Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

Remote Sensing and GIS

18. सुदूर संवेदन के उपयोग

18. सुदूर संवेदन के उपयोग

(The Applications of Remote Sensing)


सुदूर संवेदन के उपयोग

               धरातलीय सूचनाओं को प्राप्त करने के परम्परागत विधियाँ अधिक समय व्यय करने वाली होती है तथा इन पर मानव शक्ति की अधिक आवश्यकता होती है। इसलिये सुदूर संवेदन तकनीक की तुलना में परम्परागत विधियों का उपयोग समय की दृष्टि से त्वरित नहीं लगता है। मानचित्र समय के साथ पुराने हो रहे हैं परन्तु बिना मानचित्र के सुदूर संवेदन अध्ययन का आधार तैयार नहीं किया जा सकता है। सुदूर संवेदन के कई उपयोग है। प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक तत्वों के अलग-अलग अध्ययनों में इसकी अग्रणी भूमिका रही है।

      प्राकृतिक तत्वों में सबसे प्रमुख मौसम दशाओं का विश्लेषण तथा भविष्यवाणी (Weather Analysis and Forcasting), हिम जल प्रवाह (Snow Melt Run off), बाढ़ (Floods), भू-स्खलन (Landslides), प्राकृतिक आपदायें (Natural Disasters), भू-आकृतिक तथा भूवैज्ञानिक मानचित्रण (Geomorphological and Geological Mapping), प्राकृतिक वनस्पति मानचित्रण (Natural Vegetation Mapping), मृदा वर्गीकरण (Soil Classification), बेकार भूमि का सीमांकन (Waste Land Delineation), महासागर उत्पादकता (Ocean Productivity), जैव विविधता (Biodiversity), संसाधनों का सर्वेक्षण (Resource Surveys) इत्यादि है।

      इसी प्रकार सांस्कृतिक तत्वों में भूमि उपयोग (Land Use), दावानल पहचान (Forest Fire Detection), कृषि प्रकार (Types of Agriculture), फसल तालिका (Crop Inventory), सिंचाई जल प्रबन्ध (Irrigation Water management), बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना (Multi-Purpose River Vally Projects), नगर स्व-प्रसार (Urban Sprow), प्रदूषण की समस्या (Pollution Problems), खनिजों की खोज (Mineral Exploration) इत्यादि कई अध्ययनों में सुदूर संवेदन का उपयोग किया जाता है।

          प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तत्वों के अध्ययन के अलावा आजकल अनेक देशों में राष्ट्रीय प्रतिरक्षा (National Defence) के क्षेत्र में दूरदर्शन का प्रयोग किया जा रहा है। उपग्रहीय प्रतिबिम्बों एवं वायु फोटोग्राफ की सहायता से शत्रु की सेना की गतिविधियों को पहचाना जा सकता है। इस तकनीक के द्वारा सेना के जमाव, शस्त्रशाला, सैनिक किलाबन्दी एवं मार्गों के निर्माण आदि का सरलतापूर्वक प्रबोधन हो सकता है।

भूविज्ञान (Geology)

         भूविज्ञान के अन्तर्गत शैल प्रकारों, संरचनाओं, भूआकृतियों तथा अन्तःस्थलीय भाग का अध्ययन किया जाता है जिनका सम्बन्ध, प्राकृतिक प्रक्रियाओं एवं शक्तियों से रहा है तथा जो पृथ्वी के धरातल पर आवश्यक परिवर्तन करने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाते हैं। यह सभी जानते हैं कि खनिजों एवं हाइड्रोकार्बन संसाधनों की खोज एवं विदोहन ने समाज में लोगों के जीवन स्तर को उठाया है। पेट्रोलियम से यातायात साधनों के संचालन के लिये गैस एवं तेल की पूर्ति होती है। चूने का पत्थर सीमेंट एवं चूने के भट्टों को कच्चे माल की पूर्ति करता है।

        संगमरमर तथा ग्रेनाईट की खानों से भवन निर्माण की सामग्री उपलब्ध होती है। इसी प्रकार पोटाश से खाद, कोयले से ऊर्जा, बहुमूल्य धातुओं एवं रत्नों से जेवरात, तथा तांबा, जिंक तथा कई प्रकार के खनिज विभिन्न उपयोगों में काम आते हैं। केवल पृथ्वी के सुदूर संवेदन तकनीक भूगर्भिक अध्ययन तक ही सीमित नहीं है बल्कि दूसरे ग्रहों एवं चंद्रमा की बनावट व संरचनाओं के परीक्षण में भी इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है।

        सम्भावित आपदाओं जैसे कि ज्वालामुखी, भूकम्प, भूस्खलन आदि अध्ययनों में भूविज्ञान को सम्मिलित किया जाता है। इसी प्रकार निर्माण एवं इन्जीनिरिंग से सम्बन्धित भू-तकनीक अध्ययनों में भूविज्ञान एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि अन्य प्राकृतिक तत्वों का अध्ययन करने से पूर्व सुदूर संवेदन से भूगर्भिक संरचनाओं का अध्ययन किया जा सकता है।

         सुदूर संवेदन, धरातलीय संरचनाओं चट्टानों की बनावटों के बारे में सूचनाओं को एकत्र करने के साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। बहु-स्पैक्ट्रल आँकड़े, चट्टानों की बनावट, शैल विन्यास आदि के बारे में विश्वसनीय सूचनायें प्रदान कर सकते हैं जो स्पैक्ट्रल परावर्तन पर आधारित है। रडार, धरातलीय उच्चावचन तथा ऊबड़-खाबड़ घरातल की जानकारी प्रस्तुत करता है जो कि अत्यधिक उपयुक्त है।

      सुदूर संवेदन केवल भूविज्ञान के उपयोगों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका उपयोग खदान क्षेत्रों में पहुंचने के लिये मार्ग योजना बनाने, भू-सुधार प्रबोधन (Monitoring) तथा आधार मानचित्रों के निर्माण जिन पर भूगर्भिक आँकड़ों को अध्यारोपित किया जाता है। संक्षेप में भूविज्ञान में सुदूर संवेदन के उपयोगों का प्रकार निम्न है:-

(i) भूगर्भिक मानचित्रण (Geological Mapping) करना

(ii) धरातलीय निक्षेपणों (Surficial Deposits) का अध्ययन करना

(iii) रेत एवं कंकड़-पत्थरों का विदोहन (Sand and Gravel Exploitation) करना

(iv) खनिजों के विदोहन (Mineral Exploitation) में सहायक

(v) हाइड्रोकार्बन की खोज करना

(vi) पर्यावरणीय भूविज्ञान का अध्ययन

(vii) अवसाद मानचित्रण एवं प्रबोधन करना

(viii) प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक घटनाओं का मानचित्रण एवं प्रबोधन करना

(ix) भू-आपदाओं का मानचित्रण करना

भूगर्भिक मानचित्रण:-

            वायु फोटो विश्लेषण तथा उपग्रहीय आँकड़ों एवं विम्बों की सहायता से भूगर्भिक एवं धरातलीय पदार्थों की पहचान का मूल्यांकन किया जा सकता है। यहाँ पर संक्षिप्त में सुदूर संवेदन का भूगर्भिक मानचित्रण में उपयोग को समझाया गया है। 1940 के पश्चात् वायु फोटोग्राफ का उपयोग भूगर्भिक मानचित्र के क्षेत्र में विस्तृत रूप से बढ़ा है तथा 1960 के पश्चात् उपग्रहीय आँकड़ों एवं बिम्बों की उपलब्धता से क्षेत्रीय विश्लेषण में सुदूर संवेदन की राहनीय भूमिका है। आज कोई भी भूगर्भिक अध्ययन ऐसा नहीं है जिसमें सुदूर संवेदन उत्पादों का उपयोग न किया जा रहा हो।

         भूगर्भिक मानचित्रों के अन्तर्गत भूआकारों, शैल प्रकारों तथा शैल संरचनाओं (वलन, भ्रंश, विभंग व रेखीय आकृतियाँ) का विश्लेषण एवं मानचित्रण किया जाता है जिनका एक से उपयुक्त धरातलीय सम्बन्ध होता है। भूगर्भिक मानचित्रण क्रियायें खनिज संसाधनों विदोहन में अहं भूमिका निभाते हैं। वायु फोटोचित्रों एवं सुदूर संवेदन प्रतिबिम्बों में धरातलीय आकृतियों की व्याख्या खनिज संसाधनों के सम्भावित क्षेत्रों का पता लगाने में सूचनायें प्रदान करते हैं।

       भूगर्भिक अध्ययनों के लिये प्रायः बहुअवस्था युक्त प्रतिविम्ब विश्लेषण की आवश्यकता है। इसके लिये 1:250,000 से 1:1,000,000 मापक पर बने उपग्रहीय प्रतिबिम्बों का विश्लेषण किया जाता है। तत्पश्चात् उच्च ऊँचाई वाले वायु 1:60,000 से 1:30,000 वायु फोटोचित्रों की व्याख्या की जाती है। विस्तृत सूक्ष्म स्तर पर अध्ययन के लिए 1:20,000 मापक पर निर्मित वायु फोटो चित्रों का स्टीरियोस्कोप पर विश्लेषण कर मानचित्रण किया जाता है।

लघुमापक मानचित्रण (Small Scale Mapping):-

        लघु मापक मानचित्रण का उपयोग मुख्यतः रेखीय आकृतियों के विश्लेषण के लिये जाता है। इसके अन्तर्गत लिनियामेंट (Lineament) क्षेत्रीय रेखीय आकृतियाँ (भ्रंश) जो क्षेत्रीय आकार की आकृतियों के कारण होती है जैसे कि कोई नदी, कगार, पर्वत श्रृंखला, भ्रंश, विभंग इत्यादि। इन रेखीय आकृतियों को धरातलीय आकृतियों के विन्यास क्रम से पहचाना जाता है। प्रमुख रेखीय आकृतियाँ कुछ किमी० से कई सौ किमी० तक लम्बी होती है।

      उदाहारण के लिये अमेरिका में सान एनड्रीयस भ्रंश की लम्बाई 1000 किमी० तक है। आकृतियों के विश्लेषण एवं मानचित्रण में खनिज संसाधनों एवं भू-जलीय संसाधनों की भी खोज की जा सकती है। अधिकतर खनिज संसाधन रेखीय आकृतियों के साथ-साथ पायी है।

         रेखीय आकृतियों को कई कारक प्रभावित करते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण कारक रेखीय आकृति एवं प्रदीप्त स्रोत (Illumination Source) में आपसी कोणीय सम्बन्ध है। सामान्यत: वे रेखीय आकृतियाँ जो प्रदीप्त स्रोत के समानान्तर क्रम में होती हैं, उन्हें पहचाना नहीं जा सकता है। जिन आकृतियों का क्रम प्रदीप्त स्रोत के विपरीत होता है उसको पहचानना एवं मानचित्रण करना सरल होता है। सामान्यतः मध्यम निम्न प्रदीप्त कोण सूक्ष्म धरातलीय रेखीय आकृतियों के संसूचन के लिये अधिक उपयुक्त होता है। प्रायः निम्न सूर्य कोणीय फोटोग्राफी शीतकाल में की जाती है।

           अधिकतर भूगर्भशास्त्रियों का मत है कि खनिज संसाधनों के विदोहन तथा भूगर्भिक शैलों के मानचित्रण के लिये 1.6 तथा 2.2 माईक्रोमीटर स्पेक्ट्रल बैंड पर परावर्तन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इन बैंडों को फोटोग्राफ नहीं किया सकता है लेकिन लेंण्डसैट थिमेटिक पेपर तथा वायुआधारित इमेजिंग स्पैक्ट्रोमीटर के संवेदक द्वारा संसूचित किया जा सकता है। इसी प्रकार तापीय अवरक्त स्पेक्ट्रल भाग का बहु-संकीर्ण बैंड, शैल, एवं खनिज प्रकारों में कई भिन्नतायें दर्शाता है।

      तेल एवं खनिज संसाधनों की खोज में भूगर्भिक मानचित्रण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संरचनात्मक तथा शैल ईकाइयों का निर्धारण एवं मानचित्रण कर भूगर्भशास्त्री इन संसाधनों की सही स्थिति व उपयुक्तता बता सकते हैं जिससे उनके विदोहन का लक्ष्य रखा जाता है। इसी प्रकार शैल इकाइयों का मानचित्रण, इन्जीनियरिंग, निर्माण, खनन कार्यों, अन्य तकनीक कार्यों, भूमि उपयोग तथा अधिवासीय योजनाओ में यह तकनीकि अति सहायक होती है।

मृदा मानचित्रण (Soil Mapping):-

           किसी क्षेत्र का विस्तृत मृदा सर्वेक्षण उस क्षेत्र के संसाधन सूचनाओं का प्रारम्भ स्रोत होता है। भूमि उपयोग योजनाओं में इनका बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। विभिन्न भूमि उपयोगों में मिट्टी की उपयुक्तता की जानकारी भूमि के गलत उपयोग तथा पर्यावरण ह्रास को रोकने में सहायता करता है। भूमि योजनाओं में यह एक प्रभावशाली यंत्र की भाँति कार्य करता है। इसके लिये मिट्टी संसाधनों से सम्बन्धित आवश्यक तथ्यों के आँकड़े उपलब्ध किये जाते हैं। सर्वप्रथम मिट्टी के प्रकारों की एक सूची तैयार की जाती है तथा उनका मानचित्रण करना आवश्यक होता है।

          अनुभवी वैज्ञानिकों एवं कार्यकर्ताओं द्वारा विस्तृत मृदा सर्वेक्षण किया जाता है। वायु फोटोचित्रों की सहायता से क्षेत्र परिभ्रमण किया जाता है तथा अलग-अलग मृदा इकाईयों का सीमांकन किया जाता है। मिट्टी की अलग-अलग इकाईयों के निर्धारण के लिये कई मिट्टी परिच्छेदिकाओं का निरीक्षण एवं परीक्षण किया जाता है। प्रारम्भ में मृदा मानचित्रण के लिये 1/15,000 से 1/40,000 मापक का प्रयोग किया जाता था परन्तु वर्तमान समय में सुदूर संवेदन आँकड़ों की उपलब्धता से मिट्टियों के सम्बन्ध में कई प्रकार की जानकारी प्राप्त की जाती है।

       फसलों की उत्पादक सम्भावना के निर्धारण के लिये मिट्टी की आर्द्रता का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी की ऊपरी परत (1-2 मी०) में जल कणों की उपलब्धता आर्द्रता को दर्शाती है जो प्रायः वायुमण्डल में जलवाष्प बनकर उड़ जाती है। यदि मिट्टी की आर्द्रता का सर्वेक्षण समय रहते करा दिया जाय तो फसलों को सूखे की स्थिति से बचाने का प्रयास किया जा सकता है तथा किसानों को सतर्क किया जा सकता है।

       इतना ही नहीं मिट्टी की आर्द्रता की जानकारी से बाढ़ की जानकारी भी दी जा सकती है। अलग-अलग प्रकार की मिट्टी की पानी सोखने की मात्रा अलग-अलग होती है। मिट्टी की संतृप्तता के आधार पर जलस्राव का अनुमान लगाकर बाढ़ से पूर्व अगाह किया जा सकता है। जहाँ भी वन कटान, खनन, कृषि या मानवीय क्रिया-कलाप हैं वहां पर जल के तीव्र बहाव, वाष्पीकरण दर तथा मिट्टी अपरदन को रोकने के लिये भविष्यवाणी की जा सकती है।

          सुदूर संवेदन विस्तृत भू-भाग के मृदा आर्द्रता की माप कर सकता है। रडार एक ऐसा प्रभावशाली संवेदक है जो धरातलीय आर्द्रता का गुणात्मक तथा मात्रात्मक मापन करता है। मृदा आर्द्रता के द्वारा रडार पृष्ठ प्रकीर्णन प्रभावित होता है। बहुकालिक रडार बिम्ब लम्बे समय के आर्द्रता अन्तर को दर्शाते हैं। इस प्रकार रडार ही एक ऐसा सुदूर संवेदन संवेदक है जो मृदा की डाईलैक्ट्रिक नियतांक को बताता है। यह नियतांक मिट्टी में पानी की मात्रा की परिवर्तनशीलता को दर्शाता है।

जलविज्ञान

           जलविज्ञान पृथ्वी के धरातलीय जल का अध्ययन है चाहे यह जल धरातल पर बह रहा हो, बर्फ व हिम के रूप में जमा हो या मिट्टी के द्वारा धारण किया हो। जलविज्ञान सुदूर संवेदन के कई अन्य उपयोगों से सम्बन्धित है। उदाहरण के लिये वनीकरण, कृषि तथा भूमि आवरण इत्यादि। इन उपयोगों में जलविज्ञान एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अधिकतर जलविज्ञान प्रक्रियायें गतिशील हैं। यह गतिशीलता केवल वर्ष के अन्तराल पर ही नहीं बल्कि मौसम के अनुरूप भी है जिसको स्वतंन्त्र रूप से अवलोकन करने की आवश्यकता होती है।

         सुदूर संवेदन एक ऐसी तकनीक है जो जलविज्ञान के तथ्यों की गतिशलता एवं धरातलीय वितरण का सहदर्शी (Synoptic) दृश्य प्रस्तुत करता है। सक्रिय संवेदक क्षमताओं के द्वारा रडार ने जलविज्ञान के अध्ययनों में नये आयाम प्रस्तुत किये हैं। रडार के द्वारा बादलों युक्त दशाओं या मौसम तथा रात के अंधेरे में भी धरातलीय संसाधनों का संसूचन किया जा सकता है। सुदूर संवेदन द्वारा जलविज्ञान के उपयोगों के कुछ उदाहरण निम्न रूप से सम्मिलित किये गये हैं—

(i) जल प्लवित भूमि का मानचित्रण एवं प्रबोधन (Wetland Mapping and Monitoring)

(ii) हिमाच्छादित क्षेत्रों का प्रबोधन (Snow Cover Monitering)

(iii) हिम की मोटाई का मापन (Measuring Snow Thickness)

(iv) हिम-जल समविस्तार का निर्धारण (Determining Snow-Water Equivalent)

(v) नदी तथा झील, बर्फ का प्रबोधन (River, lake & Monitering)

(vi) बाढ़ मानचित्रण तथा प्रशोधन (Flood mapping and Snow Monitering)

(vii) हिमानी गतिशीलता का प्रबोधन (Glacial Dynamics Monitering)

(viii) नदी/डेल्टा परिवर्तनशीलता का संसूचन (River/Delta Change Detection)

(ix) अपवाह तन्त्र मानचित्रण तथा जलगाम मॉडलिंग (Drainage Basin Mapping and Watershed modelling)

(x) सिंचित नहर रिसाव का संसूचन (Irrigation Canal Leakage Detection)

(xi) सिंचित कार्यक्रम (Irrigation Scheduling)

बाढ़ क्षेत्रों का निर्धारण एवं मानचित्रण (Flood Zone Delineation and Mapping)

           बाढ़ जलीय चक्र का एक प्राकृतिक तथ्य है। बाढ़ का सम्बन्ध मौसम दशाओं पर निर्भर करता है। अत्यधिक वर्षा के कारण अत्यधिक धरातलीय जल प्रवाह से नदियों का जल स्तर बढ़ जाता है जिसके परिणामस्वरूप बाद का जल तटबंधों को तोड़कर आस-पास के क्षेत्र में फैल जाता है। इसके कारण धन-जन की हानि, पशुओं की हानि, अधिवासों का ध्वस्त होना, मिट्टी कटाव, भूमि क्षरण इत्यादि कई नुकसान उठाने पड़ते हैं। इतना ही नहीं नदियों में बाढ़ के कारण कई बाँध प्राकृतिक रूप से बनते एवं टूटते हैं। कई मनुष्य निर्मित बांध टूट जाते हैं तथा हिमानी क्षेत्रों में हिम तथा बर्फ के पिघलने से पुनः बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है। बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो तुरन्त निदान चाहती है।

       सुदूर संवेदन तकनीक का उपयोग क्षेत्रों के प्रबोधन तथा विस्तार जानकारी के लिये किया जाता है। यह एक ऐसा साधन है जो अतिशीघ्र बाढ़ क्षेत्रों का निर्धारण, बाढ़ की बढ़ती व घटती प्रवृत्ति, नुकसान, प्रभावित क्षेत्र इत्यादि की जानकारी में प्रभावी भूमिका निभाता है। भौगोलिक सूचना प्रणाली में उपग्रहीय आँकड़ों का विश्लेषण कर जल प्लावित क्षेत्र की गणना, नुकसान, बाढ़ सम्भावित क्षेत्र तथा बाढ़ आने की पूर्व सूचना दी जा सकती है।

      इस प्रकार हम देखते हैं कि कई उपयोगकर्ताओं जैसे कि बाढ़ नियंत्रक संस्था, जल-विद्युत कम्पनी, संरक्षण संस्था, नगर नियोजक, आपतकालीन आधारित विभाग तथा जीवन बीमा विभाग द्वारा सुदूर संवेदन आँकड़ों का उपयोग किया जाता है। बाढ़ युक्त मैदान के मानचित्रण करने में पूर्व सरिता मार्गों तथा नदी विसर्प अति महत्वपूर्ण होते हैं। इनका निर्धारण सुदूर संवेदन उत्पादों के अवलोकन एवं विश्लेषण से लगाया जाता है जो बाद नियंत्रण योजना में अति सहायक होते हैं।

भूमि उपयोग मानचित्रण

          प्राकृतिक रूप से भूमि अलग-अलग तत्वों के अन्तर्गत होती है जैसे कि प्राकृतिक इनस्पति, जल, मरुस्थल, घास के मैदान, दलदल इत्यादि प्राकृतिक विशेषताओं के अनुरूप मनुष्य ने इसे आर्थिक क्रियाओं के अनुसार अलग-अलग उपयोगों में प्रयोग किया है। जैसे कि कृषि, वनीकरण, आवास, उद्योग, सड़क इत्यादि। प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक उपयोगों में लाई गई भूमि को सुदूर संवेदन तकनीक के द्वारा संसूचन किया जाता है। वे किसी भी उपयोग की मात्रा, विस्तार तथा वृद्धि एवं ह्रास क्रम को बहुत आसानी से अंकित कर सकते हैं। भूमि उपयोग या भूमि आवरण अध्ययन प्रायः बहु अन्तरविषयी होते हैं। सुदूर संवेदन का उपयोग निम्न विषयों में सफलतापूर्वक किया जाता है-

(i) प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्ध (Natural Resource Management)

(ii) प्राकृतिक वनस्पती प्रकारों के सर्वेक्षण (Surveys for Types of Natural Vegetation)

(iii) जंगली जानवरों के निवास संरक्षण (Wildlife Habital Protection)

(iv) नगरीय विस्तार अनाधिकृति कब्जा (Urban Expention/Encroachment)

(v) आपदा प्रबन्धन तथा मानचित्रण (Disaster Management and Mapping)

नगरों का अव्यवस्थित प्रसार (Urban Sprawl)

        जैसा कि सभी जानते हैं कि संसार की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। नगरों का तेजी से वृद्धि एवं प्रसार हो रहा है तथा अर्थव्यवस्था कृषि आधारित प्रणली से दूर हट है। नगरों के अव्यवस्थित विकास तथा अनियंत्रित प्रसार ने उपजाऊ कृषि भूमि एवं वन भूमियों पर अनाधिकृत कब्जा बढ़ा दिया है। नगरों की वृद्धि का प्रमुख कारण औद्योगिक विकास है जिसका किसी भी क्षेत्र के पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इस प्रकार सुदूर संवेदन अध्ययनों से ग्रामीणों से नगरों में भूमि उपयोग परिवर्तनों के प्रबोधन से जनसंख्या का अनुमान लगाया जा सकता है। योजनाकार नगरों के अनियंत्रित प्रसार की दिशा का अनुमान लगा सकता है। पर्यावरण की दृष्टि से सबसे संवेदनशील आपदा क्षेत्रों का अनुमान लगाया जाता है।

         सुदूर संवेदन के द्वारा अलग-अलग कालों के अलग-अलग प्रकार के आँकड़े उपलब्ध होते हैं जिनके द्वारा नगरीय क्षेत्रों का तथा इनके खण्डों का मानचित्रण किया जा सकता है। बहु-कालिक आँकड़ों के विश्लेषण से नगरीय भूमि उपयोग परिवर्तन का अनुमान लगाया जा सकता है। वायुफोटोचित्रों के द्वारा नगरीय क्षेत्रों का मानचित्रण किया जाता है। इस प्रकार के मानचित्र नगर नियोजकों की सहायता प्रदान करते हैं।

समुद्री अनुप्रयोग (Ocean Application)

            समुद्रों से हमें कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। समुद्र महत्वपूर्ण भोजन एवं जीव-भौतिक संसाधनों की पूर्ति करते हैं। इनसे समुद्रीय यातायात किया जाता है जो सबसे सरल एवं सुविधाजनक है। मौसम प्रणाली के निर्माण तथा कार्बनडाई ऑक्साईड संग्रह में समुद्रों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। इस प्रकार मछलियों के भण्डार केन्द्रों का अनुमान लगाने, जहाजों के मार्गों की जानकारी, मौसम तथा जलवायु दशाओं के परिवर्तनशीलता, तूफान की जानकारी इत्यादि के लिये समुद्री गतियों का अध्ययन करना अति आवश्यक है। तूफानों की पूर्व जानकारी से समुद्रतटीय क्षेत्रों में अधिवासों को बचाया जा सकता है।

           समुद्र तटीय क्षेत्र पर्यावरण की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। समुद्री तट रेखा के आर्थिक विकास तथा बदलते भूमि उपयोग के लिये उत्तरदायी होती है। यद्यपि समुद्री तट अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न होते हैं। उपयुक्त समुद्र तटों के पास संसार की 600 जनसंख्या निवास करती है। समुद्री तट मानवीय क्रियाकलापों के लिये अति महत्वपूर्ण है। कई सरकारी संस्थायें जो यहाँ मानवीय क्रियाकलापों के प्रमाण से सम्बन्धित है उनको विचित्र परिवर्तनों जैसे कि तटीय अपरदन, प्राकृतिक जन्तुओं का ह्रास, नगरीकरण, प्रवाही तथा समुद्र की ओर प्रदूषण इत्यादि को नये रूप में प्रबोधन (Moniter) करने की आवश्यकता है।

            अधिकतर समुद्री गतिशीलता तथा उनके प्रभावों का मानचित्रण एवं प्रबोधन सुदूर तकनीक के द्वारा आसानी से किया जा सकता है। सुदूर संवेदन आँकड़ों का प्रयोग कर समुद्र के सतह का तापमान तथा मछलियों के सम्भावित बाहुल्य क्षेत्रों की नित्य रूप से सूचनायें प्राप्त हो सकती है। नोवा- ए.वी.एच.आर. इस प्रकार के अनुप्रयोग कर रहा है। इसी प्रकार आई.आर.एस.पी.3 मॉस वी आँकड़ों की सहायता से समुद्र में निलंबित अवसाद, पीले वर्णक (Yellow Pegment) और क्लोरोफिल की मात्रा का निर्धारण, समुद्रतटीय क्षेत्र विशेषकर छोटे बन्दरगाहों का प्रबन्ध और आई. आर.एस.(सी.) के आँकड़ों से तटीय क्षेत्रों के विकास का अध्ययन किया जा रहा है।

             सुदूर संवेदन के विभिन्न वर्तमान समुद्रीय अनुप्रयोग निम्न रूप में दिये गये हैं-

1. समुद्रीय प्रतिरूपों की पहचान (Ocean Pattern Identification)

2. धारायें एवं प्रादेशिक संचारण प्रतिरूप (Currents and Regional Circulation Pattern) का अध्ययन

3. लहरें, भंवर, उथला जल भाग (Waves, Eddies, Shallow Water) की गतियों का अवलोकन

4. तूफान की भविष्यवाणी ( Storm Forecasting) करना

5. हवा तथा लहरों की जानकारी देना

6. मछलियों के भण्डार तथा समुद्री जीवों का मूल्यांकन करना

7. जल के तापमान का प्रबोधन (Water Temperature Monitoring) करना

8. जल-विशेषताओं (Water Quality) का अवलोकन करना

9. समुद्रीय उत्पादकता (Ocean Productivity) का अनुमान लगाना

10. तेल प्रसार (Oil Spill) की जानकारी प्राप्त करना

11. जहाजरानी (Shipping) के क्षेत्र में प्रयोग

12. समुद्री परिवहन (Ocean Transport) में सहायक

13. ज्वारीय प्रभाव (Tidal Effects) का अवलोकन

14. समुद्र तटीय आकृतियों का मानचित्रण (Mapping of Shoreline Features)

15. समुद्रीय वनस्पति मानचित्रण (Coastal Vegetation Mapping)

वानिकी (Forestry)

          वन सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है जो भोजन, निवास, जंगली जीव, ईंधन तथा कई वन उत्पाद प्रदान करते हैं। वनों के संरक्षण का मुख्य मुद्दा यह है कि प्राकृतिक एवं मानवीय क्रियाओं के कारण प्राकृतिक वनस्पति आवरण में बहुत कमी आ रही है। आग तथा बीमारी प्राकृतिक कारणों में प्रमुख है। इसी प्रकार कटान, जलाना, अनाधिकृत कब्जा तथा भूमि उपयोग परिवर्तन आदि कई मानवीय कारक है जो जंगलों के ह्रास के लिये उत्तरदायी है।

          प्रायः यह देखा जाता है कि मनुष्य जंगलों को केवल उत्पादन के लिये समझता है न कि स्वयं जंगलों के लिये। व्यापारिक विदोहन से अधिक वनों के क्षेत्रफल एवं आवरण में कमी की समस्या कई व्यापारिक कारणों से भी पैदा हुई है। इनमें सबसे प्रमुख हैं वनों को काट कर कृषि भूमि तथा चरागाहों में परिवर्तित कर देना तथा नगरीयकरण के कारण भूमि उपयोग में भारी परिवर्तन होना। दून घाटी में इस प्रकार के उदाहरण देखने को मिलते हैं।

       सूखा पड़ना भी एक कारण है जो लोगों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये वनों का रास्ता दिखाता है । इनके अतिरिक्त मरुस्थलीय अतिक्रमण, भूमिगत जल में कमी, आग लगना तथा प्राकृतिक आपदायें (जैसे तूफान, लू, भूकम्प) इत्यादि कई ऐसे कारण हैं जो सीधे वनों के ह्रास के लिये जिम्मेदार है। प्रश्न यह उठता है कि इन विनाशकारी तत्वों की जानकारी व प्रबोधन कैसे किया जाय जिससे इन समस्याओं का तुरन्त समाधान किया जा सके। वनों के ह्रास से कई पर्यावरणीय समस्यायें भी उत्पन्न हुई हैं। जंगलों के धुँए से पूरा वायुमण्डल प्रदूषित होता है और वायुमण्डल में कार्बनडाई आक्साइड गैस की मात्रा बढ़ती है।

         सर्वप्रथम आवश्यकता इन समस्याओं के प्रबोधन की है तत्पश्चात् उनके प्रबन्धन की योजना बनाने की। ऐसी स्थिति के लिये त्वरित एवं उपयुक्त साधन सुदूर संवेदन है जो इस प्रकार के परिवर्तनों की जानकारी हमें देता है। वानिकी के अन्तर्गत सुदूर संवेदन के प्रमुख उपयोग निम्न है-

1. वन आवरण का मानचित्रण (Forest Cover Mapping)

2. वनस्पति घनत्व का मानचित्रण (Forest Density Mapping)

3. वन विभाग का मानचित्रण (Deforestation Mapping)

4. आग का निर्धारण तथा मानचित्रण (Forest Fire Identification Maping)

5. बायोमास आकलन (Biomass Estimation)

6. प्रजातियों का आकलन (Species Estimation)

7. वृद्धि स्टाक आकलन (Growing Stock Estimation)

वन विनाश एवं वनीकरण का मानचित्रण (Deforestion and Aforestation Mapping)

              बहुकालिक सुदूर संवेदन आँकड़े प्राकृतिक वनस्पति की परिवर्तनशीलता को दर्शाते हैं। पूर्व वर्षों के बिम्बों की तुलना वर्तमान बिम्बों से करने पर वनों के आकार एवं ह्रास के विस्तार को मापा जा सकता है। उच्च विभेदन वाले आँकड़े वनों के विलुप्त होने के विस्तृत दृश्य प्रस्तुत करते हैं। सुदूर संवेदन युक्तियों ऐसे क्षेत्रों की भी सूचनायें प्रदान करते हैं जो प्रायः मनुष्य की पहुँच से बाहर होते हैं। कभी-कभी ऐसे क्षेत्र जहाँ पर अवैधानिक कटान निरन्तर जारी हो और उसकी कोई जानकारी न हो तो ऐसे क्षेत्रों के लिए सुदूर संवेदन आँकड़े प्रयोग किये जा सकते हैं।

प्रजातियों की पहचान एवं मानचित्रण (Species Identification and Mapping)

          सुदूर संवेदन एक ऐसा साधन है जो विभिन्न वन प्रकारों की पहचान एवं सीमांकन तीव्रता से कम समय में करता है। यद्यपि यही कार्य परम्परागत साधन से बहुत लम्बे समय में अपूर्ण रूप से किया जाता है। सुदूर संवेदन में आँकड़े अलग-अलग मापक पर उपलब्ध होते हैं जो स्थानीय एवं क्षेत्रीय माँग की पूर्ति करते हैं। वृहत मापनी पर प्रजातियों की पहचान बहुस्पेक्ट्रल हाईपरस्पैक्ट्ल या वायु फोटो आँकड़ों से की जा सकती है जबकि लघु मापनी पर प्रजातियों के आवरण एवं सीमांकन, रडार या बहुस्पैक्ट्रल आंकड़ा विश्लेषण से ज्ञात किया जा सकता है।

      इमेजरी एवं प्राप्त सूचनाओं को पुनः जी.आई.एस. में एकीकृत कर कई अन्य सूचनायें प्रजातियों के विषय में प्राप्त की जा सकती है। जी.आई.एस. पुनः कई प्रकार की सूचनायें भी प्रस्तुत करता है जैसे कि ढाल, सीमायें, सड़क, अधिवास इत्यादि। भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग प्रति दो वर्ष के अन्तराल पर सम्पूर्ण भारत के लिये सुदूर संवेदन आँकड़ों की सहायता से वानिकी मानचित्र तैयार करता है।

वनों में आग का मानचित्रण (Forest Fire Mapping)

          जंगलों में आग बड़ी तीव्रता से फैलती है तथा अधिवासों, जंगली जीवों, लकड़ी पूर्ति कम करने तथा संरक्षित क्षेत्रों के विनाश के लिये उत्तरदायी है। आग के प्रसार के नियंत्रण की आवश्यकता के लिये पर्याप्त सूचनाओं की आवश्यकता होती है। किस प्रकार बचे हुये जंगलों को आ से बचाया जाय इसके लिये निदान ढूँढने की आवश्यकता होती है।

सुदूर संवेदन के उपयोग
वनों में आग का मानचित्रण

       सुदूर संवेदन का उपयोग वन क्षेत्रों के अग्नि के प्रबोधन तथा संसूचना के लिये किया जा सकता है। आगे लगने के बाद प्रजातियों में पुनः पुर्नवृद्धि होती है। इस तरह के अध्ययनों में सुदूर संवेदन एक निगरानी करने वाले की भाँति कार्य करता है तथा निरन्तर संवेदन सुविधायें प्रदान करता है। कभी-कभी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जो मनुष्य की पहुँच से बाहर होते हैं। सुदूर संवेदन ऐसे क्षेत्रों की आग की जानकारी व प्रसार की सूचना सम्बन्धित लोगों तक पहुँचाता है। NOAA, AVHRR तापीय आँकड़े तथा GOES के जलवायु सम्बन्धी आँकड़े की सहायता से सक्रीय अग्नि प्रसार का निर्धारण किया जा सकता है जबकि ऑप्टीकल संवेदन, धुँए, धुन्ध या अँधेरे से छुप जाता है।

          सुदूर संवेदन आँकड़ों से जले भाग व जल रहे भाग के सम्बन्ध में अलग-अलग जानकारी प्राप्त होती है जिससे आग की दिशा व गति का पता लगाया जा सकता है। इस तकनीक से आग के बचाव तथा पहुँच वाले क्षेत्रों में निचले स्तर से योजना बनाने के लिये पर्याप्त सूचनायें प्राप्त होती हैं। इसे आग से लड़ने के लिये तार्किक सहायता प्राप्त होती है। आग लगने के एक वर्ष बाद किसी एकल विम्ब द्वारा प्रजातियों के पुनर्उत्पादन स्तर की जानकारी ली जा सकती है। इसी प्रकार बहुकालिक संवेदक द्वारा वनस्पति की वृद्धि का आकलन किया जा सकता है।

प्रश्न प्रारूप

Q. सुदूर संवेदन के उपयोग पर प्रकाश डालें।

(Throw light on the applications of remote sensing.)


Read More:

Tagged:
I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts

error:
Home