Unique Geography Notes हिंदी में

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BSEB CLASS 8

इकाई 1. अध्याय 1.1 (क) भूमि, मृदा एवं जल संसाधन

 इकाई 1. अध्याय 1.1 (क) भूमि, मृदा एवं जल संसाधन

बिहार बोर्ड के 8वीं कक्षा का भूगोल विषय का सम्पूर्ण प्रश्नोत्तर

सरल एवं आसान शब्दों में उत्तर देना सीखें



इकाई 1. अध्याय

I. बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तर

सही विकल्प को चुनें।

1. पृथ्वी का कितने प्रतिशत भाग पर स्थल है?
(क) 71
(ख) 29
(ग) 41
(घ) 46
उत्तर- (क) 71
2. विश्व में सघन जनसंख्या कहाँ मिलती है?
(क) पहाड़ों पर
(ख) पठारों पर
(ग) मैदानों में
(घ) मरुस्थल में
उत्तर- (ग) मैदानों में
3. भारत में भूमि उपयोग संबंधी आँकड़े कौन रखता है?
(क) भूगर्भ विज्ञान विभाग
(ख) भू राजस्व विभाग
(ग) गृह विभाग
(घ) चिकित्सा विभाग
उत्तर – (ख) भू राजस्व विभाग
 4. भूमि उपयोग के कुल कितने प्रमुख वर्ग है?
(क) 9
(ख) 7
(ग) 5
(घ) 3
उत्तर- (ग) 5
5. मृदा में कुल कितने स्तर पाए जाते हैं?
(क) 2
(ख) 3
(ग) 4
(घ) 7
उत्तर- (ग) 4
6. समोच्च रेखीय खेती करना किसका उपाय है?
(क) जल प्रदूषण को रोकने का
(ख) मृदा अपरदन को रोकने का
(ग) जल संकट को दूर करने का
(घ) भूमि की उर्वरता घटाने का
उत्तर – (ख) मृदा अपरदन को रोकने का
7. रासायनिक दृष्टि से जल किस का संयोजन है?
(क) हाइड्रोजन एवं नाइट्रोजन का
(ख) ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन का
(ग) हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन का
(घ) ऑक्सीजन एवं कार्बन का
उत्तर- (ग) हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन का
8. इनमें कौन एक महासागर नहीं है?
(क) अंटार्कटिक
(ख) आर्कटिक
(ग) हिन्द
(घ) प्रशांत
उत्तर- (क) अंटार्कटिक
 II. खाली स्थान को उपयुक्त शब्दों से पूरा करें:-
1. मृदा में जीवों के सड़े-गले अवशेषों कोक ह्यूमस कहा जाता है।
2. दक्कन क्षेत्र में काली मृदा पाई जाती है।
3. लेटराइट मृदा का निर्माण प्रक्रिया निक्षालन से होता है।
4. भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है।
5. महासागरों में जल का 97.3 प्रतिशत भाग पाया जाता है।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें। (अधिकतम 50 शब्दों में)
1. भूमि उपयोग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – भूमि उपयोग मानव के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। इसके बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं। भूमि पर ही कृषि कार्य होता है तथा इसी पर पेड़-पौधे, उगते हैं तथा मकान, गाँव, शहर, तालाब, नहर, कुंआ, चापाकल, सड़कमार्ग, रेलमार्ग, पाइपलाइन मार्ग, कारखाना, विभिन्न खेलों के मैदान एवं स्टेडियम इत्यादि इसी पर बने होते हैं।
2. मृदा निर्माण में सहायक कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – किसी स्थान पर मृदा के निर्माण में वहाँ उपस्थित मौलिक चट्टान, क्षेत्र की जलवायु, वनस्पति, सूक्ष्म जीवाणु, क्षेत्र की ऊँचाई, क्षेत्र की ढाल तथा समय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
3. भूमि उपयोग को प्रभावित करने वाले कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर – भूमि उपयोग को प्रभावित करने वाले दो महत्वपूर्ण कारक होता है :- प्राकृतिक कारक और मानवीय कारक।
प्राकृतिक कारक-
            स्थल रूप में भिन्नता, मृदा की विशेषता, खनिजों की उपस्थिति, जलवायु एवं जल संबंधी विशेषताएँ इत्यादि जैसे प्राकृतिक कारक भूमि उपयोग में परिवर्तन लाते हैं।
मानवीय कारक-
           तकनीकी ज्ञान में वृद्धि, जनसंख्या वृद्धि, श्रमिकों की उपलब्धता तथा मानवीय आवश्यकताओं में अंतर इत्यादि जैसे कारक भूमि उपयोग को प्रभावित करते हैं।
4. ऋतुक्षरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – जब चट्टानें ऋतु अर्थात समय के साथ टूट-फुट कर अपने ही मूल स्थानों पर कणों के रूप में बिखरने लगती है तो उस प्रक्रिया को ऋतुक्षरण कहा जाता है। इसे अपक्षय  के नाम से भी जाना जाता है। 
IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें। (अधिकतम 200 शब्दों में)
1. भूमि उपयोग क्या है? भूमि उपयोग के विभिन्न वर्गों का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर- भूमि उपयोग का तात्पर्य कुल उपलब्ध भूमि का विविध कार्यों में होनेवाले उपयोग के आँकड़ों से है। इससे संबंधित आँकड़े हमेशा बदलते रहते हैं। मतलब यह कि विभिन्न देशों के मध्य इसका प्रारूप एक जैसा नहीं मिलता है। कहीं वन क्षेत्र अधिक मिलता है, तो कहीं शुद्ध बोई गई भूमि का क्षेत्र, तो कहीं बंजर भूमि का क्षेत्र अधिक मिलता है। भारत में भूमि उपयोग प्रारूप संबंधी आँकड़े या रिकार्ड भू-राजस्व विभाग रखता है।
         
         भूमि उपयोग के विभिन्न वर्ग निम्नलिखित हैं:-
(i) वन क्षेत्र की भूमि
(ii) कृषि कार्य के लिए अनुपलब्ध भूमि
a. बंजर एवं व्यर्थ भूमि
b. सड़क, मकान, उद्योगों में लगी भूमि
(iii) परती भूमि
a. चालू परती भूमि (जिस भूमि पर एक वर्ष या उससे कम समय से कृषि नहीं की गई हो)
b. अन्य परती भूमि (जिस भूमि पर एक वर्ष से अधिक तथा पाँच वर्ष से कम समय से कृषि नहीं की गई हो।)
(iv) अन्य कृषि अयोग्य भूमि
a. स्थायी चारागाह की भूमि
b. कृषि योग्य बंजर भूमि (जिस भूमि पर पाँच वर्ष से अधिक समय से खेती नहीं की गई हो।)
(v) शुद्ध बोई गई भूमि
2. मृदा निर्माण प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- किसी स्थान पर मृदा के निर्माण में वहाँ उपस्थित मौलिक चट्टान, क्षेत्र की जलवायु, वनस्पति, सूक्ष्म जीवाणु, क्षेत्र की ऊँचाई, क्षेत्र की ढाल तथा समय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। मृदा निर्माण प्रक्रिया में सबसे पहले मौलिक चट्टानें टूटती हैं। टूटे हुए कणों के और महीन होने की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। हजारों लाखों वर्षों बाद वही चट्टानी टुकड़ा भौतिक, रासायनिक एवं जैविक ऋतुक्षरण से महीन कणों में बदल जाता है, जो ‘मृदा’ कहलाता है। सामान्यत: यह एक सेंटीमीटर मोटी सतह वाली मृदा के निर्माण में सैकड़ों हजारों वर्ष लग जाते हैं।
               
           इस प्रकार मृदा निर्माण की प्रक्रिया काफी लंबी अवधि में पूरी होती है। परिणामस्वरूप इस क्रम में मृदा के तीन स्तर तैयार हो जाते हैं। इन्हें ऊपर से नीचे की ओर क्रमशः ‘अ’ स्तर, ‘ब’ स्तर, एवं ‘स’ स्तर के नाम से जाना जाता है। ऊपरी स्तर ‘अ’ में ह्यूमस की अधिकता होती है। ‘ब’ स्तर में बालू एवं पंक की प्रधानता होती है। ‘स’ स्तर में ऋतुक्षरण/अपक्षरण से प्राप्त चट्टानी कण मिला करते हैं। जबकि सबसे निचले स्तर में मूल चट्टानें होती हैं।
3. मृदा अपरदन के कारकों का उल्लेख कर इसके बचाव हेतु उपयुक्त सुझाव दीजिए।
उत्तर- मृदा अपरदन के मुख्य कारक हैं- वनों की कटाई, पशुचारण, आकस्मिक तेज वर्षा, तेज पवन, अवैज्ञानिक–कृषि पद्धति तथा बाढ़ के प्रभाव से मृदा का अपरदन ज्यादा होता है । तेज पवन या पानी के बहाव से मैदानी या चौरस क्षेत्रों में सतही अपरदन होता है। जबकि उबड़-खाबड़ क्षेत्रों में क्षुद्रनालिका या अवनालिका अपरदन होता है। मृदा अपरदन के कारण मृदा के मौलिक गुणों एवं उर्वरता में कमी आने लगती है। इसका असर फसलों, फलों एवं साग-सब्जियों के उत्पादन पर पड़ता है। इसलिए मृदा संरक्षण के उपायों को अपनाना जरूरी है। मृदा संरक्षण के लिए हमें निम्नलिखित उपाय करना चाहिए-
(i) पर्वतीय क्षेत्रों में समोच्चरेखी खेती करना चाहिए।
(ii) फसल चक्र तकनीक को अपनाना चाहिए।
(iii) खेती के वैज्ञानिक तकनीक को अपनाना चाहिए।
(iv) जैविक खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।
(v) पर्वतीय ढलानों पर वृक्षारोपण का कार्य करना चाहिए।
(iv) बंजर भूमि पर घास लगाने का कार्य करना चाहिए।
4. जल प्रदूषण के कारकों का उल्लेख कर इसके दूर करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- जल के स्वाभाविक/प्राकृतिक गुणों में अंतर आना या जल में अवांछित पदार्थों का मिल जाना, जो जीवन के लिए हानिकारक हो, जल प्रदूषण कहलाता है। जल प्रदूषण के निम्नलिखित स्रोत हैं:-
(i) घरेलू कूड़ा-करकट का उचित निपटान न करना।
(ii) औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों का नदियों में प्रवाहित करना।
(iii) नगरीय क्षेत्रों का गंदा जल का जमाव या नदियों में प्रवाहित करना।
(iv) लाशों या मरे जानवरों को नदियों में प्रवाह करना।
               
         इस प्रदूषित जल को पीने से कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं। जैसे-उल्टी आना, किडनी का खराब होना, पेट दर्द, सिर दर्द, डायरिया, छाती दर्द, हड्डी का विकृति, वजन घटना, दिमागी विकृति इत्यादि।
             
           जल प्रदूषण से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए:-
(i) नदियों, तालाबों में अपशिष्ट पदार्थों को डालने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
(ii) रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों के उपयोग पर रोक लगाना चाहिए।
(iii) लाशों या मरे जानवरों को नदियों में प्रवाह पर रोक लगाना चाहिए।
5. जल संकट क्या है जल संकट के लिए जिम्मेदार कारकों का उल्लेख कर इसे दूर करने के उपायों का विवरण दीजिए।
उत्तर– किसी निश्चित क्षेत्र के भीतर जल उपयोग की मांगों को पूरा करने के लिए उपलब्ध जल संसाधनों की कमी को ही जल संकट कहा जाता है। विश्व के सभी महाद्वीपों में रहने वाले लगभग 2.8 बिलियन लोग हर वर्ष कम से कम एक महीने जल की कमी से किसी न किसी रूप से प्रभावित होते हैं। 1.2 अरब से अधिक लोगों के पास पीने का स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है।
       
      जनसंख्या का तीव्र गति से बढ़ना, जल का अति दोहन, जल का अनुचित उपयोग, जल का असमान वितरण, जल का प्रदूषित होना, शहरों में पनपती अपार्टमेंट संस्कृति इत्यादि जल प्रदूषण के बड़े कारण हैं। कई शहरों में आवश्यकता से अधिक जल उपलब्ध है, परंतु वे प्रदूषित हैं। इसी तरह, कई  शहर महासागरों के किनारे अवस्थित हैं परंतु वहाँ जल का उपयोग नहीं किया जा सकता। इसलिए जल की कमी या जल संकट पूरे विश्व में व्याप्त है। जल संकट को दूर करने के निम्नलिखित उपाय हैं:-
⇒ जल के पुन:चक्रण तकनीक को अपनाना चाहिए।
⇒ सिंचाई के लिए आधुनिक तकनीकों को उपयोग करना चाहिए।
⇒ बच्चों के बीच जल संरक्षण की महत्ता को बताना चाहिए।
⇒ प्राचीन जल संचय तकनीकों का भी उपयोग करना चाहिए।
⇒ वर्षा जल संग्रह की आधुनिक तकनीक का उपयोग करना चाहिए।
⇒ छत का वर्षा जल संग्रहित करना चाहिए।
⇒ जल का समुचित उपयोग करना चाहिए।
⇒ जल को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए।
6. भारत में पाई जाने वाली मृदा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारत में जलोढ़ मृदा, काली मृदा, लाल मृदा, पीली मृदा, लैटेराइट मृदा, मरूस्थलीय मृदा एवं पर्वतीय मृदा पाई जाती है।
⇒ जलोढ़ मृदा देश के सभी नदी घाटियों में पाई जाती है। उत्तर भारत का विशाल मैदान पूर्णत: जलोढ़ मृदा से निर्मित है। नवीन जलोढ़ मृदा को खादर एवं पुराने जलोढ़ मृदा को बाँगर कहा जाता है। जलोढ़ मृदा चावल, गेंहूँ, मक्का, गन्ना एवं दलहन फसलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त है। इसमें ह्यूमस की मात्रा अधिक होती है।
⇒ काली मृदा ऐलुमिनियम एवं लौह यौगिक की उपस्थिति के कारण काली होती है। यह मृदा कपास की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना तथा तामिलनाडु में यह मृदा अधिक पाई जाती है।
⇒ लाल एवं पीली मृदा प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी एवं दक्षिणी हिस्से में पाई जाती है। लोहे के अंश के कारण इस मदा का रंग लाल होता है। जल में मिलने के बाद यह मृदा पीली रंग की हो जाती है। ज्वार, बाजरा, मक्का, मुंगफली, तंबाकू और फलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त यह मृदा उड़ीसा, झारखंड एवं मेघालय में पाया जाता है।
⇒ लैटेराइट मृदा का निर्माण निक्षालन की प्रक्रिया से होता है। यह मृदा केल, कर्नाटक, तमिलनाडु राज्यों में मिलती है। मरूस्थलीय मृदा हल्के भूरे रंग की होती है जो राजस्थान, सौराष्ट्र, कच्छ, पश्चिमी हरियाणा एवं दक्षिणी पंजाब में पाई जाती है।

⇒  पर्वतीय मृदा पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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