27. समोच्च रेखाएँ (Contour Lines)
27. समोच्च रेखाएँ (Contour Lines)
समोच्च रेखाएँ
समुद्र तल से समान ऊँचाई पर स्थित बिन्दुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा को समोच्च रेखा कहा जाता है, इसे समतल रेखा भी कहा जाता है। समोच्च रेखा स्थलाकृतिक मानचित्र पर जमीन की ऊँचाई या अवसाद को इंगित करने के लिए खींची गई एक काल्पनिक रेखा है।
समोच्चरेखीय अंतराल :
दो उत्तरोत्तर समोच्च रेखाओं के बीच का अंतर को समोच्चरेखीय अंतराल कहा जाता है। इसे ऊर्ध्वाधर अंतराल भी कहते हैं। यह प्रायः अंग्रेजी के अक्षरों द्वारा लिखा जाता है। किसी भी मानचित्र पर प्राय: इसका मान स्थिर होता है।
समोच्च रेखाएँ माध्य समुद्र तल के ऊपर विभिन्न ऊर्ध्वाधर अंतरालों (VI), जैसे- 20, 50, 100 मीटर पर खींची जाती हैं। इसे समोच्च रेखाओं का अंतराल कहा जाता है। किसी भी दिए गए मानचित्र पर प्रायः यह नियत होता है। इसे सामान्यतः मीटर में व्यक्त किया जाता है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर ढाल की प्रकृति के अनुसार दो समोच्च रेखाओं के बीच की क्षैतिजीय दूरी में अंतर होता है जबकि उनके बीच का ऊर्ध्वाधर अंतराल अचल होता है। क्षैतिज दूरी, जिसे क्षैतिज तुल्यांक (HE) के नाम से भी जाना जाता है, मंद ढाल के लिए अधिक एवं तीव्र ढाल के लिए कम होती है।
समोच्च रेखाओं द्वारा धरातल प्रदर्शन (Relief Representation by Contour Lines)
बाह्य तथा आन्तरिक शक्तियों के कारण धरातल पर परिवर्तन होते हैं तथा ढाल में भी परिवर्तन होते हैं, जिससे आकृतियाँ भी परिवर्तित हो जाती है। इन ढालों को समोच्च रेखाओं द्वारा दिखाया जाता है। जिस प्रकार धरातल पर नदी, हिमानी, वायु और लहरों के प्रभाव से निश्चित आकृतियाँ बनती है, उसी भाँति ऐसी प्रत्येक निश्चित आकृति की समोच्च रेखाएँ भी विशेष स्वरूप वाली होगी। इस विशेषता के कारण थोड़े से अध्ययन के बाद ही अध्यानकर्त्ता आसानी से समोच्च मानचित्रों में उनकी आकृतियों को देखकर धरातल की प्रकृति का अनुमान लगा सकता है।
ऐसे समोच्च मानचित्र के माने गये दो बिन्दुओं को जोड़कर उनके बीच के भूतल की प्रकृति का वास्तविक रेखाचित्र या अनुप्रस्थ काट (Cross Section) बनाया जा सकता है। इससे अध्ययन कक्ष में ही दो स्थानों के बीच की अन्तःदृश्यता या पारदृश्यता (Intervisibility) ज्ञात करके कई समस्याओं का आसानी से समाधान ढूँढा जा सकता है।
समोच्च रेखाओं के कुछ मूल लक्षण :-
⇒ समोच्च रेखाएँ समान ऊँचाइयों वाले स्थान को दर्शाती हैं।
⇒ समोच्च रेखाएँ एवं उनकी आकृतियाँ स्थलाकृति के ढाल एवं ऊँचाई को दर्शाती हैं।
⇒ पास-पास खींची, अधिक घनी समोच्च रेखाएँ तीव्र ढाल को तथा दूर-दूर खींची हुई, कम घनी समोच्च रेखाएँ मंद ढाल को प्रदर्शित करती हैं।
⇒ दो या दो से अधिक समोच्च रेखाओं के एक-दूसरे से मिलने से ऊर्ध्वाधर वाली आकृतियाँ, जैसे- भृगु अथवा जलप्रपात प्रदर्शित होते हैं।
⇒ विभिन्न ऊँचाई वाली दो समोच्च रेखाएँ सामान्यतः एक-दूसरे को नहीं काटती हैं।
समोच्च रेखाएँ खींचते समय ध्यान रखने योग्य निम्नलिखित बातें:-
1. समोच्च रेखाएँ खण्डित एवं कटी हुई रेखाएँ नहीं होती। इनमें निरन्तरता (Continuity) रहती है।
2. एक मानचित्र की सभी समोच्च रेखाओं का मध्यान्तर समान रहता है अर्थात् उसमें कहीं भी दो समोच्च रेखाओं के बीच ऊर्ध्वाधर अन्तर (VI) नहीं बदलेगा।
3. कुछ विशेष धरातलीय लक्षण; जैसे- पहाड़ी, पर्वत शिखर, श्रेणी का ऊपरी भाग रेतीले या अन्य टीले और गर्तों की समोच्च रेखाएँ बन्द वक्र (Closed Curves) रेखाएँ होती हैं।
4. धीमे ढाल वाले क्षेत्र में समोच्च रेखाएँ दूर-दूर और ढाल की प्रवणता या तीव्रता बढ़ने के साथ-साथ ये अधिक पास-पास आती जाती है।
5. नदी घाटी और पहाड़ी के अगले भाग या पर्वत प्रक्षेप (स्पर) की समोच्च रेखाओं का आकार प्रायः समान रहता है। इन दोनों में ऊँचाइयों का क्रम एक-दूसरे के विपरीत रहता है चित्र (A) एवं (B)। इसी भाँति पहाड़ी एवं झील की बन्द समोच्च रेखाओं में ऊँचाइयाँ ढाल की विलोम प्रकृति के कारण विपरीत दिशा में अंकित की जाती है।
6. पर्वत श्रेणी के निचले ढालों, हिमानी या नदी घाटी के पाश्र्व एवं पठारी किनारों के ढाल को दर्शाने वाली समोच्च रेखाएँ प्रायः समानान्तर दिखायी देती है।
7. समोच्च रेखाएँ प्रवाह मार्गों को आड़ी काटती हुई बनायी जाती है। इन मार्गों को काटते समय वे घाटी तल के आकार के अनुसार (V या U आकार में) ऊपर की ओर मुड़ जाती है।
8. प्रत्येक समोच्च रेखा पर मध्यान्तर के अनुसार फीट, मीटर या माप की अन्य इकाई में ऊँचाई अवश्य अंकित की जाती है। यह अन्तर बढ़ती हुई ऊँचाईयों की ओर लिया जाता है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।