10. नकारात्मक विचारों से कैसे उबरें?
10. नकारात्मक विचारों से कैसे उबरें?
नकारात्मक विचारों से कैसे उबरें?
यह तो नकारात्मक विचारों का प्रभाव हुआ। अतः आप नकारात्मक विचारों को अपने पर हावी न होने दें। जब कभी आपको लगे कि आप पर नकारात्मक विचारों का आक्रमण हो रहा है, तब आप तत्काल सावधान हो जाएं। नकारात्मक विचारों को हटाने के एक-दो सुझाव प्रस्तुत हैं-
1. आप दो-चार गहरा श्वास लें और छोड़ें। इन श्वासों का अनुभव करें। तदुपरांत आंखें बंद कर लें और आते-जाते श्वासों को गहराई से अनुभव करें। श्वासों से भली प्रकार जुड़ जाएं। आपके मन की आंखों को धोखा देकर एक भी श्वास आने-जाने न पाए। आप सावधानीपूर्वक हर आते-जाते श्वास का अनुभव और आनंद लें। यदि कोई विचार आपको परेशान कर रहा हो तो आत्मविश्वास के साथ मन को आदेश दे, ऐ मन! चुप हो जाओ। शांत हो जाओ। अभी मैं आनन्द सरोवर में तैराकी कर रहा हूं। ॐ शांति! ॐ आनंद! ॐ प्रसन्नता! ॐ आह्लाद !
2. नकारात्मक भाव संवेग यथा-क्रोध, चिढ़, द्वेष, नफरत, क्षोभ, आक्रोश आदि पर नियंत्रण भी जरूरी है। आप सावधान रहें कि ये दुष्ट संवेग आपके भीतर प्रवेश न कर पाएं और यदि प्रवेश कर भी जाएं तो ठहर न पाएं। इसके लिए एक दो पहलू पर ध्यान दें। याद रखें, सभी व्यक्तियों की सोच, रूचि व आदतें भिन्न-भिन्न होती है। अतः जो जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार करें। यदि आप उसकी सोच या आदतों पर अपने विचार थोपने का प्रयत्न करेंगे तो वह कुछ ऐसा कह सकता है, जिससे आप क्षुब्ध हो जाएं। अतः शांति और रिश्तों में मधुरता के लिए शांत मौन ही बेहतर है।
3. दूसरों के अपशब्दों को नजर अंदाज करना सीखे, इससे व्यर्थ के कलह-अशांति से सहज ही बच जाएंगे।
4. जहां तर्क-वितर्क में बहसा-बहसी की संभावना हो रही हो तो वहां से कुछ समय के लिए हट जाएं, इससे नकारात्मक भाव-संवेगों से आपका बचाव हो सकेगा।
5. नकारात्मक भाव-संवेगों के उभार पर भी आप हिम्मत न हारें, इससे मुक्त होने के लिए आप अपने ध्यान को अन्यत्र लगाने का प्रयास करें। नाक से लम्बा श्वास लेकर झटके के साथ मुंह से श्वास फेंक दें। ऐसा आठ-दस बार करें।
6. जहां जाने से, जिसके साथ रहने से, जिसकी बात सुनने से तनाव बढ़ता हो, वहां से नम्रतापूर्वक दूरी बनाए रखना ही बुद्धिमत्ता है।
7. याद रखें, दुख – तनाव अभाव में कम और स्वभाव में अधिक होता है। स्वभाव को विधेयक बनाएं और दुख-तनाव से मुक्ति पाएँ।
8. चिंता या तनाव के उद्रेक में किसी पुरानी और आनंददायक घटना या बात याद करें। ऐसा अनुभव करें, जैसे वह वर्तमान में ही घटित हो रही है। घटना इस तरह सिलसिलेवार याद करें कि चिंता-तनाव का मन में प्रवेश पाना असम्भव हो जाए।
9. तनाव का अहसास होते ही श्वासों के साथ प्रभु सुमिरण में लग जाएं। प्रभु की स्नेहिल छत्रछाया सदैव आपके सिर पर है, इसे बार-बार बोलें और इसका अनुभव करें। जैसे प्रह्लाद के सिर पर नरसिंह भगवान बड़े ही प्रेम और ममता से अपना हाथ फेरे थे, उसी तरह दयालु प्रेमिल प्रभु बड़े ही लाड़-दुलार से आपके सिर पर हाथ फेर रहे हैं, इसे अनुभव कर भावविभोर हो जाएं। ज्ञान, वैराग्य, भक्ति भरा कोई भजन गुनगुनाने लगें।
कहा भी गया है-
महाविपत्तौ संसारे यः स्मरन्मधुसूदनम्।
विपत्तौ तस्य सम्पत्तिर्भवेदित्याह शंकरः।। देवी भा. पु. ९/४०/४१
अर्थात् ‘जो पुरुष महाविपत्ति के अवसर पर भगवान का स्मरण करता है, उसके लिए वह विपत्ति संपत्ति हो जाती है, ऐसा शंकर जी का वचन है।’
स्रोत: चिंता क्यों ?