Unique Geography Notes हिंदी में

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REGIONAL GEOGRAPHY (प्रादेशिक भूगोल)

3. विकास केन्द्र और विकास ध्रुव / Growth Centre and Growth Pole 

3. विकास केन्द्र और विकास ध्रुव / Growth Centre and Growth Pole


विकास केन्द्र और विकास ध्रुव⇒

                  प्रादेशिक नियोजन हेतु कई विशिष्ट मॉडल विकसित किये गये हैं। उनमें से उपरोक्त दोनों मॉडल को विश्व व्यापी मान्यता प्राप्त है। यह मॉडल पदानुक्रमिक, समन्वित प्रादेशिक विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कार्य माना जाता है। इस मॉडल का विकास 50 के दशक में पेरॉक्स महोदय ने किया था। लेकिन भौगोलिक संदर्भ में इसका सर्वप्रथम प्रयोग बोडोविले महोदय ने किया था। बोडोविले ने कहा है कि किसी भी प्रदेश के नियोजन या विकास हेतु मनुष्य की दो प्रवृतियों का अध्ययन आवश्यक है। प्रथम – अभिसारी प्रवृति और द्वितीय – अपसारी प्रवृत्ति। 

              अभिसारी प्रवृतियाँ किसी भी कार्यों का केन्द्रीयकरण करती है। जबकि अपसारी शक्तियाँ कार्यों का विकेन्द्रीकरण करती हैं। प्रादेशिक नियोजन के संदर्भ में यह देखना आवश्यक है कि किस प्रकार के कार्यों  का केन्द्रीयकरण किस केन्द्रीय स्थल पर हो रहा है। इसी के साथ यह भी देखना आवश्यक है कि किसी भी कार्यों का विकेन्द्रीयकरण आस -पास के क्षेत्रों में कैसे हो रहा है।

बोडोबिले –“प्रादेशिक नियोजन का महत्वपूर्ण आधार केन्द्रीय बस्तियों का पदानुक्रमिक नियोजन, है।” इस संदर्भ में उन्होंने केन्द्रीय बस्तियों के नियोजन हेतु चार पदानुक्रम निर्धारित किये हैं।

पदानुक्रम    केन्द्रीय स्थल 

(1)               विकास ध्रुव

(2)               विकास केन्द्र

(3)              विकास बिन्दु

(4)               सेवा केन्द्र

            विकास ध्रुव का तात्पर्य किसी वृहत प्रदेश के नियोजन से है। विकास केन्द्र का तात्पर्य मध्य स्तरीय प्रादेशिक नियोजन से है जबकि विकास बिन्दु और सेवा केन्द्र  का तात्पर्य लघु स्तरीय प्रादेशिक नियोजन से है।

           बोडोविले के अनुसार किसी प्रदेश के सर्वाधिक केन्द्रीय स्थल पर विकास ध्रुव का विकास होता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि ध्रुव सम्पूर्ण प्रदेश के लिए आकर्षण का केन्द्र होता है। विकास ध्रुव वह स्थान है जहाँ पर शिक्षा, स्वास्थ्य, बाजार के अतिरिक्त ऐसे विशिष्ट कार्यो को करता है जो उस प्रदेश के अन्य किसी केन्द्र पर संभव नहीं है। विकास ध्रुव नव-उत्पाद का केन्द्र होता है। विकास के अवयव इसी केन्द्र से विकेन्द्रीकृत होकर सम्पूर्ण केन्द्र में पहुँचते हैं। 

          दूसरे शब्दों में विकास ध्रुव किसी भी भौगोलिक प्रदेश का सबसे बड़ा नगर होता है। विकास ध्रुव को प्राथमिक नगर से ही सम्बोधित किया जा सकता है। प्रत्येक प्राथमिक नगर या विकास ध्रुव के सहयोग हेतु कई विकास केन्द्र का विकास होता है। विकास केन्द्र वह केन्द्रीय स्थल है जहाँ पर द्वितीयक एवं तृतीयक कार्यों का केन्द्र होता है। विकास केन्द्र के विकास के पीछे दो प्रमुख कारण है – 

(1) विकास ध्रुव वाले नगरों में कार्यों का अति केन्द्रीयकरण न हो और 

(2) ग्रामीण नगरीय जनसंख्या स्थानान्तरण को विकास केन्द्र में ही रोककर विकास ध्रुव के जनसंख्या को नियंत्रित किया जाय।

                  विकास बिन्दु भी रोजगारी उन्मुख केन्द्रीय स्थल है। लेकिन विकास केन्द्र से यह कई मायने में भिन्न है।:-

(1) विकास केन्द्र की तुलना में विकास बिन्दु का विकास कम महत्व वाले केन्द्रीय स्थल पर होता है। इसकी जनसंख्या के आकार काफी छोटा होता है और विकास केन्द्र के प्रति पूरक होता है।

(2) विकास केन्द्र में बड़े-बड़े उद्योग विकसित होते हैं तथा रोजगार प्रदान करने की अधिक क्षमता होती है जबकि विकास बिन्दु स्थानीय कच्चे माल पर आधारित उद्योगों का विकास होता है तथा कम लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं।

          सेवा केन्द्र सबसे लघु आकार के केन्द्रीय बस्ती है। यहाँ पर प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक डाक संचार, लघु स्तर के बैंक एवं लघु स्तरीय प्रशासनिक सुविधा उपलब्ध होती है। ये सामान्यत: छोटे जनसंख्या आकार वाले होते हैं। आम लोगों के दैनिक आकर्षण का केन्द्र होता है। इसे नीचे के मॉडल से भी समझा जा सकता है –विकास केन्द्र और विकास ध्भारत के संदर्भ में

            भारत के प्रारंभिक नियोजन के दिनों में 5वीं पंचवर्षीय योजना तक नियोजन की विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया अपनाये जाने के कारण अंत: प्रादेशिक और अन्तर प्रादेशिक विषमता का जन्म हुआ। अत: छठी पंचवर्षीय योजना में यह अनुभव किया गया कि भारत की नियोजन प्रक्रिया को तीव्र करने के लिए विकास ध्रुव मॉडल को अपनाया जाना चाहिए। प्रो० R. P. मिश्रा, श्रो. सुन्दरम, प्रो० देश पाण्डेय और L.S.भट्ट जैसे भूगोलवेताओं ने अपने तर्कों से योजना आयोग को प्रभावित किया और विकास ध्रुव पर आधारित नियोजन को लागू करने के लिए तैयार किया। R. P. मिश्रा ने केन्द्रीय स्थलों के नियोजन हेतु 5 पदानुक्रम की आवश्यकता पर जोर दिया क्योंकि उन्होंने माना कि भारत एक गाँवों का एक देश है। बड़े- बड़े गाँवों में सेवा केन्द्र विकसित करने की आवश्यकता है और छोटे गाँवों में लघु सेवा केन्द्र विकसित करने की आवश्यकता है।

पदानुक्रम    केन्द्रीय स्थल 

(1)               विकास ध्रुव

(2)               विकास केन्द्र

(3)               विकास बिन्दु

(4)               सेवा केन्द्र

(5)               लघु सेवा केन्द्र

                बोडोबिल ने कहा था कि सेवा केन्द्र कोई भी गाँव या नगर हो सकता है। R.P. मिश्रा ने उनके विचारों  का समर्थन करते हुए कहा कि केन्द्रीय ग्रामीण बस्ती में विकास की प्रक्रिया को तीव्र करने हेतु लघु सेवा केन्द्र का विकसित किया जाना आवश्यक है। वर्तमान समय में योजना आयोग/नीतिआयोग R. P. मिश्रा के द्वारा बताये गये 5 पदानुक्रम पर आधारित नियोजन की प्रक्रिया अपना रही है। इसके लिए निम्नलिखित 5 पदानुक्रम और अनुकूल जनसंख्या का निर्धारण किया गया है। विकास केन्द्र और विकास ध्

            योजना आयोग ने भारत के सभी 35 महानगरों को विकास ध्रुव के रूप में मान्यता दिया है। योजना आयोग के अनुसार भारत में कम-से-कम 500 विकास केन्द्रों की स्थापना की योजना है। एक विकास केन्द्र में 12 लाख जनसंख्या को रखा जा रहा है। विकास केन्द्र को ही ध्यान में रखकर 1980 ई0 से औद्योगिक शंकुल की स्थापना की जा रही है। इसके अलावे महानगरों में बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखकर महानगरों के बाहर विकास केन्द्र विकसित करने की योजना है। जब किसी भी विकास केन्द्र को विकसित किया जाता है तो निम्नलिखित तथ्यों पर गौर किया जाता है:-

(1) कितने लोग उस केन्द्र पर आते हैं और कितने लोग जाते हैं।

(2) किन-किन परिवहन साधनों का वहाँ विकास हुआ है।

(3) वर्तमान समय में उस स्थान का कार्यिक संरचना और संरचनात्मक सुविधाएँ क्या-क्या है 

(4) जनसंख्या वृद्धि का दर क्या है 

(5 ) औद्योगिक संसाधनों की विकसित होने की क्या संभवना है। 

             विकास बिन्दु का तात्पर्य उन स्थानों से है जो स्थानीय संसाधनों की मदद से लघु उद्योगों को विकसित कर सकते हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में विकास बिन्दुओं की विशेष भूमिका हो सकती है। योजना आयोग भारत में 10 हजार विकास बिन्दुओं को पहचानकर उन्हें विकसित करने की प्रयास कर रही है। एक विकास बिन्दु को एक से दो लाख जनसंख्या को ध्यान में रखकर विकसित करने की प्रयास कर रही है।

            सेवा केन्द्रों का मूल उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है। भारत में लगभग 30 हजार सेवा केन्द्रों की पहचान कर उसे विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। सामान्यतः प्रखण्ड स्तर पर सेवा केन्द्र विकसित करने की योजना है। सेवा केन्द्रों में Cold Storage, खाद्यान्न भण्डारण सुविधा, दैनिक बाजार इत्यादि विकसित करने की योजना है।

      ग्रामीण सेवा केन्द्र पंचायत स्तर पर विकसित करने की योजना है। भारत में 1 लाख गाँव को ग्रामीण सेवा केन्द्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। ये सेवा केन्द्र निश्चित रूप से ग्रामीण विकास कार्यक्रम को त्वरित कर सकेंगे। 

निष्कर्ष 

          इस तरह उपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि विकास ध्रुव मॉडल के अन्तर्गत विकसित किये जा रहे सभी केन्द्रीय स्थल एक-दूसरे के पूरक के रूप में कार्य करेंगी जिससे अंतः और अन्तर प्रादेशिक विषमता दूर हो सकेगी। पिछले 20 वर्षों के दौरान विकास ध्रुव नीति पर आधारित नियोजन का कार्य किये जाने के बाद भी इसका लाभ कुछ सीमित क्षेत्रों को ही मिल पाया है। लेकिन इस मॉडल के अनुसार महानगरों का विकास तेजी से हो रहा है। ग्रामीण स्तर पर पंचायतों का नियमित चुनाव नहीं होने के कारण तथा उनके राजनीतिक अधिकार नहीं दिये जाने के कारण यह मॉडल पूर्ण से सफल नहीं हो सकता है।

➡वृद्धि केन्द्र = विकास केन्द्र

प्रश्न प्रारूप 

1. विकास ध्रुव सिद्धांत के आलोचनात्मक व्याख्या भारतीय नियोजन के संदर्भ में करे।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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