Unique Geography Notes हिंदी में

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Human Geography - मानव भूगोल

18. Delimitation and division of cultural regions (सांस्कृतिक प्रदेशों के परिसीमन तथा विभाजन)

18. Delimitation and division of cultural regions

(सांस्कृतिक प्रदेशों के परिसीमन तथा विभाजन)



Delimitation and division

प्रश्न प्रारूप 

Q. सांस्कृतिक प्रदेशों के परिसीमन तथा विभाजन के प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- समान गुण एवं समान प्रकृति वाले क्षेत्र को प्रदेश कहते हैं। इस दृष्टि से सांस्कृतिक प्रदेश धरातल का वह भाग है जिसमें सांस्कृतिक लक्षणों में समानता विद्यमान होती है तथा जिस कारण वह अपने निकटवर्ती प्रदेशों से भिन्न होता है।वस्तुतः मानव संस्कृति का उद्भव किसी सूक्ष्म केन्द्र पर होता है, कालान्तर में इसका प्रसरण समीपवर्ती क्षेत्रों में होता है।कुछ समय उपरान्त जब एक विस्तृत क्षेत्र के अन्तर्गत समान सांस्कृतिक लक्षण, तकनीकी तथा संसाधन उपयोग प्रक्रिया का विस्तार हो जाता है तब इसे सांस्कृतिक प्रदेश कहते हैं।

     स्पेन्सर के अनुसार किसी लघु क्षेत्र में रहने वाले मानवों का प्रभाव तथा उनकी संस्कृति निकटवर्ती क्षेत्रों में फैलकर अपना प्रभाव अंकित करती है। उसके सम्पूर्ण प्रभाव क्षेत्र को सांस्कृतिक प्रदेश कहते हैं।

    सांस्कृतिक प्रदेश में सांस्कृतिक तत्वों की समानता, सांस्कृतिक तत्वों का पारस्परिक सम्बन्ध, तथा उसके द्वारा उत्पन्न परिणामों का विशिष्ट पुंज होता है जिसके आधार पर प्रदेशों का विभाजन किया जाता है। सांस्कृतिक प्रदेशों के विभाजन में सर्वप्रथम महत्वपूर्ण सांस्कृतिक तत्वों का चयन किया जाता है तथा यह देखा जाता है कि कौन-सा सांस्कृतिक तत्व सबसे अधिक एवं सम्पूर्ण क्षेत्र में प्रभावी है। सांस्कृतिक तत्व मानवीय विचारों से सम्बन्धित होते हैं, जिनके ज्ञान के लिए सूक्ष्म निरीक्षण की आवश्यकता होती है।

       वह क्षेत्र जिसमें समान संस्कृति विद्यमान होती है, वह एक सांस्कृतिक प्रदेश कहलाता है। संस्कृति प्रदेशों का उल्लेख सर्वप्रथम विस्लर ने अमेरिकी इण्डियन संस्कृतियों के अध्ययन में प्रस्तुत किया था। इस अध्ययन में विस्लर ने सम्पूर्ण सांस्कृतिक लक्षणों के आधार पर प्रदेशों का विभाजन किया। सांस्कृतिक प्रदेशों के परिसीमन के समय क्षेत्र के भौतिक लक्षणों को भुला दिया जाता है तथा यह बात भी अमान्य कर दी जाती है कि संस्कृति भौतिक संस्कृति के गुणों पर आधारित होती है।

    बोआस के अनुसार धर्म या सामाजिक संगठन या संस्कृति के किसी अन्य पहलू के आधार पर विभाजित किए गए सांस्कृतिक प्रदेश भौतिक संस्कृति पर आधारित सांस्कृतिक प्रदेशों से मेल नहीं खाते हैं।

     समान सांस्कृतिक गुणों के अधिकाधिक सघन संग्रह मिलते हैं, वही उस संस्कृति-प्रदेश का केन्द्र बनता है। केन्द्र से दूर जब प्रदेश की सीमा को खोजा जाता है, तो वहां पर संस्कृति के भावात्मक तथा निषेधात्मक दोनों गुणों पर ध्यान दिया जाता है। सांस्कृतिक प्रदेशों के परिसीमन में निम्नलिखित संस्कृति लक्षणों को आधार बनाया जा सकता है। जैसे-

(i) भौतिक दशाओं,

(ii) बसावट प्रारूप,

(iii) जनसंख्या,

(iv) व्यवसाय,

(v) भाषा,

(vi) शिक्षा,

(vii) धर्म,

(viii) रहन-सहन,

(ix) रीति-रिवाज तथा

(x) आचार-विचार   

     सांस्कृतिक प्रदेशों के परिसीमन के समय निम्न बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है ताकि सांस्कृतिक प्रदेशों का यथार्थ विभाजन सम्भव हो सके :

1. संस्कृति क्षेत्र मूलतः एक युक्ति है, जिसका प्रयोग सांस्कृतिक भूगोलवेत्ता किसी महाद्वीप या द्वीप में संस्कृतियों के विस्तार को दिखाने के लिए करता है। सांस्कृतिक प्रदेश के लिए किसी विस्तृत परिवेश में एक विशिष्ट जीवन-रीतियां विद्यमान हैं, उनकी जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। इसके लिए संस्कृतियों के बीच समानताओं एवं भिन्नताओं का सूक्ष्म निरीक्षण आवश्यक होता है।

2. सांस्कृतिक प्रदेश वह स्थान है, जहां गुणों का संग्रह पाया जाता है, इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए। यह नहीं देखना चाहिए कि किसी क्षेत्र में लोग किस प्रकार समृद्धशाली जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

3. सांस्कृतिक प्रदेशों के सीमांकन के समय सीमान्त संस्कृति का सूक्ष्मता से निरीक्षण आवश्यक होता है। सीमान्त संस्कृति वह है, जहां कि पड़ोस के क्षेत्र के गुणों को पहचाना जा सके।

4. कभी-कभी किसी क्षेत्र में इतनी अधिक सांस्कृतिक सादृश्यताएं रहती हैं कि सांस्कृतिक-प्रदेशों के क्रम में उनकी भिन्नताएं छिप जाती हैं। ऐस दशा में किसी सामाजिक वर्ग या पेशे वाले समूह के विशिष्ट व्यवहार को मुख्य आधार माना जाता है।

     संस्कृति मण्डल की लघुतर इकाई संस्कृति-परिमण्डल तथा संस्कृति-परिमण्डल की लघुतर इकाई संस्कृति-प्रदेश है। संस्कृति-परिमण्डल के अन्तर्गत जितनी विषमता संस्कृति लक्षणों में विद्यमान होगी, प्रदेशों की इकाई उतनी ही अधिक होगी।

    प्रदेशों की इकाइयों की संख्या संस्कृति-लक्षणों की विषमता पर निर्भर करती है। इन्हीं संस्कृति लक्षणों के आधार प संस्कृति प्रदेशों का स्वरूप विश्लेषित किया जाता है, परन्तु संस्कृति-लक्षणों की संख्या इतनी अधिक होती है कि सभी का विश्लेषण कना सम्भव नहीं होता है।

      ऐसी दशा में महत्वपूर्ण लक्षणों का वर्णन किया जाता है तथा कम महत्व के संस्कृति-लक्षणों को छोड़ दिया जाता है। संस्कृति-लक्षणों के महत्व का आकलन संस्कृति लक्षणों के अन्तर्सम्बन्ध से लगाया गया है। जो संस्कृति लक्षण व्यावहारिक दृष्टि से अधिक सम्बन्धित होते हैं, उनका महत्व अधिक होता है तथा सांस्कृतिक प्रदेशों के अन्तर्गत उसी का विश्लेषण किया जाता है।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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