Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOMORPHOLOGY (भू-आकृति विज्ञान)

33. अन्तर्जात एवं बहिर्जात बल (Endogenetic and Exogenetic Forces)

33. भू-आकृति विज्ञान में अन्तर्जात एवं बहिर्जात बल

(Endogenetic and Exogenetic Forces)



अन्तर्जात बल (Endogenetic Forces):-

     पृथ्वी के आन्तरिक भाग अथवा भूगर्भ में सक्रिय बलों को अन्तर्जात बल कहते हैं। इन्हें निर्माणकारी शक्तियाँ (Constructional Forces) भी कहा जाता है। ये बल पृथ्वी में गुप्त रूप से कार्य करते हैं। इनकी उत्पत्ति पृथ्वी के आन्तरिक भाग में होने के कारण इनके विषय में बहुत कम ज्ञान प्राप्त है।

       सम्भवतः इन बलों की उत्पत्ति उष्ण पृथ्वी के क्रमशः शीतल होकर संकुचन, परिभ्रमण गति से ह्रास, रेडियो ऐक्टिव पदार्थों के विघटन से उत्पन्न ताप, संवाहनिक धाराओं, आदि के कारण होती है। पृथ्वी के भीतर उच्च तापमान ही कदाचित भू-पटल में उत्पन्न परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी है। तापीय अन्तर के कारण शैलों में प्रसार एवं संकुचन होता है, इससे शैलें स्थानान्तरित होती हैं। परिणामतः अनेक स्थलरूप उत्पन्न होते हैं।

     अन्तर्जात बल दो प्रकार के होते हैं-

(i) क्षैतिज (Horizontal) अन्तर्जात बल तथा

(ii) ऊर्ध्वाधर/लम्बवत (Vertical) अन्तर्जात बल।

        इनके कारण दो प्रकार की संचलन (Movements) या घटनाएँ होती हैं-

(i) आकस्मिक घटनाएँ या ज्वालामुखी एवं भूकम्प (Volcanism and Earthquakes)

       इस बल से भूपटल पर ऐसी आकस्मिक घटनाओं का आगमन होता है जो विनाशकारी परिणाम वाली होती हैं। इसके प्रमुख उदाहरण हैं- भूकम्प, भूस्खलन, एवलांश तथा ज्वालामुखी।

(ii) पटलविरूपणकारी घटनाएँ (Diastrophism)            

       ये बल पृथ्वी के आन्तरिक भाग में अत्यन्त धीमी गति से क्षैतिज तथा लम्बवत दोनों रूपों में क्रियाशील होते हैं जिससे धरातल पर हजारों वर्षों बाद किसी बड़े स्थलरूप का निर्माण हो जाता है। क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से ये पुन: दो प्रकार के होते हैं-

(अ) महादेशीय संचलन (Epierogenetic Movement)-

        यह संलचन भू-गर्भ में लम्बवत दिशा में क्रियाशील रहता है। इस लम्बवत् संचलन को उत्पन्न करने वाले बल को अरीय बल (Radial Force) कहते हैं, क्योंकि यह पृथ्वी की त्रिज्या की दिशा में ही कार्य करता है। इस संचलन से महाद्वीपीय भागों का निर्माण एवं उसमें उत्थान, निर्गमन तथा निमज्जन की क्रियाएं घटित होती हैं।

        जब महाद्वीपीय भाग या उसका कोई क्षेत्र अपनी सतह से ऊपर उठ जाता है तब उस पर लगने बाले बल को उपरिमुखी संचलन (Upward movement) कहते हैं तथा ऊपर उठने की क्रिया, उभार (Upliftment) के नाम से जानी जाती है।

        इसके विपरीत, जब महाद्वीपीय भागों में धंसाव हो जाता है तो उस पर क्रियाशील बल को अधोमुखी संचलन (Downward Movement) तथा धंसाव की क्रिया को अवतलन (Subsidence) कहा जाता है। धंसाव के दूसरे रूप में स्थलखण्डों का सागरीय जल के नीचे निमज्जन (Submergence) हो जाता है। यह क्रिया तटीय या सागरीय भागों में ही घटित होती है।

(ब) पर्वतीय संचलन (Orogenetic Movement)-

       पृथ्वी के आन्तरिक भाग से क्षैतिज रूप में पर्वतों के निर्माण में सहायक संचलन बल को पर्वतीय संचलन के नाम से जाना जाता है। इस बल को स्पर्शरेखीय बल (Tangential Force) भी कहते हैं। यह बल प्रायः दो रूपों में क्रियाशील होता है-

(i) जब यह बल दो विपरीत दिशाओं में क्रियाशील होता है तो तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसे तनावमूलक बल कहा जाता है। इस बल के परिणामस्वरूप धरातल में भ्रंश (Fault), दरार (Fracture), चटकनें (Cracks), आदि का निर्माण होता है।

(ii) जब पर्वतीय संचलन बल आमने-सामने क्रियाशील होता है तो उससे चट्टानें संपीडित हो जाती हैं। इस बल को संपीडनात्मक बल (Compressional Forces) कहा जाता है। इसके कारण धरातल पर संवलन (Wrap) तथा वलन (Fold) पड़ जाते है।

बहिर्जात बल (Exogenetic Forces):-

        भू-पटल पर अन्तर्जात बलों के सक्रिय होने से अनेक विषमताएँ पैदा हो जाती हैं। इन विषमताओं को दूर करके धरातल को सपाट बनाने की क्रिया भी प्रकृति में सम्पन्न होती रहती है। यह कार्य बहिर्जात बलों द्वारा किया जाता है जिन्हें विध्वंसकारी बल (Destructional Forces) भी कहते हैं। धरातल पर मौजूद स्थलरूपों को काट छांट तथा घिसकर क्षीण बनाने के कारण इन बलों को विनाशकारी बल कहा गया है।

      प्रवाही जल, पवन एवं हिम इसके प्रमुख कारक या साधन (Agents) हैं। इन साधनों को सक्रिय बनाने में तीन प्रमुख कारकों का योगदान हैं-

(i) सूर्यातप (Insolation),

(ii) गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) एवं

(iii) पृथ्वी का घूर्णन (Earth’s Rotation)।

      सूर्यातप ही धरातल पर तापमानों के विषम वितरण का कारण है। तापीय भिन्नताओं से वायुदाब में अन्तर आता है तथा वायु विक्षोभ, पवन, आदि उत्पन्न होते हैं। यही नहीं, शैलों के अपक्षय में भी सूर्यातप प्रभावकारी होता है। गुरुत्व तथा पृथ्वी का घूर्णन पवन तथा हिम के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं।

          बहिर्जात बलों को सक्रिय बनाने में किसी न किसी गतिशील साधन का योगदान अवश्य होता है। प्रवाही जल, हिम, पवन, आदि गतिशील साधन ही धरातल पर काट-छांट का कार्य करते हैं। शैलों की काट-छांट, घिसने तथा क्षीण बनाने की क्रिया को अनाच्छादन (Denudation) कहते हैं।

मोन्कहाउस (Monkhouse) के अनुसार- “अनाच्छादन में उन सभी साधनों के कार्य सम्मिलित हैं जिनसे भू-पटल के किसी भाग का पर्याप्त विनाश, अपव्यय तथा हानि होती है। इस उपलब्ध पदार्थ का अन्यत्र निक्षेप होता है तथा इनसे अवसादी शैलों का निर्माण होता है।”

    भूपटल के अनाच्छादन में दो प्रक्रम अथवा शक्तियां मुख्य हैं-

(i) स्थैतिक प्रक्रम एवं

(ii) गतिशील प्रक्रम।

1. स्थैतिक प्रक्रम (Static processes):-

       स्थैतिक प्रक्रिया से अभिप्राय शैलों की अपने ही स्थान पर (in situ) टूट-फूट से है। इसके द्वारा शैलें ढीली पड़ती हैं तथा चट्टानों का चूर्ण बनता है। इस क्रिया को अपक्षय (Weathering) कहते हैं। अपक्षय भी दो प्रकार होता है-

         यांत्रिक अपक्षय में चट्टानों के स्वरूप में विघटन होता है और रासायनिक अपक्षय में चट्टानें वियोजन द्वारा परिवर्तित होती हैं।

2. गतिशील प्रक्रम (Mobile Processes):-

      गुरुत्व प्रवाही जल (वर्षा जल, नदी, भूमिगत जल), पवन, हिमानी, लहरें, आदि साधन शैल पदार्थों को तोड़ते-फोड़ते हैं तथा अपक्षयित पदार्थ उठाकर अन्यत्र ले जाकर निक्षेपित कर देते हैं। इस क्रिया के अन्तर्गत वृहत् क्षरण (Mass Movement) तथा अपरदन (Erosion) सम्मिलित हैं। परिवहन एवं निक्षेप भी अपदन से सम्बद्ध हैं।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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