Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOGRAPHY OF INDIA(भारत का भूगोल)

33. भारत में सूखा के कारण, प्रभावित क्षेत्र एवं समाधान

33. भारत में सूखा के कारण, प्रभावित क्षेत्र एवं समाधान



परिभाषा- 

          भारतीय मौसम आयोग (IMO) ने सूखा को परिभाषित करते हुए बतलाया है की मई माह के मध्य से अक्टूबर माह के मध्य लगातार 4 सप्ताह तक वर्षा की मात्रा 5 सेमी० या उससे कम हो, सूखा की स्थिति कहलाएगी। यही समयावधि मानसून के आगमन का है, इसीलिए इसे सूखा का पैमाना बनाया गया है। यानी मानसून के कमजोर होने पर सूखा की स्थिति लगभग तय है।

कारण-

       सूखे की स्थिति के लिए अनेक भौगोलिक कारक जिम्मेदार है-

(i) मानसून की अनिश्चिता-

        इसे फ्लोन का विषुवतीय पछुआ सिद्धांत, जेट स्ट्रीम व एल-नीनो से स्पष्ट किया जा सकता है।

(ii) वनों की कटाई व मृदा का अपरदन-

        वनों की कटाई से वायुमंडलीय आर्द्रता में कमी और तापमान में वृद्धि होती है, जिससे बादल निर्माण की प्रक्रिया बाधित होती है और वर्षा के अभाव में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

       मृदा अपरदन से मिट्टी का ऊपरी सतह अपरदित हो जाता है और नग्न चट्टाने दृष्टिगत होने लगती है। नग्न चट्टानों की जल ग्राहय क्षमता कम होती है। इससे प्रदेश का भूमिगत जलस्तर नीचे चला जाता है और सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।

       पुन: मिट्टी के नमी में कमी आने से फसल मारी जाती है। ऐसी समस्या झारखंड के चतरा और पलामू बिहार के भभुआ और नवादा आदि जिलों में पाई जाती है। ऐसी ही समस्या चंबल, बेतबा और केन नदी के बेसिनों में भी मिलती है।

(iii) तापमान में वृद्धि-

        यह कारक मूलत: जलवायु परिवर्तन की परिस्थितियों से जुड़ा हुआ है। इससे वायुमंडलीय तापमान में लगातार वृद्धि की स्थिति है। नग्न चट्टानें सूर्याताप के प्रभाव में आ जाती है और वाष्पोत्सर्जन की क्रिया तेजी से होने लगती है और अधिक ताप के ही वाष्प संघनित नहीं हो पाते हैं, जिससे वर्षा नहीं हो पाती है। उत्तर भारत के पठारीय क्षेत्रों में सूखे के स्थिति का प्रमुख कारण यही है। साथ ही चंबल घाटी से लेकर झारखंड के चतरा जिला के बीच सूखा के लिए यही कारण प्रमुख है।

(iv) असमान वर्षा का वितरण-

          संपूर्ण भारत में वर्षा का वितरण असमान होने के कारण भी सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है। न्यून वर्षा क्षेत्रों में इसकी प्रबलता तत्काल दृष्टिगोचर होती है।

सूखा जनित समस्याएँ

⇒ कृषि कार्य हेतु जलजमाव की समस्या

⇒ तापमान वृद्धि की समस्या

⇒ वन ह्रास व मृदा अपरदन की समस्या

⇒ पेय जल की समस्या

⇒ जलस्तर में गिरावट व भू-आर्द्रता में कमी

⇒ संक्रमण व बिमारियों के प्रकोप में वृद्धि

⇒ सरकारी व निजी कार्यों के संचालन में बाधा

वितरण-

       भारत में सुखा प्रभावित क्षेत्र मुख्यत: पश्चिम भारत में स्थित है। IMO के अनुसार 13 राज्यों के 67 जिलों में लगभग स्थायी तौर पर सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है। भारत का मध्यवर्ती राज्य व पठारीय भाग इसके अंतर्गत आते है। लेकिन भौगोलिक वितरण के दृष्टि से अगर देखा जाए तो 50 सेमी० वार्षिक वर्षा से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में लगभग प्रत्येक वर्ष सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। भारत के सिंचाई अयोजनानुसार यह दायरा 75 सेमी० से कम वर्षा वाले क्षेत्र तक है। 75 सेमी० वर्षा रेखा भारत को सुखा व आर्द्र दो भागों में बांटता है। सूखा आगमन की बारंबारता के दृष्टिगत 100 सेमी० से कम वर्षा वाला क्षेत्र सूखे की सबसे अधिक संभावित क्षेत्र है।

भारत में सूखा के कारण
चित्र: भारत में वर्षा का सामान्य वितरण

         100 सेमी० से 150 सेमी० के बीच वाले क्षेत्रों में एक विशिष्ट स्थिति होती है। यहां कभी बाढ़, कभी सुखाड़ या बाढ़ एवं सुखाड़ की वैकल्पिक स्थिति देखने को मिलती है। उदाहरण के तौर पर बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल का उल्लेख किया जा सकता है। प्राय: 150 सेमी० से अधिक वर्षा वाला क्षेत्र अधिक वर्षा के बाद जद में क्षेत्र की लहलहाती फसलों को डूबो देती है और अंतत: सूखे की स्थिति उत्पन्न कर देती है।

सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए किए गए विकास कार्य:-

     इस दिशा में पहली योजना भारत में 1863 ई० में बनी थी जो आकाल आयोग के रिपोर्ट पर आधारित थी। इसके अंतर्गत नदियों से कुछ प्रत्यक्ष नहर निकले गए जिसमें सरहिंद नहर प्रमुख था। पंजाब राज्य में संप्रति नहर। परंतु, सुख से निजात हेतु वास्तविक प्रयास स्वतंत्रता के बाद किए गए। जिसके तहत दो महत्वपूर्ण स्वीकृत प्रयास थे- 

1. बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना

2. वानिकी व बंजर भूमि सुधार योजना

      बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना में कावेरी जल कमान एरिया और भाखड़ा नांगल परियोजना प्रमुख था। कावेरी जल कमान एरिया तमिलनाडु के तंजौर जिला में स्थित है। पहले यह जिला सूखाग्रस्त था लेकिन आज हरित क्रांति का क्षेत्र बन चुका है। इस प्रकार भाखड़ा नांगल परियोजना से पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में कृषि कार्य में तेजी आई।

        वानिकी एवं बंजर भूमि की योजना द्वारा तापीय प्रभाव को कम किया गया है जिससे आर्द्रता में वृद्धि हुई। वानिकी एवं बंजर भूमि विकास योजना के द्वारा मिट्टी के नमी क्षमता में वृद्धि करने का प्रयास किया जा रहा है। 1967 ई० के सूखे के बाद सिंचाई संदर्भ को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है। 

       पांचवीं पंचवर्षीय योजना में “कमांड क्षेत्र विकास योजना” और “सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास योजना” (DPADP) प्रारंभ की गई। प्रथम के तहत 97 कमांड क्षेत्र चिह्नित किए गए जैसे चंबल कमांड क्षेत्र, सोन कमांड क्षेत्र, इंदिरा कमांड क्षेत्र आदि। इसके अंतर्गत 189 लाख हैक्टेयर भूमि सिंचाई की व्यवस्था है।     

        DPADR संपूर्ण भारत में चलाए जा रहे हैं। शुष्क कृषि विकास, स्थानीय जल संसाधन का उचित प्रबंध, वैज्ञानिक भू-उपयोग पद्धति का विकास, ग्रामीण स्तर पर वानिकी व पशुपालन को प्रोत्साहन इस योजना के प्रमुख लक्ष्य है। सूखे की स्थिति में भी फसल कम से कम प्रभावित हो इसके लिए विशेष किस्म के बीज तैयार किया जा रहे हैं। जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में उगाने हेतु कपास के PRS72, PRS73, PRS74 नमक बीज विकसित किया गया है। राजस्थान के लिए 100 दिन में उपजा लिए जाने वाले चावल के बीच तैयार किए गए हैं। इस क्षेत्र में नित नए शोध कार्य जारी है।

       सूखे से निजात हेतु आपातकालीन कार्यक्रम भी चलाए गए हैं। जिसका आवंटन वार्षिक बजट में किया जाता है। आठवें वित्त आयोग के अनुसार सूखाग्रस्त क्षेत्र में हुए हानि का जायजा व सहायतार्थ कार्य केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी।

सुझाव-

     यद्यपि सूखाग्रस्त की समस्या के समाधान हेतु कई स्तरों पर प्रयास किए गए हैं, लेकिन यह समस्याएं आज राष्ट्रीय समस्या के रूप में कायम है। आज अधिक पेनेट्रेटिव योजनाओं, पर्यावरण हितैषी टिकाऊ विकास नीति, मानसून का सही आंकलन पर विशेष जोर देने की जरूरत है। नदी जोड़ योजना कार्य में तेजी लाने की आवश्यकता है।

⇒ बड़ी परियोजनाओं पर पुनः विचार करने की जरूरत है क्योंकि गहन आंकलन के बाद जयपुर पर्यावरण अध्ययन केंद्र ने संकेत दिया था की बड़ी परियोजनाएं मानसूनी जलवायु को बदल सकती है।

⇒ सूखाग्रस्त इलाकों में पशुपालन कृषि को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, क्योंकि चारा उत्पादन हेतु अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। यह कार्यक्रम राजस्थान में सफल भी हो रहे हैं। स्थानीय जल सुविधा व वर्षा जल संरक्षण पर विशेष ध्यान व जागरूकता लाने की जरूरत है।

⇒ बिहार राज्य प विश्व बैंक की रिपोर्ट है कि यहां नह के बदले ट्यूबवेल सिंचाई अधिक समीचीन है।

          अंततः सुखा का सामना सामूहिक प्रयास से ही संभव है। 

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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