32. The functionalsim in Geography (भूगोल में कार्यात्मकवाद)
32. The functionalsim in Geography
(भूगोल में कार्यात्मकवाद)
प्रश्न प्रारूप
2. भूगोल में कार्यात्मकवाद की विवेचना करें ।
(Discuss the functionalsim in Geography.)
उत्तर- भिन्न-भिन्न विज्ञानों और भिन्न-भिन्न काल में कार्यात्मकवाद की परिभाषाएँ भी भिन्न-भिन्न स्वरूप लिए हैं। ‘क्रिया अथवा कार्य’ (Function) का तात्पर्य नीचे पाँच रूपों में व्यक्त है:
(i) समारोह अथवा उत्सव हेतु जन-समुदाय क्रियाएँ (विशेष-अवसर)
(ii) कार्य-भार अथवा कर्त्तव्य (राजनीतिक अर्थ)
(iii) एक ‘चर’ का दूसरे ‘चर’ से संबंध का फलन (गणितीय अर्थ)
(iv) जीवधारियों के संवारने हेतु क्रियाएँ (जीव विज्ञान व समाज विज्ञान)
(v) व्यवसाय (भूगोल के सन्दर्भ में आर्थिक क्रियाएँ)
तात्पर्य है कि “सरल शब्दों में कार्यात्मकवाद व्यवसायों से जुड़ी अवधारणा है। वह समाज के कार्यों अथवा साामजिक व्यक्तियों की क्रियाएँ हैं।” विश्व को देखने का यह दृष्टिकोण एक ऐसा तंत्र है जो भिन्न-भिन्न, परन्तु अन्तः निर्भर बने तंत्रों का संकुल है। इसकी सम्मिलित क्रियाएँ पुनरावृत्तिजनक है, और पूर्वानुमानित हैं। इनका आकार-कार्य संबंधित है और यह सभी को अबाध बनाए रखने का तंत्र है-
कार्यात्मकवाद के आधारभूत नियम निम्नलिखित हैं-
(i) समाजों का मूल्यांकन उनकी समस्तता (Wholeness) में किया जाना चाहिए।
(ii) घटित हुई सामाजिक क्रियाएँ वातावरण की अन्योन्याश्रित प्रकृति है। अनेक स्थितियों में ये कारण भी अनेक होते हैं।
(iii) सामाजिक तंत्र प्रायः साम्यावस्था की स्थिति (State of Equilibrium) है।
(iv) कार्यात्मकतावादी समाज के इतिहास में कम, परन्तु सामाजिक अन्तःक्रिया में अधिक रुचि रखते हैं।
(v) कार्यात्मकतावादियों के प्रयास सामाजिक ढाँचे के यौगिक घटकों के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की खोज में निहित होते हैं।
जीन ब्रून्स जैसे भूगोलवेत्ता एवं उनके समकालीन विद्वानों के शोध कार्यों में कार्यात्मक अथवा क्रियात्मक अभिगम उनकी रचनाओं में देखे जा सकते हैं। उन्नीसवीं सदी के अन्त में और बीसवीं सदी के प्रारम्भ काल में फ्रांसीसी विद्वानों को अविभाज्य समस्तता (Indivis- ible Wholeness) बताया। ‘प्रेदश’ (Region) को कार्यात्मक इकाई का जैविक क्षेत्र कहा जो उसके विभागों के योग से भी अधिक उच्च-स्तर की इकाई था और जीववत् क्रियाओं में बंधा था।
आजकल भूगोल में कार्यपरकता की अवधारणा महत्त्वपूर्ण है। लोग मुंबई, टाटानगर और गुलमर्ग की पहचान क्रमशः एक प्रधान बन्दरगाह, लौह-इस्पात निर्माण केन्द्र और सैलानियों के स्थल के रूप में ही करते हैं। लघु नगरों की पहचान भी उनकी केन्द्र स्थानीय क्रियाओं व गुणों द्वारा की जाती है। इसी आधार पर उनका पदीय श्रृंखला-क्रम (Hierarchy) निर्धारित होता है। प्रत्येक स्थान को उसके दो प्रकार के व्यवसायों, एक ‘प्रकट’ (Manifest Function), और दूसरा ‘अप्रकट’ (Latent Function) के रूप में जाँचा जा सकता है। उदाहरणवत् टाटानगर का लोहा-इस्पात निर्माण कार्य-व्यवसाय प्रकट बना है, जबकि वहाँ के अन्य कार्य-शैक्षिक, सामाजिक, आदि ‘अप्रकट’ व्यवसाय हैं।
कार्यात्मकतावाद की अलोचना संकल्पनात्मक व कार्य-पद्धतियों, दोनों आधारों पर की जाती है। कार्यात्मकतावाद भौगोलिक यथार्थता को एक संतुलित दशा (Equilibrium) में देखने की संकल्पना है। इसके विपरीत प्रयोजनमूलक (Teleology) एक ऐसा तंत्र है जो भौगोलिक यथार्थता को स्थिर (Static) मानकर उद्देश्यपरक घटना समझती है और परिवर्तनशील है।
समाज को एक तंत्र में संरचित बना कहने से अन्य समकालीन समस्याएँ, जैसे गरीबी, अकाल, रोग, प्रजातीयता आदि की व्याख्या अछूती ही रह जाएगी। यथार्थता अपूर्ण ही प्रकट होगी। एक तंत्र सीमित उद्देश्य की ओर उन्मुख है, और अन्तर्सम्बन्धित अनेक उपतंत्र व प्रक्रियाएँ महत्त्वहीन ही समझी जाती है। कार्यात्मकतावाद की यह मुख्य कमी है।
सामाजिक नियंत्रण में विश्वास व्यक्त करने के कारण कार्यात्मकवाद की आलोचना होती है, क्योंकि उस आधार पर परिवर्तनशील दृश्य जगत् की यथार्थता की व्याख्या नहीं हो सकती। सामाजिक परिवर्तन को कार्यात्मकवाद स्पष्ट नहीं करता है।
तार्किक और पद्धति के आधार पर कार्यात्मकवाद की आलोचना सोद्देश्यवादियों ने की है। दृश्य-जगत् द्वारा स्थान की यथार्थता और स्थान का अधिग्रहण कारण परक नहीं है। (Not by Reference of Causes) अर्थात् स्थानिक घटना कारण-मूलक नहीं घटित बनी है। यह प्रयोजन मूलक घटित बनी है, क्योंकि स्थान को किसी प्रयोजन के लिए उपयोग में लिया गया। (A Given Situation by Reference to Ends Which Determine Its Course) दृश्य-जगत् में प्रकृति ने गिद्धों को इस उद्देश्य हेतु स्थान दिया कि वे शव (मृत जीवों) से पृथ्वी की सतह को मुक्त रखें।
यद्यपि इसी कार्य के लिए वस्तु-जगत् में अन्य विकल्प (Alternatives of Substitutes) भी है। परन्तु, विकल्पों को समान प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र (Eco-System) का ही होना चाहिए। ऐस्किमो ने गाड़ी व अग्नि जैसे विकल्पों को प्रयोग में लाकर आर्कटिक जीव जगत् के नाजुक तंत्र को अव्यवस्थित (Up-Set) किया है।
उपर्युक्त तर्कपूर्ण विवरण से कार्यात्मकतावाद में निम्नलिखित छः अवधारणाओं का उपयोग भूगोलवेत्ताओं द्वारा किया जाता है। ये अवधारणाएँ दृश्य-जगत की यथार्थता में अन्त: संबन्धित हैं-
(i) कार्य-व्यवसाय,
(ii) कार्यपरक विकल्प,
(iii) उद्देश्य,
(iv) प्रारूप-संवार, स्व-नियंत्रण अथवा यथा स्थिति
(v) अनुकूलता, और
(vi) एकीकरण।
भूगोल में कार्यपरक प्रदेश (Functional Region) से अभिप्राय प्रदेश का समस्तता में बंधी संरचित इकाई के रूप में कार्य सम्पादन से है। वह अपने समस्त तंत्र में आंतरिक एवं बाह्य-तंत्रों की क्रियाओं द्वारा आवश्यकताओं की पूर्ति कर उद्देश्यमूलक प्रदेश है।