरन्तर कार्य कर रहा है। इस पर 72.5 मीटर विभेदन के LISS-1 तथा 236.25 मीटर के LISS 2A व LISS-2B संवेदक के दो कैमरे लगे हुये हैं। ये कैमरे चार स्पैक्ट्रम बैंड 0.45 से 0.86 माइक्रोमीटर पर कार्य करते हैं। इसी प्रकार तृतीय उपग्रह IRS-1C को 28 दिसम्बर, 1995 में रूसी रॉकेट द्वारा मोलिया से प्रक्षेपित किया गया। इस पर निम्न तीन कैमरे लगे हुये थे-

(i) पेंक्रोमेटिक कैमरा (Panchromatic Camera-PAN):- यह एक उच्च विभेदक (5.8 मीटर) पेंक्रोमेटिक बैंड पर कार्य करता है जिसकी स्वाथ चौड़ाई 70 किमी, होती हैं। इसमें स्टीरियोस्कोपिक बिम्ब देखने की क्षमता है।

(ii) LISS-3 (A Linear Imaging Self Scanning Sensor):- यह चार स्पेक्ट्रल बैंड पर कार्य करता है। इनमें तीन दृश्य/अवरक्त स्पैक्ट्रल (VNIR) बैंड तथा एक लघु तरंग अवरक्त (SWIR) प्रभाग है। इसका भूमि विभेदन VNIR बैंड पर 23.5 मीटर तथा SWIR बैंड पर 70.5 मीटर है जिनकी स्वाथ चौड़ाई क्रमशः 41 किमी० तथा 148 किमी० है ।

(iii) WIFS ( A Wide Field Sensor-WIFS):- यह एक निम्न विभेदक (188.3 मीटर) कैमरा है जिसकी स्वाथ चौड़ाई 810 किमी० है। उपग्रह में एक टेपरिकार्डर भी है जो आंकड़ों को अंकित करता है।

        चतुर्थ उपग्रह IRS-1D को 29 सितंबर 1997 को प्रक्षेपित किया गया जो IRS-IC के ही समान है। IRS-P2 तथा IRS-P1, को भारत में निर्मित PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) द्वारा क्रमश:, 15 अक्टूबर, 1994 व 21 मार्च, 1996 को प्रक्षेपित किया गया। IRS IA व IB की ही भांति IRS-P2, में भी LISS-2 कैमरा लगा है जबकि IRS-P3 में WIFS कैमरा लगा हुआ है।

         IRS-P4 को PSLV-C2, द्वारा 26 मई, 1999 को सफलतापूर्वक अन्तरिक्ष में छोड़ा गया। यह अपने तरह का एक नया प्रयोग था। इस पर समुद्रीय रंगीन मोनीटर (Ocean Colour Monitor) तथा बहु आवृत्ति स्कैनिंग लघुतरंग रेडियोमीटर (Multi-Frequency Scanniring Microwave Radiometer) लगे हुये हैं। 

उपग्रहों के विकास

             उपग्रह नियंत्रण केन्द्र बंगलौर में स्थित है। इसके अतिरिक्त लखनऊ तथा माउरीटियस उपस्टेशन भी निरन्तर आई. आर. एस. उपग्रह का प्रबोधन (Monitor) करते हैं। राष्ट्रीय सुदूर संवेदन संस्था (NRSA) का आंकड़ों को प्राप्त करने वाला स्टेशन हैदराबाद के पास सादनगर में स्थित है। यहां पर उपग्रह से आंकड़ों को प्राप्त कर इन्हें प्रयोग के योग्य बनाया जाता है। तत्पश्चात् हैदराबाद में NRSA द्वारा आंकड़ों को वितरित करने की सुविधा है।

           भारतीय सुदूर संवेदन प्रणाली का सबसे मुख्य आधार राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रणाली (National Natural Resources Management System-NNRMS) है जो भारत के प्राकृतिक संसाधनों के आंकड़ों का प्रभावशाली ढंग से प्रबन्धन करती है। आई. आर. एस. के आंकड़ों को कई उपयोगों में लाया जाता है जैसे कि कृषि फसलों का उत्पादन, अनुमान, सूखाग्रस्त क्षेत्रों का प्रबन्धन, बाढ़ क्षेत्रों का मानचित्रण, भूमि उपयोग मानचित्रण, बेकार भूमि का प्रबन्धन, जल संसाधनों का प्रबन्धन, समुद्रीय संसाधनों का सर्वेक्षण, नगरीय योजनायें, खनिज संभावनायें, वन सर्वेक्षण इत्यादि। आई. आर. एस. आंकड़ों का सबसे अनोखा उपयोग IMSD (Intergrated Mission for Sustainable Development) है। वास्तव में IMSD के अन्तर्गत 174 जिलों का सम्मिलित किया गया है। इसका प्रमुख उद्देश्य उपग्रहीय तथा सामाजिक व आर्थिक घरातलीय आँकडों की सहायता से सतत विकास (Sustainable Development) करना है।

प्रश्न प्रारूप

प्रश्न 2. उपग्रहों के विकास के इतिहास प प्रकाश डालें।

(Throw light on the historical development of satellite.)



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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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