Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOMORPHOLOGY (भू-आकृति विज्ञान)

23. डेविस और पेंक के अपरदन चक्र सिद्धांत का तुलनात्मक अध्ययन करें।

23. डेविस और पेंक के अपरदन चक्र सिद्धांत का तुलनात्मक अध्ययन करें।


डेविस और पेंक के अपरदन चक्र सिद्धांत का तुलनात्मक अध्ययन

      अमेरिकी भूगोलवेता डेविस की और जर्मन भूगोलवेता बाल्टर पेंक को “आधुनिक स्थलाकृति विज्ञान” का जन्मदाता माना जाता है। 1889 ई० में डेविस ने ‘ज्योग्राफिकल एसेज’ नामक पुस्तक में जबकि बाल्टर पेंक ने 1924 ई० में अनुसंधान प्रपत्र में “मॉरफोलोजिकल एनालिसिस ऑफ लैण्डफॉर्म” नामक शीर्षक से अपरदन चक्र का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इन दोनों के विचारों का तुलनात्मक अध्ययन दो शीर्षकों में बाँटकर करते हैं। जैसे- समानता और असमानता

समानताएँ

(i) दोनों ने अपना अपरदन चक्र का सिद्धांत आर्द्र प्रदेश के संदर्भ में प्रस्तुत किया।

(2) दोनों के अनुसार अपरदन चक्र के प्रारंभ में अपरदन का कार्य तेजी से और बाद में निक्षेपण का कार्य तेजी से होता है।

(3) दोनों ने अपरदन चक्र की तुलना मानव के जीवन चक्र से किया। जैसे- जिस प्रकार से मानव जीवनचक्र का 5 अंत होता है और पुनर्जन्म के बाद नयी जीवन चक्र प्रारंभ होता है। ठीक उसी तरह एक अपरदन चक्र समाप्त होता है और पुनरुत्थान के बाद दूसरा अपरदन चक्र प्रारंभ होता है।

(4) दोनों विद्वानों ने बताया कि अपरदन चक्र प्रारंभ होने के लिए उत्थान अति आवश्यक है।

(5) दोनों ने बताया कि बहते हुए जल के द्वारा अपरदन का कार्य आधारतल (S.L.) तक होता है।

(6) दोनों वैज्ञानिकों ने यह प्रकट किया कि अपरदन चक्र के अन्त में लगभग समतल मैदान का निर्माण होता है।

असमानताएँ:-

           वास्तव में डेविस एवं पेंक का विचार समानता के लिए नहीं बल्कि असमानता के लिए जानी जाती है। दोनों के विचारों को चार आधार पर अन्तर स्थापित किया जा सकता है-

(1) उत्थान के संदर्भ में

(2) समय के संदर्भ में

(3) ढाल विकास के संदर्भ में

(क) समप्राय मैदान के संदर्भ में

(1) उत्थान के संदर्भ में

          दोनों विद्वानों ने अपरदन चक्र की शुरूआत के लिए उत्थान को अनिवार्य माना है। लेकिन उत्थान की प्रक्रिया और स्थलाकृति पर उसके प्रभाव के संदर्भ में अलग-2 विचार है। जैसे- डेविस ने कहा कि उत्थान के बाद अपरदन होती है, जबकि पेंक के अनुसार उत्थान के साथ-2 अपरदन का कार्य चलता है। डेविस के अनुसार उत्थान में समय बहुत कम लगता है। इसलिए यह कार्य तीव्र गति से सम्पन्न होती है जबकि पेंक के अनुसार उत्थान में समय बहुत अधिक लगता है। इसलिए उत्थान का कार्य मंद गति से होती है। डेविस के अनुसार उत्थान का कार्य एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। जबकि पेंक के अनुसार एक अनियमित प्रक्रिया है।

परीक्षण

       डेविस और पेंक के उत्थान के संबंध में व्यक्त किये गए विचारों का अगर परीक्षण किया जाय तो स्पष्ट होता है कि पेंक का विचार अधिक वैज्ञानिक है। होम्स के द्वारा प्रस्तुत संवहन तरंग सिद्धांत और प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत पेंक के विचारों को समर्थन करते हैं।

          डेविस और पेंक ने उत्थान और अपरदन के संदर्भ में जो मॉडल प्रस्तुत किया है उसमें भी स्पष्ट रूप से अन्तर दिखाई देता है।

डेविस और पेंक

नोट:

⇒ युवावस्था- केवल अपरदन का कार्य होता है।

⇒ प्रौढावस्था- अपरदन + निक्षेपण दोनों का कार्य होता है।

⇒ वृद्धावस्था- केवल निक्षेपण का कार्य होता है।

(2) समय के संदर्भ में:-

          दोनों विद्वानों ने अपना अपरदन चक्र का सिद्धांत समय के संदर्भ में प्रस्तुत किया है। लेकिन डेविस ने अपरदन चक्र तीन अवस्थाओं में और पेंक पाँच दशाओं (Phases) में वर्गीकृत किया है।

        डेविस ने बताया कि अपरदन चक्र के दौरान स्थलाकृतियों के निर्माण में 5 अपरदन दूत (नदी, शुष्क पवन, हिमानी, समुद्री तरंग, भूमिगत जल) का प्रभाव पड़ता है। जबकि पेंक के अनुसार अपरदन चक्र बाह्य अपरदन दूत के अतिरिक्त आन्तरिक कारक के सहभागिता से संचालित होती है।

          डेविस के अनुसार युवास्था में तलीय अपरदन अधिक होती है। जिसके कारण उच्चावच में तेजी से वृद्धि होती है। जलविभाजक रेखा चौड़ा होता है। प्रौढ़ावस्था में क्षैतिज अपरदन अधिक होती है। जिससे V-आकार की घाटी विकसित होती है। जलविभाजक की चौड़ाई कम होने लगती है। फलतः उच्चावच में भी कमी आने लगती है। वृद्धावस्था में अपरदन का कार्य समाप्त हो जाता है जिसके कारण इस अवस्था में केवल निक्षेपण का कार्य होता है। उच्चावच और जल-विभाजक अति न्यून रह जाती है। पेंक के अनुसार स्थलाकृतियों का विकास 5 दशाओं में सम्पन्न होता है। प्रत्येक दशा के विशेषताओं का उल्लेख नीचे के तालिका में किया गया है-

दशा/अवस्था उत्थान सापेक्षिक ऊँचाई उच्चावच
प्रथम सक्रिय वृद्धि वृद्धि
द्वितीय सक्रिय ह्रास स्थिर
तृतीय सक्रिय स्थिर स्थिर
चतुर्थ स्थिर या समाप्त स्थिर स्थिर
पंचम निष्क्रिय तीव्र ह्रास  ह्रास

        उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि समय के संदर्भ में दोनों के विचार में कई मौलिक अन्तर हैं।

(3) ढाल के संदर्भ में:-

         डेविस का सिद्धांत ढाल ह्रास का सिद्धांत कहलाता है जबकि पेंक का सिद्धांत ढाल प्रतिस्थापना का सिद्धांत कहलाता है। डेविस ने बताया कि उत्थान के बाद ढाल अति तीव्र होती है जिसके कारण I-आकार की घाटी विकसित होती है। उसके बाद नदी घाटी के दीवारों का क्रमिक ह्रास होता है।

        प्रौढ़ावस्था में क्षैतिज अपरदन के कारण नदी घाटी के दीवारों का तेजी से कटाव होता है जिसके कारण ढाल में पुनः कमी आती है और V- आकार की घाटी विकसित होती है। वृद्धावस्था में क्षैतिज अपरदन और अधिक हो जाने पर  खुली V- आकार की घाटी विकसित होती है जिसके कारण जल-विभाजक रेखा उत्तल ढाल के समान और नदी घाटी अवतल ढाल के समान दिखाई पड़ती है।

       पेंक के अनुसार ढाल प्रतिस्थापन होता है न कि क्रमिक ह्रास होता है। उन्होंने बताया कि अपरदन चक्र के दौरान तीन प्रकार के ढाल विकसित होते हैं-

(i) उत्तल ढाल- इसे उन्होंने आफस्टीजेंड इन्टवकलुंग से संबोधित किया।

(ii) समढाल- इसे उन्होंने ग्लीचफोर्मिंग इन्टवकलुंग से सम्बोधित किया।

(iii) अवतल ढाल- इसे उन्होंने अबस्टीजेंड इन्टवकलुंग से सम्बोधित किया।

         उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि ढाल के संदर्भ में व्यक्त किये गये विचार में सबसे ज्यादा वैज्ञानिक पेंक का विचार है।

नोट :

आफस्टीजेंड इन्टवकलुंग का अर्थ है- बढ़ती दर से विकास।
ग्लीचफोर्मिंगे इन्टवकलुंग का अर्थ है- समान दर से विकास।
अबस्टीजेंड इन्टवकलुंग का अर्थ है- घटती द से विकास।

(4) समप्राय मैदान के संदर्भ में:-

           दोनों ने अपरदन चक्र के अन्त में लगभग समतल मैदान विकसित होने की संकल्पना प्रस्तुत की है। इसे डेविस ने समप्राय मैदान से सम्बोधित किया है। जबकि पेंक ने लगभग समतल मैदान को Endrumpf (इन्ड्रम्प) और Primarumpf (प्राइमारम्प) से सम्बोधित किया है। पेंक ने बताया कि एक अपरदन चक्र के अन्त में विकसित होने वाला लगभग समतल मैदान (Endrumpf) कहलाता है। लेकिन जब दूसरा अपरदन चक्र प्रारम्भ होता है तो अपरदन चक्र के पूर्व विकसित समताय मैदान को Primarumpf (प्राइमारम्प) कहते हैं। 

          डेविस ने बताया कि समप्राय मैदान में कहीं-कहीं कठोर चट्टानें दिखाई देती हैं। उसे मोनाडनॉक कहा जाना चाहिए। जबकि पेंक ऐसे कठोर चट्टानों को इन्सेलवर्ग से सम्बोधित किया है।

निष्कर्ष:

       उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि कुछ समानताओं के बावजूद उनके चिन्तन में कई मौलिक विषमताएँ है। ये विषम‌ताएँ ही आधुनिक भू-आकृतिक विज्ञान के आधार का कार्य किया है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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