2. प्रदेशों का सीमांकन / प्रादेशीकरण / Regionalization / Delimitation of Regions
2. प्रदेशों का सीमांकन/प्रादेशीकरण
(Regionalization / Delimitation of Regions)
प्रदेशों का सीमांकन⇒![प्रदेशों का सीमांकन](https://www.geographynotespdf.com/wp-content/uploads/2022/08/REGIONALISATION-300x169.jpeg)
भौगोलिक प्रदेशों का सीमांकन / प्रादेशीकरण एक जटिल कार्य है। प्रारंभ में यह कार्य अनुभावाश्रित विधि से किया जाता था। लेकिन वर्तमान समय में प्रदेशों का सीमांकन सांख्यिकी विधि के द्वारा किया जा रहा है। अनुभावाधित विधि के द्वारा प्रदेशों के सीमांकन से दो प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती है:-
(1) दो प्रदेशों के बीच में एक संक्रमण पेटी का विकास होता था।
(2) विकास एवं नियोजन के कार्य में कठिनाई उत्पन्न होती थी।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद प्रदेशों के सीमांकन में सांख्यिकी विधि के साथ-साथ अनुभावाश्रित विधि को ध्यान में रखकर प्रादेशीकरण का कार्य किया जा रहा है। प्रदेशों के सीमांकन हेतु हेगेट महोदय ने Thiessen Polygon Model और न्यूनतम दूरी विधि (Minimum Distance Method) का विकास किया है।
Thiessen polygon विधि केन्द्रीयता पर आधारित है। हेगेट का मानना है कि किसी भी भौगोलिक प्रदेश की कोई-न-कोई विशिष्टता होती है और उस विशिष्टताओं का कहीं-न-कहीं केन्द्रीयकरण होता है। उसी केन्द्रीय स्थान से विशिष्टता का मूल्यांकन करके सीमांकन का कार्य किया जाता है।
कुछ भूगोलवेताओं ने प्रदेशों के सीमांकन हेतु गुरुत्वाकर्षण मॉडल विकास किया है। इसके लिए उन्होंनें निम्नलिखित सूत्र विकास किया है।
p = MA x MB /dxd
जहाँ:-
p = प्रदेश की सीमा है।
MA और MB = दो प्रदेशों की विशिष्टता
d = दो प्रदेशों के बीच की दूरी है।
इस मॉडल के आधार पर 60 के दशक तक प्रदेशों का सीमांकन किया जाता था। उपर में बताये गये दोनों मॉडल विशिष्ट विशुद्ध रूप से सांख्यिकी पर साधारित थे। इसमें अनुभावाश्रित विधि का उपयोग कहीं नहीं किया गया था। यही कारण है कि 60 के दशक के मध्य से सांख्यिकी सह अनुभावाश्रित विधि के द्वारा प्रदेशों के सीमांकन का कार्य किया जाने लगा।
यह मॉडल नियोजन प्रदेशों के सीमांकन हेतु उपयोगी मॉडल माना जाता है। इसी मॉडल के आधार पर राष्ट्रीय राजधानी प्रदेश का तथा भारत के अन्य महानगरीय प्रदेश के नियोजन का कार्य किया गया है।
इस विधि के अंतर्गत प्रथमतः गुरुत्वाकर्षण मॉडल से पहले किसी भी प्रदेश का बाहरी सीमा का निर्धारण करते हैं। उसके बाद अनुभव के आधार पर प्रदेशों के सर्वेक्षण कार्य कर गुरुत्वाकर्षण मॉडल के द्वारा निर्धारित प्रदेशों के सीमा में संशोधन का कार्य किया जाता है। यही कारण है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी प्रदेश का बाहरी सीमा सहारनपुर, भरतपुर, अलीगढ़ और सोनीपथ तक फैल चुका है।
निष्कर्ष
अतः ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि किसी भी भौगोलिक प्रदेश का सीमांकन उसकी विशिष्ट तथ्यों की पहचान कर की जाती है। वर्तमान भूगोल में प्रदेशों क सीमांकन नियोजन और विकास के लिए काफी उपयोगी है। प्रदेशों के सीमांकन का कार्य भूगोल में जहाँ एक ओर उपयोगिता लाता है वहीं अन्तरविषयक अध्ययन में भी मदद करता है।