Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

BA SEMESTER/PAPER-VIHuman Geography - मानव भूगोल

2. मानव एवं वातावरण के बीच के सम्बन्ध

2. मानव एवं वातावरण के बीच के सम्बन्ध


मानव एवं वातावरण के बीच के सम्बन्ध

मानव एवं वातावरण

              मानव भूगोल में मानव एवं वातावरण के पारस्परिक सम्बन्ध अटूट हैं। मानव की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्रियाएँ उस पर्यावरण या वातावरण द्वारा प्रभावित और प्रायः निश्चित होती हैं जिनमें वह रहता है। इसीलिए कभी-कभी कहा जाता है कि मानव अपनी परिस्थितियों का जीव है। इसमें सन्देह नहीं कि मानव का प्रत्येक पहलू पर्यावरण द्वारा प्रभावित होता है, अतः पर्यावरण का विस्तृत अध्ययन आवश्यक हो जाता है।

          साधारण शब्दों में, “वातावरण उन सभी तथ्यों या दशाओं को कहते हैं जो किसी स्थान (आवास) या वस्तु को घेरे हैं एवं उसको प्रभावित करते हैं।” दूसरे अर्थों में, “वातावरण अर्थात् भौतिक वातावरण में वे सभी दशाएँ, तथ्य एवं प्रभाव सम्मिलित हैं जिनकी उपस्थिति पृथ्वी पर मानव के न होने पर भी बनी रहेगी।” यही बात महान् समाजशास्त्रीय प्रो० सोरोकिन ने भी कही।

ताँसले के अनुसार, “प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिनमें जीव रहते हैं, वातावरण कहलाता है।”

अमेरिकी भूगोलवेत्ता डॉ० डेविस के अनुसार, “मनुष्य के सन्दर्भ में मानव भूगोल से अर्थ भूमि या मानव के चारों ओर फैले उन सभी भौतिक स्वरूपों से है जिनका उसकी आदतों एवं कार्यों पर प्रभाव पड़ता है।” 

जर्मन वैज्ञानिक ए० फिटिंग के अनुसार, “जीवन की परिस्थिति के समस्त तथ्य मिलकर वातावरण कहलाते हैं।”

       इसी भाँति अमेरिकी मानवशास्त्री डॉ० हर्सकोविट्ज के अनुसार, “वातावरण उन सभी बाहरी दशाओं और प्रभावों का योग है जो कि किसी प्राणी के विकास व क्रियाओं को प्रभावित करते हैं।

        वर्तमान में वातावरण शब्द के उपयोग के साथ-साथ परिस्थिति की विद्वानों (Ecologist) द्वारा आवास या परिस्थान (Habitat) अथवा निवास (Milieu) शब्दों का प्रयोग किया जाने लगा है।

पार्क के अनुसार, “वातावरण (पर्यावरण) का अर्थ उन दशाओं के योग से होता है जो मनुष्य को निश्चित समय में निश्चित स्थान पर आवृत्त करती हैं।”

ए० गाउडी ने ‘The Nature of the Environment’ में पृथ्वी के भौतिक घटकों को ही वातावरण का प्रतिनिधि माना तथा पर्यावरण को प्रभावित करने में मानव को एक महत्वपूर्ण इकाई माना।

के० आर० दीक्षित के अनुसार, “वातावरण विश्व का समग्र दृष्टिकोण है क्योंकि यह किसी समय सन्दर्भ में बहुस्थानिक तत्वीय एवं सामाजिक-आर्थिक तन्त्रों, जो जैविक एवं अजैविक रूपों के व्यवहार/आचरण पद्धति तथा स्थान की गुणवत्ता तथा गुणों के आधार पर एक-दूसरे से अलग होते हैं, के साथ कार्य करता है।”

          मानव जिस धरती पर रहता है, उसे प्राकृतिक तत्वों के चारों ओर से घेर रखा है। ये प्राकृतिक तत्व मानव के कार्यकलापों पर प्रभाव डालते हैं और उनके प्रभाव से मानव के कार्यकलापों में परिवर्तन हो जाता है। आधुनिक समय में मानव इन प्राकृतिक तत्वों का दास तो नहीं है परन्तु इनके प्रभाव से वंचित भी नहीं रह सकता है।

       मानव समयानुसार और क्षमतानुसार इन तत्वों का रूपान्तरण कर देता है और जहाँ रूपान्तरण सम्भव नहीं होता है, वहाँ अनुकूलन कर देता है। भौगोलिक वातावरण से तात्पर्य उन अवस्थाओं से है जिनका अस्तित्व एवं कार्य स्वतन्त्र हैं जो मानव रचित नहीं और जो मानव के अस्तित्व एवं कार्यों से प्रभावित हुए बिना स्वतः परिवर्तित होती है।

       इस प्रकार पृथ्वी पर घटित होने वाली ये प्राकृतिक दशाएँ जिनका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है, प्राकृतिक पर्यावरण कहलाता है।

           मानव भूगोल के सिद्धान्तों को पूर्ण रूप से समझने के लिए मानव और उसके वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों को समझना आवश्यक है। इसके लिए वातावरण के प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ह्राइट और रैनर ने भौगोलिक वातावरण के महत्व को निम्नांकित शब्दों में व्यक्त किया है-

         “भौतिक वातावरण मानव के बड़े समूहों को बहुत ही प्रत्यक्ष रूप से और प्राथमिक तरीके से प्रभावित करता है। प्रत्येक ऐसे समूह, जनजाति, राज्य, राष्ट्र और पृथ्वी के सभी साम्राज्य (देश-प्रदेश) इसके द्वारा सीधे तौर पर निरन्तर रूप से प्रभावित होते हैं। मानव की सभी महत्वपूर्ण क्रियाएँ भौतिक वातावरण की अनुकूलता की रुकावटों एवं उनमें निहित निर्देशों से स्वतंत्र नहीं हैं। प्राकृतिक वातावरण मानव समाज के लिए वही करता है जो कि सांस्कृतिक वातावरण व्यक्तिगत मनुष्य के लिए।”

          मानव और वातावरण के सम्बन्ध को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. सीधे भौतिक प्रभाव (Direct Physical Effects):-

      पर्यावरण के सभी तत्वों में जलवायु का प्रभाव सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जो मानव को सीधा प्रभावित करता है। जलवायु का प्रभाव प्राकृतिक वनस्पति और मिट्टियों द्वारा मनुष्य पर पड़ता है। जलवायु का प्रभाव मनुष्य के कद, शरीर की बनावट, रंग आदि पर पड़ता है। इसी प्रकार वातावरण मनुष्य की शारीरिक शक्ति को भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है जिससे उसके शरीर का एक भाग दूसरे की अपेक्षा अधिक सुदृढ़ और बलिष्ठ बन जाता है।

          कुमारी सैम्पल ने उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया है कि पर्वतीय भागों में मनुष्य के पैर बलिष्ठ और हाथ कम बलिष्ठ होते हैं, जबकि नदियों वाले मैदानी भागों में जहाँ उसे हाथ से नाव चलानी पड़ती है, हाथ बलिष्ठ और पैर कम बलिष्ठ होते हैं। प्रतिकूल वातावरण में रहने पर आँखों और त्वचा पर भी प्रभाव पड़ता है। तुर्कमान लोगों की आँखें छोटी और पलकें भारी होती हैं क्योंकि वे हमेशा मरूस्थलीय भागों में रहते हैं। इसी प्रकार कुमारी सैम्पल ने बताया कि मानव के क्रिया-कलापों पर भौतिक वातावरण के सभी तत्वों (कारकों) का प्रभाव बहुरूपी एवं निर्णायक रहता है।

2. मानसिक प्रभाव (Mental Effects):-

       इस प्रकार के प्रभाव मनुष्यों के धर्म, उनके साहित्य, भाषा, आचार-विचार में दिखाई देते हैं। मनुष्य के धार्मिक विचार उसके वातावरण की ही उपजें हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य के धार्मिक विश्वास उसके पर्यावरण की ही उपज है। एक एस्किमो के लिए नर्क वह स्थान है जहाँ सदैव अंधेरा रहता है, तूफान आते हैं और कठोर सर्दी पड़ती है, जबकि एक ज्यू के लिए नर्क निरन्तर जलती हुई आग का स्थान है।

          हिन्दू धर्म में स्वर्ग का अर्थ निर्वाण या मोक्ष प्राप्त करना माना गया है। भाषा पर भी वातावरण का अमिट प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, उत्तरी रूस के सेमोइड लोग अपने रेण्डियरों के लिए 11 या 12 शब्दों का प्रयोग करते हैं। यही बात पशुपालक लोगों के बारे में; जैसे-मैग्यार, मलैय एव खिरगीज लोगों पर लागू होती है किन्तु सैम्पल का कथन है कि मानसिक प्रभाव केवल अनुमान लगाने की ही वस्तु है जिससे भूगोलशास्त्री का कोई मतलब नहीं।

3. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव (Economic and Social Effects):-

               किसी स्थान की भौगोलिक अवस्थाएँ ही इस बात का निर्धारण करती हैं कि वहाँ आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति सरलता से होगी अथवा कठिनाई से, वहाँ किस प्रकार के उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं। इस प्रकार के प्रभाव ही मानव समाज में आकार को निर्धारित करते हैं। जिन क्षेत्रों, द्वीपों या पर्वतीय भागों में आर्थिक संसाधन कम मात्रा में पाये जाते हैं, वहाँ मनुष्य भी छोटे समुदायों में पाये जाते हैं क्योंकि उन क्षेत्रों में उनके लिए उपयुक्त वातावरण नहीं मिलता।

4. मानव की गतियों को प्रभावित करने वाले प्रभाव:-

             मानव समूह को प्रभावित करने वाले ये तत्व वास्तव में अधिक प्रभावी होते हैं। पहाड़ों, मरूस्थलों, दलदलों, समुद्रों आदि का प्रभाव मानव के प्रवास पर पड़ता है। यह सभी उनके मार्ग का निर्धारण करते हैं, सहयोग अथवा असहयोग देते हैं। नदियों द्वारा मार्गों को सुलभ करना तथा यातायात के साधनों के रूप में सहयोग प्रदान करना जिससे अनेक मानव जातियों ने दूर-दूर जाकर अपनी बस्तियाँ स्थापित की। पर्वत अवरोध उत्पन्न करते हैं। भारतवर्ष के उत्तर में हिमालय पर्वत ने मध्य एशिया से सम्पर्क को हमेशा से ही रोकने का प्रयास किया है।

           कुमारी सैम्पल, प्रो० रेटजल एवं अन्य नियतिवादी विद्वानों ने जो कुछ कहा, उसका सार यह है कि अल्प विकसित एवं जनजाति समाज में भौतिक वातावरण का प्रभाव आज भी पूरी तरह शासक बना रहता है। ऐसे मानव समूह वही क्रिया-कलाप, उद्यम एवं व्यवसाय अपनाते हैं जो कि वहाँ की प्राकृतिक दशा की विशेष व्यवस्था में सम्भव है। ध्रुवीय प्रदेश का मानव समाज मात्र शिकार करके अपना पेट पालता है। चारागाह प्रदेशों में घुमन्तु पशुपालन (Trans-humnance) ही महत्वपूर्ण व्यवसाय रहा है।

             इसी भाँति उष्ण मरूस्थलीय जैसे सीमित संसाधनों वाले प्रदेशों में मनुष्य या समाज को ऐसे सीमित साधनों में ही संघर्षपूर्ण जीवन जीना पड़ता है। इस प्रकार मानव भौतिक वातावरण की प्रतिकूलता में सीमित समूहों में ही रहकर विशेष प्रकार से सामंजस्य स्थापित करने का निरन्तर प्रयास करता रहता है।

           द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अनेक प्रकार से मानवीय तकनीक, उद्यम एवं सामंजस्य स्थापित करने के सबल तौर-तरीके विकसित होते जाने से अब प्रतिकूल प्रदेशों में भी स्थिति पहले से अनुकूल बनने लगी है किन्तु बाढ़, सूखा व अकाल मौत की छाया यह सभी प्रतिकूल प्रदेशों में आज भी अभिशाप हैं। इसके साथ-साथ मानव ने वनों की निर्दयतापूर्वक काटकर प्राकृतिक सन्तुलन को बिना सोचे-समझे नष्ट करके अपनी कठिनाइयों को बढ़ाया है। प्रकृति मानव पर अब बाढ़, सूखा, रोग, प्रदूषण, नये-नये प्रतिकूल कीटाणु व उनके जहरीले प्रभाव से (अब विकसित समाज पर भी अपना स्पष्ट प्रभाव दिखा रही है। इनसे छुटकारा पाने के लिए मानव को भी वातावरण का मित्र बनना व उससे सार्थक रूप से सामंजस्य करना आवश्यक है।

प्रश्न प्रारूप

1. मानव एवं वातावरण के बीच के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।

अथवा, मानव एवं पर्यावरण में संबंधों की विवेचना कीजिए।


Tagged:
I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts

error:
Home