7. भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह
7. भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह
( Indian remote sensing satellite-IRS)
भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह
भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह श्रृंखला का प्रथम उपग्रह IRS-1A को मार्च 1988 में सोवियत वोस्टक रॉकेट (Soviet Vostak Rocket) की सहायता से अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया। इसी श्रृंखला का द्वितीय उपग्रह IRS-1B को अगस्त, 1991 को प्रक्षेपित किया गया जो अभी भी निरन्तर कार्य कर रहा है। इस पर 72.5 मीटर विभेदन के LISS-1 तथा 36.25 मीटर के LISS-2A व LISS-2B संवेदक के दो कैमरे लगे हुये हैं। ये कैमरे चार स्पैक्ट्रम बैंड 0.45 से 0.86 माइक्रोमीटर पर कार्य करते हैं। इसी प्रकार तृतीय उपग्रह IRS-1C को 28 दिसम्बर, 1995 में रूसी रॉकेट द्वारा मोलिया से प्रक्षेपित किया गया। इस पर निम्नलिखित तीन कैमरे लगे हुये थे-
(i) पेंक्रोमेटिक कैमरा (Panchromatic Camera-PAN):-
यह एक उच्च विभेदक (5.8 मीटर) पेंक्रोमेटिक बैंड पर कार्य करता है जिसकी स्वाथ चौड़ाई 70 किमी० होती है। इसमें स्टीरियोस्कोपित विम्ब देखने की क्षमता है।
(i) LISS-3 (A Linear Imaging Self Scanning Sensor):-
यह चार स्पेक्ट्रल बैंड पर कार्य करता है। इनमें तीन दृश्य अवरक्त स्पैक्ट्रल (VNIR) बैंड तथा एक लघु तरंग अवरक्त (SWIR) प्रभाग है। इसका भूमि विभेदन VNIR बैंड पर 23.5 मीटर तथा SWIR बैंड पर 70.5 मीटर है जिनकी स्वाथ चौड़ाई क्रमशः 41 किमी० तथा 148 किमी० है।
(iii) WIFS (A Wide Field Sensor-WIFS):-
यह एक निम्न विभेदक (188.3 मीटर) कैमरा है जिसकी स्वाथ चौड़ाई 810 किमी० है। उपग्रह में एक टेपरिकार्डर भी है जो आंकड़ों को अंकित करता है।
चतुर्थ उपग्रह IRS-1D को 29 सितंबर 1997 को प्रक्षेपित किया गया जो IRS-1C के ही समान है। IRS-P2, तथा IRS-P1, को भारत में निर्मित PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) द्वारा क्रमश: 15 अक्टूबर, 1994 व 21 मार्च, 1996 को प्रक्षेपित किया गया। IRS-1A व 1B की ही भांति IRS-P2, में भी LISS-2 कैमरा लगा है जबकि IRS-P1 में WIFS कैमरा लगा हुआ है।
IRS-P4, को PSLV-C2 द्वारा 26 मई, 1999 को सफलतापूर्वक अन्तरिक्ष में छोड़ा गया। यह अपने तरह का एक नया प्रयोग था। इस पर समुद्रीय रंगीन मोनीटर (Ocean Colour Monitor) तथा बहु आवृत्ति स्कैनिंग लघुतरंग रेडियोमीटर (Multi Frequency Scanniring Microwave Radiometer) लगे हुये हैं।
उपग्रह नियंत्रण केन्द्र बंगलौर में स्थित है। इसके अतिरिक्त लखनऊ तथा माउरीटियस उपस्टेशन भी निरन्तर आई. आर. एस. उपग्रह का प्रबोधन (Monitor) करते हैं। राष्ट्रीय सुदूर संवेदन संस्था (NRSA) का आंकड़ों को प्राप्त करने वाला स्टेशन हैदराबाद के पास सादनगर में स्थित है। यहां पर उपग्रह से आंकड़ों को प्राप्त कर इन्हें प्रयोग के योग्य बनाया जाता है। तत्पश्चात् हैदराबाद में NRSA द्वारा आंकड़ों को वितरित करने की सुविधा है।
भारतीय सुदूर संवेदन प्रणाली का सबसे मुख्य आधार राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन प्रणाली (National Natural Resources Management System-NNRMS) है जो भारत के प्राकृतिक संसाधनों के आंकड़ों का प्रभावशाली ढंग से प्रबन्धन करती है। आई. आर. एस. के आंकड़ों को कई उपयोगों में लाया जाता है जैसे कि कृषि फसलों का उत्पादन अनुमान, सूखाग्रस्त क्षेत्रों का प्रबन्धन, बाढ़ क्षेत्रों का मानचित्रण, भूमि उपयोग मानचित्रण बेकार भूमि का प्रबन्धन, जल संसाधनों का प्रबन्धन, समुद्रीय संसाधनों का सर्वेक्षण, नगरीय योजनायें, खनिज संभावनायें, वन सर्वेक्षण इत्यादि।
आई. आर. एस. आंकड़ों का अनोखा उपयोग IMSD (Intergrated Mission for Sustainable Development) है। वास्तव में IMSD के अन्तर्गत 174 जिलों को सम्मिलित किया गया है। इसका प्रमुख उद्देश्य उपग्रहीय तथा सामाजिक व आर्थिक धरातलीय आँकड़ों की सहायता से सतत विकास (Sustainable Development) करना है। IRS श्रृंखला के सामान्य लक्षणों तथा उनके संवेदकों की विशेषताओं को इस प्रकार नीचे देखा जा सकता है-
आई. आर. एस. श्रृंखला की कक्षीय विशेषतायें | ||
लक्षण (Features) | IRS-1A/1B | IRS-P2 |
ऊँचाई (Altitude) | 904 किमी० | 817 किमी० |
कक्षीय काल (Orbital Period) | 103.2 मिनट | 101.35 मिनट |
सम-सामयिक विभेदन (Temporal Resolution) | 22 दिन | 24 दिन |
भूमध्य रेखा पार करने का समय (Equatorial Crossing Time) |
10 बजे सुबह | 10 बजे सुबह |
संवेदक (Sensors) | LISS-1 व LISS-2 | LISS-2 |
आई. आर. एस. 1C की कक्षीय विशेषतायें | |
लक्षण (Features) | IRS-1C |
कक्षीय प्रकार (Orbital Types) | ध्रुवीय सूर्य तुल्यकालिक |
ऊँचाई (Altitude) | 817 किमी० |
झुकाव (Inclination) | 98.69० |
दूरी (Ditance between Adjacent Traces) | 117.5 किमी० |
पुनरावृत्ति (Repitative for LISS-3) | 24 दिन |
पुनरावृत्ति (Repitative for WIFS) | 5 दिन |
दृश्यालोकन (Revisit of Pan) | 5 दिन |
नादिर बिन्दु पर कवरेज (Coverage) | 398 किमी० |
स्टीरियोग्राफिक क्षमता (Stereo Coverage Capacity) | 5 दिन |
आई. आर. एस. P3 की कक्षीय विशेषतायें | |
लक्षण (Features) | IRS-P3 |
कक्षीय प्रकार (Orbital Types) | ध्रुवीय सूर्य तुल्यकालिक |
कक्षीय प्रकार (Orbital Period) | 101.35 मिनट |
भूमध्य रेखा पार करने का समय | 10.30 बजे सुबह |
ऊँचाई (Altitude) | 817 किमी० |
झुकाव (Inclination) | 98.73० |
संवेदक (Sensors) | WIFS, MOS, X-Ray |
भारत ने प्रथम प्रयास 1975 से लेकर 2014 तक 73 भारतीय उपग्रहों को अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया है। भारत के सभी उपग्रहों का उत्तरदायित्व भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन के अधीन है।
भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (INSAT) को भू-तुल्यकालिक कक्षों में स्थापित किया गया है। यह प्रणाली एशिया-प्रशान्त क्षेत्र की सबसे बृहत घरेलू संचार उपग्रह प्रणाली (Domestic Communication Satellite System) है। इसे वर्ष 1983 में INSAT-B के प्रक्षेण के साथ ही स्थापित किया गया था। भारत के इतिहास में संचार सेक्टर के क्षेत्र में एक क्रांति है जो निरन्तर चल रही है। समय-समय पर इसमें कई परिवर्तन होते चले गये हैं। INSAT अन्तरिक्ष प्रणाली के अन्तर्गत 24 उपग्रह प्रक्षेपित है उनमें से 10 सफलतापूर्वक अब भी कार्यरत हैं।
भारत के प्रक्षेपणयान (India Launch Vehicles)
भारत के प्रमुख प्रक्षेपणयान निम्नलिखित हैं-
उपग्रह प्रक्षेपणयान (Satellite Launch Vehicle – SLV-3):-
इस क्षेत्र में भारत की क्षमता का पहला प्रदर्शन SLV-3 का निर्माण था। 1980 में SLV-3 ने अपनी सफलतम उड़ान भरी जिसने 40 किग्रा० के रोहणी उपग्रह को ध्रुवीय कक्ष के नजदीक पहुंचाया। SLV-3 की लम्बाई 22.7 मीटर है जिसकी क्षमता 17 टन वजन उठाने की है। SLV-3 के दो अन्य प्रक्षेपण मई, 1981 व अप्रैल, 1983 में सम्पन्न किये गये।
आवर्धक उपग्रह प्रक्षेपणयान (The Augmented Satellite Launch Vehicle-ASLV):-
ASLV की प्रथम सफलता 20 मई, 1992 को प्राप्त हुई जब रोहणी उपग्रह (SROSS-C) को पृथ्वी के नजदीक कक्ष में स्थापित किया गया। ASLV के द्वारा दूसरा प्रक्षेपण 4 मई, 1994 को सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ जब SROSS-C2, उपग्रह को छोड़ा गया था। ASLV पांच अवस्थाओं वाला यान है जो 150 किलो० पेलोड (Payload) की क्षमता रखता है।
ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपणयान (Polar Satellite Launch Vehicle-PSLV):-
ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपणयान के विकास में यह भारत की तीसरी सफलता थी। 21 मार्च, 1996 में PSLV की सफलता से भारत ने यह सिद्ध कर दिया कि यह आई. आर. एस. उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की क्षमता रखता है। PSLV-D, द्वारा सुदूर संवेदक उपग्रह IRS-P, को 817 किमी० दूरी पर ध्रुवीय सूर्य तुल्यकालिक कक्ष में स्थापित किया गया। PSLV-D3 को द्वितीय विकास उड़ान 15 अक्टूबर, 1994 को हुई जब IRS-P2, उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्ष में स्थापित किया गया।
PSLV, 283 टन भार वाला 44 मीटर लम्बा यान है। यह 1000 से 1200 किग्रा भार वाले सुदूर संवेदन उपग्रह को 900 किमी० की दूरी पर ध्रुवीय सूर्य तुल्यकालिक कक्ष में पहुंचाने की क्षमता रखता है। यह यान चार अवस्थाओं का है। इसकी पहली अवस्था 2.8 मीटर व्यास की 129 टन भारी है। इस पर एक ठोस मोदक मोटर (Solid Propellant Motor) है जिसके चारों ओर 6 मोटर जड़ी हुई हैं। 2.8 मीटर व्यास वाली दूसरी अवस्था है जो तरल इन्जन तकनीक पर आधारित है। यह 37.5 टन (Liquid Propellant) का उपयोग करता है।
तीसरी अवस्था में 7.2 टन ठोस मोदक मोटर है तथा चौथी अवस्था में पुनः तरल मोदक की है जिसमें 2 टन मोदक है। इस पर एक संकीर्ण लूप निर्देशन प्रणाली है।
भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपणयान (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle- GSLV):-
भारत ने भृतुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपणयान का भी निर्माण किया है जिसकी प्रक्षेपण क्षमता 2500 किग्रा० के संचार उपग्रहों को भू-स्थैतिक कक्ष में स्थापित की है। GSLV का निर्माण PSLV को परिवर्तित करके तैयार किया गया है जिस पर 6 ठोस मोदक स्ट्रैप मोटर तथा 4 तरल मोदक स्ट्रेप मोटर लगी है। इसमें PSLV की दो अन्य अवस्थाओं को बदलकर एक क्रायोजिनिक अवस्था की गई है।
भारतीय अन्तरिक्ष केन्द्र तथा इकाईयाँ (Indian Space Centers and Units):-
भारत में अन्तरिक्ष विज्ञान के विकास एवं अनुसंधान के लिये देश के विभिन्न भागों में अन्तरिक्ष केन्द्रों की स्थापना की गई है जिनमें प्रमुख निम्न हैं-
1. विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष केन्द्र (VSSC):-
यह केन्द्र तिरुअनन्तपुरम में स्थित है। प्रक्षेपणयान के विकास तथा रॉकेट अनुसंधान में इस केन्द्र की अग्रणी भूमिका है। केन्द्र इसरो के प्रक्षेपणयान विकास प्रोजेक्ट की योजनायें तैयार कर उन्हें क्रियान्वित करता है।
2. इसरो उपग्रह केन्द्र (ISAC):-
यह केन्द्र बंगलौर में स्थित है। यहां पर वैज्ञानिक तकनीक तथा उपयोग मिशन (Application Mission) के लिये उपग्रह प्रणाली का डिजाइन, निर्माण, परीक्षण तथा प्रबन्धन किया जाता है।
3. अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र (SAC):-
इसरो के अहमदाबाद केन्द्र पर अनुसंधान एक विकास कार्य किये जाते हैं। इनमें मुख्यतः अन्तरिक्ष तकनीक के व्यावहारिक उपयोग के लिए सोच, विचार (Conceiving), संगठन तथा निर्माण प्रणाली तैयार करना है। क्रियाकलापों का मुख्य विषय क्षेत्र उपग्रहीय संचार प्रणाली, सुदूर संवेदन, मौसम विज्ञान, ज्योडेसी इत्यादि हैं।
4. सहार केन्द्र (SHAR):-
यह आन्ध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा में इसरो का प्रमुख प्रक्षेपण केन्द्र है। यहां पर उपग्रह प्रक्षेपण के अतिरिक्त ठोस मोदक रॉकेट मोटर का वृहद पैमाने पर प्रक्रीयन तथा भूमि परीक्षण भी किया जाता है।
5. तरल मोदक प्रणाली केन्द्र (Liquid Propulsion System Center-LPS):-
इस प्रकार की सुविधा तिरुअनन्तपुरम्, बंगलौर तथा महेन्द्रगिरी (तमिलनाडु) केन्द्रों में उपलब्ध है जहां पर इसरो प्रक्षेपणयान व उपग्रह प्रोग्राम के लिये तरल मोदक प्रणाली का खाका, निर्माण तथा परीक्षण किया जाता है।
6. विकास एवं शैक्षिक संचार इकाई (Development and Educational Communication Unit-DECU):-
अहमदाबाद केन्द्र आन्तरिक उपयोग प्रोग्रामों के संकल्पन (Conception), परिभाषा, योजना तथा सामाजिक आर्थिक मूल्यांकन के लिये प्रमुख हैं।
7. इसरो टेलीमेटरी, ट्रेकिंग व कमान्ड नेटवर्क (ISTRAC):-
इसका केन्द्रीय कार्यालय तथा स्पेसक्राफ्ट नियंत्रण केन्द्र बंगलौर में है। इसके भूमि नेटवर्क केन्द्र श्रीहरिकोटा, तिरुअनन्तपुरम्, बंगलौर, लखनऊ, पोर्टब्लेयर तथा माउरीटियस में है।
8. प्रधान नियंत्रण सुविधा (Master Control Facility- MCF):-
कर्नाटक में स्थित हसन केन्द्र प्रक्षेपण के बाद की क्रियाओं के लिये उत्तरदायी है। विशेषकर इन्सेट उपग्रह के कक्षीय मैनुअवर (Manoeuvers) स्टेशन का रख-रखाव तथा कक्षीय संचालन इत्यादि क्रियायें हैं।
9. इसरो जड़त्व प्रणाली इकाई (ISRO Inertial Systems Unit):-
तिरुअनन्तपुरम केन्द्र उपग्रह तथा प्रक्षेपणयान के लिये जड़त्व प्रणाली का बाहरी खाका तथा निर्माण करता है।
10. भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (Physical Research Laboratory-PRL):-
यह प्रयोगशाला अन्तरिक्ष विभाग के अधीन अहमाबाद में स्थित है जो अन्तरिक्ष अनुसंधान एवं अन्य विज्ञानों के अनुसंधान का अग्रणी राष्ट्रीय केन्द्र है।
11. राष्ट्रीय सुदूर संवेदन संस्था (National Remote Sensing Agency-NRSA):-
यह केन्द्र भी अन्तरिक्ष विभाग के अधीन हैदराबाद में स्थित है। यहां पर सुदूर संवेदन उपग्रह के आंकड़ों को प्रक्रियन के पश्चात प्रयोगकर्ता तक उपलब्ध कराता है। इसके द्वारा वायु सुदूर संवेदन का संचालन भी किया जाता है।
12. राष्ट्रीय मेसोस्फीयर-स्ट्रेटोस्फीयर-ट्रोपोस्फीयर रडार सुविधा (National Mesophere Stratosphere Toposphere Radar Facilitiy):-
इस केन्द्र पर वायुमण्डलीय विज्ञान अनुसंधान किया जाता है। अन्तरिक्ष विभाग के अधीन यह केन्द्र तिरुपति में स्थित है।
13. भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (Indian Institute of Remote Sensing- IIRS):-
भारती सुदूर संवेदन संस्थान एक प्रमुख शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान है जो कि भारत सरकार के अन्तरिक्ष विभाग में राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेन्सी के अन्तर्गत आता है। इसकी स्थापना सुदूर संवेदन के क्षेत्र में दक्ष व्यवसायियों को विकसित करने के लिये की गई है। संस्थान का प्रमुख कार्य क्षेत्र के प्रयोगकर्ता समुदाय में तकनीक हस्तान्तरण द्वारा अपनी क्षमताओं का निर्माण करना है। यह संस्थान सुदूर संवेदन के विभिन्न उपयोगों के क्षेत्रों में डिप्लोमा एवं स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा प्रदान करता है। यह संस्थान देहरादून में स्थित है।
इस संस्थान का प्रमुख मिशन सुदूर संवेदन तथा ज्योइनफारमेटिक्स के क्षेत्र में शिक्षा एवं परिशिक्षण के द्वारा व्यावसायिक श्रेष्ठता को जारी रखना तथा प्रोत्साहन करना है। इसका दूसरा उद्देश्य भूविज्ञान, मानचित्रण, प्राकृतिक संसाधन सर्वेक्षण, पर्यावरण प्रबन्धन इत्यादि विषयों में धरातलीय अनुभवों तथा प्रयोगकर्ता के संवाद को एकीकृत करना है। इसका तीसरा महत्वपूर्ण कार्य प्राकृतिक संसाधनों के विकास तथा प्रबन्धन के लिये सामाजिक-आर्थिक सोच-विचार का ध्यान रखते हुये अन्तर विषयी अन्तरापृष्ट की स्थापना करना है।
उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिये संस्थान में तकनीक तथा उपयोग के लिये कई विभाग हैं जो फोटोग्रामेंट्री सुदूर संवेदन, ज्योइन्फोरमेटिक्स तथा विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन को संचालित करते हैं। इनमें प्रमुख विभाग हैं-
(i) फोटोग्राफी एवं सुदूर संवेदन,
(ii) भू-विज्ञान,
(iii) कृषि एवं मृदा
(iv) जल संसाधन
(v) समुद्र विज्ञान
(vi) वन एवं पारिस्थितिकी
(vii) मानव अधिवास विश्लेषण तथा
(viii) ज्योइन्फोर्मेटिक।
प्रश्न प्रारूप
Q. भारतीय सुदूर संवेदक उपग्रह पर प्रकाश डालें।
(Throw light on the Indian remote sensing satellite-IRS.)
Read More:
- 1. सुदूर संवेदन और भौगोलिक सूचना तंत्र
- 2. उपग्रहों के विकास के इतिहास / The Historical Development of Satellite
- 3. भूगोल में सुदूर संवेदन के महत्व एवं उपयोगिता / The Significance and Utility of Remote Sensing in Geography
- 4. सुदूर संवेदन प्लेटफार्म
- 5. भू-स्थैतिक उपग्रह, सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह एवं ध्रुव कक्षीय उपग्रह
- 6. लैण्डसेट उपग्रह
- 7. भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह
- 8. The Aerial Photography (वायु फोटोग्राफी)
- 9. The Digital Image (डिजिटल इमेज)
- 10. Projection / प्रक्षेप
- 11. अंकीय उच्चता मॉडल
- 12. जी. आई. एस. की संकल्पनाओं एवं उपागम
- 13. भौगोलिक सूचना प्रणाली के उद्देश्यों, स्वरूपों एवं तत्वों की विवेचना
- 14. भू-सन्दर्भ / The Geo-Referencing System
- 15. डिजिटल मानचित्रकला
- 16. रास्टर एवं विक्टर मॉडल में अंतर
- 17. The application of G.P.S. (जी.पी.एस. के उपयोग)
- 18. सुदूर संवेदन के उपयोग
- 19. Classification of Aerial Photograps (वायु फोटोचित्रों का वर्गीकरण)