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16. MAJOR PRESSURE BELTS OF THE WORLD / विश्व की प्रमुख वायुदाब पेटियाँ

16. MAJOR PRESSURE BELTS OF THE WORLD

(विश्व की प्रमुख वायुदाब पेटियाँ)



विश्व की प्रमुख वायुदाब पेटियाँ⇒

           धरातल पर इकाई क्षेत्रफल पर वायु द्वारा लगाया जाने वाला बल को वायुदाब कहते है। धरातल पर औसतन 1013 mb वायुदाब लगता है। विश्व में सर्वाधिक वायुदाब साईबेरिया में स्थित बैकाल झील के ऊपर मापा गया है और सबसे कम वायुदाब उत्तरी अमेरिका में आने वाले टॉरनेडो चक्रवात के केंद्र में मापा गया है। अत: इससे स्पष्ट होता है कि निम्न वायुमंडलीय क्षेत्र में सभी जगह वायुदाब परिस्थितियाँ एक सामान नहीं है। वायुदाब की विषमता मुख्यतः तीन कारणों से उत्पन्न होती है-

1. सूर्य का तलीय प्रभाव

2. कोरियालिसिस प्रभाव

3. स्थलमंडल और जलमंडल के वितरण में विषमता

         ये तीनों कारकों के कारण ही वायुदाब में विषमताएँ उत्पन्न होती है फिर भी ये अक्षांशीय विस्तार को बनाये रखते है। जलवायुवेताओं ने वायुदाब का अध्ययन कर यह बतलाया है की वायुदाब पेटी दो प्रकार के होते है–

(A) निम्न वायुदाब पेटी

1. विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी

2. उ० गोलार्द्ध की उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी

3. द० गोलार्द्ध की उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी

(B) उच्च वायुदाब पेटी 

1.  उ० गोलार्द्ध की ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी 

2.  उ० गोलार्द्ध की उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पेटी

3.  द० गोलार्द्ध की ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी

4.. द० गोलार्द्ध की उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पेटी

MAJOR PRESSURE BELTS

         उपरोक्त वर्गीकरण से स्पष्ट है कि पुरे पृथ्वी पर कुल सात वायुदाब पेटी मिलते हैं जिसमें तीन निम्न और चार उच्च वायुदाब पेटी है। इनका वितरण उपरोक्त चित्र में देखा जा सकता है।

विश्व की प्रमुख वायुदाब प

विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी

        इसका विस्तार 5°N से 5°S के बीच विषुवतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यहाँ प निम्न वायुदाब का प्रमुख कारण सालों भर सूर्य के लम्बवत किरण पड़ने के कारण उच्च तापमान का होना है। इसके परिणाम यह होता है कि दोनों गोलार्द्धों से आने वाली हवा प्रारंभ में आपस में मिलकर अंतरउष्ण अभिसरण (डोलड्रम/शांत पेटी) का निर्माण करती है। उसके बाद सूर्य के तापीय प्रभाव के कारण वायु गर्म होकर ऊपर उठने की प्रवृति रखती है जिससे संवहन तरंग का निर्माण होता है और अंतत: स्थायी निम्न वायुदाब क्षेत्र का निर्माण होता है।

उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पेटी

           इसका विस्तार दोनों गोलार्द्धों में 30° से 35° अक्षांश के बीच हुआ है। इसके उत्पत्ति के दो प्रमुख कारण है-

(i) तुलनात्मक दृष्टि से इस क्षेत्र में कोरियालिसिस प्रभाव और सूर्य के तापीय प्रभाव कम होना है।

(ii) विषुवतीय प्रदेश और उपध्रुवीय प्रदेश से उठने वाली वायु उपरी वायुमंडल में क्षैतिज हो जाती है और ठंडा होकर पुन: इस प्रदेश में बैठने की प्रवृति रखती है। जिसके कारण उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पेटी का निर्माण होता है।

उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी

       इसका निर्माण दोनों गोलार्द्धों में 60° से 65° अक्षांश के बीच हुआ है। इसकी उत्पत्ति का प्रमुख कारण पृथ्वी का घूर्णन गति या कोरियालिसिस प्रभाव है। कोरियालिसिस प्रभाव के कारण पृथ्वी के सतह से सटे वायु के कण ऊपर की ओर ऊठने की प्रवृति रखती है। इसका सर्वाधिक प्रभाव मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में (खासकर 60° से 65°) के बीच होता है।

ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी   

         इसका विस्तार दोनों गोलार्द्धों में 70° से 90° अक्षांश के बीच हुआ है। इसके उत्पत्ति के दो प्रमुख कारण है-

◆ ध्रुवीय क्षेत्रों में सालोंभर तापमान का निम्न होना।

◆ उपध्रुवीय क्षेत्र से ऊपर उठने वाली वायु का पुन: 70° से 90° के बीच बैठना।

वायुदाब पेटी में मौसमी संशोधन         

        यद्धपि ऊपर में बतलाये गए सभी वायुदाब की पेटियाँ स्थायी प्रकृति की होती है। लेकिन सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन होने से थोड़ा बहुत अक्षांशीय खिसकाव भी होती है। सामान्तय: यह खिसकाव 2° से 7° अक्षांश तक होता है। लेकिन उत्तरी गोलार्द्ध में यह खिसकाव मौसमी विशेषताओं के दृष्टिकोण से अधिक महत्पूर्ण है। उ० गोलार्द्ध में स्थल एवं जल के असमान वितरण के कारण विरूपित हो जाती है। जबकि द० गोलार्द्ध में जलमंडल के समान वितरण के कारण अपने अक्षांशीय स्थिति को बनाये रखते है।

      उ० गोलार्द्ध में जब गर्मी की ऋतू होती है तो विषुवतीय वायुदाब पेटी उत्तर की ओर खिसकर स्थलीय भागों में 30°N से 35°N अक्षांश के बीच चली आती है। अर्थात सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप और द०पू०, द० USA निम्न वायुदाब क्षेत्र में बदल जाते है जिसके कारण यहाँ कई मौसमी, स्थानीय और चक्रवातीय वायु का निर्माण होता है।

        शीत ऋतु में सूर्य दक्षिणायन हो जाता है जिसके कारण उ० गोलार्द्ध की सभी वायुदाब पेटियाँ दक्षिण की ओर खिसकने की प्रवृति रखती है। तिब्बत के पठार के अत्यधिक ऊँचाई होने के कारण सम्पूर्ण चीन और साइबेरिया ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी में बदल जाती है। और उपोष्णकटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र जाफना प्रायद्वीप के पास पहुँच जाती है। तिब्बतीय क्षेत्र में ध्रुवीय उच्च वायुदाब क्षेत्र के बनने से बुरान,पुर्गा जैसे स्थानीय हवा का जन्म होता है।

       लेकिन द० गोलार्द्ध में इस तरह का कोई परिवर्तन नहीं होता है। 30°S से 35°S अक्षांश के बीच निर्मित होने वाली उपोष्ण उच्च वायुदाब करीब 9 महीने तक स्थिर रहती है। यह विश्व का सर्वाधिक स्थिर वायुदाब पेटी है। इसे अश्व अक्षांश के नाम से भी संबोधित करते है क्योंकि औपनिवेशिक काल में वायुमंडलीय विशेषताओं का पूर्ण ज्ञान नहीं था तो घोड़ा से लदे जहाज डूबने लगते थे तो कुछ घोड़ों को समुद्र में फेंक क जहाज के दबाव को कम क दिया जाता था। इसी कारण से इसे अश्व अक्षांश भी कहते है।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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