42. Determination of Climatic Regions of India According to Koppen (कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश का निर्धारण)
42. Determination of Climatic Regions of India According to Koppen
(कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश का निर्धारण)
जलवायु प्रदेश का तात्पर्य स्थलखंड के उस क्षेत्र से है जिसके अंतर्गत जलवायु तत्वों के बीच समरूपता पायी जाती है। कोपेन महोदय ने अपने विश्वव्यापी जलवायु वर्गीकरण में भारत को मानसूनी जलवायु क्षेत्र में रखा लेकिन भारत के जलवायु में आंतरिक विषमता को देखते हुए इसे कई जलवायु क्षेत्रों में वर्गीकृत किए।
भारतीय जलवायु के निर्धारण में कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
वस्तुत: ट्रीवार्था के कार्य को कोपेन जलवायु का प्रतीक माना जाता है। दोनों भूगोलवेत्ताओं ने वनस्पति, तापमान, वर्षा और उच्चावच को ध्यान में रखते हुए जलवायु प्रदेशों का निर्धारण किया है। दोनों भूगोवेत्ताओं ने जलवायु प्रदेशों को सांकेतिक शब्दावली से प्रकट किया है। कोपेन महोदय ने भारत को 9 प्रमुख जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया है। जैसे-
(1) Amw
(2) Aw
(3) AS
(4) BShw
(5) Bwhw
(6) Cwg
(7) Dfc
(8) ET
(9) EF
प्रारंभ में ET और EF प्रकार का जलवायु प्रदेश हिमालय क्षेत्र के लिए निर्धारित किया। बाद में उन्हें ऐसा लगा की हिमालय क्षेत्र में उच्चावच का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। अत: उच्चावच को ध्यान में रखते हुए उन्होंने Dfc जलवायु प्रदेश का सीमांकन हिमालय प्रदेश में किया।
(1) Amw प्रकार की जलवायु
इसे उष्णार्द्र जलवायु कहते है। इस प्रकार की जलवायु पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग, अंडमान निकोबार द्वीप समूह तथा उत्तरी पूर्वी भारत में पाई जाती है। इस प्रकार की जलवायु प्रदेश में शुष्क ऋतु छोटी होती है। वार्षिक वर्षा 300 cm से अधिक होती है। वायुमंडलीय आर्द्रता भी अधिक होती है। वार्षिक तापांतर न्यून होती है। सालोंभार तापमान उच्च रहता है।
इस क्षेत्र में मिलने वाली वनस्पति सदाबहार प्रकार के होती है। वृक्षों की लंबाई 45-60 मी० तक होती है। लकड़ियां कठोर होती है। वृक्षों के ऊपर विशिष्ट प्रकार के लताएं मिलती है जिसे लियाना कहते है। वन काफी सघन प्रकार के होते है। जंगलों में विविध प्रकार के वृक्ष पाए जाते है।
(2) Aw प्रकार की जलवायु
Aw प्रकार की जलवायु लगभग संपूर्ण प्रायद्वीपीय पठार के वृष्टिछाया प्रदेश और तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्र को छोड़कर पाई जाती है। यहाँ अधिकांश वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से होती है। वर्षा 75-200 cm रिकॉर्ड किया जाता है। यहाँ वार्षिक तापांतर 13.8ºC होता है। मौसमी विशेषता के आधार पर तीन ऋतुएं पाई जाती है। जैसे- शुष्क ग्रीष्म ऋतु, आर्द्र ग्रीष्म ऋतु और जाड़े की ऋतु। शुष्क गर्मी ऋतु में कभी कभी चक्रवातीय वर्षा होती है जिसे आम्र वृष्टि कहते है।
(3) AS प्रकार की जलवायु
इस प्रकार की जलवायु प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है जबकि शीत ऋतु में लौटती हुई तापमान से वर्षा होती है। यह जलवायु प्रदेश तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र पाई जाती है। अक्टूबर-नवंबर में यहां चक्रवातीय वर्षा होती है। इस वर्षा के दौरान बंगाल की खड़ी से जलवाष्प लायी जाती है।
(4) BShw प्रकार की जलवायु
यह जलवायु प्रदेश भारत के वृष्टिछाया प्रदेश में और अरावली पर्वत के पूर्वी भाग में पाई जाती है। यहाँ सामान्य तौर पर वर्षा 50-100 cm के बीच होती है। कोपेन के अनुसार वृष्टिछाया प्रदेश में वर्षा 35-75 cm होती है जबकि अरावली के पश्चिमी भाग में 30-65 cm होती है। ये दोनों क्षेत्र जलवायु को आर्द्र मरुस्थलीय या स्टेपी तुल्य जलवायु कहा जाता है। वृष्टिछाया प्रदेश में तापीय स्थिति के कारण तापांतर कम होता है जबकि अरावली के पूर्वी भाग में तापांतर महाद्वीपीय स्थिति के अधिक पाई जाती है।
(5) BWhw प्रकार की जलवायु
इसे कोपेन ने शुष्क मरुस्थलीय जलवायु से संबोधित किया है। इसके अंतर्गत रण ऑफ कच्छ तथा थार मरुस्थलीय भाग को शामिल किया है। औसत वार्षिक वर्षा 35 cm से कम होती है। जून यहाँ का सर्वाधिक गर्म महीना है जबकि जनवरी यहां का सबसे ठंडा माह है। जून का तापमान 35ºC तक पहुंच जाता है जबकि जनवरी का तापमान 11ºC तक जाता है। यहाँ 5 जुलाई से 12 जुलाई के बीच मानसून की ऋतु पहुंचती है और अगस्त महीने में मानसून लौटने लगती है।
(6) Cwg प्रकार की जलवायु
ऐसी जलवायु उत्तर भारत के मौसमी क्षेत्र में पाई जाती है। इसका विस्तार पंजाब से लेकर पूर्वी असम तक हुआ है। इसके पूर्वी सीमा पर वर्षा 300 cm तक और पश्चिमी सीमा पर वर्षा 65 cm तक होती है। इस तरह स्पष्ट है कि पूरब से पश्चिम की तरफ जाने पर लगातार वर्षा में कमी आते जाती है।
यह जलवायु मौसमी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में तीन स्पष्ट ऋतुएं पाई जाती है। जाड़े की ऋतु, ग्रीष्म ऋतु और वर्षा ऋतु। मैदानी क्षेत्र शीत ऋतु में उच्च वायुदाब के रूप में बदल जाता है। इसीलिए वायु ऊपर से नीचे की ओर बैठने की प्रवृति रखती है। जिसके कारण कड़ाके की ठण्डी पड़ती है।
गांगेय घाटी में पछुवा विक्षोभ के कारण जनवरी एवं फरवरी महीने में थोड़ी मात्रा में वर्षा होती है। ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है क्योंकि सूर्य के लंबवत प्रभाव के कारण धरातलीय भाग के गर्म होने से हवा लंबवत रूप से ऊपर उठने लगती है जिसके कारण संपूर्ण मैदानी क्षेत्र निम्न वायुदाब क्षेत्र में बदल जाती है। थार मरूस्थलीय क्षेत्र से गर्म वायु गांगेय घाटी में चलने लगती है जिसे ‘लू’ कहते है। अप्रैल एवं मई महीने में मानसून पूर्व चक्रवातीय वर्षा होती है जिसे बंगाल में ‘कालवैशाखी’ बिहार में ‘अंधड़’ और पंजाब में ‘तूफान’ कहा जाता है।
ग्रीष्म ऋतु के अंत में मानसून विस्फोट के साथ वर्षा ऋतु का आरंभ होती है। दक्षिण-पश्चिम मानसूनी की शाखा से 90 प्रतिशत वर्षा रिकॉर्ड की जाती है। इस क्षेत्र में मानसूनी पतझड़ वन पाए जाते है।
(7) Dfc प्रकार की जलवायु
यह हिमालय प्रदेश की विशेषता है। इसके अंतर्गत उत्तरी पूर्वी भारत के हिमालय एवं पंजाब हिमालय को शामिल करते है। इस क्षेत्र में 4 महीने तक तापमान 10ºC से कम होता है। यहाँ वार्षिक वर्षा 200 cm से अधिक होती है अर्थात यह कम तापमान और अधिक वर्षा वाला क्षेत्र है।
(8) ET प्रकार की जलवायु
यह भी हिमालय प्रदेश की जलवायु है। इसमें ग्रीष्म ऋतु का भी तापमान 10ºC से कम होता है। यह कड़ाके की सर्दी वाला क्षेत्र है। वर्ष में कभी न कभी हिमपात की क्रिया होती है और बर्फीली हवाएँ चलती है। यह जलवायु लघु हिमालय तथा हिमालय में मिलने वाले घाटी एवं दून प्रदेश में मिलती है। जाड़े की ऋतु में धरातल बर्फ से ढक जाती है जबकि ग्रीष्म ऋतु में बर्फ के पिघल जाने से धरातल पर जल की आपूर्ति बढ़ जाती है। समतल पर्वतीय ढालों पर फूलों की खेती की जाती है और घाटी क्षेत्र में धान की कृषि की जाती है।
(9) EF प्रकार की जलवायु
इस प्रकार की जलवायु महान हिमालय के चोटियों पर तथा 6000 मी० से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। इस क्षेत्र का तापमान सदैव हिमांक से नीचे रहता है। धरातल सदैव बर्फ से अच्छादित रहते है। वनस्पति के रूप में शैवाल और मॉश पाई जाती है।
इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि कोपेन महोदय ने अनुभावाश्रित विधि का प्रयोग कर भारत को कई जलवायु प्रदेश में वर्गीकृत किया है। आगे चलकर ट्रीवार्था महोदय ने संशोधन प्रस्तुत किया। इसीलिए कोपेन की तुलना में ट्रीवार्था के जलवायु वर्गीकरण को अधिक मान्यता है।
प्रश्न प्रारूप
Q. कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश का निर्धारण कीजिए और प्रत्येक जलवायु प्रदेश का विस्तार से चर्चा करें।