Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

GEOGRAPHICAL THOUGHT(भौगोलिक चिंतन)

17. 19वीं शताब्दी के दौरान भूगोल का विकास

17. 19वीं शताब्दी के दौरान भूगोल का विकास


19वीं शताब्दी के दौरान भूगोल का विकास

           वर्तमान समय में भूगोल का जो वैज्ञानिक स्वरूप उभर कर सामने आया है, वह वस्तुतः उन्नीसवीं शताब्दी की ही देन है। यह वह युग था, जिनमें हम्बोल्ट (Humboldt), रिटर (Ritter) व रेटजेल (Ratzel) जैसे महान भूगोलवेत्ताओं ने भौगोलिक तथ्यों को भलीभांति संगठित करके प्रस्तुत किया था। उन्होंने भूगोल को परिभाषित किया व उसकी विषय वस्तु को निर्धारित किया। यद्यपि इसके युग से पूर्व के भूगोलवेत्ताओं के अध्ययन में वैज्ञानिक छाप थी, परन्तु उनमें वैज्ञानिकता कम व दार्शनिकता अधिक थी। इसी युग में वस्तुतः वैज्ञानिक भूगोल की स्थापना हुई। इसका श्रेय जर्मनी के तीन महान भूगोलवेत्ताओं (हम्बोल्ट, रिटर व रेटजेल) को है। इनके द्वारा जो भी ग्रन्थ प्रकाशित किए गए, उनमें अन्वेषण की विधियों, अभिलेखों तथा वर्णनों की सूक्ष्मता देखने को मिलती है। बीसवीं सदी का भूगोल इसी सूक्ष्मता व शुद्धता के आधार पर विकसित हुआ।

         इस युग के भूगोलवेत्ताओं का भूगोल में योगदान संक्षेप में प्रस्तुत है:-

(1) हम्बोल्ट (Alexander Von Humboldt):-

         हम्बोल्ट बहुमुखी प्रतिभाशाली वैज्ञानिक था। भूगोल में उसके योगदान का मूल्यांकन करना कोई हंसी-खेल नहीं। बनस्पति विज्ञान, भू-विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान, शरीर रचना विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान, इतिहास, भूगोल, आदि क्षेत्रों में हम्बोल्ट का योगदान रहा है। बहुत से विज्ञान इस बात के लिए उसके ऋणी हैं कि उसने उनको नए तथ्य व नई सूझें प्रदान की थीं, परन्तु भूगोल का तो वह एक जन्मदाता था।

      हम्बोल्ट की सबसे प्रसिद्ध रचना कॉसमॉस (Cosmos) है। इसमें सम्पूर्ण विश्व का प्रादेशिक वर्णन विस्तार से किया गया है। इसमें पांच खण्ड हैं। यह ग्रन्थ लिखने में हम्बोल्ट को सत्रह वर्ष का समय लगा था। हम्बोल्ट का दूसरा प्रसिद्ध ग्रन्थ मध्य एशिया (Asia Centrale) है। यह जर्मन भाषा में 1843 में दो खण्डों में प्रकाशित हुआ था।

    हम्बोल्ट ने प्रारम्भ से ही यात्राओं में रुचि प्रदर्शित की थी। उसने प्रथम यात्रा 1799 में प्रारम्भ की थी। वह जहाँ भी जाता था, कुछ यन्त्र प्रेक्षण के लिए अपने साथ-साथ रखता था।

       हम्बोल्ट ने भूगोल मे सात संकल्पनाओं का भी प्रतिपादन किया था। ये संकल्पनाएं थी-

(i) पृथ्वी तल का मानव निवास के रूप में अध्ययन,

(ii) भूगोल संसार में स्थानिक वितरणों का विज्ञान,

(iii) सामान्य भूगोल ही भौतिक भूगोल है,

(iv) भूगोल सम्बन्धों का अध्ययन है,

(v) सांसारिक दृश्य घटनाओं का अध्ययन है,

(vi) प्रकृति की एकता का अध्ययन तथा

(vii) दृश्य घटनाओं की विषमांगता का अध्ययन

        हम्बोल्ट ने भूगोल के अध्ययन के लिए कई विधियाँ अपनाई जैसे- आनुभविक, तुलनात्मक, कार्टोग्राफिक, क्रमबद्ध, आदि।

(2) रिटर (Carl Ritter):-

         रिटर का जन्म 1779 में हुआ था। भूगोल को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने वाले आधार स्तम्भों में रिटर भी एक था।

     रिटर का सर्वप्रमुख ग्रन्थ एर्डकुण्डे (Erdkunde) था। इसके अतिरिक्त ‘यूरोप का भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांख्यिकीय चित्रण’ भी रिटर का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह रिटर का प्रथम ग्रन्थ था।

       1828 में रिटर ने भौगोलिक ज्ञान के प्रचार व प्रसार के लिए एक भौगोलिक समिति की स्थापना की थी। वह जीवन पर्यन्त, 31 वर्ष तक इसका अध्यक्ष रहा था।

       रिटर की विचारधारा पर हम्बोल्ट का बहुत प्रभाव था, हम्बोल्ट से रिटर की मुलाकात 1827 में हुई। दोनों ने मिलकर भूगोल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया।

          रिटर वातावरण निश्चयवाद (Environmental Determinism) का समर्थन करता था। वह पृथ्वी तल के वर्णन मात्र को भूगोल नहीं मानता था। उसका मत था कि इस अध्ययन में मानव की मुख्य भूमिका होनी चाहिए। रिटर प्रकृति की एकता में विश्वास करता था। प्रादेशीकरण की विचारधारा का रिटर ने समर्थन किया था।

          रिटर ने भूगोल के अध्ययन के लिए कई विधियां अपनाई। इनमें अधिकांश हम्बोल्ट की विधियों के समान थीं-आनुभविक, तुलनात्मक व मानचित्रण इसके अतिरिक्त रिटर ने विश्लेषणात्मक व संश्लेषणात्मक विधि भी अपनाई।

(3) रेटजेल (Friedrich Ratzel 1844-1904):-

     उन्नीसवीं सदी के अन्तिम समय में जर्मनी के भौगोलिक क्षेत्र में रेटजेल ने शासन किया। भूगोल में मानव के स्थान को स्थायी बनाने का कार्य रेटजेल ने किया, अतः उसे मानव भूगोल का जन्मदाता (Father of Human Geography) कहा जाता है।

     एन्थ्रोपोज्योग्राफी (Anthropogeographic) रेटजेल की सबसे महत्वपूर्ण रचना है। यह ग्रन्थ 1882 में प्रकाशित हुआ था। इस ग्रन्थ से ही वस्तुतः मानव भूगोल का जन्म हुआ।

रेटजेल ने स्वयं यात्राएं करके आनुभविक विधि से भौगोलिक ज्ञान का एकत्रीकरण किया था। रेटजेल ने ही लिखा है:

“I travelled, I sketched, I described. Thus, I was led to the description of nature.”

       रेटजेल का दूसरा प्रमुख ग्रन्थ ‘राजनीतिक भूगोल’ (Politische geographie) था, यह दो खण्डों में क्रमशः 1897 व 1903 में प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त रेटजेल ने कई अन्य पुस्तकें लिखी। भौमिकी (Geology) मानव जातिशास्त्र (Ethnography), जीव विज्ञान (Biology), भौतिक भूगोल (Physical Geography), आदि पर अनेक लेख लिखे।

         रेटजेल ने मानव व वातावरण के सम्बन्धों का अध्ययन किया था तथा वातावरण निश्चयवाद (Environmental determinism) का प्रतिपादन किया था।

(4) फ्रोबेल (Frobel):-

         फ्रोबेल की विचारधारा हम्बोल्ट व रिटर की विचारधारा से मेल नहीं खाती थी। उसने रिटर की आलोचना की थी तथा उससे ‘तुलनात्मक’ (Comparative) शब्द का स्पष्टीकरण मांगा था, परन्तु रिटर उसे सन्तुष्ट न कर सका था। फ्रोबेल का मत था कि विभिन्न अवयवों की तुलना, जैसे एक पर्वत की दूसरे पर्वत से, एक नदी की दूसरी नदी से की जा सकती है, परन्तु किसी सम्पूर्ण प्रदेश की तुलना दूसरे सम्पूर्ण प्रदेश से करना उचित नहीं है। फ्रोबेल ने भूगोल को परिभाषित किया था :

          “Geography” he claimed, “was a natural science, concerned with the earth’s surface, studied in a systematic way, i. e. taking in form, relief, climate, vegetation, animal and man; attempting throughout to make clear the interrelation of the various factors.”

          इस प्रकार फ्रोबेल ने भूगोल के अध्ययन क्षेत्र को सीमित करके मात्र भौतिक भूगोल बताया।

(5) पेशेल (Oscar Peshcel):-

           पेशेल जर्मनी में भूगोल का प्रथम प्रोफेसर था। वह भौगोलिक पत्र (Das Ausland) का सम्पादक भी था। इसमें विदेशी भूगोलवेत्ताओं के लेख प्रकाशित होते थे। पेशेल ने विभिन्न क्षेत्रों की तुलना की तथा तुलनात्मक भूगोल का विकास किया। पेशेल ने, जिसने भौतिक भूगोल का आधार तैयार किया था, भूगोल में मानव को अधिक महत्व नहीं दिया था।

(6) रिचथोफेन (Ferdinand von Richthofen) (1833-1905):-

         रिचथोफेन मूलतः भौमिकीविद (Geologist) था। वह बोन, बर्लिन व लीपजिंग विश्वविद्यालयों में प्राध्यापक रहा था। बाद में इन्हीं विश्वविद्यालयों में भूगोल का प्रोफेसर रहा। ‘बर्लिन ज्योग्राफीकल सोसाइटी’ का कई वर्षों तक वह अध्यक्ष रहा था।

19वीं शताब्दी के दौरान भूगो
रिचथोफेन

          रिचथोफेन ने चीन में प्रेक्षण किए थे। चीन पर उसकी ग्रन्थमाला पांच खण्डो में प्रकाशित हुई थी। इसमें प्रथम खण्ड पर ही उसे ‘रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी’ का पदक मिला था। उसने चीन की एक एटलस भी प्रकाशित की थी।

          रिचथोफेन की मुख्य देन भौतिक भूगोल के क्षेत्र (भू-आकृति विज्ञान) में है। उसने तुलनात्मक भूगोल की स्थापना की थी।

         भूगोल को रिचथोफेन ने क्षेत्रवर्णी विज्ञान (Chorological Science) बताया था। इसमें पृथ्वी तल पर पाए जाने वाली भिन्नताओं का अध्ययन होता है।

        रिचथोफेन ने प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography) और सामान्य भूगोल (General Geography) में अन्तर स्पष्ट किया था। उसने बताया था कि प्रादेशिक भूगोल में किसी तथ्य विशेष के पृथ्वी पर वितण का अध्ययन करते हैं।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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