20. Human Geography: Definition, Nature and Scope (मानव भूगोल: परिभाषा, प्रकृति और विषय-क्षेत्र)
Human Geography: Definition, Nature and Scope
(मानव भूगोल: परिभाषा, प्रकृति और विषय-क्षेत्र)
मानव भूगोल मानव समाज और उनके भौतिक पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्ययन है। मानव भूगोल विज्ञान की वह शाखा है जो पृथ्वी पर मानव तथ्यों के स्थानिक वितरण के साथ-साथ विभिन्न मानव समूहों और उनके पर्यावरण के बीच क्षेत्रीय कार्यात्मक अंतःक्रियाओं की जांच करती है। यह एक व्यापक अनुशासन है जिसमें कई तरह के विषय शामिल हैं, जैसे:-
(i) जनसंख्या : मानव जनसंख्या का वितरण, वृद्धि और विशेषताएँ।
(ii) स्थान : स्थानों की भौतिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ।
(iii) संचलन : मानव प्रवास और गतिशीलता के पैटर्न।
(iv) अर्थव्यवस्था : आर्थिक गतिविधियों का स्थानिक वितरण।
(v) संस्कृति : मानव संस्कृतियों की विविधता और उनकी स्थानिक अभिव्यक्ति।
(vi) पर्यावरण : मानव समाज और प्राकृतिक पर्यावरण के बीच अंतःक्रिया।
मानव भूगोल की परिभाषा
मानव भूगोल, भूगोल की प्रमुख शाखा हैं जिसके अन्तर्गत मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक उसके पर्यावरण के साथ सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता हैं। मानव भूगोल की एक अत्यन्त लोकप्रिय और बहु अनुमोदित परिभाषा है- “मानव एवं उसका प्राकृतिक पर्यावरण के साथ समायोजन का अध्ययन।”
किसी भी विषय को परिभाषित करना हमेशा मुश्किल होता है। ज्ञान के विस्तार और समाज की प्रगति के साथ समय के साथ विषय की अवधारणा बदलती रहती है। यहाँ कुछ भूगोलवेत्ताओं द्वारा व्यक्त मानव भूगोल की कुछ परिभाषाएँ दी गई हैं।
रैटजेल : “मानव भूगोल मानव समाज और पृथ्वी की सतह के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है”
एलेन सी. सेम्पल : “मानव भूगोल अशांत मनुष्य और अस्थिर पृथ्वी के बीच बदलते संबंधों का अध्ययन है”
विडाल डी ला ब्लाश : “मानव भूगोल पृथ्वी और मानव के बीच अंतर्संबंधों की एक नई अवधारणा प्रस्तुत करता है”
ई. हंटिंगटन : “मानव भूगोल को भौगोलिक वातावरण और मानव गतिविधियों और गुणों के बीच संबंधों की प्रकृति और वितरण के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है”
एच. डी. ब्लिज : “मानव भूगोल इस बात का अध्ययन है कि लोग कैसे स्थान बनाते हैं, हम स्थान और समाज को कैसे व्यवस्थित करते हैं, हम स्थानों और अंतरिक्ष में एक-दूसरे के साथ कैसे बातचीत करते हैं, और हम अपने इलाके, क्षेत्र और दुनिया में दूसरों और खुद को कैसे समझ सकते हैं”
रुबेनस्टीन : “मानव भूगोल इस बात का अध्ययन है कि लोग और मानवीय गतिविधियाँ कहाँ और क्यों स्थित हैं”
मानव भूगोल की प्रकृति अत्यधिक जटिल एवं विस्तृत है। जीन ब्रुश के अनुसार जिस प्रकार अर्थशास्त्र का सम्बन्ध कीमतों से, भू-गर्भशास्त्र का सम्बन्ध चट्टानों से, वनस्पति शास्त्र का सम्बन्ध पौधों से है ठीक उसी प्रकार भूगोल का केन्द्र बिन्दु स्थान से है जिसमें कहाँ व क्यों जैसे प्रश्नों के उत्तरों का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल मानव को केन्द्रीय भूमिका का अध्ययन करता है। फ्रेडरिक रेटजेल, जिन्हें आधुनिक मानव भूगोल का संस्थापक कहा जाता है।
उन्होंने मानव समाजों एवं पृथ्वी के धरातल के सम्बन्धों के संश्लेषणात्मक अध्ययन पर जोर दिया है। पृथ्वी पर जो भी मानव निर्मित दृश्य दिखाई देते हैं उन सबका अध्ययन मानव भूगोल के अन्तर्गत आता है। इसी कारण मानव भूगोल की प्रकृति में मानवीय क्रियाकलाप केन्द्रीय बिन्दु के रूप में रहते हैं। इस प्रकार मानवीय क्रियाकलापों के विकास (कब, क्यों, कैसे) को भौगोलिक दृष्टि से प्रस्तुत करना ही मानव भूगोल की प्रकृति को दर्शाता है।
मानव भूगोल विभिन्न प्रदेशों के पारिस्थितिक समायोजन व क्षेत्र संगठन के अध्ययन पर केन्द्रित रहता है। पृथ्वी पर रहने वाले मानव के जैविक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास के लिए वातावरण के उपयोग का अध्ययन व वातावरण में किए गए बदलाबों का अध्ययन मानव भूगोल का आधार है। सारांशत: यह कहा जा सकता है कि मानव भूगोल मानव व वातावरण के जटिल तथ्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन मानव को केन्द्रीय भूमिका के रूप में रखकर अध्ययन कस्ता है।
मानव भूगोल की प्रकृति को समझने के लिए, निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए:-
(i) मानव भूगोल, भूगोल की एक प्रमुख शाखा है।
(ii) मानव भूगोल में, मानव और पर्यावरण के बीच के संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
(iii) मानव भूगोल में, मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक के संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
(iv) मानव भूगोल में, मानव की गतिविधियों और पर्यावरण पर उनके प्रभाव का अध्ययन किया जाता है।
(v) मानव भूगोल में, मानव निर्मित चीज़ों का भी अध्ययन किया जाता है।
(vi) मानव भूगोल में, मानव समाज और पर्यावरण के बीच के संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
(vii) मानव भूगोल में, मानव समाज के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, और जैविक विकास का अध्ययन किया जाता है।
(viii) मानव भूगोल में, मानव समाज और पर्यावरण के बीच के संबंधों को समझने के लिए, सामाजिक विज्ञान की सभी शाखाओं का अध्ययन किया जाता है।
इस प्रकार मानव भूगोल की प्रकृति यह है कि यह दोनों – सक्रिय मानव और अस्थिर पृथ्वी सतह की पारस्परिक क्रिया का अध्ययन करना है जहाँ भौतिक वातावरण में मानव के लिए अवसरों की सम्भावनाएँ प्रदान करने के साथ कई सीमाएँ हैं। और इसके जवाब में मानव प्राकृतिक वातावरण को संशोधित करता है और उस वातावरण में समायोजित होता है।
मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र
मानव द्वारा अपने प्राकृतिक वातावरण के सहयोग से जीविकोपार्जन करने के क्रियाकलापों से लेकर उसकी उच्चतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किये गये सभी प्रयासों का अध्ययन मानव भूगोल के विषय क्षेत्र के अतर्गत ही आता है। अतः पृथ्वी पर जो भी दृश्य मानवीय क्रियाओं द्वारा निर्मित हैं, वे सभी मानव भूगोल के विषय क्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता हैं।
पृथ्वी तल पर मिलने वाले मानवीय तत्त्वों को समझने व उनकी व्याख्या करने के लिए मानव भूगोल के अन्य सामाजिक विज्ञानों के सहयोगी विषयों का अध्ययन भी करना पड़ता है। मानव भूगोल के विषय क्षेत्र, उपक्षेत्र तथा अन्य सामाजिक विज्ञानों के सहयोगी विषयों से मानव भूगोल के सम्बन्धों को निम्नलिखित तालिका में प्रस्तुत किया गया है।
मानव भूगोल के क्षेत्र | उप-क्षेत्र | अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध |
सामाजिक भूगोल | व्यवहारवादी भूगोल
सामाजिक कल्याण का भूगोल सांस्कृतिक भूगोल लिंग भूगोल ऐतिहासिक भूगोल चिकित्सा भूगोल |
मनोविज्ञान
कल्याण अर्थशास्त्र समाजशास्त्र मानव विज्ञान समाजशास्त्र मानव विज्ञान महिला अध्ययन इतिहास महामारी विज्ञान |
नगरीय भूगोल | – | नगरीय अध्ययन और नियोजन |
राजनितिक भूगोल | निर्वाचन भूगोल
सैन्य भूगोल |
राजनीति विज्ञान
सैन्य विज्ञान |
जनसँख्या भूगोल | – | जनांकिकी |
आवास भूगोल | – | नगर/ग्रामीण नियोजन |
आर्थिक भूगोल | संसाधन भूगोल
कृषि भूगोल उद्योग भूगोल विपणन भूगोल पर्यटन भूगोल अन्तर्राष्ट्री व व्यापार का भूगोल |
अर्थशास्त्र
संसाधन अर्थशास्त्र कृषि विज्ञान औद्योगिक अर्थशास्त्र व्यावसायिक अर्थशास्त्र वाणिज्य पर्यटन और यात्रा प्रबन्धन अन्तर्राष्ट्री य व्यापार |