POPULATION GEOGRAPHY (जनसंख्या भूगोल)								
														
							
							
								1. माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत 
(Malthusian Population Theory)
 प्रश्न प्रारूप
प्रश्न प्रारूप 
1. जनसंख्या वृद्धि से संबंधित सिद्धांतों का आलोचनात्मक व्याख्या करें। वर्तमान समय में उनकी उपयोगिता को भी स्पष्ट करें।
         जनसंख्या वृद्धि एक जैविक प्रक्रिया है, जो समय और स्थान के संदर्भ में अलग-2 प्रवृत्ति रखता है। बदलते हुए इन प्रवृतियों को ध्यान  में रखकर कई भूगोलवेत्ताओं एवं अर्थशास्त्रियों ने जनसंख्या वृद्धि से संबंधित सिद्धांत प्रस्तुत किया।  इनमें से चार सिद्धांत प्रमुख है।:-
(i) माल्थस का जनसँख्या सिद्धांत 
(ii) मार्क्स का जनसंख्या सिद्धांत 
(iii) जननांकी संक्रमण का सिद्धांत 
(iv) अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धांत
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत   
      माल्थस एक ब्रिटिश अर्थशास्त्री और जननांकी विशेषज्ञ थे। उन्होंने 1798 ई० में लिखित पुस्तक “An Esay On Priciple of Population” नामक पुस्तक में जनसंख्या का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
मन्यताएँ 
       माल्थस का सिद्धांत दो आधारभूत मान्यताओं पर आधारित है।
(i) जनसंख्या वृद्धि सदैव ज्यामितीय रीति से होती है। जैसे- 1, 2, 4, 8, 16, 32, . . . . . . . . . . . . . .।
(ii) खाद्यान्न पदार्थों की वृद्धि अंक गणितीय विधि से होती है। जैसे:- 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, . . . . .।
      माल्थस के अनुसार जनसंख्या वृद्धि और खाद्यान्न उत्पादन की वृद्धि की अलग-अलग प्रवृत्ति होती है। अर्थात् जनसंख्या की बढ़ोतरी तेजी से होती है, उसके अनुपात में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि मंद गति से होती है।
       अगर किसी देश की जनसंख्या वृद्धि अधिक हो और खाद्यान्न का उत्पादन दर निम्न हो तो वह देश खाद्यान्न की समस्या से ग्रसित होगा।
      माल्थस के अनुसार जनसंख्या वृद्धि की दर अगर उच्च हो तो किसी भी जनसंख्या आकार को दोगुना बना देती है। 
विश्लेषण: 
      माल्थस के अनुसार जनसंख्या का आकार 25 वर्ष में दुगुना हो जाता है। माल्थस का सिद्धांत उस समय आया जब औद्योगिक क्रांति के प्रभाव से अनेक बीमारियों तथा महामारियों पर नियंत्रण स्थापित किया जा रहा था। इसके कारण मृत्युदर में तो कमी आ रही थी लेकिन जनसंख्या वृद्धि में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आ रही थी जिसके परिणामस्वरूप लगभग सम्पूर्ण यूरोप में जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से हो रही थी। 
      अत: उन्होंने बताया कि आनेवाले समय में पूरे विश्व को खाद्य संकट और जनसंख्या दबाव जैसी गंभीर समस्या का सामना करना होगा। माल्थस ने खाद्यान्न संकट से निपटने हेतु जनसंख्या नियंत्रण अनिवार्य बताया। इसके लिए उन्होंने दो उपाय बताये। जैसे:-
(i) साकारात्मक उपाय
(ii) नाकारात्मक उपाय
       साकारात्मक उपाय के अन्तर्गत उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी समाज के ऊपर डाला। उन्होंने कहा कि युद्ध, गरीबी, महामारी, खाद्यान्न पदार्थों की कमी जैसे कारक स्वतः प्राकृतिक रूप से जनसंख्या पर नियंत्रण स्थापित करते हैं।
        दूसरे शब्दों में प्रकृति और समाज जनसंख्या का स्वयं नियंत्रक होता है। लेकिन यह विधि काफी कष्टकर होता है। अत: उन्होंने ये सलाह दिया कि आप जनसंख्या का नियंत्रण निषेधात्मक विधि से करे।
निषेधात्मक उपाय के अन्तर्गत उन्होंने नैतिक आचरण की चर्चा की है। उनके अनुसार:-
(i) मनुष्य को विवाह स्वयं देरी से करनी चाहिए।
(ii) प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कार्यों का महात्व देना चाहिए।
(ii) युवावस्था में ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करना चाहिए। इससे उनकी आर्थिक आय सुनिश्चित होगी।
      माल्थस का यह विचार प० यूरोप के लिए एक नवीन चिंतन था जिस चिन्तन को अधिकतर देश के सरकारों ने पसन्द किया। यहाँ तक कि ब्रिटिश सरकार ने उनके पुस्तकों का सस्ते दर में प्रकाशित कर वितरण किया तथा राजनीतिक क्षेत्रों में उनके पुस्तकों एवं सिद्धांतों का हवाला दिया गया।
आलोचना
      माल्थस का सिद्धांत जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में एक चिरसम्मतकालीन सिद्धांत हैं। इसके बावजूद भी इनकी आलोचना कई आधारों पर की गई है। जैसे:-
(i) किसी भी परिवार में एक शिशु का आगमन होना एक जैविक प्रक्रिया मात्र है (माल्थस के अनुसार), लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह जैविक प्रक्रिया के साथ-2 सामाजिक प्रक्रिया भी है।
(ii) जनसंख्या और खाद्य वृद्धि के संबंध में माल्थस जो मत प्रतिपादित किया है, वह भी गलत है क्योंकि जहाँ एक ओर राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्रतिबद्धता के आधार पर जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित किया जा रहा वहीं जैव तकनीक एवं विभिन्न प्रकार के कृषि क्रांतियों के द्वारा खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।
(iii) माल्थस के अनुसार कोई भी जनसंख्या का आकार 25 वर्षों में दुगुना हो जाता है, लेकिन यूनाइटेड किंगडम में 280 वर्ष में, जापान 270 वर्ष में, USA में 99 वर्ष में, रूस, जर्मनी, स्वीडन में 300 वर्ष में, इसी तरह भारत में स्वतंत्रता के बाद 35 वर्ष में जनसंख्या का आकार दुगुना हुआ जो स्पष्ट है कि माल्थस के विचार के प्रतिकूल है।
(iv) माल्थस के द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के उपायों में नकारात्मक उपाय को अधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया और निषेधात्मक उपाय व्यावहारिक कम काल्पनिक अधिक लगती है। वस्तुतः कोई भी समाज जनसँख्या नियंत्रण के लिए नियोजित तरीके से निषेधात्मक उपाय का पालन नहीं कर सकती है।
(v) क्लार्क महोदय माल्थस  का आलोचना करते हुए कहा है कि उन्होंने जनसंख्या के नियंत्रण में गर्भ निरोधकों की भूमिका को नजर अंदाज किया है।
(vi) माल्थस का सिद्धांत मूलतः प० यूरोप के संदर्भ में दिया गया था न कि पूरे विश्व के संदर्भ में।
       यद्यपि माल्थस के विचारों की आलोचाना कई आधारों पर की जाती है, फिर भी इनके दो विचारों की अवहेलना नहीं की जा सकती हैं-
(i) यद्यपि अधिकतर विकासशील देशों मे जनसंख्या वृद्धि ज्यामितीय तरीके से नहीं हो रहा है लेकिन यह भी स्पष्ट हो रहा है कि अंकगणितीय विधि से नहीं हो रहा है लेकिन विकासशील देशों के जनसंख्या वृद्धि की प्रवृति देखते हुए ज्यामीतीय प्रकृति का आभाव होता है।
(ii) नवीन आलोचना में कहा गया है कि जनसंख्या नियंत्रण के साकारात्मक उपाय कम महत्वपूर्ण है। लेकिन विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि वाले क्षेत्रों में अधिकतर आकाल, महामारी, जातीय एवं प्रजातीय दंगे एवं प्राकृतिक विपदाएँ आती हैं। इससे जनसंख्या नियंत्रण के कार्यों की पुष्टि होती है।
निष्कर्ष: 
     अतः स्पष्ट है कि माल्थस का विचार एक ऐतिहासिक अवधारणा है। वर्तमान समय में यह सिद्धांत विकसित एवं साक्षर देशों पर भले ही लागू नहीं होता हो परन्तु विकासशील देशों पर स्पष्ट रूप से लागू होता है।