Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOGRAPHICAL THOUGHT(भौगोलिक चिंतन)

35. Development of Modern Indian Geography: Prospects, Problems and Future (आधुनिक भारतीय भूगोल का विकास: संभावनाएँ, समस्याएँ और भविष्य)

Development of Modern Indian Geography: Prospects, Problems and Future

(आधुनिक भारतीय भूगोल का विकास: संभावनाएँ, समस्याएँ और भविष्य)



प्रश्न प्रारूप

Q. भारत में भूगोल के अध्यापन के विकास एवं प्रगति की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।

(Critically examine the development and progress in teaching of Geography in India.)

अथवा, आधुनिक भारतीय भूगोल के विकास की संभावना, समस्याएँ एवं भविष्य की विवेचना करें।

(Discuss the possibilities, problems and future of development of modern Indian geography.)

उत्तर- आधुनिक भारत में भूगोल की शिक्षा का विकास पर्याप्त विलम्ब से हुआ है। यहाँ ब्रिटिश शासन द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में स्कूल स्तर पर भूगोल का अध्यापन कार्य आरम्भ किया गया। तत्कालीन भारत में सन् 1920 में लाहौर में स्नातक स्तर पर भूगोल विषय की शिक्षा की व्यवस्था की गई थी। उसके बाद 1924 में अलीगढ़ तथा पटना विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर पर भूगोल का शिक्षण प्रारम्भ हुआ।

      सन् 1936 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में स्नातकोतर स्तर पर भूगोल का पठन-पाठन प्रारम्भ हुआ। कलकत्ता विश्वविद्यालय में 1941, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में 1949 से स्नातकोत्तर स्तर पर भूगोल की शिक्षा दी जाती थी। आधुनिक भारत के भूगोल के विकास में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी उस समय जुड़ी जब 1938 में ‘इण्डियन साइंस कांग्रेस’ (Indian Science Congress) के रजत जयन्ती अधिवेशन में भूगोल को एक अलग खण्ड के रूप में स्वीकार किया गया।

    भारत में 1950 से पूर्व स्नातकोत्तर स्तर तक शिक्षण शोध की सुविधाएँ अलीगढ़, मद्रास, कलकत्ता, बनारस, इलाहाबाद (प्रयागराज), हैदराबाद, लुधियाना तथा पटना विश्वविद्यालयों में उपलब्ध थीं। स्नातक स्तर पर आगरा, कलकत्ता, बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई), बड़ौदा, मैसूर, हैदराबाद, राँची, वाराणसी, इलाहाबाद, नागपुर, उदयपुर, जोधपुर, गुवाहाटी आदि स्थानों पर भूगोल की शिक्षा प्राप्त की जा सकती थी।

     1950 से पूर्व तक भारत में भूगोल की उच्च शिक्षा के विकास में धीमी गति के पीछे रहने के निम्न कारण थे-

(i) ब्रिटेन में भूगोल की उच्च शिक्षा देर से प्रारम्भ हुई। भारत में 1947 तक ब्रिटेन का अधिकार रहा है। इसलिए ब्रिटिश भारतीय शिक्षण संस्थानों में नियुक्त न हो सके।

(ii) भारत में भूगोल में उच्च शिक्षा हेतु भारतीय विद्वानों की कमी थी।

(iii) भूगोल शिक्षा के विकास हेतु प्रारम्भ में राष्ट्रीय नीति एवं पाठ्यक्रम का अभाव था।

     भारत में 1951 से 1960 के दशक में कर्नाटक (धारवाड़), पूना, उस्मानिया (हैदराबाद) राँची, बड़ौदा, सागर, गौहाटी, सिलीगुड़ी, भागलपुर, गोरखपुर, मैसूर और दिल्ली विश्वविद्यालयों में भूगोल के स्नातकोत्तर विभाग स्थापित हुए।

       1961-1970 की अवधि में दार्जिलिंग, बोधगया, जोधपुर, उदयपुर, रायपुर, ग्वालियर, जयपुर, कुरुक्षेत्र तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में भूगोल के स्नातकोत्तर विभाग खोले गए।

     1971 के बाद गढ़वाल, कुमायूँ (नैनीताल), जम्मू-काश्मीर (श्रीनगर), हिमाचल (शिमला), शिलाँग आदि में भूगोल के स्नातकोत्तर विभाग स्थापित हुए। भारत में महाविद्यालय स्तर पर भूगोल की शिक्षा का प्रबन्ध स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तेजी से हुआ है। यहाँ सेन्ट जोन्स कालेज (आगरा), बलवन्त राजपूत कालेज (आगरा), डी० ए० वी कालेज (मुरादाबाद) में 1950 से पूर्व भूगोल की शिक्षा दी जाती थी।

      1951 से 1970 तक डी० एस० बिष्ट (नैनीताल), के० एन० राजकीय ज्ञानपुर, वार्ष्णेय अलीगढ़, धर्म समाज (अलीगढ़), वर्धमान (बिजनौर), किशेरी रमन (मथुरा), नागपुर महाविद्यालय (नागपुर), विदर्भ म० वि० अमरावती महाकौशल महाविद्यालय (जबलपुर), महारानी लक्ष्मीबाई कालेज (ग्वालियर), गर्वन्मेण्ट हमीदिया कालेज (भोपाल), पार्ले महाविद्यालय (बम्बई), मेरठ कालेज (मेरठ), एस०एस०वी० कॉलेज (हापुड़), डी० जे० (बड़ौत), डी० बी० एस० (देहरादून), डी० ए० वी०, (देहरादून), राजकीय रजा स्नातकोत्तर कालेज (रामपुर), टी० डी० एस० कालेज (जौनपुर), जे० वी० जैन (सहारनपुर), एम० एम० एच० (गाजियाबाद), माधव कालेज (उज्जैन), दयानन्द महाविद्यद्यालय अजमेर, इन्दौर तथा शोलापुर में स्नातकोत्तर विभाग स्थापित हो चुके थे।

    आरम्भ में भारत में भूगोल की शिक्षा उन विद्वानों द्वारा दी गई जो विदेशों से उच्च शिक्षा ग्रहण करके आते थे। आरम्भिक काल में भूगोल के कार्यों का सम्बन्ध भारतीय भौमिकीय सर्वेक्षण विभाग (Geological Survey of India-G.S.I), भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department) तथा भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey of India) से था। एन० सुब्रमण्यम, आई० आर० खान, एस० पी० चटर्जी, एच० एल० छिब्वर, आर० एन० दुबे, मोहम्मद सफी, रामलोचन सिंह, पी० दयाल, जार्ज कुरियन, एस० सी० चटर्जी, एस० एम० अली, एन० के० बोस, सी० डी० देशपाण्डे जैसे भूगोलविदों ने भारत में आधुनिक भूगोल की शुरुआत की है।

    आई० आर० खान ने लंदन से, एस० पी० चटर्जी ने लंदन से, एच० एल० छिब्बर ने लंदन से, आर० एन० दुबे ने पेरिस से, जार्ज कुरियन ने लंदन से, एस० सी० चटर्जी ने लंदन से तथा एस० एम० अली ने लंदन से पी-एच०डी० या डी० लिट् की डिग्री प्राप्त की थी। इन भूगोलविदों ने भूगोल का अनुसंधान निर्देशन भारतीय विश्वविद्यालयों में बड़ी लगन से किया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय विश्वविद्यालयों में भूगोल के एम० ए० और पी-एच० डी० प्राप्त करने वाले विद्वान तैयार होने लगे जिन्होंने भूगोल को आगे बढ़ाने में सहयोग किया है।

      भारत में 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध से ही शोध के विषयों, समस्याओं एवं चिन्तन पर अमेरिकन चिन्तन शैली का तेजी से प्रभाव बढ़ा है। भौगोलिक चिन्तन में नवीन तकनीक के प्रवेश के साथ नई पीढ़ी के स्नातकोत्तर एवं शोध में रत विद्यार्थियों में यहाँ के विशिष्ट परिवेश में उनका निरीक्षण कर व्याख्या प्रस्तुत करना और उनके समाधान के उपायों को बताने एवं समझाने की मनोवृत्ति का निरन्तर विकास हुआ है।

     भारत में अब नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों के विशिष्ट स्वरूपों एवं उनकी समस्याओं, भूमि के उपयोग व कृषि तकनीक के परिवर्तित स्वरूपों का विभिन्न स्तरीय व विभिन्न क्षेत्रों में प्रभाव संसाधन स्वरूप, प्रादेशिक नियोजन जैसे विषयों पर भौगोलिक शोध किए जा रहे हैं। 1975 से ही जनसंख्या समस्या और उसके समाधान की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया है।

    आधुनिक भारत में भूगोलवेत्ताओं के चिन्तन में कोई निजी दर्शन नहीं झलकता। काण्ट के भौगोलिक दर्शन के अनुसार यहाँ के भूगोल में काल एवं स्थान (Time and Space) के संदर्भ में परिघटनाओं का अध्ययन किया जाता है। भारत में 1980 के दशक के मध्य तक विगत दो दशकों में विभिन्न पक्षों पर शोध कार्य हुआ है। इसके विकास में अनेक सम्मेलनों, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं तथा अधिवेशनों का योगदान है।

     1960-70 का दशक भारतीय भूगोल के इतिहास का महत्वपूर्ण दशक है। इस अवधि में 1968 में नई दिल्ली में अन्तराष्ट्रीय भूगोल संगठन (I.G.U.) की 21 वीं कांग्रेस प्रो० एस० पी० चटर्जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। इस दशक में लगभग 1000 शोध-पत्र प्रकाशित हुए, 30 शोध ग्रन्थ छपे और 6 शोध पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। उत्तर भूगोल पत्रिका (गोरखपुर) तथा ‘भू-दर्शन’ (उदयपुर) का प्रकाशन इसी अवधि से प्रारम्भ हुआ है।

      इस दशक की अन्य उल्लेखनीय घटनाएँ निम्नांकित हैं-

(1) विश्वविद्यालय अनुदान द्वारा ग्रीष्मकालीन शिक्षण शिविर, संगोष्ठियाँ या कार्यशाला आयोजन हेतु अनुदान देना।

(2) अन्तराष्ट्रीय भूगोल कांग्रेस की देश में विभिन्न विश्वविद्यालयों में गोष्ठियों का आयोजन।

(3) यू० एन० ओ० तथा यूनेस्को द्वारा आयोजित संगोष्ठियाँ।

(4) योजना आयोग शुष्क क्षेत्र संस्थान (जोधपुर), नगर एवं ग्राम्य नियोजन संस्थान, आदि की स्थापना।

      भारत में भूगोल के विकास में संलग्न वैज्ञानिक संस्थान (Scientific Organisations Engaged in Development of Geography in India)

     भारत में विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के अलावा कुछ वैज्ञानिक संस्थाएँ भी भूगोल के विकास में मदद करती हैं। ये संस्थाएँ हैं-

(1) राष्ट्रीय एटलस संस्थान, कलकत्ता।

(2) सर्वे आफ इण्डिया, देहरादून।

(3) भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, पूना।

(4) केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर।

(5) भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वे संस्थान, कलकत्ता।

(6) भारतीय जनगणना विभाग, दिल्ली।

(7) भारत का योजना आयोग, नई दिल्ली।

(8) भारत का मानव वैज्ञानिक सर्वे संस्थान।

(9) भारतीय सांख्यिकीय संस्थान।

(10) भारत का तकनीकी आर्थिक सर्वे विभाग।

(11) भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद् (ICSSR)।

(12) भारतीय सुदूर संवेदन अभिकरण (Indian Remote Sensing Agency)।

(13) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली (U.G.C)।

(14) भारतीय विज्ञान कांग्रेस (Indian Science Congress)।

   स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत में ग्रेट ब्रिटेन के भूगोलवेत्ता एल० डी० स्टाम्प का प्रभाव रहा था। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मोहम्मद सफी ने उनके निर्देशन में भूमि उपयोग पर कार्य किया। उनका यह कार्य Land Utilization in Eastern Uttar Pradesh-1960′ में छपा था। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामलोचन सिंह ने नगरीय भूगोल एवं सागर विश्वविद्यालय में प्रो० सक्सेना ने ‘वैदिक भारत का भूगोल’ एवं बेचन दुबे ने ‘प्राचीन भारत’, एस० सी० बोस ने ‘दामोदर घाटी’ का अध्ययन किया। देश में 1980 तक 55 विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर स्तर पर भूगोल के पठन-पाठन तथा अनुसंधान की सुविधा उपलब्ध हो चुकी थी।

    वर्तमान दशक में भूगोल में देहरादून स्थित भारतीय फोटो निर्वचन संस्थान (IPI), राष्ट्रीय सुदूर संवेदन अभिकरण, हैदराबाद (NRSA) तथा भारतीय एटलस संस्थान, कलकत्ता अति आधुनिक तरीकों से भूगोल के अध्ययन-अध्यापन में सहायता कर रहे हैं।

      1970-80 के दशक में भूगोलवेत्ताओं द्वारा जो कार्य किए गए उससे राष्ट्र निर्माण में पर्याप्त मदद मिली है। लेकिन भारतीय भूगोल की सबसे बड़ी कमी यह रही है कि यहाँ भूगोल के शोध की समस्याओं एवं क्षेत्रों के नियोजन से सम्बन्धित प्रशासकीय दृष्टिकोण से नहीं जोड़ा गया है। आधुनिक भारतीय भूगोलवेत्ता भूगोल का सैद्धान्तिक विकास करने में अक्षम रहे हैं। मो० मुनीस रजा (Moonis Raza) का कथन है कि “भारत का भूगोल वृहदाकार जीव की तरह है जिसकी रीढ़ की हड्डी नहीं है।” 

     भारत में राष्ट्रीय स्तर पर भूगोल का कोई विकसित संस्थान नहीं है और न भूगोल के विकास की कोई राष्ट्रीय नीति है। यहाँ भूगोलवेत्ताओं को नियोजन में वह स्थान नहीं दिया गया है जैसा कि विकसित देशों में दिया जाता है।

    भारतीय राष्ट्रीय भूगोल परिषद्, वाराणसी की स्थापना 1940 में प्रो० एच० एल० मि द्वारा की गई थी। 1955 के बाद से प्रो० रामलोचन सिंह के निर्देशन में भूगोल की प्रतिष्ठित पत्रिका National Geographical Journal का प्रकाशन होता रहा है। यहाँ 1966 में पहली बार All India Seminar on Applied Geography आयोजिन किया गया। इसके बाद विकासशील देशों के नगरीय भूगोल पर सम्मेलन 1968 में तथा राष्ट्रीय भूगोल परिषद् का जयन्ती समारोह 1971 में आयोजित किए गए। 1978 में IGU के अन्तर्गत ग्रामीण अधिकार पर विशेष संगोष्ठी आयोजित की गई थी। यहाँ मानसून एशिया के ग्रामीण अधिवासों पर 1971 में अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी भी सम्पन्न हुई।

   बम्बई भूगोल परिषद् भारत की ऐसी भूगोल परिषद् है जहाँ रॉयल ज्याग्राफिकल सोसायटी लंदन का कार्यालय था और जिसकी स्थापना 1832 में की गई। 1873 में इसे एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता से सम्बन्धित किया गया। 1963 से यह परिषद् नियमित रूप से चल रही है। भारतीय भूगोल परिषद्, मद्रास की स्थापना 1926 में की गई। यहाँ से Indian Geographical Journal पत्रिका प्रकाशित होती रही है।

     अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की भूगोल सोसायटी की स्थापना 1946 में की गई। यहाँ अनेक एशियाई तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के भूगोल सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं। यहाँ 1956 में पहला अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया जिसमें खाद्य एवं जनसंख्या समस्या, शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों की समस्याएँ, नगरीय सर्वेक्षण, जल विद्युत निकास आदि विषयों पर 65 शोध पत्र पढ़े गए। इस सोसायटी द्वारा 1965 एवं 1966 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा भारत सरकार के विशेष आर्थिक सहयोग से नैनीताल में दो बार ग्रीष्मकालीन शिविरों का अयोजन किया गया। 1968 में मोहम्मद सफी ने यहाँ IGU की उत्तर भारत की एक बैठक बुलाई।

     भारत में भूगोल परिषदों का उत्साह अब समाप्त हो चुका है। यहाँ अधिकांश परिषद् विशेषीकरण (Specialisation) को प्रोत्साहन देकर भूगोल की नई प्रवृत्तियों का संवर्धन कर रही है। अल्पकाल में अनियमित होने वाली परिषदों की संख्या अधिक है। इसके पीछे संस्थापकों/संरक्षकों का देहावसान होना अथवा अवकाश ग्रहण के बाद प्रभावहीन हो जाना रहा है।

निष्कर्ष:-

   आधुनिक भारत में भूगोल की प्रगति एवं उसमें चिन्तन धारा को देखकर यह कहा जा सकता है कि भारत में भूगोल का अभी पूरी तरह से विकास नहीं हुआ है। इसका विकास थम-सा गया है। यहाँ भूगोल की शिक्षा के प्रति वह उत्साह नहीं दिखाई पड़ता है जो उत्साह स्वतंत्रता प्राप्ति के 20 वर्षों बाद तक रहा था। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में भूगोल को वह सरकारी स्थान नहीं मिल पाया है जो मिलना चाहिए था।

     अतः, भारतीय भूगोल के सम्बन्ध में यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यद्यपि भारतीय भूगोलवेत्ता व्यक्तिगत रूप से भूगोल के क्षेत्र में वास्तविक योगदान दे हे हैं, फिर भी भूगोल की भारतीय विचारधारा का उभरना अभी शेष है।



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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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