Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

प्रेरक ज्ञान, विचार तथा कहानियाँ

6. यह भी गुजर जाएगा

6. यह भी गुजर जाएगा


यह भी गुजर जाएगा

              एक राजा था। उसने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि कोई ऐसा सूत्र बतलावे जो दुःख-सुख, लाभ-हानि, जीवन-मरण, आया, जीत-हार, अपने-पराये सभी परिस्थितियों में समान लाभदायी हो। महीनों बीत गए। किसी के दिमाग में ऐसा सूत्र नहीं जो सभी परिस्थितियों में समान लाभदायी हो। राजा जंगल की ओर बढ़ गया। कुछ दूर जाने पर एक संत एक पेड़ के नीचे बैठे दिखाई दिए। राजा की आंखों में आशा की ज्योति चमकी। उन्होंने संत के चरणों में नतमस्तक हो नम्रतापूर्वक अपने प्रश्न को श्रीचरणों में निवेदन किया।

यह भी गुजर जाएगा

            महात्मा हंसे। एक कागज पर कुछ लिखकर उसे एक ताबीज में बंद कर राजा के गले में पहनाते हुए बोले-‘वत्स! यह सूत्र सभी अवसरों में समान लाभदायी है। जब कभी अवसर आए, इससे लाभ ले लेना। ‘

          संतचरणों में नतमस्तक हो राजा अपने राज्य लौट आया। ताबीज गले में लटकती रही और राजा राज्यकार्य में व्यस्त रहा। समय व्यतीत होता गया। दो वर्ष बीत गए। एक बार पड़ोसी देश के राजा ने उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया। सेनाएं तैयार न थीं, अतः घबराए हुए उसके सैनिकों को रौंदती हुई पड़ोसी देश की सेना राजमहल में प्रवेश कर गई। परेशान राजा भयभीत हो प्राण रक्षा के उद्देश्य से भाग निकला। पीछे-पीछे शत्रु सेना और आगे-आगे घोड़े पर सवार राजा।

           किंकर्तव्यविमूढ राजा बेतहाशा घोड़े को दौडाए जा रहा था। अचानक घोड़ा बिदका और ठिठककर रूक गया। सामने एक गहरा खड्ड था। खड्ड लांघना कठिन था। भयभीत राजा शीघ्रता से पास की झाड़ी में जा छुपा। पसीने से लथपथ वह थर-थर कांप रहा था कि सहसा उसे ताबीज का ख्याल आया। ताबीज खोला तो उसमें रखे पूर्जे में एक छोटा सा वाक्य लिखा था-‘यह भी गुजर जाएगा।’

            पढ़कर राजा सोचने लगा- ‘सचमुच आज तक न जाने जीवन में क्या-क्या आया, क्या-क्या देखा, क्या-क्या पाया- लेकिन कुछ भी ठहरा नहीं, गुजरते चला गया। मान-अपमान, सुख-दुख, अच्छा-बुरा कितना कुछ आया, किंतु सब-के-सब गुजरते चला गया। घबराहट कुछ कम हुई। उसे विश्वास हो गया, निश्चय ही ‘यह भी गुजर जाएगा।’

             अब तक वह परेशान था, भयभीत था, घटना का नायक भोक्ता था, अब वह द्रष्टा है, शांत, निश्चित, प्रसन्न। सचमुच कुछ ही देर बाद दुश्मन के घोड़ों की टापों की आवाज कम होने लगी। शायद दुश्मन रास्ता भटक गए थे। राजा श्रद्धा-भक्तिपूर्वक ताबीज पहना और वहाँ से निकल पड़ा। कुछ दिन बाद पुनः सैन्य संगठन कर वह शत्रुओं पर धावा बोल दिया और अंततः विजयी हुआ।

दृश्य का परिवर्तन

           अब उसके राज्य में चारों ओर खुशियाँ मनाई जा रही है। दीपमालाएँ सजाई गई हैं। राजमहल सजाया गया है। चारो ओर उत्सव का-सा वातावरण है। विजयी राजा अपने महल की ओर लौट रहा है। सभी उनपर फूलों की वर्षा कर रहे है। महल के पास आकर राजा सहसा रुक गया। ताबीज निकाला और पढ़ा-‘यह भी गुजर जाएगा।’ राजा हंसने लगा।

लोग पूछे-‘आप हंस क्यों रहे हैं?”

राजा ने कहा-‘हंसने की ही तो बात है। यहाँ कुछ भी नहीं ठहरता, सभी गुजर जाते हैं। काल की वेगवती धारा में सब बहे जा रहे हैं लेकिन… !” सहसा राजा कुछ गंभीर हो गया और सोचने लगा-‘क्या इस गुजरने वाली भीड़ में न गुजरने वाला कोई स्थायी तत्त्व नहीं है? और यदि है तो उसे ढूंढना चाहिए।’

         राजा पुनः संत के पास गया और अपनी जिज्ञासा को संत चरणों में निवेदित किया।

संत बोले, ‘न गुजरने वाला स्थायी तत्त्व कहीं खो नहीं गया है, जो उसे ढूंढोगे। वह तो नित्य प्राप्त है। गुजरने वाली वस्तु से संबंध न जोड़, इसका भोक्ता न बन, द्रष्टा बन जा, स्वयं अविनाशी तत्त्व का बोध हो जाएगा। वह अविनाशी न गुजरने वाला तत्त्व तू ही है।’

          राजा सुखी हो गया। राज्य किया पर द्रष्टा बनकर। ‘यह भी गुजर जाएगा’– इस बोध को पाकर वह सुख में ‘अहंकार और राग’ तथा दुख में ‘तनाव और द्वेष’ दोनों से ऊपर उठकर ‘स्व’ में स्थित हो आनंदमग्न हो गया।

        ठीक ही कहा गया है, ‘यदि जीवन है तो सुख एवं दुख, उन्नति या विपत्ति का क्रम बना ही रहता है। इस विश्व में कोई ऐसा नहीं हुआ, जिस पर विपत्ति नहीं आई हो। अतः इस पर चिंता करना व्यर्थ है विपत्ति का निस्ताण धैर्य एवं युक्तिपूर्ण पौरुष से होता है, चिंता से नहीं।’– महात्मा विदूर

         इसलिए सद्गुरु कबीर साहब कहते हैं-

कबीर मैं तबही डरूँ, जो मुझ ही में होय।

मीच बुढ़ापा आपदा, सब काहु को जोय।।       – (कबीर साखी दर्पण, भाग-२)

         अर्थात् ‘ कबीर साहब कहते हैं, मैं तब डरूं जब केवल मुझमें ही होता हो, परंतु मृत्यु, बुढ़ापा, आपदा तो सब किसी में देखा जाता है। फिर दुख और डर कैसा?”

स्रोत:चिंता क्यों

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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