Unique Geography Notes हिंदी में

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ECONOMIC GEOGRAPHY (आर्थिक भूगोल)

13. Definition and scope of transport geography (परिवहन भूगोल की परिभाषा एवं विषय-क्षेत्र)

13. Definition and scope of transport geography

(परिवहन भूगोल की परिभाषा एवं विषय-क्षेत्र)



scope of transport geography

प्रश्न प्रारूप

Q. परिवहन भूगोल को परिभाषित करते हुए इसके विषय-क्षेत्र एवं अध्ययन उद्देश्य की विवेचना कीजिए।

उत्तर- मानव भूगोल की उपशाखा आर्थिक भूगोल की एक महत्वपूर्ण सहशाखा परिवहन भूगोल है। 1954 में सर्वप्रथम एडवर्ड उलमान (Edward Ullman) ने यह प्रतिपादित किया कि परिवहन का अध्ययन एक दृष्टिकोण के रूप में किया जाना चाहिए क्योंकि परिवहन विभिन्न क्षेत्रों के मध्य सम्बन्धों का माप होता है।

    इस दृष्टि से यह भूगोल का अपरिहार्य अंग है। परिवहन के द्वारा माल, मनुष्य एवं विचारों का वहन होता है। इस वहन में संचरण एवं गति निहित होती है जो कि परिवहन का मूल है। स्पष्ट है कि परिवहन में माल, मनुष्य एवं विचारों का संचरण होता है और यह संचरण निश्चित उद्देश्यों से होता है। फ्रांसीसी भूगोलवेत्ताओं द्वारा अठारहवीं शताब्दी में संचरण भूगोल शब्द का प्रयोग किया गया था।

      वस्तुतः परिवहन एक सार्वभौमिक घटना है और वर्तमान आर्थिक वैश्वीकरण के इस दौर में परिवहन के कारण ही अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता का स्थान अन्तरनिर्भरता ने ले लिया है। अतः यह कथन सत्य प्रतीत होता है कि परिवहन ने दूरी एवं समय पर विजय प्राप्त कर ली है। उल्लेखनीय है कि मानव की मूलभूत (Basic) एवं उच्चतर (Higher) आवश्यकताएं एक ही स्थान से पूरी नहीं हो सकती हैं।

     इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु या तो मानव को स्वयं दूसरे स्थान पर जाना होता है या उन आवश्यकता वाली वस्तुओं को अपने पास लाना होता है। उपरोक्त दोनों ही स्थितियों में आवश्यकता पूर्ति हेतु परिवहन आवश्यक हो जाता है। इस तरह से परिवहन स्थान उपयोगिता (Place Utility) को भी बढ़ा देता है और समय उपयोगिता (Time Utility) को भी बढ़ा देता है।

     स्पष्ट है कि परिवहन एक भौगोलिक घटना है, जिसमें पारस्परिक प्रतिक्रिया निहित है। यह पारस्परिक प्रतिक्रिया भूतल पर स्थित विभिन्न क्षेत्रों एवं स्थानों के मध्य होती है। हार्टशोर्न के अनुसार, भूतल पर क्षेत्रीय विभिन्नता, क्षेत्रीय पृथकता एवं प्रादेशिक विशिष्टीकरण के कारण ही पारस्परिक प्रतिक्रिया होती है। इन्हीं पारस्परिक प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप भूतल पर मांग एवं पूर्ति के क्षेत्र बन गए हैं जो संचरण को जन्म देते हैं। इस संचरण में चूंकि भूगोल की एक महत्वपूर्ण अवधारणा क्षेत्रीय विभिन्नता एवं क्षेत्रीय सम्बन्ध निहित है, अतः उलमान के अनुसार, क्षेत्रीय प्रतिक्रिया में परिवहन का अध्ययन ही परिवहन भूगोल है।

     यद्यपि भूतल पर पारम्परिक प्रतिक्रिया सामान्यत: जनसंख्या, संसाधनों और संसाधनों के उपयोग के ज्ञान के असमानता होने के कारण उत्पन्न होती है तथापि उलमान ने इस पारस्परिक प्रतिक्रिया के सैद्धान्तिक पहलू का विश्लेषण करते हुए इसके तीन आधार बताए हैं। जिन्हें उलमान के त्रय ((Ullman’s Triod) के नाम से जाना जाता है। ये त्रय हैं। :-

(1) संपूरकता (Complimentarity)

(2) मध्यवती आपूर्ति सुविधाएं (Intervening Opportunities)

(3) स्थानान्तरणशीलता (Transferability)

(1) संपूरकता (Complimentarity):-

      भूतल पर माल, मनुष्य एवं विचारों की क्षेत्रीय विभिन्नता है। यही क्षेत्रीय विभिन्नता मांग और पूर्ति के क्षेत्रों को जन्म देकर संचरण को अस्तित्व में लाती है। अतः स्थानों अथवा क्षेत्रों के मध्य मांग एवं पूर्ति की प्रक्रिया को संपूरकता अथवा परिपूरकता कहते हैं। यह परिपूरकता वस्तु-विशेष के सन्दर्भ में होती है अर्थात् एक प्रदेश में वस्तु-विशेष का आधिक्य हो तथा दूसरे प्रदेश में इस वस्तु-विशेष की मांग हो।

     नगरीय औद्योगिक प्रदेश एवं ग्रामीण कृषि प्रदेश इसी परिपूरकता पर आधारित हैं अर्थात् ये दोनों प्रदेश एक-दूसरे को आदान-प्रदान करके अपनी मांग की पूर्ति करते हैं। इसी प्रकार तकनीकी रूप से विकसित देश विकासशील अथवा अविकसित देशों से औद्योगिक कच्चे माल का आयात कर निर्मित माल का निर्यात मांग वाले देशों को करते हैं।

     इस प्रकार परिपूरकता अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए एक मौलिक आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि एक ही वस्तु के उत्पादन पैमाने में भिन्नता के कारण भी दो क्षेत्रों में परिपूरकता की दशाएं उत्पन्न हो सकती हैं। यह परिपूरकता कच्चे माल के एकत्रीकरण, अर्द्धनिर्मित माल के वहन एवं विनिर्मित वस्तुओं के वितरण से सम्बन्धित हो सकती है।

(2) मध्यवर्ती आपूर्ति स्रोत अथवा सुविधाएं (Intervening Opportunities):-

      ये वे वैकल्पिक सुविधाएं अथवा स्रोत होती हैं जिनमें दो स्थानों के बीच के मांग एवं पूर्ति के सम्बन्धों को तीसरे किसी अन्य स्थान अथवा स्रोत द्वारा वैकल्पिक सुविधा प्रदान की जाती है और ऐसी स्थिति में इन दो क्षेत्रों के मध्य यह स्थान मध्यवर्ती आपूर्ति स्रोत के नाम से पुकारा जाता है। यह स्रोत अथवा सुविधा अधिक दूर और उत्तम वस्तु के स्थान पर सापेक्ष निकट में और पर्याप्त वस्तु प्रदान करने का विकल्प प्रदान करती है और यह विकल्प चयन के लिए प्रेरित करता है। मध्यवर्ती सुविधाएं एक तरफ तो संचरण को हतोत्साहित करती हैं लेकिन दूसरी तरफ नये स्थानों के बीच संचरण को प्रोत्साहित करती हैं।

(3) स्थानान्तरणशीलता (Transferability):

      परिवहन हेतु उपरोक्त दो कारकों के अतिरिक्त स्थानान्तरणशीलता अर्थात् आर्थिक दृष्टिकोण से परिवहन सम्भव होना चाहिए। यदि दो स्थानों के मध्य परिवहन व्यय इतना अधिक हो कि वस्तु-विशेष निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचने पर अत्यधिक महंगी पड़े तो परिवहन सम्भव नहीं होगा। ऐसी दशा में उस वस्तु के स्थान पर दूसरी वस्तु का प्रतिस्थापन होने लगेगा। स्थान-युग्म के मध्य एक ही परिवहन साधन द्वारा यातायात में भी विभिन्न वस्तुओं की भाड़े की दरें भिन्न-भिन्न होती हैं। अतः विभिन्न वस्तुओं की स्थानान्तरणशीलता वस्तु की परिवहन लागत के साथ-साथ यात्रा समय, सुरक्षा, विश्वसीनयता आदि पर निर्भर करती है।

    उलमान के अनुसार विभिन्न स्थानों के मध्य प्रतिक्रिया उपरोक्त तीनों कारकों के सम्मिलित प्रभाव से निर्धारित, नियंत्रित अथवा नियमित होती है।

     पीटर हैगेट (Peter Hagget) ने संचरण (Movement) के सहारे एक समन्वित प्रादेशिक व्यवस्था के विकास की व्याख्या की है। यह विकास (ⅰ) संचरण (Movement), (ii) जाल (Network), (iii) केन्द्र (Nodes), (iv) श्रेणी क्रम (Hierar- chies) और (v) सतह (Surfaces) के द्वारा होता है।

     एम. ई. ई. हर्स्ट (M. E. E. Hurst) ने केन्द्र (Nodes), कड़ियों (Linkages), साधन व्यवस्था (Modes) और वहन (Flow) के आधार पर अपनी कार्यकलापी अवधारणा प्रस्तुत की है जो कूले (Cooley) के अर्थशास्त्री सिद्धान्त से ली गई है।

    हर्स्ट ने परिवहन को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवेश में प्रस्तुत किया है क्योंकि ये ही परिवेश परिवहन प्रणालियों के संचालन की दशाएं प्रदान करते हैं।

    इस संचालन परिवेश में किसी भी परिवहन प्रणाली की प्रथम अवस्था में पारस्परिक प्रतिक्रिया की इच्छा होती है और यह पारस्परिक प्रतिक्रिया संचरण उत्पन्न करती है। संचरण प्रधानतः पृथ्वी सतह पर मांग और पूर्ति के क्षेत्रों के स्थानिक असन्तुलन के कारण उत्पन्न होता है। स्थानिक संचरण (Spatial Movement) को प्रोत्साहित करने वाले सकारात्मक घटक (Positive Potentials) परिपूरकता, मध्यवर्ती स्रोत सुविधाएं तथा सांस्कृतिक समानता हैं जबकि स्थानिक संचरण को हतोत्साहित करने वाले नकारात्मक घटक (Negative Potentials) दूरी, परिवहन लागत, स्थानान्तरणशीलता और राजनीतिक अवरोध हैं।

    परिवहन प्रणाली की द्वितीय अवस्था में संचरण निश्चित मार्गों के सहारे होता है जो परिवहन जाल (Network) का विकास करता है। यह परिवहन जाल दृश्यमान और अदृश्यमान दोनों ही प्रकार का होता है। तत्पश्चात् इन मार्गों के जाल के सहारे विभिन्न परिवहन साधनों द्वारा वहन होता है जिनमें वाहन संख्या तथा मार्गों की लम्बाई भिन्न-भिन्न होती है। ये परिवहन के विभिन्न साधन एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी भी होते हैं और एक-दूसरे के पूरक भी होते हैं।

   इस प्रकार इन सभी के द्वारा माल, मनुष्य एवं विचारों का वहन होता है तथा ये सभी मिलकर एक प्रदेश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हुए उसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश को नियंत्रित करते हैं।

   हर्स्ट ने अपनी कार्यकलापी विचारधारा में परिवहन भूगोल के अध्ययन के लिए विभिन्न परिवहन के साधनों को समग्र रूप से अध्ययन करने के साथ-साथ संचरण अवधारणा को निर्धारित करने वाली परिवहन व्यवस्था को विभिन्न अवयवों में विभक्त करके अध्ययन करने का सुझाव दिया। उन्होंने परिवहन व्यवस्था को निम्न अवयवों के रूप में प्रस्तुत किया है:

(1) वस्तु सूची तालिका (Inventory),

(2) परिवहन जाल (Network),

(3) वहन (Flows),

(4) साधन व्यवस्था (Modes),

(5) उपरोक्त चारों अवयवों का अन्तर्सम्बन्ध (Interrelationship)

परिवहन भूगोल का अध्ययन उद्देश्य-

     उलमान के अनुसार, परिवहन भूगोल का अध्ययन निम्न उद्देश्यों के पूर्ति के लिए किया जाता है:-

(i) माल, मनुष्य एवं विचारों के स्थानिक संचरण का, उत्पत्ति एवं निर्दिष्ट स्थलों के बीच संचरण की मात्रा एवं गति का मापन एवं मानचित्रीकरण करना।

(ii) परिवहन लागत तथा लागत-दर संरचना का भौगोलिक विश्लेषण करना।

(iii) परिवहन को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय घटकों (विशेषकर धरातलीय दशाओं, जल प्रवाह, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी) का अध्ययन करना।

(iv) निरन्तर विकासमान अथवा परिवर्तित तकनीक के परिवहन पर प्रभाव का अध्ययन करना।

(v) भूतल पर आर्थिक विकास की प्रक्रियाओं के साथ-साथ विकसित हुए परिवहन मार्ग जाल का अध्ययन करना।

(vi) भूतल पर परिवहन साधनों, परिवहन मार्ग जाल, संयोजकता (Connectivity) औ संगम स्थल अभिगम्यता (Nodal Accessibility) की क्षेत्रीय विभिन्नताओं का अध्ययन कना।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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