Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

GEOGRAPHY OF INDIA(भारत का भूगोल)

5. Trade Balance and Trade Policy (व्यापार संतुलन एवं व्यापार नीति)

Trade Balance and Trade Policy

(व्यापार संतुलन एवं व्यापार नीति)



      उत्पादों का उत्पादनकर्ताओं के द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुंचाने की प्रक्रिया को व्यापार कहते हैं। व्यापार तृतीय क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। व्यापार का कार्य स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर सम्पन्न होते हैं। मोटे तौर पर व्यापार को दो भागों में बाँटते है।:-

(1) देशी व्यापार और

(2) विदेशी व्यापार।

       जब कोई उत्पाद विदेशों में भेजा जाता है तो उसे निर्यात कहते हैं और जब विदेशों से कोई वस्तु/उत्पाद देश में मंगायी जाती है तो उसे आयात कहते हैं। आयात एवं निर्यात के रूप में उत्पाद किसी वस्तु या सेवा के रूप में हो सकता है। आयात और निर्यात से संबंधित सभी आँकड़े बंदरगाहों एवं एयरपोर्ट पर रिकॉर्ड किये जाते हैं और उसका मौद्रिक मूल्य में तब्दील किये जाते हैं।

      व्यापार में प्रयुक्त होने वाले वस्तु जो हमें दिखाई देते हैं उन्हें दृश्य वस्तु कहते हैं। वस्तुओं को छोड़‌कर सेवा क्षेत्र जो कि हमें दिखाई नहीं देते हैं उसे अदृश्य मद कहते हैं। जब किसी देश के निर्यात और आयात की मौद्रिक मूल्य बराबार होता है तो उसे व्यापार संतुलन कहते हैं। जब निर्यात अधिक और आयात कम होता है तो उसे अनुकूल व्यापार कहते है। इसी तरह निर्यात कम हो और आयात ज्यादा हो तो उसे प्रतिकूल व्यापार कहते हैं।

     आजादी के पूर्व भारत में अनुकूल व्यापार की स्थिति थी जबकि आजादी के बाद से प्रतिकूल व्यापार की स्थिति रही है। संतुलित व्यापार एक आदर्श स्थिति है जिसे सभी राष्ट्र प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। नीचे के तालिका में विदेशी व्यापार से संबंधित आँकड़े प्रस्तुत किये जा रहे हैं। जैसे:-

वर्ष निर्यात (करोड़ रू० में) आयात (करोड़ रू० में) कुल व्यापार (करोड़ रू० में) व्यापार घाटा (करोड़ रू० में)
1950-51 606 608 1214 -2
1960-61 642 1122 1764 -480
1970-71 1535 1634 3169 -99
1980-81 6710 12549 19259 -99
1990-91 32558 43193 75751 -10635
2000-01 203571 230873 434444 -27302
2005-06 45798 630527 1085444 -175727

स्रोत- योजना 2008, जून-जुलाई

     ऊपर के तालिका से स्पष्ट है कि भारत में आजादी के बाद से कभी भी व्यापार संतुलन की स्थिति नहीं रही है। भारत सरकार व्यापार संतुलन की स्थिति प्राप्त करने के लिए समय-समय पर कई उपाय करती रही है। जैसे-

(1) मुद्रा का अवमूल्यन,

(2) मुद्रा के विनिमय पर नियंत्रण,

(3) मुद्रा के संकुचन एवं विस्तार,

(4) राजकोषीय घाटे से कम करना,

(5) निर्यात को बढ़ावा देने हेतु EPZ और SEZ की स्थापना,

(6) आयात पर नियंत्रण,

(7) पर्यटन का विकास,

(8) विदेशी ऋण एवं सहायता लेना,

(9) समय-2 प व्यापार नीति की घोषणा।

व्यापार नीति

    भारतीय व्यापार विभिन्न प्रकार के अधिनियमों एवं नियमों के द्वारा निर्देशित होता है। भारत सरकार के पहली आयात-निर्यात नीति (Exim Policy/Trade Policy) अर्थात् एक्जिम नीति तत्कालीन वाणिज्य मंत्री श्री वी.पी. सिंह ने 12 अप्रैल, 1985 को घोषणा की। इस नीति की तीन प्रमुख विशेषता थी-

(1) औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए भारतीय उद्योगों की कच्चे माल, उच्च तकनीकी, यंत्रों एवं पूँजी तक पहुँच सुनिश्चित करना था।

(2) उद्योगों के आधुनिकीकरण एवं तकनीकी संवर्धन को बढ़ावा देना।

(3) भारतीय उद्योगों को उत्तरोत्तर (लगातार) अन्तरर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाना।

      वर्तमान समय में 31 अगस्त 2004 को घोषित आयात-निर्यात नीति के तहत विदेशी व्यापार संचालित हो रहा है। भारत सरकार भारत को विश्व स्तर पर एक प्रमुख निर्यातक देश के रूप में स्थापित करना चाहती है। अत: 2004 की व्यापार नीति में व्यापक दृष्टिकोण समाहित करते हुए “पंचवर्षीय (2004-09) नीति” की घोषणा की थी। इस नीति के प्रमुख तथ्य निम्नलिखित थे-

(1) अगले 5 वर्षों में वस्तुगत व्यापार को बढ़ाकर दुगुना करना है।

(2) विदेशी व्यापार को आर्थिक विकास और रोजगार सृजन का प्रभावी हाथियार बनाया जायेगा।

(3) उपरोक्त उद्देश्यों के पूर्ति हेतु निमलिखित रणनीति पर कार्य की जायेगी-

(ⅰ) विभिन्न प्रकार के नियंत्रणों को समाप्त कर उद्योगपतियों और व्यापारियों की आन्तरिक उद्यमशीलता को प्रोत्साहित किया जायेगा।

(ii) विदेशी व्यापार से जुड़े सभी कार्यों को सरलीकृत किया जायेगा।

(iii) निर्यात लागत को कम किया जायेगा।

(iv) भारत को विनिर्माण, व्यापार और सेवाओं का वैश्विक केंद्र बनाया जयेगा।

(v) वैसे क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जायेगा जो ग्रामीण एवं अर्द्धनगरीय क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा दे सकेंगें।

(vii) देश के व्यापार को विश्व स्तरीय प्रतिस्पर्द्धी बनाया जायेगा।

(viii) तकनीक, पूँजी और आधुनिक यंत्रों के आयात को बढ़ावा दिया जायेगा।

(ix) घरेलू व्यापार को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न देशों से मुक्त व्यापार समझौता एवं अधिमान्य व्यापार समझौता के द्वारा व्यापार घाटा पाटने का प्रयास होगा।

(x) व्यापार बोर्ड की भूमिका को पुनः परिभाषित की जायेगी।

(xi) देश की निर्यात रणनीति के निष्पादन में भारतीय दूतावासों की भूमिका सुनिश्चित की जायेगी तथा इलेक्ट्रॉनिक्स माध्यमों का अधिक से अधिक प्रयोग किया जा सकेगा।

     ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में घोषित व्यापार नीति में कई उल्लेखनीय तथ्यों को शामिल किया गया है। वर्तमान समय में इन नीतियों का व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। इसके पीछे मंदी का दौर/आर्थिक मंदी को उत्तरदायी ठहराया जा रहा है। मंदी समाप्त होते ही भारतीय व्यापार पर इसका सारात्मक प्रभाव अवश्य पड़ेगा।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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