3. COMPLETE EDUCATIONAL PSYCHOLOGY CAPSULE 3 / सम्पूर्ण शिक्षा मनोविज्ञान
3. COMPLETE EDUCATIONAL PSYCHOLOGY CAPSULE 3
सम्पूर्ण शिक्षा मनोविज्ञान
PSYCHOLOGY CAPSULE 3
एक नजर में इन्हें जरुर देखें-
अधिगम (सीखना):
अधिगम शिक्षा मनोविज्ञान का ही मुख्य घटक है। शिक्षा के क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण स्थान बताया गया है। क्योंकि शिक्षा का सर्वप्रथम उद्देश्य ही सीखना है। हम सभी जानते है कि मनुष्य के जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक सीखना ही है। घर, स्कूल एवं अपने आस-पास के वातावरण से मनुष्य कुछ न कुछ निरंतर सीखता ही रहता है और अपना सर्वांगीण विकास करता है।
उदाहरण के लिए छोटे बालक के सामने जलता हुआ दीपक ले जाने पर वह दीपक की लौ को पकड़ने का प्रयास करता है। इस प्रयास में उसका हाथ जलने लगता है। वह हाथ को पीछे खींच लेता है। पुनः जब कभी उसके सामने जलता हुआ दीपक लाया जाता है तो वह अपने पूर्व अनुभव के आधार पर लौ पकड़ने के लिए हाथ नहीं बढ़ाता है बल्कि वह उससे दूर हो जाता है। इसी विचार को स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया करना कहते हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अनुभव के आधार पर बालक के स्वाभाविक व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है। अधिगम का सर्वोत्तम सोपान अभिप्रेरणा है।
सीखने की भूमिका
सीखना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, व्यक्ति जन्म से ही सीखना प्रारम्भ कर देता है और मृत्यु पर्यन्त सीखता रहता है।
अधिगम का प्रत्यय
अधिगम से अभिप्राय अनुभवों के द्वारा व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया से है।
➡सीखना किसी क्रिया/स्थिति के प्रति – सक्रिय प्रतिक्रिया /अनुक्रिया
अधिगम सम्बन्धित परिभाषाये:-
➡ स्किनर:- ” सीखना व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।”
➡वुडवर्थ:- “नवीन ‘ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखने की प्रक्रिया है।”
➡गेट्स :- “सीखना अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।”
➡क्रो एण्ड क्रो :- ‘सीखना आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है।”
अधिगम की विशेषताऐं:-
➡अधिगम जीवन-पर्यन्त चलता है।
➡अधिगम उद्देश्य पूर्ण है।
➡अधियम व्यवहार में परिवर्तन लाता है।
➡अधिगम विकास है।
➡अधिगम अनुकूलन है।
➡अधिगम सार्वभौमिक है।
➡अधिगम विवेकपूर्ण है।
➡अधिगम निरन्तर है।
➡अधिगम खोज एवं परिवर्तन है।
➡अधिगम सक्रिय प्रक्रिया है।
➡अधिगम व्यक्तिगत व सामाजिक होता है।
➡अधिगम एक नया कार्य है।
➡अधिगम अनुभवों का संगठन है।
➡अधिगम वातावरण की उपज है।
➡अधिगम समायोजन है।
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक व दशाएँ
➡वातावरण
➡प्रेरणा
➡परिपक्वता
➡बालकों का स्वास्थ्य
➡सीखने की इच्छा
➡शिक्षण प्रक्रिया
➡विषय सामग्री का स्वरूप
➡सीखने की विधि
➡सम्पूर्ण परिस्थिति
➡सीखने का समय व थकान
अधिगम के सिद्धान्त:-
रायबर्न के अनुसार – “यदि शिक्षण विधियों में नियमों व सिद्धान्तों का अनुसरण किया जाता है, तो सीखने का कार्य अधिक संतोषजनक होता है। “
थार्नडाइक के अधिगम सम्बन्धी नियम –
थार्नडाइक ने कुल 8 नियम दिये जिसमें तीन प्रमुख व पाँच गौण या सहायक नियम दिये।
थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित अधिगम सम्बन्धी तीन प्रमुख नियम:–
1. तत्परता का नियम:- “यदि हम किसी कार्य को करने के लिए तत्पर रहे तो काम तत्काल तथा आसानी से हो जायेगा।” उदाहरण – घोड़े को पानी के तालाब तक ले जाया तो जा सकता है, लेकिन पीने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता क्योंकि घोड़ा पानी पीने के लिए तत्पर नहीं है।
2. अभ्यास का नियम:- ” इसे प्रयोग/अनुप्रयोग का नियम भी कहते हैं, ज्ञान को स्थायी करने के लिए अभ्यास करना अति आवश्यक है।”
किसी कवि ने कहा है –
“करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात ते, सिल पर होत निशान”
➡उपयोग का नियम:- ‘यदि कोई कार्य पहले किया गया है और अब उसको दुबारा किया जाता है तो वह हमारे मस्तिष्क में पुनः आ जाता है और ज्ञान स्थायी हो जाता है।’
➡अनुप्रयोग का नियम:- “यदि किसी किये हुए कार्य को पुनः नहीं करते हैं, तो हमारा मस्तिष्क उसे भुला देता है।”‘
3. प्रभाव संतोष असंतोष अथवा परिमाण का नियम :-
“यदि किसी कार्य को करने पर हमे संतोष प्राप्त होता है, वो हम उस कार्य को दुबारा करेंगे और यदि कार्य को करने पर हमे असंतोष होता है तो हम उस कार्य को दुबारा नहीं करेंगें।”
थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित अधिगम सम्बन्धी पाँच गौण या सहायक नियम
1. बहुप्रतिक्रिया का नियम:- कोई नया कार्य करने के लिए कई प्रकार की प्रतिक्रियाओं को अपनाया जाता है तथा उसमें से सही प्रतिक्रिया का पता लगाकर भविष्य में काम किया जाता है। (ज्ञात से अज्ञात की ओर)
2. मनोवृत्ति का नियम:- किसी कार्य को जिस मनोवृत्ति से (मन/मेहनत) में करेंगे हमे वैसी ही सफलता मिलेगी।
3. आंशिक क्रिया का नियम:- जब किसी कार्य को छोटे-छोटे भागों में बांटकर किया जाता है तो उस कार्य में सफलता प्राप्ति सुगम व सरल हो जाती है। (अंश से पूर्ण की और)
4. आत्मीकरण का नियम :- कोई नया कार्य करने पर उसमें किसी पुराने किये गये कार्य का ज्ञान मिला देना आत्मीकरण प्रक्रिया अधिगम से उसका स्थायी अंग बना लिया जाता है। (ज्ञात से अज्ञात की ओर)
5. साहचर्य परिवर्तन का नियम:- इस नियम में किसी कार्य को पूर्ण करने की क्रिया विधि तो पूर्ववत रखी जाती है, लेकिन परिस्थितियों में परिवर्तन कर दिया जाता है। उदाहरण :- पावलब का कुत्ता
नोट : मैं आशा करता हूँ कि शिक्षा मनोविज्ञान से सम्बंधित सभी CAPSULE आपके परीक्षा के लिए नींव का पत्थर साबित होंगे। अगर किसी भी प्रश्न के उत्तर को लेकर आपके मन में कोई संदेह हो तो हमसे Contact With us के माध्यम से, Comment या Email से Contact कर सकते है। मैं हमेशा आपके मंगल भविष्य की कामना करता हूँ।
Thank You @ By Dr. Amar Kumar