Unique Geography Notes हिंदी में

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REGIONAL GEOGRAPHY (प्रादेशिक भूगोल)

8. What is meant by regional imbalance? Explain the reasons for regional imbalance. (प्रादेशिक असन्तुलन से क्या तात्पर्य है? प्रादेशिक असन्तुलन के कारणों का विवरण को समझाइए।)

8. What is meant by regional imbalance? Explain the reasons for regional imbalance.

(प्रादेशिक असन्तुलन से क्या तात्पर्य है? प्रादेशिक असन्तुलन के कारणों का विवरण को समझाइए।)


  regional imbalance    

     सापेक्षतः विकसित एवं आर्थिक दृष्टि से दबे हुए राज्यों का सह-अस्तित्व और प्रत्येक राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति की दृष्टि से भिन्नता को ही प्रादेशिक (क्षेत्रीय) असन्तुलन (Regional Imbalance) कहा जाता है। भारत जैसे संघीय राज्य के समन्वित विकास के लिए प्रादेशिक (क्षेत्रीय) विकास अनिवार्य है, किन्तु यहां प्रादेशिक भिन्नता स्पष्टतः दिखाई देती है।

      पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, आदि कुछ राज्य आर्थिक दृष्टि से बहुत विकसित हैं जबकि बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, आदि राज्य पिछड़े हुए हैं। वस्तुतः एक क्षेत्र के संसाधनों के अधिक क्षमतापूर्ण प्रयोग से वह क्षेत्र अत्यधिक विकसित हो जाता है तथा दूसरे क्षेत्र के संसाधनों के सम्भावित अधिकतम क्षमतापूर्ण उपयोग न होने से वह क्षेत्र अविकसित रह जाता है। यही प्रादेशिक असन्तुलन है।

प्रादेशिक असन्तुलन के कारण

      प्रादेशिक असन्तुलन के निम्नलिखित कारण हैं:-

(1) संसाधनों का असमान वितरण:-

      देश के विभिन्न भागों में प्रकृति प्रदत्त संसाधन जैसे- मिट्टी एवं जल, वन तथा खनिज असमान रूप से वितरित होने के कारण देश में कृषि एवं उद्योगों के विकास में विषमताएँ उत्पन्न होती हैं जिससे प्रादेशिक असन्तुलन उत्पन्न होता है।

(2) जनसंख्या का वितरण:-

       प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ देश के विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या का वितरण असमान पाया जाता है जिसके कारण भी प्रादेशिक असन्तुलन को बढ़ावा मिलता है।

(3) आवश्यक आर्थिक संरचना का अभाव:-

      देश के जिन क्षेत्रों में आर्थिक विकास के लिए आवश्यक आर्थिक संरचना, जैसे- यातायात एवं सन्देश वाहन के साधन, विद्युत् शक्ति, विपणन व्यवस्था खाद्य सुविधाओं का पर्याप्त विकास नहीं होता, वे क्षेत्र अपेक्षाकृत पिछड़े रहते हैं। इससे भी प्रादेशिक असन्तुलन को बढ़ावा मिलता है।

(4) आर्थिक शक्तियों का प्रभाव:-

         वे क्षेत्र जो पहले से विकसित होते हैं और जहां आर्थिक संरचनाएँ पहले से ही उपलब्ध होती हैं, उन क्षेत्रों में निजी पूँजी अधिक आकर्षित होती है। फलतः विकसित क्षेत्र और अधिक विकसित हो जाते हैं और क्षेत्रीय विषमताएँ बढ़ती हैं।

(5) सामाजिक एवं सांस्कृतिक घटकों का प्रभाव:-

       वे क्षेत्र जो पिछड़े हुए रूढ़िवादी होते हैं, वहां के निवासियों में सामान्यतया जीवन स्तर को सुधारने, अधिक बचत करने सम्बन्धी आदतों का अभाव रहता है जिसके परिणामस्वरूप ऐसे क्षेत्रों का अपेक्षाकृत कम विकास होता है जिससे प्रादेशिक असन्तुलन को बढ़ावा मिलता है।

(6) राजनीतिक प्रभाव:-

     ऐसे क्षेत्र जिनमें नागरिक शिक्षित होते हैं तथा राजनीतिक रूप से जागरूक होते हैं, अपने राजनीतिक महत्व के कारण सरकार पर इन क्षेत्रों के विकास के लिए अधिक दबाव डाल देते हैं। अतः ऐसे क्षेत्रों का अधिक विकास हो जाता है।

(7) सरकारी नीति:-

       सरकारी नीति भी प्रादेशिक असन्तुलन को प्रोत्साहन देती है। उदाहरण के लिए, भारत में योजनाकाल में सरकारी नीति पर इस बात का प्रभाव रहा है। विकसित क्षेत्रों में विनियोग करने से शीघ्र परिणाम सामने आ सकेंगे और यदि सीमित साधनों का इतने विशाल पिछड़े क्षेत्र में विनियोग किया गया तो साधन गरीबी के दुश्चक्र को तोड़ने में अधिक प्रभावशाली नहीं रह जाएंगे। परिणामस्वरूप विकसित क्षेत्रों में ही विनियोजन किया गया जिसके कारण भी प्रादेशिक असन्तुलन में वृद्धि हुई है।

(8) विदेशी व्यापार:-

      अर्द्ध विकसित देश विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भी पिछड़े हुए होते हैं। अतः उन्हें निर्यात का मूल्य कम मिलता है तथा आयात का मूल्य अधिक देना पड़ता है फलतः वे अपना विकास तेजी से नहीं क पाते हैं। इसके विपरीत विकसित देशों में विकास की गति और तेज हो जाती है फलस्वरूप प्रादेशिक असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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