7. भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का विकास / Development of Quantitative Revolution in Geography
7. भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का विकास
भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का विकास⇒
(नोट:- क्रांति ⇒ किसी भी विषय वस्तु में त्वरित परिवर्तन को क्रांति कहते है। मात्रात्मक क्रांति = परमाणीकरण)
भूगोल में गणित एवं सांख्यिकी के तथ्यों का प्रयोग करना मात्रात्मक क्रांति कहलाता है। मात्रात्मक क्रांति का स्रोत गणित एवं सांख्यिकी जैसे विषय है। जबकि लक्ष्य प्रारंभ में केवल मानव भूगोल था। लेकिन वर्तमान में गणित एवं सांख्यिकी के तथ्यों का प्रयोग मानव भूगोल के अलावे भौतिक भूगोल और Cartography (चित्रात्मक भूगोल) में किया जाने लगा है।
भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का आगमन मूल रूप से विधितंत्र एवं विषय वस्तु में हुआ है। गणित एवं सांख्यिकी के तथ्यों के प्रयोग से त्वरित परिवर्तन हुआ जिसके कारण भूगोल में वैज्ञानिकता, तर्क, वस्तुनिष्ठता का आगमन हुआ। इस सम्पूर्ण गतिविधि को मात्रात्मक क्रांति से संबोधित करते हैं। भूगोल में मात्रात्मक क्रांति लाने का श्रेय अमेरिकी भूगोलवेता जिफ को जाता है क्योंकि इन्होंने 1949 ई. में सांख्यिकी के कोटि(क्रम) आकार सह-संबंध तकनीक का प्रयोग कर USA के नगरों का अध्ययन किया और यह निष्कर्ष निकाला कि ज्यों-2 कोटि वृद्धि होती है त्यों-2 नगरों के आकारिकी में परिवर्तन होता है। जिन क्षेत्रों में कोटि और आकार के बीच में यह संबंध पाये जाते हैं वह स्वस्थ्य आर्थिक विकास का घोतक है और जहाँ पर यह संबंध नहीं पाया जाता है वह अस्वास्थ्य आर्थिक विकास का घोतक है।
भूगोल में गणित एवं सांख्यिकी से आयात कर जिन तकनीकों का प्रयोग किया गया उसे दो भागों में बाँटते हैं-
(1) अनुमोदनात्मक तकनीक
(2) विवरणात्मक तकनीक
अनुमोदनात्मक तकनीक के तहत किसी सिद्धांत या परिकल्पना की जाँच करते हैं। इसके तहत सांख्यिकी में प्रयोग होने वाले Simple रिग्रेशन, लीनियर रिग्रेशन, संभाव्यता (Probablity), t- test, Chi- square, Index इत्यादि का प्रयोग करते हैं।
विवरणात्मक तकनीक के अन्तर्गत सामाजिक आर्थिक आकड़ों को इकट्ठा किया जाता है और उसका औसत माध्य, मध्यिका, बहुलक, अपसरण, मानक विचलन इत्यादि का प्रयोग कर सार निकालने का प्रयास करते हैं।
भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का इतिहास
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका के द्वारा गिराये गये परमाणु बम ने सभी मानवीकी विषय के ऊपर प्रश्न चिह्न लगा दिए थे। कला क्षेत्र के विद्वान विज्ञान से भयभीत होने लगे थे। कई विश्वविद्यालयों में मानवीकी विषय में विद्यार्थियों की सीटें खाली रहने लगी। फलतः सामाजिक विज्ञान के विद्वानों ने 1949 ई० में अमेरिका के प्रीस्टन विश्वविद्यालय के प्रांगण में एक सम्मेलन बुलवाया। इस सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि मानवीकी विषय के विधितंत्र को तार्किक एवं वैज्ञानिक बनाया जाय। इन विषयों में वैसे विषयवस्तु को शामिल किया जाय जो मानव के लिए उपयोगी हो। अगर इन उद्देश्यों को पूरा करता है तो विज्ञान से हमें डरने की आवश्यकता नहीं है बल्कि उसके तकनीक को मानवीकी विषय में प्रयोग करने की आवश्यकता है अर्थात इसी सम्मेलन के बाद अंतर विषयक अध्ययन पर अधिक जोर दिया जाने लगा। इसी अन्तर विषयक अध्ययन के फलस्वरूप भूगोल में मात्रात्मक क्रांति की शुरुआत हुई। भूगोल में इसके विकास के इतिहास को चार चरणों में बाँटकर अध्ययन करते हैं।
(1) प्रथम चरण (1950-58)
प्रथम चरण का काल 1950- 58 ई० तक रहा। इस चरण में जिफ, नेल्सन, बेरी, हार्टशोन और बंगी जैसे भूगोलवेतओं ने गणितीय एवं सांख्यिकीय तकनीक का प्रयोग किया। प्रथम चरण में अवलोकन विधि, प्रश्नावली विधि, अनुसूची विधि और प्रतिदर्श / नमूना विधि से प्राथमिक आँकड़े इक्कठे किये जाने लगे। प्राप्त आँकड़ों को वर्गीकृत एवं सारणीकरण किया जाने लगा। माध्य, माध्यिका, बहुलक, मानक विचलन इत्यादि का प्रयोग कर प्राप्त आकड़ों का सार संग्रह निकालने का प्रयास किया गया।
(2) दूसरा चरण (1956-68 ई०)
द्वितीय चरण में एकरमैन, बेरी, स्पीयर्स मैन और पीयरसन जैसे भूगोलवेताओं ने सांख्यिकी तकनीक का प्रयोग प्रारंभ किया। द्वितीय चरण में कोटि आकार सह संबंध रिग्रेशन, सूचकांक जैसे तकनीक का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया गया। इन तकनीकों के प्रयोग से भूगोल के विभिन्न घटकों के बीच सहसंबंध स्थापित कर तथ्यों का विश्लेषण किया जाने लगा।
(3) तीसरा चरण (1968-78 ई०)
तीसरा चरण में सोर्ले, हेगेट, इबान्स, इरासी, मॉर्स जैसे भूगोलवेताओं ने भौगोलिक तथ्यों की व्याख्या हेतु बहुचरण विश्लेषण विधि, नजदीकी पड़ोसी सांख्यिकी विधि जैसे तकनीक का प्रयोग हुआ।
(4) चौथा चरण (1978 के बाद से अब तक)
चौथा चरण में भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का प्रयोग अपने चरम अवस्था में पहुँच गया। इस चरण में भौगोलिक तथ्यों का विश्लेषण, वर्गीकरण, चित्र निर्माण करने में कम्प्यूटर, कृत्रिम उपग्रह, सुदूर संवेदन प्रणाली इंटरनेट, वायु फोटोग्राफी इत्यादि का प्रयोग किया जाने लगा। इन आधुनिक तकनीकों के माध्यम से प्राप्त किये गये आँकड़ों को विश्लेषण करने हेतु GIS (भौगोलिक सूचना तंत्र) का विकास किया गया है। ब्रिटिश भूगोलवेता डडले स्टम्प ने सही कहा है कि “वर्तमान समय में मात्रात्मक क्रांति का सुनहरा बछड़ा कम्प्यूटर है।”
भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का महत्व / प्रभाव
मात्रात्मक क्रांति के प्रयोग से भूगोल पर कई प्रकार के प्रभाव पड़े। जैसे:-
(1) मात्रात्मक कांति के प्रयोग से भूगोल में तार्किकता एवं वैज्ञानिकता का आगमन हुआ। इनके आगमन से भौगोलिक तथ्यों की वस्तुनिष्टता का आगमन हुआ।
(2) भूगोल में प्राथमिक आँकड़ों, संग्रहण, विश्लेषण और सार संग्रह निकला जाने लगा।
(3) मात्रात्मक क्रांति के पूर्व भूगोल का अध्ययन अनुभावाश्रित, वर्णात्मक और चित्रात्मक भा लेकिन मात्रात्मक कांति से भौगोलिक तथ्यों का अध्ययन प्रत्यक्ष रूप से किया जाने लगा। भूगोल में चित्र द्विआयामी से त्रिआयामी बनने लगे।
(4) भूगोलवेताओं में सांख्यिकी के ज्ञान होने के कारण इनकी माँग नियोजन एवं विकास कार्यों में होने लगा।
(5) सांख्यिकी के प्रयोग से भौगोलिक तथ्यों बीच सह-संबंध स्थापित कर उनका प्रदेशीकरण किया जाने लगा। जैसे- कृषि भूगोल में बीबर एवं डोई ने फसल संयोजन प्रदेश का निर्धारण किया। सांख्यिकी तथ्यों का प्रयोग कर अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रो० एम.एस. सफी ने भारत के फसल संयोजन का निर्धारण किया।
(6) मात्रात्मक क्रांति के प्रयोग से भूगोल में मॉडल का निर्माण, सिद्धांतों का निर्माण और परिकल्पनाओं का निर्माण किया जाने लगा। हैगेट एवं सोर्ले को मॉडल निर्माण का चैम्पियन कहा जाता है। बेबर महोदय ने औद्योगिक स्थानीयकरण का सिद्धांत सांख्यिकी के नियमों पर ही प्रस्तुत किया था।
(7) नगरीय भूगोल में जनसंख्या भूगोल में, आर्थिक भूगोल में, परिवहन भूगोल में, आपदा प्रबंधन में, मौसम पूर्वानुमान में आज सांख्यिकी विधियों का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा हैं।
आलोचना
मात्रात्मक क्रांति का कई भूगोलवेताओं ने आलोचना किया है। जैसे:-
(1) डडले स्टम्प महोदय ने कहा है कि भूगोल का अध्ययन वर्णात्मक एवं चित्रात्मक विधि से करना उपयुक्त है न कि मात्रात्मक विधि से अध्ययन किया जाना चाहिए।
(2) कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि मात्रात्मक क्रांति का प्रारंभ 1950 ई० से नहीं हुआ है बल्कि भूगोल में सांख्यिकी तथ्यों का प्रयोग इसके पूर्व काल से होता रहा है। हार्वे महोदय ने अपने पुस्तक Explanation in Geography में इसका आलोचना करते हुए कहा कि मात्रात्मक क्रांति अपने चरम अवस्था में पहुँच चुका है। अत: इसमें धीरे-2 ह्रास की प्रवृति प्रारंभ हो चुकी है।
(3) 1950 ई० में ‘आर्थिक भूगोल’ नामक पत्रिका USA से प्रकाशित होती थी। इस पत्रिका में बेरी महोदय ने सांख्यिकी के प्रयोग का समर्थन किया जबकि स्पेट महोदय ने आलोचना करते हुए कहा कि भूगोलवेताओं में सांख्यिकी सोच-विचार का अभाव होता है। ऐसे में अगर सांख्यिकी के कम जानकार व्यक्ति इसका प्रयोग करता है तो नाकारात्मक परिणाम आ सकते हैं।
(4) मात्रात्मक क्रांति के माध्यम से मानव के भावनात्मक पहलू, व्याहारिकतावाद, मानवतावाद, कल्याणकारी भूगोल के तथ्यों का विश्लेषण संभव नहीं है।
(5) वर्तमान समय में मात्रात्मक क्रांति वाहक कम्प्यूटर एवं इंटरनेट है। आज इनके माध्यम से सूचना प्रदूषण फैलाने का दौर प्रारंभ हो चुका है।
निष्कर्ष
इन सीमाओं के बाबजूद मात्रात्मक क्रांति एक वैज्ञानिक विषय बना दिया है। यह उपलब्धि कुछ खामियों के बावजूद क्रान्ति के समतुल्य है।
भूगोल में मात्रात्मक क्रांति पर उत्तर लिखने का दूसरा तरीका
भूगोल में मात्रात्मक क्रांति
(Quantitative Revolution in Geography)
(नोट: क्रांति = त्वरित परिवर्तन, उत्परिवर्तन = अचानक परिवर्तन, आंदोलन = मंद परिवर्तन)
प्रारूप
1. परिचय
2. मात्रात्मक क्रांति का उद्देश्य / लक्ष्य
3. मात्रात्मक क्रांति में प्रयुक्त तकनीक
3.1 विवराणात्मक तकनीक
3.2 अनुमोदनात्मक तकनीक
4. मात्रात्मक क्रांति का इतिहास
5. मात्रात्मक क्रांति का प्रभाव / महत्त्व
6. आलोचना
7. निष्कर्ष
1. परिचय
मात्रात्मक क्रांति दो शब्दों के मिलने से बना है। प्रथम-मात्रा और द्वितीय क्रांति। मात्रा का तात्पर्य गणित या सांख्यिकी ये है। जबकि क्रांति का तात्पर्य त्वरित परिवर्तन से है। अतः भूगोल में सांख्यिकी के आगमन से उसके तथ्यों में जो वैज्ञानिक एवं त्वरित परिवर्तन हुआ उस परिवर्तन को ही मात्रात्मक क्रांति कहते है।
द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व भौगोलिक तथ्यों के अध्ययन की विधि परम्परागत थी जिसके तहत भौगोलिक तथ्यों का अध्ययन अनुभव और मानचित्र के आधार पर किया जाता था। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मात्रात्मक क्रांति के आगमन ने भौगोलिक तथ्यों के अध्ययन की पद्धति को ही बदल दिया है। इस विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि मात्रात्मक क्रांति का स्रोत क्षेत्र गणित का उपभाग सांख्यिकी रहा है जबकि लक्ष्य क्षेत्र मानव भूगोल रहा है।
वस्तुतः द्वितीय विश्व के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराया गया बम न केवल दो नगरों पर गिराया गया बम था बल्कि सम्पूर्ण मानवीय चिंतन पर किया गया अद्यात था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मानविकी विषय के विद्वानों ने देखा कि अगर विज्ञान चाहे तो सम्पूर्ण दृष्टि का विनाश कुछ ही क्षण में कर सकता है। इस वैज्ञानिक और तकनीकी विकास पर आधारित चिन्तव ने विश्व के सभी सामाजिक विज्ञान के समक्ष उपयोगिता पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया।
अतः 1949 ई० में USA के प्रीस्टन विश्वविद्यालय ने सभी मानविकी एवं वैज्ञानिक विषयों से सम्बंधित विद्वानों का सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि मानविकी विषय को विज्ञान की विषय से डरना नहीं चाहिए बल्कि सामाजिक विज्ञान के विधितंत्र में परिवर्तन लाकर उसे वैज्ञानिक तथा विश्वसनीय बनाया जाना चाहिए। इसी निर्णय का परिणाम था कि मानव भूगोल में सांख्यिकी के तकनीक के उपयोग पर जोर दिया गया और भूगोल को ‘अन्तरविषयक’ विषय बनाने का प्रयास किया गया।
भूगोल में मात्रात्मक तकनीक का प्रयोग करने का प्रथम श्रेय अमेरिकी भूगोलवेता जे.के.जिफ को जाता है क्योंकि इन्होंने ही 1949 ई० में सांख्यिकी के ‘कोटि-आकार-सह-संबंध‘ तकनीक का प्रयोग कर यू.एस.ए. के नगरों का अध्ययन किया।
2. भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का प्रमुख उद्देश्य / लक्ष्य
(i) वर्णात्मक भूगोल को वैज्ञानिक बनाना।
(ii) भौगोलिक तथ्यों की वैज्ञानिक तथा तार्किक व्याख्या करना।
(iii) साहित्यिक भाषा की जगह गणितीय भाषा का उपयोग।
(iv) अवस्थिति वर्ग के बारे में परिशुद्ध कथन करना।
(vi) परिकल्पना के लिए मॉडल, नियमों तथा सिद्धांतों का सूत्रण करना।
(vii) भूगोल की क्रिया पद्धति को वस्तुनिष्ठ तथा वैज्ञानिक बनाना।
3. मात्रात्मक क्रांति में प्रयुक्त तकनीक
मानव भूगोल में मात्रात्मक क्रांति से संबंधित अपनायी तकनीक को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
3.1 विवराणात्मक तकनीक
इसमें सामाजिक-आर्थिक आंकडों का संग्रह कर निष्कर्ष निकाला जाता है और उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। यह औसत, माध्य, माध्यिका, बहुलक, अपसरण, मानक विचलन जैसे सांख्यिकीय तकनीक पर किया जाता है।
3.2 अनुमोदनात्मक तकनीक
इस तकनीक के द्वारा मानव भूगोल में विकसित किया गया सिद्धांत या परिकल्पना की वैज्ञानिक जाँच की जाती है। जैसे: इसके लिए सिम्पल रिग्रेशन (प्रतिगमन), लीनियर रिग्रेशन, संभाव्यता (Probability) जैसे तकनीक प्रयोग करते हैं।
4. भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का इतिहास
भूगोल में मात्रात्मक क्रांति का विकास अचानक नहीं हुआ बल्कि कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद हुआ है।
चरण | काल | प्रयुक्त सांख्यिकीय तकनीक | प्रमुख विद्वान एवं एजेंसी |
पहला | 1950-58 | नमूना विधि, मानक विचलन, माध्य, माध्यिका, बहुलक | बेरी, बंगी, हार्टशोन, जिफ, हार्वे, एकरमैन एवं नेल्सन |
दूसरा | 1958-68 | को-रिलेशन, रिग्रेशन, सूचकांक | बेरी, स्पीयर्समैन, पीयर्सन |
तीसरा | 1968-78 | बहुचर विधि, विश्लेषण विधि, नजदीकी पड़ोसी सांख्यिकी विधि | चोर्ले, हैगेट, इबान्स, मोसर, एल.सी.किंग, इराशी, स्कॉट |
चौथा | 1978 से अबतक | कम्प्यूटर, GIS, एरियल फोटोग्राफी पर आधारित तकनीक IRS | नासा, इसरो, यूरोपीय स्पेस एजेंसी |
5. मात्रात्मक क्रांति का प्रभाव एवं महत्व
भूगोल में मात्रात्मक क्रांति के आगमन से कई प्रकार के प्रभाव पड़े। जैसे:
(i) भूगोलवेता स्वंय प्राथमिक आंकड़ों का संग्रहण तथा उसका विश्लेषण करने लगे।
(ii) मानव भूगोल में कई नवीन सिद्धांत, परिकल्पना एवं मॉडल का विकास किया गया।
(iii) मात्रात्मक क्रांति ने मानव भूगोल को एक वैज्ञानिक विषय बना दिया।
(iv) भूगोलवेताओं में सांख्यिकी का ज्ञान होने के कारण नियोजन के कार्यों में इनकी माँग बढ़ गयी।
(v) मानचित्र के गुणों एवं स्तर में वृद्धि हुई।
(vi) प्रदेश एवं नगरों का वर्गीकरण, प्रादेशिकरण एवं नियोजन में वैज्ञानिकता का आगमन हुआ।
(vii) जटिल आर्थिक-सामाजिक चरो विश्लेषण कर भूगोल में भविष्यवाणी की जाने लगी।
(viii) भूगोल में ‘रैंक साइज’ नियम के आधार पर जनसंख्या भूगोल, नगरीय भूगोल का अध्ययन किया गया।
(ix) स्टैण्डर्ड डिविएशन के आधार पर बीबर एवं डोई ने फसल संयोजन, केन्द्रीय स्थल सिद्धांत और कई स्थानीयकरण के सिद्धांत विकसित किये गये।
6. आलोचना
मात्रात्मक क्रांति ही आलोचना कई भूगोलवेताओं द्वारा की गई है। जैसे:-
(i) स्पेट महोदय ने कहा कि एक भूगोलवेता में सांख्यिकी पर आधारित सोच और विचार का अभाव होता है। ऐसी स्थिति में अगर वह प्रयोग करता है तो परिणाम गलत आ सकते हैं।
(ii) डडले स्टाम्प महोदय ने इसका आलोचना करते हुए कहा है कि “कम्प्यूटर मात्रात्मक क्रांति का सुनहला बछड़ा है।” पुन: उन्होंने कहा कि भूगोल के परम्परागत तकनीक ही सर्वोत्तम तकनीक है।
(iii) व्यावहारवादियों ने इसका आलोचना करते हुए कहा है कि मात्रात्मक क्रांति भावात्मक पहलू एवं मानवीय मूल्यों के विश्लेषण करने में सक्षम नहीं हैं।
(iv) हार्वे महोदय ने कहा कि मात्रात्मक क्रांति अपने चरम अवस्था को प्राप्त कर चुका है। अब धीरे-2 इसमें ह्रास की प्रवृत्ति देखी जा रही है।
7. निष्कर्ष
उपरोक्त सीमाओं के बावजूद मात्रात्मक क्रांति ने मानव भूगोल को एक वैज्ञानिक विषय बनाने में अभूतपूर्व योगदान दिया है। अवः भूगोल में विकसित अन्य चिन्तन को इसकी आलोचना न कर इसके विश्लेषणात्मक क्षमता को देखा जाना चाहिए।