Unique Geography Notes हिंदी में

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ECONOMIC GEOGRAPHY (आर्थिक भूगोल)

22. Primary, Secondary, Tertiary and Quaternary Economic Activities of Humans (मानव के प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक एवं चतुर्थक व्यवसाय)

Primary, Secondary, Tertiary and Quaternary Economic Activities of Humans

(मानव के प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक एवं चतुर्थक आर्थिक गतिविधियाँ)



Q. मानव के प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक एवं चतुर्थक आर्थिक गतिविधियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- मानव अपनी मूलभूत और उच्चतर आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ करता है। इन क्रियाओं द्वारा मानव की आर्थिक प्रगति होती है। मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं पर भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है। चूंकि पृथ्वी सतह पर भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण में क्षेत्रीय विभिन्नता विद्यमान है, अतः मानव की आर्थिक क्रियाओं में भी क्षेत्रीय विभिन्नता पाई जाती है।

     उदाहरण के लिए वनों में मानव एकत्रीकरण या संग्रहण, आखेट एवं लकड़ी काटने जैसे आर्थिक क्रियाएँ सम्पन्न करता है तो घास के मैदानों में पशुचारण, उपजाऊ समतल मैदानी भागों में कृषि, खनिजों की उपलब्धि वाले क्षेत्रों में खनन, जल की उपलब्धि वाले क्षेत्रों में मत्स्याखेट जैसी आर्थिक क्रियाएँ करता है। साथ ही अनुकूल अवस्थिति वाले क्षेत्रों में विनिर्माण उद्योगों, परिवहन, व्यापार एवं सेवाओं से सम्बन्धित आर्थिक गतिविधियों में भी संलग्न रहता है।

     मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं या गतिविधियों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, यद्यपि ये चारों वर्ग एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं:

1. प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupation):-

       प्राथमिक व्यवसाय पूर्णतः प्रकृति पर आश्रित होते हैं। प्राथमिक व्यवसायों के संचालन हेतु अपेक्षाकृत विस्तृत क्षेत्र की आवश्यकता होती है। वनों से संग्रहण, आखेट, लकड़ी काटना घास के मैदानों में पशु चराना, पशुओं से दूध, मांस, खालें, आदि प्राप्त करना, समुद्रों, नदियों एवं झीलों से मछली पकड़ना, कृषि तथा खानों से खनिज निकालना, आदि प्रमुख प्राथमिक व्यवसाय हैं।

     विश्व के विकासशील देशों में कार्यशील जनसंख्या का अधिकांश भाग प्राथमिक व्यवसायों में लगा हुआ है और विकसित देशों में कार्यरत जनसंख्या का अधिकांश भाग तृतीयक एवं चतुर्थक व्यवसायों में कार्यरत है।

  भारत में 60 प्रतिशत, चीन में 50 प्रतिशत, इथोपिया में 80 प्रतिशत, नाइजीरिया में 70 प्रतिशत जनसंख्या प्राथमिक व्यवसायों में लगी हुई है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में 8 प्रतिशत, ग्रेट ब्रिटेन में 1 प्रतिशत, जापान में 5 प्रतिशत जनसंख्या ही प्राथमिक व्यवसायों में संलग्न है।

2. द्वितीयक व्यवसाय (Secondary Occupation):-

    द्वितीयक या गौण व्यवसाय में वे सभी प्रकार के विनिर्माण उद्योग सम्मिलित किए जाते हैं जो प्राथमिक व्यवसायों जैसे- कृषि, खनन, पशुपालन, मत्स्य संग्रहण, लकड़ी काटना, आदि से प्राप्त उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त कर मशीनी प्रक्रिया द्वारा उसे तैयार माल में बदलते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा गौण व्यवसाय कच्चे माल के स्वरूप में परिवर्तन करते हैं, उसके मूल्य में वृद्धि करते हैं और उसकी उपयोगिता को बढ़ा देते हैं।

     उदाहरण के लिए कृषि से प्राप्त गन्ना गौण व्यवसाय के लिए कच्चा माल है, मशीनी प्रक्रिया द्वारा गन्ने से चीनी बनाई जाती है। इस प्रकार गन्ने का स्वरूप भी परिवर्तित हो जाता है, गन्ने से शक्कर बनने पर उसके मूल्य और उपयोगिता में वृद्धि हो जाती है।

     इसी प्रकार लौह अयस्क का खनन प्राथमिक व्यवसाय है, लेकिन लोहा-इस्पात का निर्माण गौण व्यवसाय है। विभिन्न प्रकार के उद्योग एक-दूसरे के निकट स्थापित हो जाते हैं, क्योंकि एक उद्योग का तैयार माल दूसरे उद्योग के लिए कच्चा माल हो सकता है। उदाहरण के लिए लौह इस्पात उद्योग अनेक प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योगों को विकसित कर सकता है।

     उद्योगों का विकास कच्चे माल, शक्ति, श्रमिक, पूंजी और तैयार माल के लिए बाजार की उपलब्धि पर निर्भर है। इन कारकों के अलावा परिवहन और संचार की सुविधाएं, कच्चे माल और शक्ति का लागत मूल्य, श्रमिकों का वेतन तथा तैयार माल का लागत मूल्य भी उद्योगों की स्थापना और विकास में महत्वपूर्ण आर्थिक कारक है।

     किसी देश में गौण व्यवसायों में कितनी विविधता है तथा उन व्यवसायों में कितने लोग काम करते हैं, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश में औद्योगिक विकास कितना हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस, इटली, ग्रेट ब्रिटेन, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, आदि देशों में प्राथमिक व्यवसायों की तुलना में गौण व्यवसायों में अधिक लोग काम करते हैं।

     उद्योगों में कार्यरत लोगों की संख्या, उपयोग में आने वाली यान्त्रिक शक्ति तथा निर्मित उत्पादों के मूल्य के आधार पर उद्योग तीन प्रकार के होते हैं यथा- वृहत् उद्योग, लघु उद्योग और कुटीर उद्योग।

     दस्तकार स्थानीय पदार्थों का उपयोग करके दस्तकारी की वस्तुएं बनाते हैं। हथकरघा, बुनकर, टोकरी बनाने वाले, कालीन बनाने वाले, आदि गौण व्यवसायों में लगे हैं। इन गौण व्यवसायों को कुटीर उद्योग कहते हैं। कुटीर उद्योग की प्रत्येक इकाई में लोग कम संख्या में काम करते हैं और इनमें यांत्रिक शक्ति का प्रयोग नहीं होता है।

    लघु उद्योग यांत्रिक शक्ति का उपयोग करते हैं। ये उद्योग बड़े उद्योगों के लिए पुर्जे भी बनाने हैं। इलेक्ट्रोनिक वस्तुएं बनाने वाली औद्योगिक इकाइयां जैसे- रेडियो, टी. वी. सेट, प्लास्टिक की वस्तुएं, सामान्यतः लघु उद्योगों की श्रेणी में आते हैं।

Tertiary and Quaternary Economic
प्लास्टिक की वस्तुएं

     वृहत् उद्योगों में सैकड़ों लोग काम करते हैं और इनमें करोड़ों रुपए की पूंजी लगी हुई होती है। इनमें से कुछ उद्योग जैसे मोटर कार उद्योग या दुपहिया वाहन उद्योग अधिक उत्पादन के लिए एसेम्बली लाइन तकनीक का उपयोग करते हैं। एसेम्बली लाइन में अलग-अलग स्थानों पर कच्चे पदार्थ तथा विविध पुर्जों को जोड़ने का कार्य होता है।

     एसेम्बली लाइन पर जैसे-जैसे निर्माणाधीन वस्तु आगे सरकती है, प्रत्येक श्रमिक कोई निश्चित काम करता है, फिर दूसरी निर्माणाधीन वस्तु में वह वही काम करता है। इस तरह अन्त तक पहुंचते-पहुंचते वस्तु का निर्माण पूरा हो जाता है और इस प्रकार एसेम्बली लाइन में से निर्मित वस्तु बाहर निकलती है। इस विधि में प्रत्येक श्रमिक किसी एक काम में विशेष दक्ष होता है, जिसे वह बार-बार दोहराता है। निर्माण उद्योगों के परिणामस्वरूप प्राथमिक व्यवसायों जैसे- कृषि, खनन, मत्स्य ग्रहण, आदि में भी मशीनों का खूब प्रयोग होने लगा है।

3. तृतीयक व्यवसाय (Tertiary Occupation):-

      तृतीयक व्यवसायों में समाज को दी जाने वाली व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक सेवाएं सम्मिलित हैं। इस व्यवसाय को सेवा श्रेणी भी कहा जाता है। सामान्यतः विकास की प्रक्रिया का एक निश्चित क्रम होता है। प्रारम्भ में प्राथमिक व्यवसायों की प्रधानता होती है। इसके बाद गौण व्यवसायों का महत्व बढ़ता है तथा अन्त में तृतीयक और चतुर्थक व्यवसाय महत्वपूर्ण बन जाते हैं।

    तृतीयक व्यवसायों के अन्तर्गत समाज को प्रदान की जाने वाली सेवाओं में रेल, सडक, जहाज, वायुयान, सेवाएं, डाक-तार सेवाएं, दूरदर्शन, रेडियो, फिल्म, साहित्य, कानूनी सेवाएं, जनसम्पर्क और परामर्श, विज्ञापन, वित्त, बीमा, थोक और फुटकर व्यापार, मरम्मत के कार्य जैसी सेवाएं, स्थानीय, राज्यीय, राष्ट्रीय प्रशासन, पुलिस, सेना और अन्य जन सेवाएं तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं उल्लेखनीय हैं।

     उद्योगों के विकास के साथ-साथ नगरीय जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की सेवाओं की मांग में भी वृद्धि हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में लोग तृतीयक व्यवसायों में संलग्न हैं।

     विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में कार्यरत जनसंख्या का अधिकांश भाग सेवाओं में लगा हुआ है। उदाहरण के लिए जापान में 70 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया में 73 प्रतिशत, कनाडा में 74 प्रतिशत, जर्मनी में 64 प्रतिशत कार्यशील लोग तृतीयक व्यवसायों में संलग्न हैं जबकि भारत में 23 प्रतिशत और चीन में 28 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या ही तृतीयक व्यवसायों में लगी हुई है।

    विकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय के बढ़ने से विभिन्न प्रकार की सेवाओं विशेषकर मनोरंजन, परिवहन और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्राथमिक एवं गौण व्यवसायों में काम करने वाले लोगों की भांति तृतीयक व्यवसायों में सेवारत लोगों के कार्य भी महत्वपूर्ण हैं। प्राथमिक और गौण व्यवसायों में लगे लोग, समाज के लिए आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं और तृतीयक व्यवसायी समाज को विभिन्न सेवाएं प्रदान करते हैं।

4. चतुर्थक व्यवसाय (Quaternary Occupation):-

       वर्तमान समय में मानव के आर्थिक क्रियाकलाप दिनोंदिन बहुत ही विशिष्ट और जटिल होते जा रहे हैं। फलतः मानव की कानून, वित्त, शिक्षा, शोध और संचार से जुड़ी उन आर्थिक गतिविधियों को जो सूचना (information), सूचना के संग्रहण, (Acquisition), सूचना के संसाधन, (Manipulation) और सूचना के प्रसारण (Transmission) से सम्बन्धित है, को चतुर्थक व्यवसाय के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है।

    वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देशों में और विशेषकर विकसित देशों में चतुर्थक व्यवसाय में संलग्न लोगों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस व्यवसाय के लोगों में उच्च वेतनमान और पदोन्नति की चाह में गतिशीलता अधिक पाई जाती है।

    कम्प्यूटर के बढ़ते प्रयोग और सूचना प्रौद्योगिकी ने इस व्यवसाय के महत्व को बहुत बढ़ा दिया है। परिणामस्वरूप औद्योगिक समाज के तकनीकी तत्वों में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ गया है और वर्तमान आर्थिक क्रियाकलाप मुख्य रूप से उन अप्रत्यक्ष उत्पादों से प्रभावित हो गए हैं जिनके उत्पादन में ज्ञान, सूचना और संचा अधिक महत्वपूर्ण है।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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