12. जी. आई. एस. की संकल्पनाओं एवं उपागम
12. जी. आई. एस. की संकल्पनाओं एवं उपागम
(The Concept and Approaches of GIS)
जी. आई. एस. की संकल्पनाओं एवं उपागम⇒
जी.आई.एस. की प्रमुख संकल्पनायें इस प्रकार हैं:-
सी.पी.लो. एवं बलबर्ट के. (2005) ने जी.आई.एस. के निम्नलिखित संकल्पनायें एवं तकनीकी प्रस्तुत की हैं-
(i) आँकड़ों को उपार्जित एवं मॉडलिंग करना (Data Acquisition and Modeling)
(ii) भू-सन्दर्भित करना (Georeferencing)
(iii) आँकड़ा स्तर (Data Standard)
(iv) आँकड़ों का प्रक्रियन एवं विश्लेषण करना ( Data Processing / Analysis)
(v) कम्प्यूटर हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर (Computer Hardware and Software)
(vi) व्यवहारिक उपयोग (Application)
(vii) जी.आई.एस. प्रणाली का विकास (G.I.S. System Development)
(viii) समस्या एवं समाधान (Problem and Solution)
इसी प्रकार कई अन्य लेखकों ने जी.आई.एस. की संकल्पनायें निम्नलिखित रूप से दी है-
(i) आँकड़ा प्राप्त करना एवं उनको प्रस्तुत करना (Data Capture and Presentation
(ii) आँकड़ा प्रबन्धन जिसके अन्तर्गत संग्रहण एवं रख-रखाव सम्मिलित है। (Data Management)
(iii) आँकड़ों का विश्लेषण एवं परिचालन करना ( Data Analysis and Manipulation)
(iv) आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण (Data Presentation)
(v) मॉडलिंग करना (Modeling)
कुछ अन्य संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. स्थान एवं घटना विशेष की संकल्पना:-
जैसा कि पूर्व में समझाया गया है कि जी.आई.एस. भौगोलिक सूचनाओं को कम्प्यूटर पर एकीकृत करता है। प्रश्न उठता है कि ये भौगोलिक घटनायें कहाँ घटित हुई हैं? इनका धरातलीय प्रतिरूप किस प्रकार प्रतीत होता है? स्थान विशेष की संकल्पना इससे सम्बन्धित है। भूगोल एक वितरण का विज्ञान है। सूचनाओं व घटनाओं का घरातलीय वितरण प्रतिरूप प्रदर्शन करने में जी.आई.एस. सबसे अधिक उपयोगी तकनीक है। किसी वस्तु अथवा घटना का धरातलीय वितरण मानचित्र के द्वारा, जी.आई.एस. के अंतर्गत सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
2. मानचित्र बाहुलता (Map Quantities)
3. घनत्व विश्लेषण (Density Analysis)
4. सूचना से सूचना संकल्पना (Concept of Data in Data)
5. सहसम्बन्ध की संकल्पना (Concept of Relationship)
6. परिवर्तनशीलता की संकल्पना (Concept of Change)
7. प्रतिरूपों की संकल्पना (Concept of Pattern)
8. प्रवृत्तियों की संकल्पना (Concept of Trend)
जी.आई.एस. के भौगोलिक उपागम
(Geographical Approach of GIS)
भूगोल एक सांसारिक विज्ञान है तथा जी.आई.एस. एक सांसारिक विज्ञान के विश्लेषण की आधुनिकतम तकनीकी है। भूगोल एवं जी.आई.एस. दोनों ही पृथ्वी के धरातल की सूचनाओं के सम्बन्ध में उपयुक्त समझ उत्पन्न करते हैं। भौगोलिक ज्ञान का उपयोग मानव क्रियाकलापों को संचालित करने में सहायक होते हैं। यहीं से भौगोलिक उपागम का आरम्भ होता है। यहाँ भौगोलिक उपागम का आशय किसी भी समस्या के समाधान के लिए एक नये तरीके की सोच विकसित करना है जो भौगोलिक सूचनाओं को एकीकृत एवं संगठित करती है जिससे पृथ्वी जैसे ग्रह के बारे में अधिकतम जानकारी प्राप्त की जा सके।
भौगोलिक उपागम भौगोलिक ज्ञान को जागृत (Create) कर हमारी जिज्ञासा को बढ़ाता है। पृथ्वी का मापन (Measurement of Earth), आँकड़ों या सूचनाओं का व्यवस्थीकरण एवं विश्लेषण, विभिन्न प्रक्रियाओं का मॉडलिंग, अवयवों (Elements) में आपसी सम्बन्ध इत्यादि भौगोलिक ज्ञान के प्रमुख बिन्दु हैं जिनका अध्ययन भौगोलिक विश्लेषण के अंतर्गत कया जाता है। इतना ही नहीं भौगोलिक उपागम की विधियों हमें यह भी अनुमति प्रदान करती है कि किस प्रकार सांसारिक घटनाओं का डिजाइन योजनाबद्ध किया जा सकता है। भौगोलिक उपागम के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं-
भौगोलिक उपागम के प्रमुख चरण
(Steps of Geographical Approach)
1. Step 1- प्रश्न करना (Ask)
2. Step 2- उपार्जन करना (Acquire)
3. Step 3- परीक्षण करना (Examine)
4. Step 4- विश्लेषण करना (Analysis)
5. Step 5- कार्यान्वयन (Action)
Step 1 प्रश्न करना (Ask):-
किसी भी भौगोलिक समस्या को उजागर करने से पूर्व प्रश्न उठता है कि जिस समस्या के समाधान या विश्लेषण किया जाना है या किया जा रहा है वह समस्या क्या है तथा वह भौगोलिक दृष्टि से कहाँ स्थित है? इस प्रकार के प्रश्न करने से सम्भवतः उसके उत्तर प्राप्त करने में सहायता मिल सके। यह भौगोलिक उपागम का प्रमुख कदम है। समस्या के बसाव स्थिति के अनुरूप विश्लेषण विधियों की रूपरेखा तैयार की जाती है।
Step 2-उपार्जन करना (Acquire):-
समस्या या घटना के स्पष्टीकरण के पश्चात उसे सम्बन्धित उपयुक्त सूचनाओं की सूची निर्धारित की जाती है जिनकी विश्लेषणकर्ता को नितान्त आवश्यकता होती है। यह भी निश्चित किया जाता है कि अमुक सूचना प्राप्त की जा सकती है या जी.आई.एस. के अंतर्गत तैयार की जा सकती है। वास्तव में आंकड़ों के प्रकार एवं उनका भौगोलिक महत्त्व किसी समस्या के मूल में पहुँचने की कला व विधियों को भी स्पष्ट करने में सहायता करते हैं। यदि अध्ययन की विश्लेषण विधियाँ उच्च स्तर की हों तो वे समस्या के निदान में प्रयोग किये जाने वाले आंकड़ों की प्राप्ति में भी सहायक होते है।
उत्कृष्ट अध्ययन विधियों के उपयोग के लिए आवश्यक है कि नये प्रकार के आकड़ों को उत्पन्न किया जाय। नये प्रकार की सूचनाओं को सूचीबद्ध करने के लिए भौगोलिक धरातलीय (Spatial) तथा अधरातलीय (Aspatial or Attribute) सूचनाओं की आवश्यकता होती है। इन सूचनाओं एवं आँकड़ों को तालिकाओं, नये प्रकार के मानचित्रों की परतों इत्यादि तरीकों से जीआईएस द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
Step3-परीक्षण करना (Examine):-
आँकड़ों की प्राप्ति के पश्चात् अगला कदम है कि सूचनाओं या आँकड़े की उत्तमता को परखना। यह प्रयास किया जाता है कि प्राप्त किये गये आँकड़े हमारे अध्ययन के लिए अनुकूल है या नहीं। यदि उपयुक्त है तो उन्हें किस रूप में उपयोग किया जा सकता है।
परीक्षण के अंतर्गत प्रत्यक्ष निरीक्षण, अन्वेषण (संगठित करने के तरीके), एक आँकड़ा सेट से दूसरे आँकड़ा सेट से सम्बन्ध, आँकड़ों को व्यवस्थित करने के विज्ञान के नियम (Topology) तथा आँकड़ों के प्राप्ति का स्रोत (Meta Data) इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है।
कहने का अर्थ यह है कि सभी प्रकार के आँकड़ों की पुष्टि होने के पश्चात् उन्हें अध्ययन के अनुरूप व्यवस्थित किया जाता है।
Step 4- विश्लेषण करना (Analysis):-
जीआईएस का अगला कदम, आँकड़ों अथवा सूचनाओं का परीक्षण या विश्लेषण की विधियों के आधार पर प्रक्रियन (Process) तथा व्याख्या (Analysis) करना होता है। परिणामों के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है तथा परिणामों को देखकर यह तय किया जाता है कि सूचनायें जिनका प्रयोग किया गया है उपयोगी या वैधानिक है या नहीं। विभिन्न अवयवों (Parameters) के विश्लेषण करने में उपयोग की गई विधियाँ कितनी कारगर सिद्ध हुई हैं?
इस प्रकार जी.आई.एस. मॉडलिंग की जाती है जिसके माध्यम से परिणामों के परिवर्तन सरल, शुद्ध एवं आसान बनाया जाता है, जो नये परिणाम प्रस्तुत करने में सहायक होते है कि रास्टर एवं विक्टर ऑकड़ा मॉडल इसी कदम के प्रतिफल हैं।
Step 5 कार्यान्वयन (Action):-
भौगोलिक उपागम के विश्लेषण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा परिणामों का प्रस्तुतीकरण एवं कार्यान्वयन करना होता है। किसी भी समस्या के परिणामों की रिपोर्ट, मानचित्रों, तालिकाओं, चारों या इन्टरनेट या वेब अथवा अन्य मुद्रित माध्यमों से प्रयोगकर्ताओं के मध्य आदान-प्रदान की जा सकती हैं। किसी भी विश्लेषण के परिणामों की प्रस्तुतीकरण के उपयुक्त साधनों की नितान्त आवश्यकता होती है। यह देखा आता है कि कौन विधि परिणामों को उपयोगकर्ता तक पहुँचाने में अति सहयोगी हो सकती है। इसके लिए सभी तरह के Audio Visual विद्युतीकरण यंत्रों से समस्या के परिणामों को आंशिक एवं पूर्ण रूप से प्रस्तुत कर उस पर कार्यान्वयन किया जाता है। कार्यान्वयन करना तथा उपयोगकर्ता द्वारा परिणामों को उपयोग में लाना ही भौगोलिक उपागम की महत्वपूर्ण कड़ी है। परिणामों के द्वारा समस्या के निदान करना ही किसी योजना की सफलता मानी जाती है।
उपरोक्त परिभाषायें भौगोलिक सूचना प्रणाली के विषय वस्तु तथा क्रियाकलापों पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालते हैं। कभी-कभी इसे धरातलीय सूचना प्रणाली (Spatial Information System) भी कहते हैं जो किसी भी स्थान विशेष पर स्थित आँकड़ों का संचालन करती है। इसी प्रकार का शब्द ‘अधरातलीय आँकड़ा’ (Aspatial Data) है। इसकी भी समान्तर रूप से लाक्षणिक आँकड़ों (Attribute Data) के लिए प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए वर्षा, तापमान, मिट्टी के रासायनिक गुण, जनसंख्या आँकड़ा इत्यादि। यहाँ पर यह समझना आवश्यक है कि धरातलीय आँकड़ों के संचालन के लिए कई प्रकार के तकनीक शब्द प्रयोग किये जाते हैं जिनमें कुछ इस प्रकार हैं-
(a) भू-सूचना प्रणाली (Geo-Information System-GIS)
(b) धरातलीय सूचना प्रणाली (Spatial Information System-SIS)
(c) भूमि सूचना प्रणाली (Land Information System-LIS)
(d) बहु-उद्देशीय भू-आधारित प्रणाली (Multi-Purpose Cadastre-MPC)
अंत में निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि “भौगोलिक सूचना प्रणाली एक कम्प्यूटर सहायता प्राप्त तंत्र है जो भौगोलिक संसार के विभिन्न पहलुओं से संबंधित आँकड़ों को एकत्र, संग्रह, विश्लेषण, परिचालन, प्रस्तुतीकरण तथा पुनर्प्रसारण करता है। यह किसी निर्णय पर पहुँचने का शक्तिशाली साधन या प्रणाली है।”
प्रश्न प्रारूप
Q. जी. आई. एस. की संकल्पनाओं एवं उपागम की विवेचना को
(Discuss the Concept and approaches of GIS.)
Read More:
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- 5. भू-स्थैतिक उपग्रह, सूर्य तुल्यकालिक उपग्रह एवं ध्रुव कक्षीय उपग्रह
- 6. लैण्डसेट उपग्रह
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- 8. The Aerial Photography (वायु फोटोग्राफी)
- 9. The Digital Image (डिजिटल इमेज)
- 10. Projection / प्रक्षेप
- 11. अंकीय उच्चता मॉडल
- 12. जी. आई. एस. की संकल्पनाओं एवं उपागम
- 13. भौगोलिक सूचना प्रणाली के उद्देश्यों, स्वरूपों एवं तत्वों की विवेचना
- 14. भू-सन्दर्भ / The Geo-Referencing System
- 15. डिजिटल मानचित्रकला
- 16. रास्टर एवं विक्टर मॉडल में अंतर
- 17. The application of G.P.S. (जी.पी.एस. के उपयोग)
- 18. सुदूर संवेदन के उपयोग
- 19. Classification of Aerial Photograps (वायु फोटोचित्रों का वर्गीकरण)