Unique Geography Notes हिंदी में

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BA Geography All PracticalBA SEMESTER-IGEOMORPHOLOGY (भू-आकृति विज्ञान)PG SEMESTER-1

  14. River Landforms / नदी द्वारा निर्मित स्थलाकृति

  14. River Landforms

(नदी द्वारा निर्मित स्थलाकृति)


River Landforms

        बहते हुए जल को नदी की संज्ञा दी जाती है। जहाँ से नदी निकलती है उसे स्रोत क्षेत्र और जहाँ नदी समुद्र में मिलती है उसे मुहाना कहते है। अपरदन के दूतों में बहता हुआ जल सबसे प्रमुख अपरदन का दूत है। अमेरिकी भूगोलवेत्ता डब्लु० एम० डेविस ने सबसे पहले नदी से निर्मित स्थलाकृतियों की विवेचना अपरदन चक्र सिद्धान्त के माध्यम से करने का प्रयास किया था।

          डेविस के अनुसार नदी द्वारा अपरदन का कार्य चक्रिय होता है। नदी हमेशा आधारतल तक अपरदन का कार्य करती है। आधारतल तक नदी अपरदन समाप्त करती है तो ही नई उत्थान की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। जिससे पुनः नया अपरदन चक्र प्रारम्भ होती है। नदी के द्वारा ऊपरी भाग में अपरदित और निचले भाग में निक्षेपित स्थलाकृति का निर्माण होता है। नदी निम्नलिखित अपरदित स्थलाकृति का निर्माण करती है।

1. नदी घाटी का विकास–

(i) I- आकार की घाटी 

(ii) V- आकार की घाटी 

(iii) गॉर्ज तथा कैनियन

2. जल प्रपात

3. उच्छल्लिका/क्षिप्रिका एवं जलगर्तिका & अवनमन कुण्ड 

4. नदी वेदिका

5. नदी विसर्प

6. समप्राय मैदान और मोनाडनौक

नदी घाटी का विकास– 

(i) I- आकार की घाटी तथा

(ii) V- आकार की घाटी 

      डेविस महोदय ने बतलाया कि उत्थान के तत्काल बाद लघु सरिताएँ ढ़ाल के अनुरूप बहने लगती है जिसके कारण तलीय अपरदन का कार्य तीव्र गति से होने लगता है जिसके कारण I- आकार की घाटी विकसित होती है। इसी घाटी में कुछ समय के बाद तलीय अपरदन कम और क्षैतिज अपरदन अधिक हो जाने के कारण V- आकर की घाटी का निर्माण होता है। 

            

(iii) गॉर्ज तथा कैनियन

      गॉर्ज तथा कैनियन दोनों ही V-आकार की घाटियों के रूप में होते है जिनमें किनारे की दीवाल अत्यंत खड़े ढ़ाल वाली होती है तथा चौड़ाई की अपेक्षा गहराई बहुत अधिक होती है। जब नदियाँ कठोर चट्टानों को काटती है तो निर्मित गहरी घाटी गॉर्ज तथा जब मुलायम चट्टानों को काटती है तो निर्मित गहरी घाटी कैनियन कहलाता है। जैसे- सिंधु नदी द्वारा निर्मित सिंधु गॉर्ज (जम्मू कश्मीर में गिलगिट के पास) तथा कोलरैडो नदी द्वारा निर्मित ग्रांड कैनियन (USA)।

2. जल प्रपात

      जब नदियाँ अधिक ऊँचाई से खड़े ढाल के ऊपरी भाग से नीचे की ओर गिरती है तो जलप्रपात का निर्माण करती है। इसमें कठोर एवं मुलायम चट्टान क्षैतिज व्यवस्थित होती है। उदाहरण भारत मे शरावती नदी पर निर्मित जोग जलप्रपात (कर्नाटक)।

3. उच्छल्लिका/क्षिप्रिका

      जब नदी अपने मार्ग से प्रवाहित हो रही हो और इस क्रम में इसके तल पर अगर कठोर चट्टानों एवं मुलायम चट्टानों लम्बवत व्यवस्थित हो तो मुलायम चट्टानों का तो तो अपरदन कर देती है लेकिन कठोर चट्टान के अपरदन न कर पाने के कारण चट्टानों पर जल उछलते हुए बहने की प्रवृति रखती है। इसे ही उच्छल्लिका/क्षिप्रिका कहते हैं। उदाहरण- USA का सेंट लौरेंस नदी पर स्थित नियाग्रा जलप्रपात विश्व का सबसे बड़ा Rapid  का उदाहरण है।

जलगर्तिका & अवनमन 

      नदी की तली में स्थित चट्टानों को जब नदी उखाड़कर फेंक देती है तो निर्मित गर्तों को जलगर्तिका कहते है। जब जलगर्तिका की गहराई तथा व्यास अधिक हो जाता है तो उसे अवनमन कुंड कहते है।

4. नदी वेदिका

        नदी की घाटी के दोनों किनारों पर स्थित जलस्तर में परिवर्तन के कारण या भूपटल के उत्थान एवं पतन के कारण सीढ़ीनुमा स्थलाकृति का विकास होता है जिसे नदी वेदिका की संज्ञा दी जाती है।

5. नदी विसर्प 

      जब नदी प्रौढ़ावस्था से गुजर रही होती है तो नदियाँ मोड़ लेकर बहने लगती है जिसे नदी विसर्प कहा जाता है। मोड़ लेती हुई नदी के जलस्तर में या आधारतल में किसी तरह का परिवर्तन होता है तब मोड़ के अंदर मोड़ विकसित होता है। इसे अधःकर्तित विसर्प कहते है।

6. समप्राय मैदान और मोनाडनॉक

        डेविस के अपरदन चक्र की अंतिम अवस्था में नदियों द्वारा लम्बवत अपरदन नहीं हो पाता है। निरपेक्ष तथा सापेक्ष उच्चावच दोनों न्यूनतम होते है। घाटियाँ उथली तथा अत्यधिक चौड़ी हो जाती है इस पर नदियाँ मियांडर बनाती हुई विस्तृत बाढ़ के मैदानों का निर्माण करती है, लगभग इस समतल मैदान को डेविस ने सम्प्राय मैदान (पेनिप्लेन) का नाम दिया है। इस सतह पर कठोर चट्टान के लम्बवत टुकड़े यत्र-तत्र दिखाई पड़ते है इन अवशिष्ट पहाड़ियों को ही डेविस ने मोनाडनॉक कहा है।

नदी द्वारा निर्मित निक्षेपित स्थलाकृति

नदी  निम्नलिखित निक्षेपित स्थलाकृतियों का निर्माण करती है-

1. जलोढ़ शंकु

2. जलोढ़ पंख

3. प्राकृतिक तटबन्ध

4. बाढ़ का मैदान

5. गोखुर झील

6. डेल्टा

1. जलोढ़ पंख और जलोढ़ संकु-

      पहाड़ी भाग में नदियाँ संकीर्ण एवं ढलवाँ भाग को छोड़कर ज्यों ही मैदानी भाग में प्रवेश करती है तो ढ़ाल में कमी होने के कारण नदी जल की गति घट जाती है। जिसके कारण पहाड़ी क्षेत्र से लाये गए मलवा का निक्षेपण प्रारंभ हो जाता है। बड़े आकार के चट्टानों के निक्षेपण अगले भाग में होता है। साथ ही छोटी-छोटी सरिताएँ मार्ग बदलते हुए इधर-उधर प्रवाहित होते रहती है जिस कारण शंकुनुमा स्थलाकृति का निर्माण होता है। इसे जलोढ़ शंकु कहते है। जैसे- शिवालिक पर्वत के दक्षिणी ढ़ाल पर।

      कई जलोढ़ शंकु जब आपस में मिल जाते है तब जलोढ़ पंख का निर्माण होता है।  

जलोढ़ पंख

2. प्राकृतिक तटबंध और बाढ़ का मैदान

     वर्षा ऋतु में जब बाढ़ आती है तो नदी जल के साथ लाये गए मलवा को नदी किनारे पर  समतल क्षेत्र में फैला देती है जिससे एक चौरस मैदान का निर्माण होता है, उसे जलोढ़ मैदान या बाढ़ का मैदान कहते है। अगर बाढ़ के दिनों में नदी के जल के प्रवाह में अचानक वृद्धि हो जाये तो मैदानी क्षेत्र में पहले से फैले पानी स्थिर रह जाते है, जिसके कारण नदी के किनारों पर एक उत्थित स्थलाकृति का निर्माण होता है, जिसे प्राकृतिक तटबंध कहते है। गंगा नदी के द्वारा पटना के पास, ब्रह्मपुत्र नदी के द्वारा गुवाहाटी के पास, चीन का ह्वांगहो नदी और गुजरात के पास, ताप्ती नदी प्राकृतिक तटबंध का निर्माण करती है। 

3. गोखुर झील-

               जब नदियाँ मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है तो मोड़ लेकर बहने लगती है जिसे विसर्प (Meander) कहते है।                         

            कालान्तर में एक समय ऐसा आता है जब नदी के दो मोड़ आपस में मिल जाते है और मुड़ा हुआ भाग अलग हो जाता है, चूंकि इसकी आकृति गाय के खुर के समान होता है, इसीलिए इसे गोखुर झील कहा जाता है। गंगा के मैदानी क्षेत्र में इसके कई प्रमाण मिलते है। 

4. डेल्टा-

      जब नदी जल समुद्र के शांत पानी में प्रवेश करती है तो नदी का प्रवाह रुक सा जाता है जिसके कारण नदी के मुहाने पर मलवा के निक्षेपण से त्रिभुजाकार स्थलाकृति का निर्माण होता है जो डेल्टा कहलाता है। 

• डेल्टा शब्द की उत्पति मिस्र से हुई है।

• डेल्टा शब्द का प्रथम प्रयोग ‘हेरोडोटस’ के द्वारा किया गया था। 

• डेल्टा आकार के दृष्टिकोण से यह कई प्रकार का होता है-

         चापाकार डेल्टा (नील नदी का डेल्टा, गंगा ब्रह्मपुत्र का डेल्टा), पंजाकर डेल्टा (मिसौरी तथा मिसीसिपी का डेल्टा), एश्चुअरी डेल्टा (इसका निर्माण जलमग्न नदियों के मुहाने पर एश्चुअरी के किनारों पर जमाव के कारण होता है- भारत की नर्मदा एवं ताप्ती नदियाँ)

निष्कर्ष

             उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि बहते हुए जल से आर्द्र प्रदेश में विशिष्ट अपदनात्मक एवं निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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